नवदुर्गा के औषधि रूप: आयुर्वेदिक दृष्टि से नवरात्रि का महत्व | Nav Durga: ke aushadhi roop: aayurvedik drshti se navaraatri ka mahatv
नवदुर्गा के औषधि रूप: आयुर्वेदिक दृष्टि से नवरात्रि का महत्व
नवरात्रि भारतीय संस्कृति में आध्यात्मिक, धार्मिक और सामाजिक दृष्टि से महत्वपूर्ण पर्व है। इस दौरान माँ दुर्गा के नौ स्वरूपों की पूजा-अर्चना की जाती है। नवरात्रि के दिनों को तीन भागों में बाँटा गया है - पहले तीन दिनों में तमस को जीतने की आराधना, अगले तीन दिन रजस और आखिरी तीन दिन सत्व को जीतने की अर्चना के लिए माने गए हैं।
देवी महात्म्य में माँ दुर्गा को 'शाकंभरी' कहा गया है, जिसका अर्थ है कि वह संसार को औषधियों और वनस्पतियों के माध्यम से जीवन प्रदान करती हैं। आयुर्वेद के अनुसार, नवदुर्गा के नौ रूपों से जुड़ी औषधियाँ हमारे शरीर की समस्त व्याधियों को दूर कर दीर्घायु प्रदान करती हैं। आइए जानते हैं नवदुर्गा के नौ औषधीय स्वरूपों के बारे में:
1. शैलपुत्री (हरड़)
शैलपुत्री को हिमालय की पुत्री कहा जाता है। आयुर्वेद में इसे हरड़ (हरीतकी) के रूप में जाना जाता है, जो पाचन सुधारने, शरीर से विषाक्त पदार्थों को निकालने और रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने में सहायक है। हरड़ के सेवन से मनुष्य दीर्घायु प्राप्त करता है।
ब्रह्मचारिणी देवी को ब्राह्मी औषधि से जोड़ा गया है, जो स्मरण शक्ति बढ़ाने, मानसिक शांति प्रदान करने और मस्तिष्क को बल देने में सहायक होती है। यह रक्त विकारों को दूर करने और स्वर को मधुर बनाने में भी सहायक मानी जाती है।
माँ चंद्रघंटा को चन्दुसूर या चमसूर से जोड़ा जाता है। यह औषधि शरीर में अतिरिक्त चर्बी को कम करने, रक्त को शुद्ध करने और हृदय रोगों को ठीक करने में सहायक होती है। यह मोटापा घटाने और रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने में भी लाभकारी है।
माँ कुष्माण्डा को पेठे (कुम्हड़े) से जोड़ा गया है। यह वीर्यवर्धक, हृदय के लिए लाभकारी और रक्त शुद्ध करने वाली औषधि है। कुम्हड़ा मानसिक कमजोरी को दूर कर शरीर के समस्त दोषों को ठीक करता है।
स्कंदमाता देवी को अलसी से जोड़ा जाता है। अलसी वात, पित्त, कफ नाशक है और शरीर को पोषण देने वाली उत्तम औषधि मानी जाती है। यह पाचन तंत्र को सुधारने और त्वचा को स्वस्थ बनाए रखने में सहायक है।
माँ कात्यायनी को मोइया या माचिका से जोड़ा गया है। यह कफ, पित्त और रक्त विकारों को दूर करने में सहायक होती है। इसके सेवन से शरीर में रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है और गले के संक्रमण में भी यह लाभकारी होती है।
माँ कालरात्रि को नागदौन नामक औषधि से जोड़ा गया है, जो मानसिक शांति प्रदान करती है और विष नाशक मानी जाती है। यह हृदय और रक्त संचार प्रणाली को स्वस्थ रखने में सहायक होती है।
महागौरी को तुलसी से जोड़ा जाता है। तुलसी औषधीय गुणों से भरपूर होती है, जो रक्त को शुद्ध करने, हृदय रोगों को दूर करने और रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने में सहायक होती है। तुलसी का नियमित सेवन शरीर को अनेक रोगों से बचाता है।
माँ सिद्धिदात्री को शतावरी से जोड़ा जाता है, जो एक उत्तम बलवर्धक औषधि है। यह हृदय को शक्ति प्रदान करती है, रक्त विकारों को दूर करती है और संपूर्ण शरीर को स्वस्थ बनाए रखने में सहायक होती है।
निष्कर्ष
नवरात्रि केवल एक धार्मिक पर्व नहीं, बल्कि आयुर्वेद और स्वास्थ्य से भी गहराई से जुड़ा हुआ है। माँ दुर्गा के नौ स्वरूपों में निहित औषधीय गुण हमें शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य प्रदान करते हैं। यदि हम इन औषधियों का उचित सेवन करें और माँ की उपासना करें, तो यह न केवल आध्यात्मिक बल्कि स्वास्थ्य की दृष्टि से भी हमारे लिए लाभकारी होगा।
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