मत्स्य पुराण नवाँ अध्याय
मन्वन्तरों के चौदह देवताओं और सप्तर्षियों का विवरण
सूत उवाच
एवं श्रुत्वा मनुः प्राह पुनरेव जनार्दनम् ।
पूर्वेषां चरितं ब्रूहि मनूनां मधुसूदन ॥ १
सूतजी कहते हैं-ऋषियो। इस प्रकार सृष्टि- सम्बन्धी वर्णन सुनकर मनुने भगवान् जनार्दनसे पुनः निवेदन किया-मधुसूदन ! अब पूर्वमें उत्पन्न हुए मनुओंके चरित्रका वर्णन कीजिये ॥ १ ॥
मत्स्य उवाच
मन्वन्तराणि राजेन्द्र मनूनां चरितं च यत्।
प्रमाणं चैव कालस्य तां सृष्टिं च समासतः ॥ २
एकचित्तः प्रशान्तात्मा शृणु मार्तण्डनन्दन।
यामा नाम पुरा देवा आसन् स्वायम्भुवान्तरे ।। ३
सप्तैव ऋषयः पूर्वे ये मरीच्यादयः स्मृताः।
आग्ग्रीधश्चाग्ग्रिबाहुश्च सहः सवन एव च ॥ ४
ज्योतिष्मान् द्युतिमान् हव्यो मेधा मेधातिथिर्वसुः ।
स्वायम्भुवस्यास्य मनोर्दशैते वंशवर्धनाः ॥ ५
प्रतिसर्गमिमे कृत्वा जग्मुर्यत् परमं पदम् ।
एतत् स्वायम्भुवं प्रोक्तं स्वारोचिषमतः परम् ॥ ६
स्वारोचिषस्य तनयाश्चत्वारो देववर्चसः ।
नभोनभस्यप्रसृतिभानवः कीर्तिवर्धनाः ॥ ७
दत्तो निश्च्यवनः स्तम्बः प्राणः कश्यप एव च।
और्वो बृहस्पतिश्चैव सप्तैते ऋषयः स्मृताः ॥ ८
देवाश्च तुषिता नाम स्मृताः स्वारोचिषेऽन्तरे।
हस्तीन्द्रः सुकृतो मूर्तिरापो ज्योतिरयः स्मयः ॥ ९
वसिष्ठस्य सुताः सप्त ये प्रजापतयः स्मृताः ।
द्वितीयमेतत् कथितं मन्वन्तरमतः परम् ॥ १०
औत्तमीयं प्रवक्ष्यामि तथा मन्वन्तरं शुभम्।
मनुर्नामौत्तमिर्यंत्र दश पुत्रानजीजनत् ॥ ११
ईष ऊर्जश्च तर्जश्च शुचिः शुक्रस्तथैव च।
मधुश्च माधवश्चैव नभस्योऽथ नभास्तथा ॥ १२
सहः कनीयानेतेषामुदारः कीर्तिवर्धनः ।
भावनास्तत्र देवाः स्युरूर्जाः सप्तर्षयः स्मृताः ॥ १३
कौकुरुण्डिश्च दाल्भ्यश्च शङ्खः प्रवहणः शिवः ।
सितश्च सम्मितश्चैव सप्तैते योगवर्धनाः ॥ १४
मत्स्यभगवान् कहने लगे- राजेन्द्र । अब मैं मन्वन्तरों को, मनुओंके सम्पूर्ण चरित्रको, उनमें प्रत्येकके शासनकालको और उनके समयकी सृष्टिके वृत्तान्तको संक्षेपमें वर्णन कर रहा हूँ; तुम उसे एकाग्रचित्त एवं प्रशान्त मनसे श्रवण करो। मार्तण्डनन्दन। प्राचीनकालमें स्वायम्भुव मन्वन्तरमें याम नामक देवगण थे। मरीचि (अत्रि) आदि मुनि ही सप्तर्षि थे। इन स्वायम्भुव मनुके