डमरू त्रिनेत्र

 भगवान शिव के डमरू और त्रिनेत्र के बारे में जानिए

हिंदू धर्म में, डमरू को भगवान शिव का उपकरण माना जाता है, जो तांत्रिक परंपराओं से जुड़े हैं. ऐसा कहा जाता है कि शिव ने आध्यात्मिक ध्वनियां पैदा करने के लिए डमरू बनाया था, जिनसे पूरे ब्रह्मांड का निर्माण और नियमन हुआ. डमरू को डुगडुगी भी कहा जाता है. यह एक भारतीय ग्राम्य वाद्य है 
ज्योतिष शास्त्र के मुताबिक, घर में डमरू रखना शुभ माना जाता है. कहा जाता है कि घर में शिव स्तुति के समय डमरू बजाने से घर में अमंगल नहीं होता और नकारात्मक ऊर्जा भी प्रवेश नहीं करती. डमरू की ध्वनि से बीमारियों से लड़ने की ताकत मिलती है, क्योंकि शिव जी के डमरू से चमत्कारी मंत्रों का उच्चारण होता है. शिव जी के डमरू की ध्वनि में तनाव को कम करने की शक्ति होती है और साथ ही साथ मन को भी शांत करने का काम करती है
Know about Lord Shiva's Damru and Trinetra

भगवान शिव के त्रिनेत्र के बारे में /About Trinetra of Lord Shiva

शिवोनामासि ज्ञानचक्षु त्रिनेत्र:।
यह तीसरा नेत्र अलौलिक ज्ञान का प्रतीक है, यह किसी अन्य देवता के पास नहीं है। इस अलौलिक ज्ञान के नेत्र के कारण ही वे देवों के देव महादेव कहलाए। वह अपने ज्ञानचक्षु से ही भविष्य में होने वाली घटनाओं के बारे में जान पाते हैं। ज्ञानचक्षु ही भगवान शिव को भविष्यद्रष्टा बनाता है।
त्रिनेत्र का मतलब होता है तीन आंखें. हिंदू धर्म में भगवान शिव को त्रिनेत्र कहा जाता है क्योंकि उनके शरीर पर तीन आंखें होती हैं. भगवान शिव के तीसरे नेत्र को ज्ञान, त्याग, और संसार के रहस्यों को समझने के लिए समर्पित किया गया है. इसे शिव की तपस्या, ध्यान, और अध्यात्मिक उन्नति का प्रतीक माना जाता है. यह तीसरा नेत्र अलौलिक ज्ञान का प्रतीक है, यह किसी अन्य देवता के पास नहीं है. इस अलौलिक ज्ञान के नेत्र के कारण ही वे देवों के देव महादेव कहलाए. वह अपने ज्ञानचक्षु से ही भविष्य में होने वाली घटनाओं के बारे में जान पाते हैं. ज्ञानचक्षु ही भगवान शिव को भविष्यद्रष्टा बनाता है. !

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