शशिध्वज और कल्कि के युद्ध की गाथा | The story of the war between Shashidhwaj and Kalki

शशिध्वज और कल्कि के युद्ध की गाथा

सूत उवाच

हृदि-ध्यानास्-पदं रूपं कल्केर् दृष्ट्वा शशिध्वजः।
पूर्णं खड्ग-धरं चारु-तुरगआरूधम् अब्रवीत्॥१

सूत जी ने बताया कि शशिध्वज ने हृदय में ध्यान करते हुए कल्कि जी के रूप को देखा। वह सुंदर घोड़े पर सवार, खड्ग धारण किए हुए, पूर्णावतार रूप में थे। शशिध्वज ने रोमांचित होकर उनके दर्शन किए और उनकी महानता का आकलन किया। उन्होंने देखा कि कल्कि जी पापों और कष्टों के नाश के लिए तैयार हैं। शशिध्वज ने अपनी श्रद्धा व्यक्त करते हुए कहा, “हे कमल जैसे नेत्रों वाले, आइए और मेरे हृदय पर प्रहार कीजिए। आप निर्गुण होकर भी गुण को जानते हैं, अद्वैत होकर भी अस्त्रों से मारने के लिए तैयार हैं।”

शशिध्वज और कल्कि का युद्ध

इसके बाद, शशिध्वज ने कल्कि जी के श्रेष्ठ अस्त्रों का सामना करते हुए अपने बाणों की वर्षा शुरू कर दी। युद्ध ने भयंकर रूप धारण किया। ब्रह्मास्त्र से लेकर पर्वतास्त्र, मेघास्त्र और गारुड़ास्त्र तक कई शक्तिशाली अस्त्रों का प्रयोग हुआ। इस युद्ध को देख कर लोक और देवता भयभीत हो गए, क्योंकि उन्हें यह लगने लगा कि प्रलयकाल आ गया है।

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श्री कल्कि पुराण तीसरा अंश \नौवाँ अध्याय |

बाहुयुद्ध में परिणति

अस्त्रों के असर का न कोई प्रभाव दिखा, तो दोनों योद्धा बाहुयुद्ध में लिप्त हो गए। दोनों ने एक-दूसरे को परखते हुए घूसों और चपतों से युद्ध किया। यह युद्ध बेहद रोमांचक था, जिसमें कल्कि जी और शशिध्वज एक-दूसरे के कौशल को देखकर प्रसन्न होते थे।

कल्कि जी की मूर्छा और शशिध्वज की जीत

अंत में, राजा शशिध्वज ने कल्कि जी को वज्र जैसी मुट्ठी से प्रहार किया, जिससे कल्कि जी मूर्छित हो गए। शशिध्वज ने धर्म और सत्ययुग को अपनी काँख में लिया और कल्कि जी को गोद में उठाकर विजय की ओर बढ़े।

सुशान्ता का मंदिर में पूजा

घर लौटने पर राजा शशिध्वज ने देखा कि रानी सुशान्ता भगवान नारायण के मंदिर में पूजा कर रही थीं। रानी ने भगवान के गुणगान में लीन होकर अपने पति के विजय का स्वागत किया। शशिध्वज ने रानी से कहा कि वह धर्म और सत्ययुग की पूजा करें, जो उनकी काँख में मौजूद थे।

समाप्ति

राजा शशिध्वज और रानी सुशान्ता की यह कथा हमारे लिए धर्म, सत्य और भक्ति का सशक्त संदेश देती है। भगवान कल्कि का अवतार भविष्य में संसार के पापों का नाश करने के लिए होगा, और उनके युद्ध में भी हमें यही दर्शन मिलता है कि सत्य और धर्म की शक्ति हमेशा विजयी होती है।

इस कथा से हमें यह सीखने को मिलता है कि भगवान के प्रति श्रद्धा और भक्ति में अपार शक्ति होती है, जो किसी भी संकट को दूर कर सकती है।

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