महर्षि कौशिक के पुत्रों का वृत्तान्त तथा पिपीलिका की कथा | maharshi purohit ke putron ka vrttaant tatha pipeelika kee katha

महर्षि कौशिक के पुत्रों का वृत्तान्त तथा पिपीलिका की कथा

कौशिक महर्षि के पुत्रों का वृत्तान्त

ऋषियों ने सूतजी से प्रश्न किया कि महर्षि कौशिक के वे सात पुत्र कैसे उत्तम योग को प्राप्त हुए, और पांच जन्मों में ही उनके अशुभ कर्मों का नाश कैसे हुआ? सूतजी ने उत्तर दिया और महर्षि कौशिक के सात पुत्रों के बारे में विस्तृत जानकारी दी।

कौशिक महर्षि के सात पुत्र थे—स्वसूप, क्रोधन, हिंस्र, पिशुन, कवि, वाग्दुष्ट और पितृवर्ती। इन सभी ने अपने पिता के निधन के बाद महर्षि गर्ग के शिष्य बनकर कठिन तपस्या की। एक भीषण अकाल के समय, जब इन तपस्वियों को भयंकर भूख लगी, पितृवर्ती ने श्राद्ध कर्म करने का सुझाव दिया। पितृवर्ती ने अपने अन्य भाइयों को श्राद्ध के कार्य में सहायता देने के लिए नियुक्त किया और खुद श्राद्धकर्म आरंभ किया।

श्राद्ध कर्म के प्रभाव से इन सभी ने अगले जन्म में अपनी गति बदली। वे बहेलियों के परिवार में जन्मे, लेकिन पितृवर्ती के श्राद्ध कार्य के प्रभाव से उन्होंने अपने पूर्वजन्मों के कार्यों को स्मरण किया। फिर भी, इन सभी ने अनशन करके शरीर छोड़ दिया और पर्वत पर जाकर भगवान नीलकण्ठ के समक्ष योगाभ्यास किया। यहीं से उनका ज्ञान और वैराग्य बढ़ा और अंततः वे चक्रवाक पक्षियों के रूप में मानसरोवर में पुनः जन्मे।

इनमें से कुछ ने योग में उत्तम सिद्धियाँ प्राप्त कीं। बाद में वे ब्राह्मण कुल में पैदा हुए, राजा ब्रह्मदत्त के रूप में। ब्राह्मदत्त राजा बनने के बाद कई शास्त्रों के ज्ञाता बने और उनकी पत्नी संनति के साथ राजा की भूमिका में समृद्धि प्राप्त की।

पिपीलिका की कथा

एक दिन राजा ब्रह्मदत्त अपनी पत्नी संनति के साथ उद्यान में भ्रमण कर रहे थे। वहां उन्हें एक चींटी का जोड़ा दिखाई दिया, जो प्रेम और क्रोध में उलझा हुआ था। चींटी अपने साथी को लड्डू का चूर्ण देने के कारण क्रोधित हो गई थी। वह उसकी भूल को क्षमा करने की विनती कर रही थी। इस दृश्य को देख राजा ब्रह्मदत्त ने भगवान विष्णु की कृपा से समस्त प्राणियों की बोली समझी। उन्होंने पिपीलिका और उसके साथी की बातचीत को सुना और आश्चर्यचकित हो गए।

यह कथा श्राद्ध कर्म की महिमा और पितृवर्ती की श्रद्धा का प्रभाव बताती है, जो जन्मों में बदलाव और सच्चे ज्ञान की प्राप्ति में सहायक होती है। इस कथा के माध्यम से यह समझ में आता है कि श्राद्ध का कार्य पितरों के लिए सिर्फ एक कृत्य नहीं, बल्कि उनके पुनर्जन्म और मोक्ष की ओर एक कदम है।

निष्कर्ष

महर्षि कौशिक के पुत्रों का यह वृत्तान्त और पिपीलिका की कथा यह सिद्ध करती है कि श्रद्धा, भक्ति और कर्मों के सही मार्ग पर चलने से व्यक्ति अपने भाग्य को बदल सकता है और धर्म का पालन करते हुए श्रेष्ठ योग की प्राप्ति कर सकता है।

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