श्री कल्कि पुराण तीसरा अंश \इक्कीसवाँ अध्याय | Shri Kalki Purana Third Part \Twenty-First Chapter

श्री कल्कि पुराण तीसरा अंश \इक्कीसवाँ अध्याय हिंदी से संस्कृत में

अत्र-अपि शुक-संवादो मार्कण्देयेन धीमता।
अधर्म-वंश-कथनं कलेर् विवरणं ततः॥१

(सूत जी बोले)- इस कल्कि पुराण में सबसे पहले बुद्धिमान मार्कण्डेय और शुक जी का संवाद है। इसके बाद अधर्म वंश की कथा तथा कल्कि भगवान् की कथा है। इसके उपरान्त, देवताओं के साथ साथ पृथ्वी द्वारा गोरूप धारण कर ब्रह्मलोक में जाने की कथा और ब्रह्मा जी की प्रार्थना पर विष्णुयश (नामक ब्राह्मण) के घर में भगवान् विष्णु के जन्म की कथा कही गई है। बाद में सुमति के गर्भ से, विष्णु के अंश से चार भाइयों के शम्भल गाँव में पैदा होने की कथा और पिता-पुत्र संवाद और कल्कि भगवान् के यज्ञोपवीत (जनेऊ) धारण करने की कथा है।


इसके बाद पिता-पुत्र के साथ-साथ रहने और कल्कि जी के वेदों के उत्तम अध्ययन और शस्त्रास्त्रों के ज्ञान प्राप्त करने तथा शिव जी के दर्शन की कथा है। इसके उपरान्त कल्कि भगवान् द्वारा शिव जी की स्तुति और शिवजी से वर प्रदत्त करने की कथा और (उनके) शिव जी द्वारा प्रदत्त शुक सहित संभल ग्राम में फिर लौटने की कथा और (श्री कल्कि द्वारा) जाति बन्धुओं को इस वर प्राप्त करने की कथा का वर्णन है। फिर विशाखयूपराज से कल्कि जी द्वारा अपने स्वरूप और ब्राह्मणों के महात्म्य का वर्णन तथा शुक के आगमन का वर्णन किया गया है। इसके बाद कल्कि भगवान् और शुक के संवाद की कहानी तथा शुक द्वारा सिंहल द्वीप के वर्णन की कथा बताई गई है।

इसके उपरान्त, शिव जी ने कैसे पद्मा जी को वर दिया और पद्मा जी के दर्शन से स्वयंवर में आए हुए राजा लोग कैसे स्त्रियाँ बन गईं, इसकी कथा है। इसके उपरान्त पद्मा जी के दुःख की कथा और विवाह के निमित्त कल्कि भगवान् के प्रयास की कथा है। फिर शुक के दूत-कार्य के लिए वहाँ से चलने की कथा, पद्मा जी के शुकदेव को देखने की कथा तथा शुक और पद्मा जी के परिचय का प्रसंग तथा श्री विष्णु भगवान् की पूजनादि संबंधी कथा का वर्णन है। इसके बाद, चरण से केश पर्यन्त भगवान् विष्णु के रूप (और ध्यान) की कथा और शुक को (पद्मा जी द्वारा प्रसन्न होकर) आभूषण पहनाने की कथा तथा कल्कि भगवान् के पास शुक के लौट जाने की कहानी है।

