ययाति का चरित: सोमवंश का विस्तार और पुरूरव के जीवन के प्रमुख प्रसंग | yayaati ka charitr: som vansh ka vistaar aur pururava ke jeevan ke pramukh prasang
ययाति का चरित: सोमवंश का विस्तार और पुरूरव के जीवन के प्रमुख प्रसंग
श्रीमद्भागवत पुराण और अन्य संस्कृत ग्रंथों में ययाति की कथा एक महत्वपूर्ण स्थान रखती है। यह कहानी न केवल प्राचीन भारतीय समाज के नीति-नियमों का पालन करती है, बल्कि राजा, उनके कुल, और उनके धर्म-कार्य की गहरी समझ को भी उजागर करती है। इस ब्लॉग में हम ययाति के चरित्र के माध्यम से सोमवंश, पुरूरव का जन्म, उर्वशी और पुरूरव की कथा, नहुष के पुत्रों का वर्णन और ययाति की वृद्धावस्था से जुड़ी घटनाओं का विस्तृत विश्लेषण करेंगे।
तारा के गर्भ से बुध की उत्पत्ति
सूतजी के अनुसार, एक वर्ष बाद ताराके गर्भ से एक अत्यंत तेजस्वी और दिव्य राजकुमार का जन्म हुआ। उसकी आभा सूर्य के समान और रूप चंद्रमा जैसा था। इस बालक का नाम बुध रखा गया। वह अर्थशास्त्र, हस्तिशास्त्र, और गज-चिकित्सा में निपुण था, और उसे ग्रहों के समतुल्य महान शक्तियां प्राप्त हुईं। उसे ब्रह्मा द्वारा अभिषिक्त किया गया और वह बुध के नाम से प्रसिद्ध हुआ। उसकी उपस्थिति से सभी देवताओं को आश्चर्यचकित कर दिया।
पुरूरव का जन्म और उर्वशी से विवाह
बुध ने अपने गर्भ से एक महान पुत्र उत्पन्न किया, जिसका नाम पुरूरव था। पुरूरव ने एक सौ अश्वमेध यज्ञ किए और हिमालय में भगवान विष्णु की आराधना की, जिससे वह सातों द्वीपों के सम्राट बने। उनकी वीरता और तपस्या से उर्वशी, जो एक अप्सरा थीं, उनके प्रति आकर्षित हुई और वह उनकी पत्नी बनीं। उर्वशी और पुरूरव का प्रेम और उनके साम्राज्य का विस्तार एक महत्वपूर्ण कहानी बन गए।
पुरूरव और धर्म, अर्थ, काम का समान पालन
धर्म, अर्थ और काम के देवताओं ने एक बार पुरूरव का परीक्षण किया। उन्होंने राजकुमार से इन तीनों तत्वों को समान रूप से सम्मानित करने की उम्मीद की। धर्म ने पुरूरव को दीर्घायु और संतति के लिए आशीर्वाद दिया, जबकि अर्थ और काम ने उन्हें शापित किया। लेकिन, पुरूरव ने उन आशीर्वादों और शापों को स्वीकार किया और अपने कर्तव्यों का पालन करते हुए अपना राज्य विस्तार किया।
उर्वशी और भरत मुनि का शाप
एक बार भरत मुनि के निर्देश पर उर्वशी ने एक नृत्य किया, जिसमें पुरूरव ने उनका ध्यान भंग किया। इससे नाराज होकर भरत मुनि ने उर्वशी को शाप दिया कि वह सूक्ष्म रूप में पचपन वर्षों तक पृथ्वी पर वियोग का अनुभव करेगी। उर्वशी ने शाप को स्वीकार किया और फिर पुरूरव से संतान प्राप्त की। उनके आठ पुत्र हुए, जिनका नाम आयु, दृढायु, अश्वायु, धनायु, धृतिमान्, वसु, शुचिविद्य और शतायु था।
नहुष के पुत्रों का वर्णन और ययाति की कथा
नहुष के सात पुत्र थे, जिनमें से ययाति सबसे प्रसिद्ध हैं। ययाति ने अपने पुत्र पूरु से वृद्धावस्था को ग्रहण किया और युवा अवस्था को पूरु को सौंप दिया। इस आदान-प्रदान के बाद, ययाति ने अपने वंश को समृद्ध किया और पुरुवंश के विस्तार के लिए अपने पुत्र से आशीर्वाद लिया।
ययाति और उनके पुत्रों के संघर्ष
ययाति ने अपने पुत्रों में से रजि को अधिक बल और राज्य प्रदान किया। रजि के पुत्रों ने इन्द्र के साम्राज्य पर आक्रमण किया और उन्हें हराया। इस संघर्ष के परिणामस्वरूप, इन्द्र ने बृहस्पति से सहायता मांगी, जो उसे पुनः बलवान बनाने में सफल हुए। बाद में, इन्द्र ने रजि के पुत्रों को नष्ट किया और अपना राज्य पुनः प्राप्त किया।
ययाति का अंतिम निर्णय और पूरु का अभिषेक
अंततः ययाति ने अपने वंश का विस्तार किया और अपने पुत्र पूरु को राज्य सौंपा। ययाति का जीवन एक प्रेरणा देने वाली कथा है, जो धर्म, राजनीति, और परिवार के कर्तव्यों के बीच संतुलन बनाने की आवश्यकता को दर्शाती है। उनका जीवन सत्य, धर्म, और आस्था की शक्ति का प्रतीक बना।
निष्कर्ष
ययाति की कहानी न केवल भारतीय धर्म, राजनीति, और शास्त्रों में एक आदर्श मानी जाती है, बल्कि यह हमें अपने कर्तव्यों को निभाने, समय का सम्मान करने और संतुलित जीवन जीने की प्रेरणा भी देती है। पुरूरव और उर्वशी की कथा, नहुष के पुत्रों का वर्णन और ययाति के संघर्ष हमारे प्राचीन संस्कृति और जीवन दर्शन के महत्वपूर्ण आयाम हैं, जो आज भी प्रासंगिक हैं।
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