मरुतों की उत्पत्ति और दिति की तपस्या का वर्णन | maruton kee utpatti aur diti kee tapasya ka varnan |

मरुतों की उत्पत्ति और दिति की तपस्या का वर्णन

प्राचीनकाल में, देवगणों और दैत्यों के बीच भयंकर संग्राम हुआ था। इस संग्राम में भगवान विष्णु ने देवताओं की सहायता की और दैत्यों के पुत्र-पौत्रों का संहार किया। इस दुखद घटना के बाद दैत्यमाता दिति अत्यधिक शोकित हो गईं। शोक से परिपूर्ण दिति ने अपने पतिकश्यप से सहायता प्राप्त करने का निर्णय लिया और उन्होंने घोर तपस्या आरंभ की।

दिति की तपस्या और मदनद्वादशी व्रत का अनुष्ठान

दिति, महर्षि कश्यप की पत्नी, शोक और बुढ़ापे से जूझ रही थीं, और उन्होंने सौ वर्षों तक कठोर तपस्या की। तपस्या के दौरान वह व्रतों का पालन करतीं और फलाहार पर निर्भर रहतीं। एक दिन दिति ने महर्षि वसिष्ठ से पूछा, "ऋषियों! मुझे ऐसा व्रत बतलाइये, जो पुत्र शोक का नाश करे और मुझे सौभाग्य दे।" वसिष्ठ ऋषि ने उन्हें मदनद्वादशी व्रत का विधान बताया, जो पुत्र शोक को समाप्त कर, इहलोक और परलोक में सौभाग्य प्रदान करता है।

मदनद्वादशी व्रत का विधि-विधान

व्रतधारी को चैत्र मास के शुक्लपक्ष की द्वादशी तिथि को श्वेत चावल से भरा एक घट स्थापित करना चाहिए, जिस पर श्वेत चन्दन का लेप हो। उसे श्वेत वस्त्र से ढककर, उसके पास विभिन्न ऋतुफल और गन्ने के टुकड़े रखें। फिर मदन देवता और भगवान विष्णु की पूजा करें और यथाशक्ति विभिन्न सामग्री का दान करें। इस व्रत का नियमित पालन करने से व्यक्ति के सारे पाप समाप्त होते हैं और उसे उच्च कोटि के पुत्र और सुख-समृद्धि प्राप्त होती है।

दिति को वरदान और मरुतों की उत्पत्ति

दिति के तपस्या और मदनद्वादशी व्रत के प्रभाव से महर्षि कश्यप ने उन्हें रूप और यौवन से परिपूर्ण कर दिया और वरदान मांगने को कहा। दिति ने इन्द्र का वध करने वाले शक्तिशाली पुत्र का वरदान मांगा। महर्षि कश्यप ने उन्हें यह वरदान दिया और उनके गर्भ में इन्द्र के विनाशक पुत्र का गर्भाधान किया।

कश्यप ने दिति से कहा, "तुम एक सौ वर्षों तक इस तपोवन में रहकर गर्भ की रक्षा करो और गर्भिणी स्त्रियों के लिए निर्धारित नियमों का पालन करो।" इन नियमों में रात में भोजन न करना, शुद्ध आचरण और स्वच्छता का पालन करना आदि शामिल था।

दिति की त्रुटि और मरुतों का जन्म

दिति ने महर्षि कश्यप द्वारा बताये गए सभी नियमों का पालन किया, लेकिन सौ वर्षों के अंत में, जब तीन दिन शेष थे, दिति ने एक दिन गलती से बिना स्नान किए और बाल खोले सोने का निर्णय लिया। इस अवसर पर इन्द्र ने दिति के गर्भ में प्रवेश किया और अपने वज्र से उस गर्भ को सात टुकड़ों में विभाजित कर दिया। इन सात टुकड़ों से सात तेजस्वी शिशु उत्पन्न हुए, जो रोने लगे। ये शिशु ही बाद में मरुत देवताओं के रूप में परिणत हुए।

निष्कर्ष

यह कथा यह सिखाती है कि नियमों का पालन करना और तपस्या के साथ भगवान की आराधना से बड़े-बड़े वरदान प्राप्त हो सकते हैं, लेकिन मनुष्य को अपनी छोटी सी चूक से भी बचना चाहिए, क्योंकि जीवन के रास्ते पर कोई भी गलत कदम न केवल उसके लिए बल्कि उसके आने वाली पीढ़ियों के लिए भी परिणामस्वरूप हो सकता है। दिति द्वारा की गई तपस्या और मदनद्वादशी व्रत के प्रभाव से ही मरुत देवताओं का जन्म हुआ, जो बाद में देवताओं के प्रिय बन गए और अपने सौतेले भाई देवताओं के साथ प्रगाढ़ मित्रता कायम की।

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