इसके बाद, विवाह के लिए कल्कि भगवान् की यात्रा का वर्णन और जल क्रीडा के प्रकरण में कल्कि भगवान् तथा पद्मा जी के पारस्परिक परिचय की कथा और फिर कल्कि भगवान् के साथ पद्मा जी के विवाह सूत्र में बँध जाने का आख्यान है। इसके बाद कल्कि भगवान् के दर्शन से राजा लोगों के (जो कि स्त्री के रूप में बदले जा चुके थे) फिर पुरुष बन जाने की कथा, अनन्त मुनि के (सभा में) पधारने की कथा और सभा मंडप में राजागण और अनन्त के संवाद का वर्णन हुआ है। इसके उपरान्त अनन्त मुनि के षण्ड (नपुंसक/हिजड़ा) का रूप से जन्म-वर्णन की कथा, शिव जी की स्तुति और अनन्त मुनि के पिता की मृत्यु के बाद विष्णु क्षेत्र में माया दर्शन की कथा बताई गई है। इसके उपरान्त अनन्त के आख्यान, ज्ञान और वैराग्य-रूप वैभव की कथा है। फिर राजागण के प्रयाण तथा पद्मा जी के साथ कल्कि भगवान् के संभल ग्राम में आने की कहानी है। इसके बाद में, विश्वकर्मा द्वारा शम्भलपुरी को बनाने और सजाने-सँवारने की कहानी है, फिर पद्मा जी, जाति वाले लोग, भाई-बन्धु, इष्ट मित्र और पुत्रादि तथा सेना के साथ कल्कि भगवान् के नगरी में निवास करने की कहानी है 

तथा बौद्धों के दमन करने का वर्णन किया गया है। तदुपरान्त बौद्ध स्त्रियों के युद्ध भूमि में (युद्ध के उद्देश्य से) आगमन की कहानी, बालखिल्य मुनियों के आने की कहानी व बालखिल्य मुनियों द्वारा अपने वृत्तान्त के बताने की कहानी है। इसके उपरान्त कुथोदरी नाम की राक्षसी की उसके पुत्र सहित मारे जाने की कथा और हरिद्वार में कल्कि भगवान् और मुनियों के सम्मेलन की कथा बताई गई है। फिर, सूर्यवंश तथा चन्द्रवंश की कथा और सूर्यवंश के प्रकरण में श्री रामचन्द्र जी की कथा का वर्णन है। इसके उपरान्त संग्राम के लिए तैयार हुए मरु तथा देवापि के आने की कथा, (घोर वन में) अत्यन्त विकराल, कोक और विकोक के वध की कथा तथा कल्कि भगवान् के भल्लाटनगर जाने की कथा है। इसके बाद में शय्याकर्णादि के संग्राम की कथा है, राजा शशिध्वज के साथ कल्कि जी के युद्ध का वर्णन तथा (शशिध्वज की पत्नी) सुशान्ता की भक्ति तथा उसके कीर्तन का वर्णन है। इसके बाद, युद्ध भूमि से कल्कि भगवान्, धर्म तथा सत्ययुग को राजा शशिध्वज द्वारा घर लाने का वर्णन, (रानी) सुशान्ता द्वारा कल्कि भगवान् की स्तुति और कल्कि भगवान् और रमा जी के विवाह का वर्णन किया गया है।

इसके उपरान्त, सभा के बीच में राजा शशिध्वज द्वारा अपने पूर्वजन्म की कथा, गिद्ध का शरीर पाने का वर्णन, कल्कि भगवान् से भक्ति की प्रार्थना का वर्णन और राजा शशिध्वज की मुक्ति पाने की कथा कही गई है। तदन्तर, विषकन्या के उद्धार की कथा, राजागण के राज्याभिषेक का वर्णन, माया की स्तुति और संभल ग्राम में अनेक यज्ञों के किए जाने का वर्णन किया गया है। फिर विष्णुयश जी का नारद जी से मोक्ष विषयक प्रश्न का वृत्तान्त, (लोक में) सत्ययुग की स्थापना का वर्णन तथा रुक्मिणी व्रत की कथा बताई गई है। इसके उपरान्त, कल्कि भगवान् के विहार का वर्णन और बेटे-पोतों के पैदा होने का वृत्तान्त तथा संभल ग्राम में देवता व गन्धर्वों के आने का वर्णन है। फिर, कल्कि भगवान् के वैकुण्ठ गमन की कथा है। इसके बाद, इस मधुर कथा को कहकर शुकदेव जी के जाने का वृत्तान्त है। इसके बाद, इस पुराण में मुनियों द्वारा कही गई गंगा जी की स्तुति (गंगास्तोत्र) का वर्णन है। यह कल्कि पुराण पाँच लक्षणों वाला है (अर्थात् पहला लक्षण सृष्टि, दूसरा प्रलय, तीसरा वंश (सूर्य-चन्द्र आदि), चौथा मन्वनतर (मनुगण का अधिकार), पाँचवाँ वंशानुचरित अर्थात् अनेक वंशों में जन्म लेने वाले चरित्रों का वर्णन, इसमें निहित हैं।) यह संसार को आनन्द देने वाला है। जो लोग कलि काल के पापों से पूर्ण हैं, उन्हें भी कल्कि पुराण के सुनने से सिद्धि प्राप्त होती है। इस पुराण में छः हजार एक सौ श्लोक हैं। कल्कि पुराण सब शास्त्रों के अर्थों के तत्व का सार है। इस पुराण के सुनने से ही मनुष्य का मन मोहित हो जाता है। 

