नवरात्रि की महाकथा: शक्ति की उपासना और महिषासुर वध | Navratri: kee mahaakatha: shakti kee upaasana aur mahishaasur vadh

नवरात्रि की महाकथा: शक्ति की उपासना और महिषासुर वध

नवरात्रि की महाकथा की शुरुआत तब से मानी जाती है, जब महादानव महिषासुर ने शिव की अराधना करके अद्वितीय शक्तियां प्राप्त कर ली थीं और त्रिदेव- ब्रह्मा, विष्णु, महेश भी उसे हराने में असमर्थ थे। तब सभी देवताओं ने मिलकर एक तेज प्रकट किया, जिसने एकत्र होने पर 'शक्ति दुर्गा' का रूप लिया और महिषासुर का वध कर के देवताओं को कष्ट-मुक्त किया। भारतीय अध्यात्म में मां दुर्गा आदिशक्ति के रूप में प्रतिष्ठित हैं।

भक्तों के कष्टों को क्षण भर में हर लेने वाली जगत-जननी जगदम्बा की शक्ति के नौ रूपों की साधना के लिए वर्ष में दो बार नवरात्रि पूजा का विधान है। पहली, चैत्र माह के शुक्ल पक्ष की पहली तिथि से लेकर नवमी तिथि तक मनाई जाती है, जिसका समापन रामनवमी के पावन पर्व से होता है। दूसरी, अश्विन माह के शुक्ल पक्ष की पहली तिथि से नवमी तिथि तक मनाई जाती है, जिसके अगले दिन दशहरा पर्व बुराई पर अच्छाई की विजय के प्रतीक रूप में मनाया जाता है। दुर्गा उपासना की इन दोनों नौ रात्रियों को क्रमशः वासंतिक और शारदीय नवरात्र कहा जाता है।

नवरात्रि पूजा विधि

नवरात्रि के पहले दिन घर पर देवी-स्थापना की जाती है। इसके लिए मंदिरों या घरों में पूर्व-पश्चिम दिशा की ओर एक चौकी पर मिट्टी का कलश पानी भरकर मंत्रोच्चार सहित रखा जाता है। मिट्टी के दो बड़े कटोरों में जौ या गेहूं के दाने बोकर ज्वारे उगाए जाते हैं। नौ दिनों तक घर में या मंदिरों में 'शतचंडी' और 'दुर्गा सप्तशती' का पाठ किया जाता है और उपवास रखे जाते हैं। अंतिम दिन हवन करके कुमारी पूजन एवं भोज का आयोजन किया जाता है। दशमी के दिन देवी-प्रतिमा व ज्वारों का विसर्जन कर दिया जाता है।

नवरात्रि के नौ देवियाँ और उनकी उपासना मंत्र

  1. माँ शैलपुत्री - पार्वती और सती के रूप में प्रसिद्ध। मंत्र: वंदे वांछितलाभाय चंद्रार्धकृतशेखराम। वृषारूढ़ां शूलधरां शैलपुत्री यशस्विनीम॥

  2. माँ ब्रह्मचारिणी - तपस्या की देवी। मंत्र: दधाना कपद्माभ्यामक्षमालाकमंडलू। देवी प्रसीदतु मयि ब्रहमचारिण्यनुत्तमा॥

  3. माँ चंद्रघंटा - घंटे के समान निनाद से दैत्यों का नाश करने वाली। मंत्र: पिण्डज प्रवरारूढ़ा चण्डकोपास्त्रकैयुता। प्रसादं तनुते मह्यं चंद्रघण्टेति विश्रुता॥

  4. माँ कुष्मांडा - सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड की रचयिता। मंत्र: सुरासम्पूर्णकलशं रुधिराप्लुतमेव च। दधाना हस्तपद्माभ्याम कुष्मांडा शुभदास्तु मे॥

  5. माँ स्कन्दमाता - भगवान कार्तिकेय की माता। मंत्र: सिंहासानगता नित्यम पद्मश्रितकरद्वया। शुभदास्तु सदा देवी स्कंदमाता यशस्विनी॥

  6. माँ कात्यायनी - दानवों का नाश करने वाली। मंत्र: चंद्र्हासोज्ज्वलकरा शाइलवरवाहना। कात्यायनी शुभं दध्याद्देवी दानवघातिनी॥

  7. माँ कालरात्रि - भय का नाश करने वाली। मंत्र: एक वेधी जपाकर्णपूरा नग्ना खरास्थिता। लम्बोष्ठी कर्णिकाकणी तैलाभ्यक्तशारीरिणी॥

  8. माँ महागौरी - सौंदर्य और शुद्धता की देवी। मंत्र: श्वेते वृषे समरूढ़ा श्वेताम्बरधरा शुचिः। महागौरी शुभं दध्यन्महादेवप्रमोददा॥

  9. माँ सिद्धिदात्री - सभी सिद्धियों की दात्री। मंत्र: सिद्धगंधर्वयक्षाद्यैरसुरैरमरैरपि। सेव्यमाना सदा भूयात सिद्धिदा सिद्धिदायिनी॥

भारत में नवरात्रि के विविध रूप

  • गुजरात: गरबा-नृत्य और दांडिया-रास के साथ उत्सव।

  • पश्चिम बंगाल: पाँच दिनों तक भव्य दुर्गा-पूजा और मूर्ति विसर्जन।

  • केरल: विद्यारंभ और आयुध-पूजन का महत्व।

  • उत्तर भारत: व्रत, उपवास और दशहरे पर पुतला दहन।

  • जम्मू-कश्मीर: खीर भवानी मंदिर में पूजा-अर्चना।

रामनवमी और दशहरा का संबंध

दोनों नवरात्रियों का समापन भगवान श्रीराम के साथ जुड़ा हुआ है। चैत्र नवरात्रि के नौवें दिन श्रीराम का जन्म हुआ था, इसलिए इसे रामनवमी कहा जाता है। वहीं, शारदीय नवरात्रि के दशवें दिन रावण पर राम की विजय को दशहरा के रूप में मनाया जाता है। इस दिन रावण, कुम्भकरण और मेघनाथ के पुतले जलाकर विजयादशमी मनाई जाती है।

नवरात्रि सिर्फ उपासना और आराधना का पर्व नहीं, बल्कि आत्मशुद्धि, साधना और आत्मबल को जागृत करने का भी पर्व है। यह पर्व हमें बुराइयों से लड़ने और आत्मनिर्भर बनने की प्रेरणा देता है

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