शिवरात्रि का व्रत विधान
ऋषि बोले: हे महामुने सूत जी! जिस व्रत के करने से त्रिलोकीनाथ कल्याणकारी भगवान शिव प्रसन्न होते हैं, वह व्रत हमें सुनाइए।
सूत जी बोले: हे ऋषिगणो! पूर्वकाल में एक बार माता पार्वती ने भगवान शिव से यह प्रश्न पूछा कि, "स्वामी! किस विधि एवं व्रत से संतुष्ट होकर आप अपने भक्तों को भोग और मोक्ष प्रदान करते हैं?"
तब सर्वेश्वर शिव बोले, "हे देवी! मुझे प्रसन्न करने एवं भोग-मोक्ष प्राप्त करने के लिए अनेकों व्रत हैं। वेदों को जानने वाले उत्तम महर्षि दस उपवासों को अधिक महत्वपूर्ण मानते हैं। इन व्रतों का विधि-विधान मैं आपको बताता हूं।
प्रत्येक महीने की अष्टमी को व्रत करें तथा रात के समय ही व्रत को खोलकर भोजन ग्रहण करें, परंतु कालाष्टमी पर रात में भी भोजन न करें। दिन के समय व्रत रखकर मेरा पूजन करें और रात्रि के समय भोजन लें। शुक्ल पक्ष की एकादशी को रात में भी भोजन न करें। इसी प्रकार शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी में रात को भोजन करें, परंतु कृष्णपक्ष की त्रयोदशी पर रात में भी भोजन न करें। इन सभी व्रतों में शिवरात्रि का व्रत सर्वोत्तम माना गया है।"
शिवरात्रि व्रत की विधि
व्रत का संकल्प:
शिवरात्रि का व्रत फाल्गुन माह के कृष्ण पक्ष में आता है।
इस दिन प्रातःकाल जल्दी उठें और नित्यकर्मों से निवृत्त होकर स्नान करें।
शिव मंदिर जाकर विधिपूर्वक भगवान शिव का पूजन करें।
शिवजी से प्रार्थना करें: "हे नीलकण्ठ! मैं आज इस शिवरात्रि के उत्तम व्रत को धारण कर रहा हूं। कृपया मेरी कामना पूर्ण करें और मेरे व्रत को निर्विघ्न पूर्ण करें।"
पूजन की तैयारी:
रात्रि के समय पूजन की सभी सामग्री एकत्र करें।
ऐसे शिव मंदिर में जाएं जहां शास्त्रों के अनुसार शिवलिंग की प्रतिष्ठा की गई हो।
स्वच्छ वस्त्र धारण करें और आसन पर बैठकर भगवान शिव का पूजन करें।
रात्रि पूजन विधि:
प्रथम प्रहर:
एक सौ आठ बार "ॐ नमः शिवाय" मंत्र का जाप करते हुए जलधारा अर्पित करें।
गुरु मंत्र का जाप करते हुए काले तिल अर्पित करें।
"भव, शर्व, रुद्र, पशुपति, उग्र, भीम, महान, ईशान" – इन आठ नामों का उच्चारण करते हुए कमल और कनेर के पुष्प अर्पित करें।
धूप, दीप और नैवेद्य अर्पित कर शिवजी की आराधना करें।
द्वितीय प्रहर:
216 बार शिव मंत्र जाप करें और पार्थिव लिंग पर जलधारा चढ़ाएं।
तिल, जौ, चावल, बेलपत्र, बिजौरा आदि से पूजन करें।
खीर का नैवेद्य अर्पित करें।
तृतीय प्रहर:
गेहूं और आक के फूलों से पूजन करें।
कपूर से आरती करें और अनार का अर्घ्य दें।
चतुर्थ प्रहर:
उड़द, कंगनी, मूंग, सात धातुओं, शंख, फूल और बिल्व पत्र से पूजन करें।
केले एवं अन्य फल-मिष्ठान अर्पित करें।
सूर्योदय तक शिवजी की आराधना करें।
व्रत का समापन एवं दान:
सूर्योदय के बाद स्नान कर भगवान शिव का पुनः पूजन करें।
ब्राह्मणों को भोजन कराएं और संकल्प करें।
भगवान शिव से प्रार्थना करें:
"हे दयानिधान! कृपानिधान! देवाधिदेव भगवान शिव! मैंने जाने-अनजाने आपकी भक्ति में तत्पर होकर यह व्रत और पूजन किया है। आप मुझ पर कृपा करें और इसे स्वीकार करें।"
पुष्पांजलि अर्पित करें, ब्राह्मणों को तिलक लगाएं और उनका आशीर्वाद लें।
शिवरात्रि व्रत का महत्व
शिवरात्रि व्रत करने से भगवान शिव की कृपा प्राप्त होती है।
इस व्रत से मनुष्य को भोग और मोक्ष दोनों की प्राप्ति होती है।
इस व्रत को करने से जीवन के समस्त दुखों और कष्टों का नाश होता है।
यह व्रत पार्वती जी और भगवान विष्णु ने भी किया था।
जो भी भक्त इस विधिपूर्वक शिवरात्रि व्रत करता है, उसे शिवलोक की प्राप्ति होती है और वह मोक्ष प्राप्त कर लेता है। शिवजी के आशीर्वाद से वह संसार के बंधनों से मुक्त होकर प्रभु के चरणों में स्थान प्राप्त करता है।
हर-हर महादेव!
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