यह बात प्रसिद्ध है कि कल्कि पुराण के सुनने तथा पढ़ने से चारों फल यानी धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष प्राप्त होते हैं। यह कल्कि पुराण प्रलय के अन्त में श्री नारायण भगवान् के मुख से प्रकाशित होकर संसार भर में फैला है। भगवान् वेदव्यास जी ने ब्राह्मण के रूप में इस पृथ्वी पर अवतार धारण कर इस कल्कि पुराण का वर्णन किया है। कल्कि पुराण में कल्कि भगवान् विष्णु जी के परम अद्भुत प्रभाव का वर्णन किया गया है। जो लोग सज्जनों की संगति में (घरों या) आश्रमों में, पुण्य क्षेत्रों में, वस्त्र, गहने आदि देकर ब्राह्मणों की पूजा कर आदर के साथ गाय, घोड़े, हाथी, सोना आदि देकर भक्तिपूर्वक भगवान् विष्णु के भाव में डूबकर सब पुराणों के सार इस शुद्ध कल्कि पुराण का कीर्तन करेंगे या इसे सुनेंगे, उन उत्तम पुरुषों की मुक्ति अवश्य होगी। इस कल्कि पुराण को विधिपूर्वक सुनने से ब्राह्मण वेदों के ज्ञान में पारंगत (अत्यन्त विद्वान्) होंगे, क्षत्रिय राजा बनेंगे, वैश्य धनवान् होंगे तथा शूद्र महान् बनेंगे। कल्कि पुराण के पढ़ने से और सुनने से पुत्र की प्राप्ति चाहने वाले को पुत्र, धन चाहने वाले को धन, विद्या चाहने वाले को विद्या मिलती है। लोमहर्षण के पुत्र महर्षि सूत जी शौनकादि मुनियों को भक्तिपूर्वक कल्कि पुराण की यह पुण्य कथा सुनाकर तीर्थ यात्रा के लिए चले गए। योग शास्त्र विशारद धर्मज्ञाता महर्षि शौनक जी अन्यान्य मुनियों के साथ (सूत जी से विदा लेकर) श्री हरि का ध्यान करते हुए सहर्ष ब्रह्म-पद को प्राप्त हुए। समस्त पुराणों के जानने वाले लोमहर्षण के पुत्र व्यास जी के परम शिष्य व्रतधारी, मुनियों में श्रेष्ठ श्री सूत जी को मैं प्रणाम करता हूँ।

सभी शास्त्रों को भली-भाँति पढ़कर और उन पर बार- बार विचार कर यह सिद्ध (निष्पादित) होता है (निष्कर्ष निकलता है) कि हमेशा श्री नारायण जी का ध्यान करना उचित (श्रेयस्कर) है। वेद, रामायण और पुराण, भारत (महाभारत) आदि सभी ग्रन्थों के आरंभ, मध्य तथा अन्त में (सर्वत्र) श्री हरि जी का गुणगान किया गया है। जो हवा के समान (तेज़ दौड़ने वाले) वेगधारी घोड़े पर सवार हैं, जिनके हाथ में भयंकर तलवार शोभित है, जिन्होंने कलिकुल रूपी वन का नाश करके सत्य धर्म को स्थापित किया है, ऐसे जलधारी बादल के समान कान्ति वाले, सभी लोकों के स्वामी श्री कल्कि भगवान् सबका कल्याण करें।

