माँ शैलपुत्री की सच्ची कहानी, जिसे जानकर आपकी भक्ति और बढ़ जाएगी | Maa Shailaputri kee sachchee kahaanee, jise jaanakar aapakee bhakti aur badh jaegee

माँ शैलपुत्री की सच्ची कहानी, जिसे जानकर आपकी भक्ति और बढ़ जाएगी

मां शैलपुत्री देवी दुर्गा के नौ स्वरूपों में पहला स्वरूप मानी जाती हैं। नवरात्रि के प्रथम दिन भक्तगण मां शैलपुत्री की पूजा-अर्चना कर अपने आध्यात्मिक और सांसारिक जीवन को शक्ति प्रदान करने का संकल्प लेते हैं। मां शैलपुत्री हिमालय राज की पुत्री होने के कारण इस नाम से प्रसिद्ध हुईं। इन्हें वृषारूढ़ा भी कहा जाता है क्योंकि ये वृषभ (बैल) पर विराजमान रहती हैं। देवी शैलपुत्री का स्वरूप सौम्य और दिव्य होता है।

शैलपुत्री देवी की कहानी

शिव महापुराण के अनुसार, एक बार प्रजापति दक्ष ने एक बहुत बड़े यज्ञ का आयोजन किया था। इस यज्ञ में उन्होंने सभी देवी-देवताओं एवं ऋषियों को अपना यज्ञ-भाग प्राप्त करने के लिए निमंत्रित किया, किंतु उन्होंने इस यज्ञ में अपने दामाद अर्थात शिवजी को आमंत्रित नहीं किया। जब यह समाचार माता सती ने सुना कि उनके पिता एक अत्यंत विशाल यज्ञ का अनुष्ठान कर रहे हैं, तो माता सती का मन भी उस यज्ञ में शामिल होने के लिए व्याकुल हो उठा।

इसके बाद माता सती ने यज्ञ में चलने के लिए शिव जी से आग्रह किया तब शिव जी ने उत्तर दिया कि इस यज्ञ में समस्त देवी-देवताओं एवं ऋषियों को निमंत्रित किया गया है, किंतु हमें यज्ञ-भाग हेतु बुलावा नहीं भेजा गया है। ऐसी स्थिति में बिना निमंत्रण के हमारा वहां जाना उचित नहीं है।

किंतु शंकरजी के इन विचारों से माता सती सहमत नहीं हुई और पिता के यज्ञ का हिस्सा बनने के लिए उस आयोजन में पहुंच गई। लेकिन पिता प्रजापति दक्ष ने उनके उस आयोजन में आने की उपेक्षा की, तथा शिव जी के लिए अपमानजनक शब्दों का प्रयोग किया। अपने पिता द्वारा अपने पति का यह अपमान देखकर माता सती का मन पश्चाताप, क्षोभ एवं क्रोध से भर उठा, और वह इस दुर्व्यवहार को सहन नहीं कर सकी। उन्होंने उसी क्षण योगाग्नि द्वारा स्वयं को भस्म कर लिया।

इसके बाद अपने अगले जन्म में माता सती ने ही पर्वतराज हिमालय की पुत्री के रूप में जन्म लिया। इस बार वे ‘शैलपुत्री’ के नाम से विख्यात हुईं। माता सती के समान ही माँ शैलपुत्री महादेव शिव की अर्धांगिनी बनीं।

मां शैलपुत्री का स्वरूप

  • मां शैलपुत्री का स्वरूप अत्यंत दिव्य और आकर्षक होता है।
  • वे वृषभ (बैल) पर सवार रहती हैं।
  • दाएं हाथ में त्रिशूल धारण करती हैं।
  • बाएं हाथ में कमल का पुष्प सुशोभित होता है।
  • इनके मस्तक पर चंद्रमा का अद्भुत प्रकाश होता है।
  • देवी का स्वरूप शांति और शक्ति का अद्वितीय संगम है।

टिप्पणियाँ