दक्ष-कन्या ओं की उत्पत्ति, कुमार कार्त्तिकेय का जन्म और देवयोनियों का प्रादुर्भाव | daksh-kanya om ki utpatti, kumar karttikeya ka janm aura devayoniyom ka pradurbhav |

दक्ष-कन्या ओं की उत्पत्ति, कुमार कार्त्तिकेय का जन्म और देवयोनियों का प्रादुर्भाव

परिचय

श्रीमद्भागवतम् के आदिसर्ग में शौनक और अन्य ऋषियों द्वारा पूछा गया कि देवता, दानव, गंधर्व, नाग और राक्षसों की उत्पत्ति कैसे हुई? इस प्रश्न का उत्तर सूतजी ने विस्तार से दिया है।

दक्ष की सृष्टि रचना

प्राचीन समय में जब ब्रह्मा ने प्रजापति दक्ष को प्रजा की सृष्टि का आदेश दिया, तब दक्ष ने पहले संकल्प, दर्शन और स्पर्श द्वारा देवों, ऋषियों और नागों की सृष्टि की। इसके बाद, जब यह सृष्टि पर्याप्त नहीं हुई, तो दक्ष ने पाञ्चजनी के गर्भ से हजारों पुत्रों को उत्पन्न किया। इन पुत्रों का नाम 'हर्यश्व' था। जब ये पुत्र नारदजी से मिले, तो उन्होंने उन्हें पृथ्वी की समग्रता को समझने का उपदेश दिया, जिसके बाद वे पृथ्वी की ओर गए, लेकिन वापस नहीं लौटे।

दक्ष की कन्याओं की उत्पत्ति

हर्यश्व के पुत्रों के नष्ट होने के बाद, दक्ष ने वीरिणी के गर्भ से साठ कन्याओं को उत्पन्न किया। इन कन्याओं में से दस धर्म की, तेरह कश्यप की, सत्ताईस चंद्रमाओं की, और कई अन्य महत्वपूर्ण देवताएँ उत्पन्न हुईं।

देवताओं और उनकी संतानों का विस्तार

दक्ष की कन्याओं के द्वारा उत्पन्न देवों और उनके वंशों का विस्तार इस प्रकार है:

  1. धर्म की कन्याएँ - मरुत्वती, वसु, यामी, लम्बा, भानु, अरुंधती, संकल्पा, मुहूर्ता, साध्या, और सुन्दरी विश्वा ने देवताओं को जन्म दिया।
  2. वसु - वसु नामक देवों ने प्रमुख देवताओं जैसे ध्रुव, सोम, धर, अनिल, अनल, प्रत्यूष और प्रभास को जन्म दिया।
  3. कार्त्तिकेय का जन्म - कार्त्तिकेय (कुमार) का जन्म विशेष रूप से महत्वपूर्ण है। वह अग्नि के पुत्र हैं और कृत्तिका की संतति होने के कारण कार्त्तिकेय नाम से विख्यात हैं।

रुद्रों का वंश

इसके बाद रुद्र गणेश्वरों का वर्णन किया गया है। इन रुद्रों ने अपने वंशजों के रूप में चौरासी करोड़ गणेश्वर उत्पन्न किए, जो सभी दिशाओं में रक्षा करते हैं।

निष्कर्ष

इस प्रकार, दक्ष द्वारा उत्पन्न कन्याओं और उनके द्वारा उत्पन्न देवताओं, रुद्रों और अन्य योनियों की सृष्टि ने संसार में विभिन्न रूपों में जीवन के विस्तार को सुनिश्चित किया। इन देवताओं ने समस्त संसार की रक्षा की और यह भी प्रदर्शित किया कि सृष्टि के प्रत्येक कण में ईश्वर की शक्ति का अस्तित्व है।

यह अध्याय हमें यह सिखाता है कि सृष्टि की रचना में संतुलन और विविधता की आवश्यकता होती है, और प्रत्येक देवता और प्राणी का अपना विशिष्ट स्थान होता है।

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