सावित्री की विजय और सत्यवान की बन्धन-मुक्ति | saavitree kee vijay aur satyavaan kee bandhan-mukti

मत्स्य पुराण दो सौ तेरहवाँ अध्याय

सावित्री की विजय और सत्यवान की बन्धन-मुक्ति 

सावित्र्युवाच

धर्माधर्मविधानज्ञ सर्वधर्मप्रवर्तक।
त्वमेव जगतो नाथः प्रजासंयमनो यमः ॥ १

सावित्रीने कहा-धर्म-अधर्मके विधानको जाननेवाले एवं सभी धर्मोक प्रवर्तक देव! आप ही जगत्‌ के स्वामी तथा प्रजाओं का नियमन करने वाले यम हैं। १

कर्मणामनुरूपेण यस्माद् यमयसे प्रजाः ।
तस्माद् वै प्रोच्यसे देव यम इत्येव नामतः ॥ २

धर्मेणेमाः प्रजाः सर्वा यस्माद् रञ्जयसे प्रभो।
तस्मात् ते धर्मराजेति नाम सद्भिर्निगद्यते ॥ ३

सुकृतं दुष्कृतं चोभे पुरोधाय यदा जनाः।
त्वत्सकाशं मृता यान्ति तस्मात् त्वं मृत्युरुच्यते ॥ ४

कालं कलार्धं कलयन् सर्वेषां त्वं हि तिष्ठसि ।
तस्मात् कालेति ते नाम प्रोच्यते तत्त्वदर्शिभिः ॥ ५

सर्वेषामेव भूतानां यस्मादन्तकरो महान्।
तस्मात् त्वमन्तकः प्रोक्तः सर्वदेवैर्महाद्युते ॥ ६

विवस्वतस्त्वं तनयः प्रथमं परिकीर्तितः ।
तस्माद् वैवस्वतो नाम्ना सर्वलोकेषु कथ्यसे ॥ ७

आयुष्ये कर्मणि क्षीणे गृह्णासि प्रसभं जनम् ।
तदा त्वं कथ्यसे लोके सर्वप्राणहरेति वै ॥ ८

तव प्रसादाद् देवेश त्रयीधर्मो न नश्यति। 
तव प्रसादाद् देवेश धर्मे तिष्ठन्ति जन्तवः । 
तव प्रसादाद् देवेश संकरो न प्रजायते ॥ ९

सतां सदा गतिर्देव त्वमेव परिकीर्तितः । 
जगतोऽस्य जगन्नाथ मर्यादापरिपालकः ॥ १०

पाहि मां त्रिदशश्रेष्ठ दुःखितां शरणागताम् । 
पितरौ च तथैवास्य राजपुत्रस्य दुःखितौ ॥ ११ 

देव! चूँकि आप कर्मोंके अनुरूप प्रजाओंका नियमन करते हैं, इसलिये 'यम' नामसे पुकारे जाते हैं। प्रभो! चूँकि आप धर्मपूर्वक इस सारी प्रजाको आनन्दित करते हैं, इसीलिये सत्पुरुष आपको धर्मराज नामसे पुकारते हैं। लोग मरनेपर अपने सत्-असत्-दोनों प्रकारके कर्मोंको अपने आगे रखकर आपके समीप जाते हैं, इसलिये आप मृत्यु कहलाते हैं। आप सभी प्राणियोंके क्षण, कला आदिसे कालकी गणना करते रहते हैं, इसीलिये तत्त्वदर्शी लोग आपको 'काल' नामसे पुकारते हैं। महादीप्तिसम्पन्न! चूँकि आप संसारके सभी चराचर जीवोंके महान् अन्तकर्ता हैं, 

इसीलिये आप सभी देवताओंद्वारा 'अन्तक' कहे जाते हैं। आप विवस्वान्‌के प्रथम पुत्र कहे गये हैं, अतः सम्पूर्ण विश्वमें वैवस्वत नामसे कहे जाते हैं। आयुकर्मके क्षीण हो जानेपर आप लोगोंको हठात् पकड़ लेते हैं, इसी कारण लोकमें सर्वप्राणहर नामसे कहे जाते हैं। देवेश ! आपकी कृपासे ऋक्, साम और यजुः- इन तीनों वेदोंद्वारा प्रतिपादित धर्मका विनाश नहीं होता। देवेश ! आपकी महिमासे सभी प्राणी अपने-अपने धर्मोमें स्थित रहते हैं। देवेश! आपकी सत्कृपासे वर्णसंकर संततिकी उत्पत्ति नहीं होती। देव! आप ही सदा सत्पुरुषोंकी गति बतलाये गये हैं। जगन्नाथ! आप इस जगत्को मर्यादाका पालन करनेवाले हैं। देवताओंमें श्रेष्ठ! अपनी शरणमें आयी हुई मुझ दुखियाकी रक्षा कीजिये। इस राजपुत्रके माता-पिता भी दुःखी हैं॥१-११ ॥

