अच्छोदा का पितृ लोक से पतन तथा उसकी प्रार्थना पर पितरों द्वारा उसका पुनरुद्धार | achchhoda ka pitr lok se patan tatha usakee praarthana par pitaron dvaara usaka punaruddhaar

अच्छोदा का पितृलोक से पतन तथा उसकी प्रार्थना पर पितरों द्वारा उसका पुनरुद्धार

प्रस्तावना

हिंदू धर्म में पितृलोक का विशेष महत्व है, जिसे पूर्वजों का लोक माना जाता है। पितृगण यहाँ वास करते हैं और श्राद्ध आदि से संतुष्ट होते हैं। इस लेख में हम अच्छोदा नदी की कथा को जानेंगे, जो पितरों की मानसी कन्या थी और जिसने अपने मानसिक दोष के कारण पितृलोक से पतन का अनुभव किया। यह कथा श्रीमत्स्य महापुराण के पितृवंशानुकीर्तन अध्याय से ली गई है।

पितृलोक और अच्छोदा का जन्म

मरीचि के वंशज देवताओं के पितृगण जहाँ निवास करते हैं, वह स्थान सोमपथ के नाम से प्रसिद्ध है। पितर अग्रिष्वात्त कहलाते हैं और यज्ञपरायण होते हैं। इन्हीं पितरों के लोक में अच्छोदा नाम की एक नदी प्रवाहित होती है, जो उन्हीं की मानसी कन्या थी।

पितरों ने पूर्वकाल में एक अच्छोद नामक सरोवर का निर्माण किया था। अच्छोदा ने सहस्रों वर्षों तक कठोर तपस्या की, जिससे संतुष्ट होकर पितृगण उसे वरदान देने आए। वे सभी दिव्य रूपधारी थे और अमावसु नामक एक पितर विशेष रूप से सुंदर और तेजस्वी थे।

अच्छोदा का पतन

जब अच्छोदा ने अमावसु के साथ रहने की इच्छा प्रकट की, तो यह मानसिक विकार माना गया और इससे वह योग से भ्रष्ट हो गई। परिणामस्वरूप, वह पितृलोक से पृथ्वी पर गिर पड़ी। यह घटना जिस तिथि को घटी, वह तिथि अमावस्या के नाम से प्रसिद्ध हुई और पितरों को प्रिय बन गई।

अच्छोदा की प्रार्थना और पुनरुद्धार

अपने तपोबल के नष्ट होने से अच्छोदा लज्जित हो गई और पितरों से पुनः अपनी प्रसिद्धि की याचना करने लगी। पितरों ने उसे सांत्वना दी और कहा कि उसे अपने कर्मफल का भोग मनुष्य योनि में करना होगा। उसे मत्स्य योनि में जन्म लेना होगा, जिससे वह पितृकुल के नियमों का उल्लंघन करने का दंड भुगतेगी। लेकिन इसके पश्चात वह राजा वसु की पुत्री के रूप में जन्म लेगी और महान विभूतियों को जन्म देकर पुनः उच्च लोकों की प्राप्ति करेगी।

अच्छोदा का भविष्य

पितरों ने बताया कि अच्छोदा भविष्य में सत्यवती के रूप में जन्म लेगी और उसके पुत्र वेदों को विभाजित करेंगे। साथ ही, वह राजा शांतनु के संयोग से विचित्रवीर्य और चित्रांगद नामक पुत्रों को जन्म देगी। यही सत्यवती आगे चलकर महाभारत के महान पात्रों की माता बनेगी।

अंततः, अच्छोदा पुनः पुण्यसलिला नदी के रूप में जन्म लेगी और उसका नाम अच्छोदा ही रहेगा। इस प्रकार, उसके समस्त कर्मफलों की प्राप्ति हुई और पितृगण अंतर्धान हो गए।

निष्कर्ष

अच्छोदा की यह कथा न केवल पितृलोक और उसके महत्व को दर्शाती है, बल्कि यह भी सिखाती है कि कर्म का प्रभाव अटल होता है। मनुष्य को अपने कर्मों का फल भोगना ही पड़ता है, चाहे वह देव योनि में हो या मानव योनि में। साथ ही, यह कथा अमावस्या तिथि के महत्व को भी स्पष्ट करती है और श्राद्ध कर्म की महत्ता को प्रतिपादित करती है।

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