चैत्र नवरात्रि 2025: माँ स्कंदमाता की पूजा विधि, मंत्र, कथा और महिमा | Chaitra Navratri 2025: Maa Skandamata kee pooja vidhi, mantr, katha aur mahima

चैत्र नवरात्रि 2025: माँ स्कंदमाता की पूजा विधि, मंत्र, कथा और महिमा

नवरात्रि के पांचवें दिन माँ दुर्गा के स्कंदमाता स्वरूप की पूजा की जाती है। भगवान स्कंद, जिन्हें कुमार कार्तिकेय के नाम से भी जाना जाता है, देवताओं के सेनापति थे। भगवान स्कंद की माता होने के कारण माँ दुर्गा के इस स्वरूप को स्कंदमाता कहा जाता है। स्कंदमाता की पूजा से साधक का मन समस्त लौकिक, सांसारिक और मायिक बंधनों से मुक्त होता है।

माँ स्कंदमाता के स्वयं सिद्ध बीज मंत्र

माँ स्कंदमाता को शक्ति और समृद्धि की देवी माना जाता है। उनके स्वयं सिद्ध बीज मंत्र में शक्ति, सुरक्षा और आशीर्वाद की विशेषताएँ होती हैं।

मंत्र: ह्रीं क्लीं स्वमिन्यै नम:

  • अर्थ: "हे देवी, जो शक्ति और समृद्धि की स्वामिनी हैं, आपको मेरा नमन।" इस मंत्र के जाप से देवी की कृपा प्राप्त होती है और भक्त के जीवन में सकारात्मकता का प्रसार होता है। यह मंत्र देवी शक्ति का प्रतीक है, जो आत्मिक और भौतिक दोनों रूपों में समृद्धि और कल्याण लाता है।

माँ स्कंदमाता का पूजन मंत्र

मंत्र: ॐ ऐं ह्रीं क्लीं स्कन्दमातायै नम:

  • अर्थ: "हे स्कंदमाता, जो ज्ञान और समृद्धि की स्वामिनी हैं, आपको मेरा नमन।" यह मंत्र देवी स्कंदमाता की कृपा प्राप्त करने और उनके आशीर्वाद से शक्ति, ज्ञान और समृद्धि के लिए उच्चारित किया जाता है।

या देवी सर्वभू‍तेषु माँ स्कंदमाता रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:

  • अर्थ: "जो देवी सभी प्राणियों में स्थित हैं और माँ स्कंदमाता के रूप में पूजनीय हैं, उन्हें बार-बार नमन है।" यह मंत्र माँ स्कंदमाता की महिमा और उनकी शक्ति को स्वीकार करता है।

पूजा विधि

  1. सुबह जल्दी उठकर स्वच्छ वस्त्र धारण करें।

  2. पूजा स्थल को गंगाजल से शुद्ध करें।

  3. देसी घी का दीपक जलाएं और फूल, सिंदूर, पान, इलायची, सुपारी, और लौंग अर्पित करें।

  4. दुर्गा सप्तशती, दुर्गा चालीसा, स्कंद माता के मंत्रों का जाप करें।

  5. दुर्गा सप्तशती का पाठ करें।

  6. व्रत तोड़ने से पहले भोग अर्पित करें और माँ दुर्गा की आरती करें।

माँ स्कंदमाता की महिमा

माँ स्कंदमाता शिशु कार्तिकेय को गोद में लिए हुए होती हैं और शेर पर विराजमान रहती हैं। उनके चार हाथ होते हैं, जिनमें दो हाथों में कमल होते हैं। वह विशुद्ध चक्र की देवी हैं, जो सभी दिशाओं में शुद्धता का प्रतीक है। उनका रंग शुभ्र (सफेद) होता है, जो पवित्रता और दिव्यता का प्रतीक है।

जो भक्त इस दिन स्कंदमाता की पूजा करते हैं, वे मानसिक शांति प्राप्त करते हैं और सभी प्रकार की चिंताओं से मुक्त हो जाते हैं। जो लोग चिंता और तनाव से पीड़ित होते हैं, उन्हें इस दिन उपवास रखना चाहिए और देवी की आराधना करनी चाहिए।

माँ स्कंदमाता की कथा

हिंदू शास्त्रों के अनुसार, तारकासुर नामक एक असुर ने भगवान ब्रह्मा की कठोर तपस्या की और अमर होने का वरदान माँगा। चूंकि यह संभव नहीं था, उसने यह वरदान मांगा कि केवल भगवान शिव का पुत्र ही उसे मार सके। उसे विश्वास था कि भगवान शिव तपस्वी हैं और विवाह नहीं करेंगे, जिससे वह अमर बना रहेगा।

लेकिन भगवान विष्णु ने देवताओं को बताया कि देवी सती ने पार्वती के रूप में जन्म लिया है और उनका विवाह भगवान शिव से होगा। समय आने पर भगवान शिव और देवी पार्वती का विवाह हुआ और उनके पुत्र भगवान कार्तिकेय का जन्म हुआ।

भगवान कार्तिकेय ने महान शक्ति और युद्ध कौशल प्राप्त किया। उन्हें देवताओं का सेनापति बनाया गया और उन्होंने तारकासुर का वध किया। इस विजय के उपलक्ष्य में देवी पार्वती को स्कंदमाता के रूप में पूजा जाने लगा।

निष्कर्ष

माँ स्कंदमाता की पूजा से भक्त को शांति, समृद्धि और आध्यात्मिक उन्नति प्राप्त होती है। उनकी आराधना से भय और चिंता दूर होते हैं तथा मन को दिव्य ज्ञान की प्राप्ति होती है। चैत्र नवरात्रि के पावन अवसर पर माँ स्कंदमाता की पूजा अवश्य करनी चाहिए ताकि जीवन में सुख, समृद्धि और सफलता प्राप्त हो।

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