प्रत्येक सर्ग के अधिपतियों का अभिषेचन तथा पृथु का राज्याभिषेक | pratyek sarg ke shaasakon ka abhishek aur prthu ka raajyaabhishek
प्रत्येक सर्ग के अधिपतियों का अभिषेचन तथा पृथु का राज्याभिषेक
महापुराणों में आदिसर्ग और प्रतिसर्ग का वर्णन बहुत ही रोचक और ज्ञानवर्धक होता है। श्रीमद् मत्स्य महापुराण के आठवें अध्याय में अधिपत्याभिषेचन की एक विशेष घटना का वर्णन किया गया है, जो न केवल पृथु के राज्याभिषेक से संबंधित है, बल्कि विभिन्न दैवीय अधिपतियों के नियुक्त होने की प्रक्रिया को भी उजागर करता है। इस ब्लॉग में हम उसी घटना का विस्तार से वर्णन करेंगे।
ऋषियों का प्रश्न
ऋषियों ने सूतजी से पूछा, "आपने हमें आदिसर्ग और प्रतिसर्ग के बारे में विस्तार से बताया है, अब कृपया हमें यह बताइए कि उन सर्गों में जो अधिपति बने, उनके बारे में हमें और अधिक जानकारी दीजिए।"
सूतजी का उत्तर
सूतजी ने ऋषियों को बताया, "जब महाराज पृथु समस्त पृथ्वी के अधिनायक पद पर अभिषिक्त हुए, तो ब्रह्मा ने अनेक दैवीय शक्ति और तत्वों के अधिपतियों का अभिषेचन किया।"
- चन्द्रमा को ओषधियों, यज्ञों, व्रतों, तप, नक्षत्रों, तारा, वृक्ष, गुल्म और लतासमूह का अध्यक्ष नियुक्त किया।
- वरुण को जल का, कुबेर को धन और राजाओं का, विष्णु को आदित्यों का, और अग्रि को वसुओं का अधिपति बनाया।
- दक्ष को प्रजापतियों का, इन्द्र को मरुतों का, प्रह्लाद को दैत्यों और दानवों का, यमराज को पितरों का, और शिव को पिशाचों, राक्षसों, पशुओं, भूतों, यक्षों और वेतालों का अधिपति बनाया।
- हिमालय को पर्वतों का, समुद्र को नदियों का, चित्ररथ को गन्धर्व, विद्याधर और किन्नरों का, वासुकी को नागों का, और तक्षक को सर्पों का अधिपति नियुक्त किया।
- ऐरावत को दिग्गजों का, गरुड़ को पक्षियों का, उच्चैःश्रवाक को घोड़ों का, सिंह को वन्य जीवों का, वृषभ को गायों का, और पाकड़ को समस्त वनस्पतियों का अधिपति बनाया।
इसके बाद, ब्रह्मा ने सम्पूर्ण दिशाओं के अधिपतियों का भी अभिषेचन किया:
- सुधर्मा को पूर्व दिशा का,
- शङ्खपद को दक्षिण दिशा का,
- सुकेतुमान को पश्चिम दिशा का स्वामी बनाया।
- हिरण्यरोमा को उत्तर दिशा का अधिपति नियुक्त किया।
इन चार दिक्पालों के द्वारा ही पृथु महाराज का राज्याभिषेक हुआ था। चाक्षुष मन्वंतर के समाप्त होने के बाद, और वैवस्वत मन्वंतर के आरंभ में, सूर्यवंश के प्रतीक रूप में राजा पृथु इस पृथ्वी के प्रजापति बने थे।
निष्कर्ष
इस अद्भुत और महान अभिषेचन की प्रक्रिया से यह सिद्ध होता है कि पृथु का राज्याभिषेक केवल एक सांस्कृतिक और धार्मिक घटनाक्रम नहीं था, बल्कि एक महत्तवपूर्ण आध्यात्मिक कड़ी भी थी, जिसमें ब्रह्मा द्वारा विभिन्न दैवीय शक्तियों को नियुक्त किया गया था। यह घटना न केवल पृथु के शासन की पुष्टि करती है, बल्कि सम्पूर्ण पृथ्वी के संचालन की व्यवस्था में संतुलन और सामंजस्य भी स्थापित करती है।
यह श्रीमद् मत्स्य महापुराण के आठवें अध्याय का वर्णन है।
इस ब्लॉग के माध्यम से पाठक न केवल महापुराण के इस अद्भुत अध्याय से जुड़ेंगे, बल्कि इसे पढ़कर उन्हें अपने धार्मिक और सांस्कृतिक ज्ञान में भी वृद्धि होगी।
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