आग्नीघ्र, अग्रिबाहु, सह, सवन, ज्योतिष्मान्, द्युतिमान्, हव्य, मेधा, मेधातिथि और वसु नामके दस पुत्र थे, जिनसे वंशका विस्तार हुआ। ये सभी प्रतिसर्गकी रचना करके परमपदको प्राप्त हुए। यह स्वायम्भुव मन्वन्तरका वर्णन हुआ। अब इसके पश्चात् स्वारोचिष मनुका वृत्तान्त सुनो। स्वारोचिष मनुके नभ, नभस्य, प्रसृति और भानु-ये चार पुत्र थे, जो सभी देवताओंके सदृश वर्चस्वी और कीर्तिका विस्तार करनेवाले थे। इस मन्वन्तरमें दत्त, निश्च्यवन, स्तम्ब, प्राण, कश्यप, और्व और बृहस्पति- ये सप्तर्षि बतलाये गये हैं। इस स्वारोचिष-मन्वन्तरमें होनेवाले देवगण तुषित नामसे प्रसिद्ध हैं तथा महर्षि वसिष्ठके हस्तीन्द्र, सुकृत, मूर्ति, आप, ज्योति, अय और स्मय नामक सात पुत्र प्रजापति कहे गये हैं। यह द्वितीय मन्वन्तरका वर्णन हुआ। इसके अनन्तर औत्तभि नामक (तीसरे) शुभकारक मन्वन्तरका वर्णन कर रहा हूँ। इस मन्वन्तरमें औत्तमि नामक मनु हुए थे, जिन्होंने दस पुत्रोंको जन्म दिया। उनके नाम हैं- ईष, ऊर्ज, तर्ज, शुचि, शुक्र, मधु, माधव, नभस्य, नभस तथा सह। इनमें सबसे कनिष्ठ सह परम उदार एवं कीर्तिका विस्तारक था। इस मन्वन्तरमें भावना नामक देवगण हुए तथा कौकुरुण्डि, दाल्भ्य, शङ्ख, प्रवहण, शिव, सित और सम्मित- ये सप्तर्षि कहलाये। ये सातों अत्यन्त कर्जस्वी और योगके प्रवर्धक थे॥२-१४॥
मन्वन्तरं चतुर्थ तु तामसं नाम विश्रुतम्।
कविः पृथुस्तथैवाग्निरकपिः कपिरेव च ॥ १५
तथैव जल्पधीमानौ मुनयः सप्त तामसे।
साध्या देवगणा यत्र कथितास्तामसेऽन्तरे ॥ १६
अकल्मषस्तथा धन्वी तपोमूलस्तपोधनः ।
तपोरतिस्तपस्यश्च तपोद्युतिपरंतपौ ॥ १७
तपोभोगी तपोयोगी धर्माचाररताः सदा।
तामसस्य सुताः सर्वे दश वंशविवर्धनाः ॥ १८
पञ्चमस्य मनोस्तद्वद् रैवतस्यान्तरं शृणु।
देवबाहुः सुबाहुश्च पर्जन्यः सोमपो मुनिः ॥ १९
हिरण्यरोमा सप्ताश्वः समैते ऋषयः स्मृताः ।
देवाश्चामूर्तरजसस्तथा प्रकृतयः शुभाः ॥ २०
अरुणस्तत्त्वदर्शी च वित्तवान् हव्यपः कपिः ।
युक्तो निरुत्सुकः सत्त्वो निर्मोहोऽथ प्रकाशकः ॥ २१
धर्मवीर्यबलोपेता दशैते रैवतात्मजाः ।
भृगुः सुधामा विरजाः सहिष्णुर्नाद एव च ॥ २२
विवस्वानतिनामा च षष्ठे सप्तर्षयोऽपरे।
चाक्षुषस्यान्तरे देवा लेखा नाम परिश्श्रुताः ॥ २३
