महाराज पृथु का चरित्र और पृथ्वी दोहन का वृत्तांत | mahaaraaj prthu ka charitr aur prthvee dohan ka vrttaant

महाराज पृथु का चरित्र और पृथ्वी दोहन का वृत्तांत

प्रस्तावना

ऋषियों ने सूतजी से पूछा कि पूर्वकाल में कई भूपाल पृथ्वी का उपभोग कर चुके हैं, और वे 'पृथ्वीपति' या 'पार्थिव' के नाम से प्रसिद्ध हुए हैं। फिर उन्होंने यह जानने की इच्छा व्यक्त की कि पृथ्वी का नाम 'पृथ्वी' क्यों पड़ा और इसे 'गौ' के रूप में क्यों जाना गया। सूतजी ने इस विषय पर विस्तार से कथा सुनाई।

पृथ्वी के नामकरण का रहस्य

प्राचीनकाल में स्वायम्भुव मनु के वंश में अङ्ग नामक प्रजापति थे। उनका विवाह सुनीथा नामक कन्या से हुआ, जिनका रूप विकृत था। उनके गर्भ से वेन नामक पुत्र उत्पन्न हुआ, जो बाद में एक महाप्रतापी सम्राट बना। लेकिन वेन का चरित्र अत्यधिक अधर्मी था, और वह सदैव बुरी हरकतें करता था। जब ऋषियों ने उसे धर्म की ओर प्रवृत्त करने की कोशिश की, तो उसने उनकी बातों को अनसुना किया और अंततः ऋषियों ने उसे शाप देकर मारा।

पृथु का जन्म और पृथ्वी का दोहन

वेन की मृत्यु के बाद, ऋषियों ने वेन के शरीर से मंथन किया और इस मंथन से म्लेच्छ जातियाँ उत्पन्न हुई। इसके बाद वेन के पिता अङ्ग के अंश से पृथु का जन्म हुआ, जो एक अत्यधिक धार्मिक और बलशाली राजा बने। पृथु ने भगवान विष्णु की तपस्या की और उनके आशीर्वाद से उन्होंने पृथ्वी के स्वामी बनने का अधिकार प्राप्त किया।

जब पृथु ने देखा कि पृथ्वी में कोई उर्वरता नहीं है और यह जीवनदायिनी नहीं है, तो उन्होंने क्रोधित होकर धनुष पर बाण चढ़ा लिया। यह देखकर पृथ्वी ने गौ का रूप धारण किया और भयभीत होकर भागने लगी। पृथु ने उसका पीछा किया, और अंततः पृथ्वी ने समर्पण किया। पृथ्वी ने कहा, "नाथ! आपके प्रसन्न होने के लिए मैं क्या करूँ?" पृथु ने पृथ्वी से कहा कि वह समस्त चराचर जगत को प्रजाओं के लिए आवश्यक चीज़ें दे। पृथ्वी ने सहमति दी, और पृथु ने अपनी हथेली से पृथ्वी का दोहन करना प्रारंभ किया, जिससे शुद्ध अन्न प्राप्त हुआ और प्रजा का जीवन यापन हुआ।

पृथ्वी का दोहन सभी प्राणियों द्वारा

इसके बाद ऋषियों, देवताओं, यक्षों, असुरों और अन्य प्राणियों ने भी पृथ्वी का दोहन किया। विभिन्न प्राणियों ने अपनी इच्छानुसार पृथ्वी से विभिन्न प्रकार की चीज़ों का दोहन किया। देवताओं ने स्वर्णमय पात्र से पृथ्वी का दोहन किया, जबकि असुरों ने लौहमय पात्र में माया का दोहन किया। नागों ने विष का दोहन किया, जबकि यक्षों ने कच्चे पात्र में पृथ्वी से विभिन्न रत्नों और औषधियों का दोहन किया।

पृथु के शासनकाल में सुख-समृद्धि

पृथु के शासनकाल में प्रजा दीर्घायु, सुख-समृद्धि और धन-धान्य से परिपूर्ण थी। उनके शासन में कोई भी दरिद्र, रोगी, या पापी नहीं था। पृथु ने पर्वतों को उखाड़कर पृथ्वी को समतल किया और प्रजाओं को सुखमय जीवन प्रदान किया। उनके राज्य में कोई युद्ध नहीं था, और लोगों का जीवन शांति और समृद्धि से भरा था।

निष्कर्ष

इस प्रकार, पृथु के शासनकाल में पृथ्वी का दोहन न केवल शारीरिक पदार्थों के लिए किया गया, बल्कि यह समग्र जीवन के लिए आवश्यक संसाधनों का प्रदाय था। पृथ्वी ने विभिन्न रूपों में, विभिन्न प्राणियों के माध्यम से, समस्त जगत को जीवन देने वाला आहार और संसाधन प्रदान किया। यह कथा पृथ्वी के महत्व को उजागर करती है और बताती है कि पृथ्वी से प्राप्त संसाधन सभी प्राणियों के जीवन के लिए आवश्यक हैं।

समाप्ति
यह कथा श्रीमत्स्य महापुराण के दशम अध्याय में वर्णित है, जिसे वैन्याभिवर्णन के नाम से जाना जाता है।

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