शुकदेव जी का वर्णन: कल्कि अवतार और सत्ययुग का आगमन | Shukdev ji's description: Kalki incarnation and arrival of Satyayuga

शुकदेव जी का वर्णन: कल्कि अवतार और सत्ययुग का आगमन

शुकदेव जी ने कहा:

जब ब्रह्मचारी भिक्षु के रूप में सत्ययुग (कृतयुग) स्वयं कल्कि भगवान के समक्ष प्रकट हुए, तो उनके आगमन से सभा में उपस्थित सभी सदस्य और स्वयं कल्कि भगवान अत्यंत सम्मान से उठ खड़े हुए। कल्कि भगवान ने पाद्य, अर्घ्य और आचमन द्वारा सत्ययुग की पूजा की।

कल्कि भगवान ने सत्ययुग को आदरपूर्वक आसन पर बिठाकर उनसे प्रश्न किया:
"आप कौन हैं? आपका यहाँ आना हमारे लिए सौभाग्य का कारण है। वे ही लोग इस संसार में घूमते हैं जो निष्पाप, पूर्ण और समस्त जीवों के मित्र होते हैं। आप किस उद्देश्य से यहाँ पधारे हैं?"

सत्ययुग (कृतयुग) का उत्तर

भिक्षु ने विनम्रतापूर्वक उत्तर दिया:
"हे श्रीनाथ! मैं आपके आज्ञाकारी सेवक कृतयुग हूँ। आपके इस अवतार और प्रभाव का प्रत्यक्ष अनुभव करने की इच्छा से यहाँ आया हूँ। आप स्वयं काल-स्वरूप हैं, जो विभेदरहित और उपाधि-शून्य हैं। आपकी माया से ही यह समस्त सृष्टि प्रकट हुई है।

आपके आदेश से समय का विभाजन होता है—क्षण, दण्ड, लव, पक्ष, मास, ऋतु, और युग। संसार में चौदह मनु होते हैं, जिनमें प्रत्येक मनु आपके ही विभूतिस्वरूप हैं। मनु-स्वायम्भुव से लेकर इन्द्रसावर्णि तक सभी मनुओं ने अपने-अपने समय में संसार को प्रकाशित किया।

सत्य, त्रेता, द्वापर और कलियुग के चक्र से संसार में धर्म और अधर्म का क्रम चलता है। एक मनु इकहत्तर चतुर्युगों तक शासन करते हैं, और चौदह मनुओं का काल एक ब्रह्मा के दिन के बराबर होता है। ब्रह्मा जी की आयु समाप्त होने पर वे भी आपमें विलीन हो जाते हैं।

मैं कृतयुग हूँ, जिसमें धर्म की प्रतिष्ठा सर्वोच्च होती है। मेरे समय में प्रजा धर्म के पालन से सुखी और कृतकृत्य होती है। इसी कारण मुझे कृतयुग कहा जाता है।"

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श्री कल्कि पुराण तीसरा अंश \पाँचवाँ अध्याय |

सत्ययुग के वचन सुनकर कल्कि जी की प्रसन्नता

सत्ययुग के ये दिव्य वचन सुनकर कल्कि भगवान और उनके अनुचर प्रसन्न हो गए। सत्ययुग के आगमन से प्रेरित होकर कल्कि भगवान ने कलिकाल के विनाश की योजना बनाई। उन्होंने अपने अनुचरों से कहा:
"जो वीर योद्धा हाथी, रथ, घोड़े और पैदल सेना के साथ युद्ध-कला में निपुण हैं, जो सोने के आभूषणों से सुशोभित हैं और विभिन्न प्रकार के शस्त्र-अस्त्र धारण करते हैं, उन सभी को संगठित करो।"

कल्कि जी की योजना और युद्ध की तैयारी

कल्कि भगवान ने अपने अनुयायियों को संगठित करके कलिकाल के प्रभाव वाली "विशसन नगरी" पर आक्रमण करने की योजना बनाई। उनका उद्देश्य अधर्म का नाश और धर्म की पुनः स्थापना करना था।

यह प्रसंग धर्म और अधर्म के संघर्ष में सत्य, धर्म और ईश्वर की विजय का प्रतीक है।

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