देवयानी और शर्मिष्ठा का कलह और ययातिके साथ देवयानी का संवाद | devayaanee aur sharmishtha ka kalah aur yayaatike saath devayaanee ka sanvaad

देवयानी और शर्मिष्ठा का कलह और ययाति के साथ देवयानी का संवाद

परिचय:

प्राचीन हिन्दू कथाएँ कई बार महत्त्वपूर्ण जीवन मूल्यों और रिश्तों को उजागर करती हैं। देवयानी और शर्मिष्ठा के बीच संघर्ष और बाद में देवयानी का ययाति के साथ संवाद एक ऐसी कहानी है, जो न केवल तात्त्विक शिक्षा देती है बल्कि हमारे रिश्तों में आत्ममूल्यता और आस्थाएँ कैसे प्रभावित करती हैं, इसे भी समझाती है। यह कथा श्रीमद्भागवत और श्रीमद्वैष्णव पुराणों में पाई जाती है।

कथा की शुरुआत:

जब कच, शुक्राचार्य के शिष्य, मृतसंजीविनी विद्या को सीखकर लौटे, देवताओं में उल्लास था क्योंकि उन्होंने इस विद्या से दैत्यों को हराने का मार्ग खोज लिया था। इसके बाद देवताओं ने इन्द्र को आदेश दिया कि वह अपने शत्रुओं का संहार करें। इस बीच, इन्द्र देव ने एक वन में कई कन्याओं को देखा, जिसमें शर्मिष्ठा और देवयानी भी शामिल थीं।

शर्मिष्ठा और देवयानी का झगड़ा:

वह वन अत्यन्त मनोहर था, और कन्याएँ जलक्रीड़ा कर रही थीं। एक वायु के झोंके से उनके वस्त्र आपस में मिल गए, और देवयानी ने देखा कि शर्मिष्ठा ने उसका वस्त्र पहन लिया है। देवयानी ने शर्मिष्ठा से इसे लेकर तीखी बहस की। शर्मिष्ठा ने उत्तर दिया, "तू भिखमंगे की बेटी है, जबकि मैं महान और दानवीर परिवार की पुत्री हूँ।"

यह विवाद बढ़ गया और शर्मिष्ठा ने देवयानी को कुएं में गिरा दिया, यह सोचकर कि अब वह मर चुकी होगी। शर्मिष्ठा क्रोध में पूर्णतः अंधी हो गई और बिना कुछ सोचे-समझे अपने घर लौट गई।

ययाति का देवयानी से मिलना:

राजा ययाति, जो नहुष के पुत्र थे, एक हिंसक पशु का पीछा करते हुए उस स्थान पर पहुंचे। वहाँ उन्होंने देवयानी को कुएं में गिरा हुआ देखा और उसकी हालत को देखकर उनसे संवाद किया। देवयानी ने बताया कि वह शुक्राचार्य की पुत्री है और उसे कुएं से निकालने के लिए ययाति से मदद की याचना की। ययाति ने उसे समझाया और उसका हाथ पकड़कर उसे कुएं से बाहर निकाला।

शुक्राचार्य का देवयानी से संवाद:

जब देवयानी को घर लौटने का मौका मिला, तो उसने अपनी माँ से पूरे घटनाक्रम के बारे में बताया। उसकी माँ ने कहा कि शर्मिष्ठा ने उसे अपमानित किया था। देवयानी के शब्दों में आक्रोश था। शुक्राचार्य ने इसे सुना और कहा, "बेटी, तुम दीन और भिखारी की बेटी नहीं हो। तुम एक पवित्र ब्राह्मण की बेटी हो, और तुम्हारा ऐश्वर्य उसी पवित्रता से आता है।"

निष्कर्ष:

इस कथा से यह शिक्षा मिलती है कि किसी के शब्द और व्यवहार से प्रभावित नहीं होना चाहिए, बल्कि अपने स्वभाव और कर्म पर विश्वास रखना चाहिए। देवयानी और शर्मिष्ठा के बीच का संघर्ष और बाद में देवयानी का ययाति के साथ संवाद हमें यह समझने का अवसर देता है कि कोई भी समस्या, चाहे वह व्यक्तिगत हो या सामूहिक, आस्था और आत्ममूल्य के साथ सुलझाई जा सकती है।

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