ब्रह्मदत्त का वृत्तान्त और चार चक्रवाकों की गति का वर्णन | brahmadatt ka vrttaant aur chaar chakravaakon kee gati ka varnan

ब्रह्मदत्त का वृत्तान्त और चार चक्रवाकों की गति का वर्णन

प्रस्तावना:

इस कथा में सूतजी ने ऋषियों से ब्रह्मदत्त के जन्म, उनकी यात्रा, और चार चक्रवाकों के बारे में बताया। ऋषियों ने पूछा था कि ब्रह्मदत्त किस प्रकार समस्त प्राणियों की बोली को जानते थे और चार चक्रवाक किस कुल में उत्पन्न हुए थे। सूतजी ने उनकी जिज्ञासा का समाधान किया और उनके प्रश्नों का विस्तार से उत्तर दिया।

चक्रवाकों की उत्पत्ति:

सूतजी ने बताया कि चार चक्रवाक एक वृद्ध ब्राह्मण के पुत्र रूप में उत्पन्न हुए थे। उनके नाम थे - धृतिमान, तत्त्वदर्शी, विद्याचण्ड और तपोत्सुक। ये चारों ब्राह्मणों के पुत्र होने के बावजूद बचपन में ही तपस्या की ओर आकर्षित हो गए थे। वे तपस्या करने के लिए वन में जाने का संकल्प लेते हैं। ब्राह्मण पिता, सुदरिद्र, जो स्वयं एक दरिद्र व्यक्ति थे, अपनी संतान को वन जाने से रोकते हैं, लेकिन उनके पुत्रों ने दृढ़ नायकता से यह प्रस्ताव रखा कि वे तपस्या के लिए जाने को तैयार हैं।

ब्रह्मदत्त का जन्म:

अब कथा ब्रह्मदत्त के जन्म की ओर मुड़ती है। ब्रह्मदत्त का जन्म पञ्चाल देश के अणुह नामक नरेश के घर हुआ था। अणुह ने भगवान विष्णु की कठोर आराधना की थी, जिससे भगवान प्रसन्न होकर उनके पास आए और उन्हें वरदान दिया। अणुह ने भगवान से एक ऐसा पुत्र मांगा जो महान बल-पराक्रम से संपन्न, शास्त्रों का ज्ञाता, और प्राणियों की बोली समझने वाला हो। भगवान ने उनकी प्रार्थना स्वीकार की और ब्रह्मदत्त का जन्म हुआ।

ब्रह्मदत्त की घटनाएँ और चक्रवाकों की कथा:

एक दिन, ब्रह्मदत्त ने अपने राज्य के नगर में एक वृद्ध ब्राह्मण को देखा जो चक्रवाकों के बारे में एक रहस्यमय कहानी कह रहा था। यह कथा यह थी कि चक्रवाक पहले विभिन्न स्थानों पर, जैसे कुरुक्षेत्र और दाशपुर में जन्मे थे, और अब वे सिद्ध होकर ब्रह्मदत्त के नगर में निवास कर रहे थे। यह कथा सुनकर ब्रह्मदत्त को पूर्वजन्म की स्मृति प्राप्त हो गई और वे यह समझ गए कि चक्रवाकों का महत्व और उनका सम्बन्ध उनके पितृलोक से है।

संनति का प्रश्न:

महारानी संनति ने ब्रह्मदत्त से पूछा कि उन्हें अचानक क्यों हंसी आई। ब्रह्मदत्त ने इसे चींटों की बातों पर हंसी बताया, लेकिन रानी ने इसे संदेहपूर्ण माना और कहा कि यह असत्य है। इसके बाद ब्रह्मदत्त ने भगवान विष्णु की आराधना की और भगवान ने उन्हें एक वृद्ध ब्राह्मण के माध्यम से चक्रवाकों की कहानी का पूरा रहस्य बताया।

अंतिम समय में ब्रह्मदत्त:

कथा के अंत में, ब्रह्मदत्त ने चक्रवाकों की कथा के अनुसार अपने राज्य का त्याग कर दिया और योग की साधना के लिए वन में चले गए। उन्होंने पितृलोक की कृपा से अंतिम समय में ब्रह्मरंध्र से प्राण त्याग किए और परमपद को प्राप्त किया।

निष्कर्ष:

यह कथा हमें बताती है कि पितृप्रेम, तपस्या, और धार्मिक आस्थाओं से जीवन का उच्चतम स्तर प्राप्त किया जा सकता है। जो व्यक्ति ब्रह्मदत्त की पितृमाहात्म्य कथा को सुनता है, वह न केवल इस जीवन में बल्कि अगले जन्मों में भी पुण्य और आशीर्वाद प्राप्त करता है।

पाठक के लिए संदेश:

जो व्यक्ति इस कथा को पढ़ता है, सुनता है या इसका प्रचार करता है, वह जीवन के सभी क्षेत्रों में समृद्धि और सुख प्राप्त करता है। यह कथा जीवन के अद्भुत सिद्धांतों और ब्रह्मदत्त के द्वारा दिखाए गए आदर्शों को दर्शाती है।

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