यम उवाच

स्तवेन भक्त्या धर्मज्ञे मया तुष्टेन सत्यवान्। 
तव भर्त्ता विमुक्तोऽयं लब्धकामा व्रजाबले ॥ १२

राज्यं कृत्वा त्वया सार्धं वर्षाणां शतपञ्चकम् । 
नाकपृष्ठमथारुह्य त्रिदशैः सह रंस्यते ॥ १३

त्वयि पुत्रशतं चापि सत्यवान् जनयिष्यति। 
ते चापि सर्वे राजानः क्षत्रियास्त्रिदशोपमाः ॥ १४ 

मुख्यास्त्वन्नाम पुत्रस्ते भविष्यन्ति हि शाश्वताः ।
पितुश्च ते पुत्रशतं भविता तव मातरि ॥ १५ 

मालव्यां मालवा नाम शाश्वताः पुत्रपौत्रिणः । 
भ्रातरस्ते भविष्यन्ति क्षत्रियास्त्रिदशोपमाः ॥ १६

स्तोत्रेणानेन धर्मज्ञे कल्यमुत्थाय यस्तु माम्। 
कीर्तयिष्यति तस्यापि दीर्घमायुर्भविष्यति ॥ १७

यमराज बोले- धर्मज्ञे ! तुम्हारी स्तुति तथा भक्तिसे संतुष्ट होकर मैंने तुम्हारे पति इस सत्यवान्‌को विमुक्त कर दिया है। अबले ! अब तुम सफलमनोरथ होकर लौट जाओ। यह सत्यवान् तुम्हारे साथ पाँच सौ वर्षोंतक राज्यसुख भोगकर अन्तकालमें स्वर्गलोकमें जायगा और देवताओंके साथ विहार करेगा। सत्यवान् तुम्हारे गर्भसे सौ पुत्रोंको भी उत्पन्न करेगा, वे सब-के-सब देवताओंके समान तेजस्वी तथा क्षत्रिय राजा होंगे। वे चिरकालतक जीवित रहते हुए तुम्हारे ही नामसे प्रसिद्ध होंगे। तुम्हारे पिताको भी तुम्हारी माताके गर्भसे सौ पुत्र उत्पन्न होंगे। वे तुम्हारे भाई मालवा (मध्यदेश)-में उत्पन्न होनेके कारण मालव नामसे विख्यात होंगे और चिरकालतक जीवित रहते हुए पुत्र-पौत्रादिसे युक्त होंगे तथा देवताओंके समान ऐश्वर्यसम्पन्न एवं क्षत्रियोचित गुणोंका पालन करेंगे। धर्मज्ञे! जो कोई पुरुष प्रातःकाल उठकर इस स्तोत्रद्वारा मेरा स्तवन करेगा, उसकी भी आयु दीर्घ होगी ॥ १२-१७॥

मत्स्य उवाच

एतावदुक्त्वा भगवान् यमस्तु प्रमुच्य तं राजसुतं महात्मा।
अदर्शनं तत्र यमो जगाम कालेन सार्धं सह मृत्युना च ॥ १८

मत्स्यभगवान्ने कहा-राजन् ! इतनी बातें कहकर ऐश्वर्यशाली महात्मा यमराज उस राजपुत्र सत्यवान को छोड़कर काल तथा मृत्यु के साथ वहीं अदृश्य हो गये ॥ १८ ॥

इतिश्रीमात्स्ये महापुराणेसावित्र्युपाख्यानेयमस्तुतिसत्यवज्जीवितलाभोनाम त्रयोदशाधिकद्विशततमोऽध्यायः ॥२९३॥

इस प्रकार श्रीमत्स्यमहापुराणके सावित्री-उपाख्यानमें यमस्तुति और सत्यवान्‌का जीवन-लाभ नामक दो सौ तेरहवाँ अध्याय सम्पूर्ण हुआ ॥ २१३ ॥

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