श्राद्धों के विविध भेद, उनके करने का समय तथा श्रद्ध में निमन्त्रित करने योग्य ब्राह्मण के लक्षण | shraaddhon ke vividh bhed, unake karane ka samay tatha shraddh mein nimantrit karane yogy braahman ke lakshan

श्राद्धों के विविध भेद, उनके करने का समय तथा श्रद्धमें निमन्त्रित करने योग्य ब्राह्मण के लक्षण

श्राद्ध के महत्व और भेद

सूतजी ने ऋषियों को बताया कि मनु ने मत्स्य भगवान से श्राद्ध से संबंधित अनेक प्रश्न पूछे। उन्होंने पूछा कि श्राद्ध के लिए कौन-सा समय उत्तम है, इसके विभिन्न प्रकार कौन-कौन से हैं, किन ब्राह्मणों को श्राद्ध में भोजन कराना चाहिए, और किन्हें वर्जित माना गया है।

मत्स्य भगवान ने उत्तर देते हुए कहा कि श्राद्ध तीन प्रकार के होते हैं:

  1. नित्य श्राद्ध - यह अर्घ्य और आवाहन से रहित होता है और इसे 'अदैव' माना जाता है। इसे प्रतिदिन जल, दूध, फल या मूल के द्वारा भी किया जा सकता है।

  2. नैमित्तिक श्राद्ध - यह विशेष अवसरों या पितरों की पुण्यतिथि पर किया जाता है।

  3. काम्य श्राद्ध - यह किसी विशेष उद्देश्य की पूर्ति के लिए किया जाता है।

पार्वण श्राद्ध पर्वों पर सम्पन्न होने वाला त्रिपुरुष श्राद्ध है। इसे भी तीन भागों में बांटा गया है।

श्राद्ध में निमन्त्रित करने योग्य ब्राह्मण

श्राद्ध में जिन ब्राह्मणों को भोजन कराना चाहिए, वे इस प्रकार हैं:

  • जो पंचाग्रि विद्या के ज्ञाता हों।

  • जो वेदों एवं उनके छह अंगों के ज्ञाता हों।

  • जो पुराणों एवं धर्मशास्त्रों में पारंगत हों।

  • जो शिवभक्त, वैष्णव, सूर्यभक्त एवं ब्राह्मणभक्त हों।

  • जो योगवेत्ता, शीलवान एवं आत्मसंयमी हों।

  • मित्र, कुलगुरु, ऋत्विक, आचार्य, नाती, मामा, और धर्मपरायण ब्राह्मणों को भी श्राद्ध में भोजन कराना उत्तम होता है।

वर्जित ब्राह्मण

श्राद्ध भोज में कुछ ब्राह्मणों को वर्जित माना गया है:

  • जो अपने वर्णाश्रम धर्म से च्युत हो गए हों।

  • नपुंसक, रोगी, विकृत अंग वाले, दंभी एवं चोरी से जीविकोपार्जन करने वाले।

  • वेतनभोगी मंदिर पुजारी, नास्तिक, और कृतघ्न।

  • बर्बर, द्रविड़, कोंकण आदि प्रदेशों के निवासी।

  • संन्यासी एवं अन्य धर्मों में आस्था रखने वाले।

श्राद्ध का समय और विधि

  • श्राद्धकर्ता को श्राद्ध दिवस से एक या दो दिन पहले विनम्रतापूर्वक ब्राह्मणों को निमंत्रण देना चाहिए।

  • गोशाला या जलाशय के पास दक्षिणमुखी स्थान पर गोबर से लीपकर श्राद्ध करना उत्तम माना जाता है।

  • श्राद्ध में पितरों के निमित्त चरु (खाद्य पदार्थ) समसंख्यक मुट्ठियों में प्रदान करना चाहिए।

  • तीन दर्वियां (काष्ठ-पात्र) रखकर अग्रि में घी की आहुति दी जानी चाहिए।

  • अपसव्य होकर (जनेऊ को उल्टा कर) ब्राह्मणों को विधिपूर्वक जलपान कराया जाता है।

  • देवकार्य में दो और पितृकार्य में तीन ब्राह्मणों को भोजन कराना चाहिए।

निष्कर्ष

श्राद्ध एक महत्वपूर्ण धार्मिक कृत्य है जो पितरों की आत्मा की तृप्ति के लिए किया जाता है। यह विधि-नियमों के अनुसार करने से पितर प्रसन्न होते हैं और आशीर्वाद देते हैं। योग्य ब्राह्मणों का चयन एवं वर्जित व्यक्तियों से परहेज श्राद्ध के सफल संपादन के लिए आवश्यक है।

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