पितृ-वंश का वर्णन, पीवरी का वृत्तान्त तथा श्रद्ध-विधि का कथन | pitr-vansh ka varnan, peevaree ka vrttaant tatha shraaddh-vidhi ka kathan

पितृ-वंश का वर्णन, पीवरी का वृत्तान्त तथा श्रद्ध-विधि का कथन

भारतीय सनातन धर्म में पितरों का विशेष महत्त्व बताया गया है। पुराणों और धर्मशास्त्रों में पितृ-पूजन, उनके वंश तथा श्रद्ध-विधि का विस्तृत वर्णन मिलता है। इस लेख में हम पितृ-वंश, पीवरी के वृत्तान्त तथा श्रद्ध-विधि से जुड़े मुख्य बिंदुओं का अध्ययन करेंगे।

पितृ-वंश का वर्णन

पुराणों के अनुसार, पितरों की उत्पत्ति स्वयं ब्रह्माजी से हुई। उन्हें विभिन्न वर्गों में विभाजित किया गया है:

  1. अग्निष्वात्त पितर: जो अग्नि के माध्यम से आहुति ग्रहण करते हैं।

  2. बरिषद पितर: वे पितर जो भूमि पर बैठकर हविष्य ग्रहण करते हैं।

  3. सोमप पितर: जो सोमरस का पान करते हैं।

  4. हविष्मत पितर: वे जो हविष्य से संतुष्ट होते हैं।

पितरों का निवास पितृलोक में बताया गया है, जिसे यमलोक भी कहा जाता है।

पीवरी का वृत्तान्त

शास्त्रों में वर्णित कथा के अनुसार, पीवरी ब्रह्माजी की मानसपुत्री थीं। वे अत्यंत तेजस्विनी और पवित्र थीं। उन्होंने तपस्या के माध्यम से पितरों को संतुष्ट किया और उन्हें विशेष आशीर्वाद प्राप्त हुआ। उनकी कृपा से पितृयज्ञ, तर्पण एवं श्रद्ध-कर्म की विधि प्रतिष्ठित हुई।

श्रद्ध-विधि का कथन

पितृऋण से मुक्त होने के लिए श्रद्ध-विधि का विशेष महत्व है। यह पितरों की तृप्ति एवं उनके आशीर्वाद को प्राप्त करने के लिए किया जाता है।

श्रद्ध की विधि:

  1. श्रद्ध कर्म का समय: आश्विन मास की कृष्ण पक्ष की प्रतिपदा से अमावस्या तक (पितृ पक्ष) इसे करना श्रेष्ठ माना जाता है।

  2. स्थान: इसे पवित्र स्थान, विशेषकर गंगा, तीर्थस्थल या घर में किया जा सकता है।

  3. तर्पण: जल, काले तिल, कुश और दूध का मिश्रण कर पितरों को समर्पित किया जाता है।

  4. पिंडदान: चावल, गाय का दूध, घी, शहद और तिल मिश्रित कर पिंड अर्पित किया जाता है।

  5. ब्राह्मण भोजन: श्रद्ध के दिन ब्राह्मणों को भोजन करवाना तथा दान देना अत्यंत पुण्यदायी माना जाता है।

श्रद्ध का फल

  • पितर संतुष्ट होकर आशीर्वाद प्रदान करते हैं।

  • परिवार में सुख-समृद्धि और आरोग्य बना रहता है।

  • कुल में धर्म और संस्कृति की रक्षा होती है।

निष्कर्ष

पितृ-पूजन और श्रद्ध-विधि भारतीय संस्कृति का एक महत्वपूर्ण अंग है। यह न केवल पितरों को संतुष्ट करता है, बल्कि परिवार में समृद्धि और कल्याण भी लाता है। अतः, श्रद्ध-तर्पण विधि का पालन प्रत्येक सनातनी व्यक्ति को करना चाहिए।

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