मनु का ब्रह्मा से संवाद: मत्स्य भगवान द्वारा ब्रह्मा के चतुर्मुख होने और लोकों की सृष्टि की कहानी | manu ka brahma se sanvaad: matsy bhagavaan dvaara brahma ke chaturmukh hone aur lokon kee srshti kee kahaanee |
मनु का ब्रह्मा से संवाद: मत्स्य भगवान द्वारा ब्रह्मा के चतुर्मुख होने और लोकों की सृष्टि की कहानी"
श्री मत्स्य भगवान और ब्रह्मा का संवाद
मनु ने एक बार भगवान मत्स्य से पूछा, "भगवान! ब्रह्मा चतुर्मुख कैसे हुए, और उन्होंने लोकों की रचना किस प्रकार की?" इस पर मत्स्य भगवान ने विस्तार से बताया कि ब्रह्मा ने बहुत कठोर तपस्या की, जिसके प्रभाव से वेद, शास्त्र, और विभिन्न ज्ञान शाखाओं का प्रादुर्भाव हुआ। भगवान ने कहा कि ब्रह्मा ने पुराणों में वर्णित उस अविनाशी और पुण्यशाली पुराण का स्मरण किया, जो सौ करोड़ श्लोकों में विस्तृत है।
ब्रह्मा से उत्पन्न हुए पहले पंरपरा के संताने
मत्स्य भगवान ने यह भी बताया कि ब्रह्मा के दस मानस पुत्र थे, जिनमें मरीचि, अत्रि, अंगिरा, पुलस्त्य, पुलह, क्रतु, प्रचेता, वसिष्ठ, भृगु और नारद प्रमुख थे। ये सभी मुनि रूप में प्रसिद्ध हुए और ब्रह्मा के शरीर से उत्पन्न हुए।
ब्रह्मा के शरीर से उत्पन्न अन्य रचनाएँ
भगवान ने ब्रह्मा के शरीर से उत्पन्न अन्य देवताओं और शक्तियों का भी उल्लेख किया। ब्रह्मा के दाहिने अंगूठे से दक्ष प्रजापति, उनके स्तन से धर्म, उनके कुसुमायुध से कामदेव, और अन्य शरीर के अंगों से क्रोध, लोभ, बुद्धि, अहंकार, प्रमोद और मृत्यु आदि का जन्म हुआ। इन विभिन्न गुणों और शक्तियों ने सृष्टि के संचालन में योगदान दिया।
गुणों की उत्पत्ति और सृष्टि की प्रक्रिया
भगवान ने आगे कहा कि ब्रह्मा के रूप में जो सृजन हुआ, वह त्रिगुणात्मक था, जिसमें सत्त्व, रजस् और तमस् गुणों का मिश्रण था। इन गुणों के समन्वय से सृष्टि की रचना हुई। जैसे ही मनु ने यह सुनकर सवाल किया कि इन गुणों का वास्तविक स्वरूप क्या है, भगवान ने बताया कि ये गुण प्रजाओं की सृष्टि करते हैं और इन्हीं के माध्यम से ब्रह्मा ने वेद, शास्त्र और लोकों की रचना की।
सावित्री का प्रकट होना और ब्रह्मा के नए मुख
जब ब्रह्मा ने सावित्री का ध्यान किया, तो उनके शरीर से एक अद्भुत घटना घटी। ब्रह्मा के शरीर से एक नया मुख प्रकट हुआ। उन्होंने सावित्री को देखा और उनके सौंदर्य की प्रशंसा की। बाद में, ब्रह्मा के सिर से पांचवां मुख प्रकट हुआ, जो जटाओं से सुसज्जित था। भगवान ने कहा कि यह सब ब्रह्मा के उग्र तपस्या का परिणाम था।
स्वायम्भुव मनु और सृष्टि की परिपूर्णता
आखिरकार, ब्रह्मा ने अपनी मानस पुत्रों को आदेश दिया कि वे सृष्टि की रचना करें। उनके आदेश पर स्वायम्भुव मनु ने प्रजाओं की सृष्टि की, और ब्रह्मा की इच्छा से शतरूपा से मनु का जन्म हुआ, जो स्वायम्भुव मनु के रूप में प्रसिद्ध हुआ। भगवान ने बताया कि इस समय तुम सातवें मनु हो।
निष्कर्ष
इस प्रसंग में हमें यह सिखने को मिलता है कि सृष्टि की रचना केवल एक भगवान के तप और आशीर्वाद से नहीं, बल्कि उनके द्वारा उत्पन्न विभिन्न गुणों, शक्तियों और आदेशों के माध्यम से होती है। भगवान मत्स्य ने मनु को विस्तार से बताया कि ब्रह्मा का चतुर्मुख होना और लोकों की सृष्टि एक दिव्य प्रक्रिया है, जिसमें हर तत्व का अपना विशिष्ट स्थान और कार्य है।
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