श्री कल्कि पुराण तीसरा अंश \इक्कीसवाँ अध्याय संस्कृत में

अत्र-अपि शुक-संवादो मार्कण्देयेन धीमता।
अधर्म-वंश-कथनं कलेर् विवरणं ततः॥१

देवानां ब्रह्म-सदन-प्रयाणं गोभुवा सह।
ब्रह्मणो वचनाद् विष्णोर् जन्म विष्णुयशो-गृहे॥२

सुमत्यां स्वअंशकैर् भ्रातृ-चतुर्भिः शम्भले पुरे।
पितुः पुत्रेण संवादस् तथो’पनयनं हरेः॥३

पुत्रेण सह संवासो वेदअध्ययनम् उत्तमम्।
शस्त्रअस्त्राणां परिज्ञानं शिव-संदर्शनं ततः॥४

कल्केः स्तवं शिवपुरो वर-लाभः शुकापनम्।
शम्भलागमनं चक्रे ज्ञातिभ्यो वर-कीर्तनम्॥५

विशाखयूप-भूपेन निज-सर्वात्म-वर्णनम्।
महाभाग्याद् ब्राह्मणानां शुकस्या’गमनं ततः॥६

कल्किना शुक-संवादः सिंहलाख्यानम् उत्तमम्।
शिव-दत्त-वरा पद्मा तस्या भूप-स्वयंवरे॥७

दर्शनाद् भूप-संघानां स्त्री-भाव-परिकीर्तनम्।
तस्या विषादः कल्केस् तु विवाहार्थं समुद्यमः॥८

शुक-प्रस्थापनं दौत्ये तया तस्यापि दर्शनम्।
शुक-पद्मा-परिचयः श्री-विष्णोः पूजनादिकम्॥९

पादादि-देह-ध्यानञ् च केशान्तं परिवर्णितम्।
शुक-भूषण-दानञ् च पुनः शुक-समागमः॥१०

कल्केः पद्मा-विवाहार्थं गमनं दर्शनं तयोः।
जल-क्रीडा-प्रसङ्गेन विवाहस् तदनन्तरम्॥११

पुंस्त्व-प्राप्तिश् च भूपानां कल्केर् दर्शनम् आत्रतः।
अनन्तआगमनं राज्ञा संवादस् तेन संसदि॥१२

षण्धत्वाद् आत्मनो जन्म कर्म चअत्र शिव-स्तवः।
मृते पितरि तद् विष्नोः क्षेत्रे मायाप्रदर्शनम्॥१३

अत्रआख्यानम् अनन्तस्य ज्ञान-वैराग्य-वैभवम्।
राज्ञां प्रयाणं कल्केश् च पद्मया सह शम्भले॥१४

विश्वकर्म-विधानञ् च वसतिः पद्मया सह।
ज्ञाति-भ्रातृ-सुहृत्-पुत्रैः सेनाभिर् बुद्ध-निग्रहः॥१५ 

कथितश् चअत्र तेषाञ् च स्त्रीणां संयोधनआश्रयः।
ततो ऽत्र वालखिल्यानां मुनीनां स्वनिवेदनम्॥१६

स-पुत्रायाः कुथोदर्या वधश् चअत्र प्रकीर्तितः।
हरिद्वार-गतस्यअपि कल्केर् मुनि-समागमः॥१७

सूर्य-वंशस्य कथनं सोमस्य च विधानतः।
श्री-राम-चरितं चारु सूर्य-वंशअनुवर्णने॥१८

देवापेश् च मरोः संगो युद्धायात्र प्रकीर्तितः)
महाघोर-वने कोक-विकोक-विनिपातनम्॥१९

भल्लाट-गमनं तत्र शय्याकर्णआदिभिः सह।
युद्धं शशिध्वजेनअत्र सुशान्ता-भक्ति-कीर्तनम्॥२०

युद्धे कल्केर् आनयनं धर्मस्य च कृतस्य च।
सुशान्तायाः स्तवस् तत्र रमाउद्वाहस् तु कल्किना॥२१

