मनु का मत्स्यभगवान से युगांत विषयक प्रश्न और प्रलय का वर्णन | manu ka matsy bhagavaan se yugaant vishayak prashn aur pralay ka varnan |
मनु का मत्स्यभगवान से युगांत विषयक प्रश्न और प्रलय का वर्णन
मत्स्य पुराण के अनुसार युगांत और प्रलय
मनु का मत्स्य भगवान से प्रश्न
सूतजी ने ऋषियों को बताया कि जब भगवान मत्स्य ने मनु को पूर्वजन्म के बारे में बताया, तब मनु ने भगवान मधुसूदन से प्रश्न किया:
"भगवन्! यह युगांत-प्रलय कितने वर्षों बाद आएगा? मैं समस्त जीवों की रक्षा कैसे करूँगा? और आपके साथ पुनः मेरा मिलन कैसे होगा?"
मत्स्य भगवान का उत्तर
मत्स्य भगवान ने उत्तर दिया:
"हे महामुने! आज से सौ वर्षों तक इस धरती पर वर्षा नहीं होगी, जिससे भयंकर दुर्भिक्ष उत्पन्न होगा। इसके पश्चात, युगांत प्रलय आएगा। सूर्य की सात भयंकर किरणें तप्त अंगार की वर्षा करेंगी, जिससे छोटे-मोटे जीवों का संहार होगा। बडवानल भयंकर रूप धारण कर लेगा। पाताल से संकर्षण की विषाग्नि एवं भगवान रुद्र की तीसरी नेत्र की अग्नि पूरे ब्रह्मांड को भस्म कर देगी।"
प्रलय का स्वरूप
भगवान मत्स्य ने बताया कि प्रलय के समय:
जब संपूर्ण पृथ्वी जलकर राख हो जाएगी और आकाश भीषण गर्मी से तप जाएगा, तब देवताओं और नक्षत्रों सहित संपूर्ण जगत नष्ट हो जाएगा।
सात प्रलयकारी मेघ – संवर्त, भीमनाद, द्रोण, चण्ड, बलाहक, विद्युत्पताक और शोण – भारी वर्षा करेंगे, जिससे संपूर्ण पृथ्वी जलमग्न हो जाएगी।
सातों समुद्र मिलकर एक महाअर्णव का रूप धारण कर लेंगे।
मनु के लिए मार्गदर्शन
मत्स्य भगवान ने कहा:
"हे सुव्रत! जब यह प्रलय होगा, तब तुम वेद रूपी नौका का आश्रय लेना। उसमें सभी जीवों और बीजों को संचित कर लेना। मैं तुम्हें एक रस्सी दूँगा, जिससे तुम उस नौका को मेरे सींग में बाँध देना। मेरे प्रभाव से तुम सुरक्षित रहोगे और तुम्हारे साथ केवल ये ही बचेंगे:
सूर्य,
सोम (चंद्रमा),
ब्रह्मा,
महर्षि मार्कण्डेय,
नर्मदा नदी,
चारों वेद,
सभी विद्याएँ,
संपूर्ण पुराण।"
मनु और मत्स्य भगवान का संवाद
भगवान मत्स्य अंतर्धान हो गए और मनु ने योग का अभ्यास जारी रखा, जब तक कि प्रलय का समय उपस्थित न हुआ।
प्रलय के समय, भगवान जनार्दन एक एक-सिंगी मत्स्य के रूप में प्रकट हुए। एक सर्प भी रस्सी के रूप में बहता हुआ मनु के पास आया। तब मनु ने अपनी योग शक्ति से सभी जीवों को नौका पर चढ़ाया और उस नौका को मत्स्य भगवान के सींग में बाँध दिया।
तत्पश्चात, मनु ने भगवान से सृष्टि, मानव वंश, मन्वंतर, धार्मिक विधियाँ, श्राद्ध, वर्ण-आश्रम व्यवस्था और अन्य विषयों के बारे में विस्तार से वर्णन करने की प्रार्थना की।
सृष्टि की उत्पत्ति
मत्स्य भगवान ने बताया कि महाप्रलय के पश्चात संपूर्ण सृष्टि अंधकार से आच्छादित थी। तब स्वयंभू भगवान नारायण इस जगत की सृष्टि के लिए प्रकट हुए। उन्होंने सर्वप्रथम जल का निर्माण किया और उसमें बीज रूप में स्थित हुए। सहस्र वर्षों के बाद यह बीज एक दिव्य अंडे में परिवर्तित हो गया।
इस अंडे से ब्रह्मा उत्पन्न हुए, जिन्होंने स्वर्ग, पृथ्वी, दिशाएँ और नक्षत्रों का निर्माण किया।
मेरु पर्वत सहित अन्य पर्वत, समुद्र, नदियाँ, मनु, पितृगण, एवं अन्य देवताओं का जन्म भी इसी अंडे से हुआ।
फिर सूर्यदेव प्रकट हुए, जिन्हें 'आदित्य' कहा गया।
निष्कर्ष
इस प्रकार, मत्स्य भगवान ने मनु को प्रलय और सृष्टि के रहस्यों को बताया। उन्होंने समझाया कि प्रलय काल में केवल धर्म, वेद, और सच्चे भक्त ही सुरक्षित रहते हैं। अंत में, भगवान ने मनु को सृष्टि के पुनर्निर्माण का उत्तरदायित्व सौंपा।
इति श्रीमत्स्य महापुराणे आदिसर्गे मनु-मत्स्य संवाद वर्णनं नाम द्वितीयोऽध्यायः॥
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