धर्म और कलियुग के घोर संग्राम की कथा
कलियुग की कथा का आरंभ:
सूत जी कहते हैं, जब घोर संग्राम आरंभ हुआ, धर्म ने अत्यंत क्रोधित होकर सत्ययुग के साथ मिलकर कलियुग से युद्ध किया। कलियुग को धर्म और सत्ययुग के बाणों की भयंकर मार से हार का सामना करना पड़ा। वह अपनी गधा-सवारी को छोड़कर अपनी राजधानी लौट गया। युद्ध के दौरान कलियुग का उल्लू-ध्वजा वाला रथ टूट गया, और उसका शरीर खून से लथपथ हो गया। उसकी भयंकर दुर्दशा देखकर वह स्त्री-कक्ष (अंतःपुर) में जा छिपा। उसका दंभ और वासनाएँ क्षीण हो गई थीं।
धर्म की विजय:
सत्ययुग के प्रभाव से लोभ, क्रोध, भय, निरय, आधि-व्याधि जैसे सभी अवगुण पीड़ित होकर अपने-अपने रथों को छोड़कर भाग गए। धर्म और सत्ययुग ने विशसन नगर, जो कलियुग की राजधानी थी, में प्रवेश किया और उसे भस्म कर दिया। इस घटना के बाद कलियुग अकेला, रोता हुआ, किसी दूसरे देश की ओर चला गया।
📖 अद्भुत कथा का संपूर्ण वर्णन | click to read 👇
श्री कल्कि पुराण तीसरा अंश \सातवाँ अध्याय |
राजाओं की विजयगाथा:
मरु ने दिव्य अस्त्र-शस्त्रों से शक और कंबोजों का नाश किया। देवापि ने शबर, चोल, और बर्बर जातियों को पराजित किया। राजा विशाखयूप ने पुलिंद और पुक्कसों को हराकर धर्म की स्थापना की। उन्होंने शत्रु सेना का विनाश तलवारों और अन्य अस्त्रों से किया।
कल्कि जी और कोक-विकोक का युद्ध:
महान वीर कल्कि जी ने हाथ में गदा लेकर कोक और विकोक से घोर युद्ध आरंभ किया। ये दोनों भाई, जो वृकासुर के पुत्र और शकुनि के पोते थे, अत्यंत बलवान थे। कोक और विकोक की गदाओं से कल्कि जी घायल हो गए, परंतु उन्होंने अपने साहस से विकोक का सिर काट दिया। जैसे ही विकोक का सिर कटा, वह फिर जीवित हो गया। इसी प्रकार जब कोक को मारा गया, वह भी विकोक के देखने से पुनः जीवित हो गया।
ब्रह्मा जी की सलाह:
इस अचंभित करने वाली घटना को देखकर ब्रह्मा जी ने कल्कि जी को बताया कि ये दोनों अस्त्र-शस्त्रों से नहीं मारे जा सकते। इन्हें केवल एक साथ थप्पड़ (मुट्ठी) मारकर मारा जा सकता है। ब्रह्मा जी की बात मानकर कल्कि जी ने एक साथ दोनों पर वज्र के समान मुट्ठियों से प्रहार किया और उनका सिर चकनाचूर कर दिया। इस महान कार्य को देखकर देवताओं और गंधर्वों ने प्रसन्न होकर पुष्पवर्षा की। अप्सराएँ नृत्य करने लगीं और दिशाएँ उल्लास से गूंज उठीं।
शत्रु सेना का विनाश:
इसके बाद कवि, प्राज्ञ, सुमंत्र, गर्ग्य, और विशालादि वीरों ने मिलकर म्लेच्छों, बर्बरों, और निषादों का नाश किया। सभी योद्धा मिलकर धर्म और कल्कि जी के साथ भल्लाटनगर की ओर बढ़े। उनके साथ शस्त्रास्त्रों से सजी विशाल सेना थी। चारों ओर बाजे बज रहे थे और चामर डुलाए जा रहे थे। इस प्रकार धर्म, सत्ययुग, और कल्कि जी ने धर्म की पुनर्स्थापना की।
निष्कर्ष:
यह कथा धर्म और अधर्म के संघर्ष का एक अद्भुत उदाहरण है। इसमें यह संदेश निहित है कि सत्य और धर्म, चाहे कितनी भी विपत्तियाँ आएं, अंततः विजयी होते हैं। कलियुग के दुर्गुणों को परास्त करने के लिए साहस, धैर्य, और शुद्ध मन की आवश्यकता है।
टिप्पणियाँ