सभायां पूर्वकथनं निजगृध्रत्वकारणम्।
मोक्षः शशिध्वजस्यअत्र भक्ति-प्रार्थयितुर् विभोः॥२२

विषकन्यामोचनञ् च नृपाणामभिषेचनम्।
माया-स्तवः शम्भलेषु नाना-यज्ञादिसाधनम्॥२३

नारदाद् विष्णुयशसो मोक्षश् चअत्र प्रकीर्तितः।
कृत-धर्म-प्रवृत्तिश् च रुक्मिणी व्रत-कीर्तनम्॥२४

ततो विहारः कल्केश् च पुत्र-पौत्रआदि-सम्भवः।
कथितो देव-गन्धर्व-गणआगमनम् अत्र हि॥२५

ततो वैकुण्थ-गमनं विष्नोः कल्केर् इहउदितम्।
शुक-प्रस्थानम् उचितं कथयित्वा कथाः शुभाः॥२६

गंगा-स्तोत्रम् इह प्रोक्तं पुराणे मुनि-संमतम्।
जगताम् आनन्द-करं पुराणं पंच-लक्षणम्॥२७

स-कल्क-सिद्धि-दं लोकैः षट् सहस्रं शताधिकम्।
सर्व-शास्त्रअर्थ-तत्त्वानां सारं श्रुति-मनोहरम्॥२८

चतुर्-वर्ग-प्रदं कल्कि-पुराणं परिकीर्तितम्।
प्रलयअन्ते हरि-मुखान् निःसृतं लोक-विस्तृतम्॥२९

अहो व्यासेन कथितं द्विज-रूपेण भूतले।
विष्णोर् कल्केर् भगवतः प्रभावं परमअद्भुतम्॥३०

ये भक्त्यात्र पुराण-सारम् अमलं श्री-विष्णु-भावाप्लुतं।
शृण्वन्तिइह वदन्ति साधुसदसि क्षेत्रे सु-तीर्था’श्रमे।

दत्त्वा गां तुरगं गजं गज-वरं स्वर्णं द्विजायादरात्।
वस्त्रअलघ्ग्करणैः प्रपूज्य विधिवन्-मुक्तास् तु एवो’त्तमाः॥३१

श्रुत्वा विधानं विधिवद्-ब्राह्मणो वेद-पारगः।
क्षत्रियो भूपतिर् वैश्यो धनी शूद्रो महान् भवेत्॥३२

पुत्रअर्थी लभते पुत्रं धनार्थी लभते धनम्।
विद्यार्थी लभते विद्यां पठनाच् छ्रवणाद् अपि॥३३

इत्य् एतत् पुण्यम् आख्यानं लोमहर्षण-जो मुनिः।
श्रावयित्वा मुनीन् भक्त्या ययौ तीर्थअटनआदृतः॥३४

शौनको मुनिभिः सार्धं सूतम् आमन्तृय धर्मवित्।
पुण्यारण्ये हरिं ध्यात्वा ब्रह्म प्राप सहर्षिभिः॥३५

लोमहर्षण-जं सर्व-पुराण-ज्ञं यतव्रतम्।
व्यास-शिष्यं मुनि-वरं तं सूतं प्रणमाम्य् अहम्॥३६

आलोक्य सर्व-शास्त्राणि विचार्य च पुनः पुनः।
इदम् एव सुनिष्पन्नं ध्येयो नारायणः सदा॥३७

वेदे रामायणे चैव पुराणे भारते तथा।
आदाव् अन्ते च मध्ये च हरिः सर्वत्र गीयतेए॥३८

सजलजलददेहो वात-वेगै’क-वाहः।
कर-धृत-करवालः सर्व-लोकै’क-पालः।

कलि-कुलवन-हन्ता सत्य-धर्म-प्रणेता।
कलयतु कुशलं वः कल्कि-रूपः स भूपः॥३९

इति श्री-कल्कि-पुराणे ऽनुभागवते भविष्ये तृतीयअंशे एकविंशो ऽध्यायः॥१९

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