चौथा मन्वन्तर तामस नामसे विख्यात है। इस तामस-मन्वन्तरमें कवि, पृथु, अग्नि, अकपि, कपि, जल्प और धीमान् ये सात मुनि हुए तथा देवगण साध्य नामसे कहे गये। तामस मनुके अकल्मष, धन्वी, तपोमूल, तपोधन, तपोरति, तपस्य, तपोद्युति, परंतप, तपोभोगी और तपोयोगी नामक दस पुत्र थे। ये सभी सदा सदाचारमें निरत रहनेवाले एवं वंशविस्तारक थे। अब पाँचवें रैवत मन्वन्तरका वृत्तान्त सुनो। इस मन्वन्तरमें देवबाहु, सुबाहु, पर्जन्य, सोमप, मुनि, हिरण्यरोमा और सप्ताश्च- ये सप्तर्षि बतलाये गये हैं। देवगण अमूर्तरजा नामसे विख्यात थे और (सभी छः) प्रकृतियाँ (प्रजाएँ) सत्कर्ममें निरत रहती थीं। अरुण, तत्त्वदर्शी, वित्तवान्, हव्यप, कपि, युक्त, निरुत्सुक, सत्त्व, निर्मोह और प्रकाशक ये दस रैवत मनुके पुत्र थे, जो सभी धर्म, पराक्रम और बलसे सम्पन्न थे। इसके पश्चात् छठे चाक्षुष- मन्वन्तरमें भूगु, सुधामा, विरजा, सहिष्णु, नाद, विवस्वान् और अतिनामा- ये सप्तर्षि थे तथा देवगण लेखानामसे सत्कर्ममें निरत रहती थीं। अरुण, तत्त्वदर्शी, वित्तवान्, प्रख्यात थे ॥१५-२३ ॥
ऋभवोऽथ ऋभाद्याश्च वारिमूला दिवौकसः ।
चाक्षुषस्यान्तरे प्रोक्ता देवानां पञ्चयोनयः ॥ २४
रुरुप्रभृतयस्तद्वच्चाक्षुषस्य सुता दश।
प्रोक्ताः स्वायम्भुवे वंशे ये मया पूर्वमेव तु ॥ २५
अन्तरं चाक्षुषं चैतन्मया ते परिकीर्तितम् ।
सप्तमं तत् प्रवक्ष्यामि यद् वैवस्वतमुच्यते ॥ २६
अत्रिश्चैव वसिष्ठश्च कश्यपो गौतमस्तथा।
भरद्वाजस्तथा योगी विश्वामित्रः प्रतापवान् ॥ २७
जमदग्निश्च सप्तैते साम्प्रतं ये महर्षयः ।
कृत्वा धर्मव्यवस्थानं प्रयान्ति परमं पदम् ॥ २८
साध्या विश्वे च रुद्राश्च मरुतो वसवोऽश्विनौ।
आदित्याश्च सुरास्तद्वत् सप्त देवगणाः स्मृताः ॥ २९
इक्ष्वाकुप्रमुखाश्चास्य दश पुत्राः स्मृता भुवि।
मन्वन्तरेषु सर्वेषु सप्त सप्त महर्षयः ॥ ३०
इसी प्रकार उस मन्वन्तरमें लेखा, ऋभव, ऋभाद्य, वारिमूल और दिवौकस नामसे देवताओंकी पाँच योनियाँ बतलायी गयी हैं। पहले स्वायम्भुव मनुके वंश-वर्णनमें मैंने जैसा तुमसे कहा है, (कि स्वायम्भुव मनुके दस पुत्र थे) वैसे ही चाक्षुष मनुके भी रुरु आदि दस पुत्र थे। इस प्रकार मैंने तुम्हें चाक्षुष-मन्वन्तरका परिचय दे दिया। अब उस सातवें मन्वन्तरका वर्णन करता हूँ, जो (वर्तमानमें) वैवस्वत नामसे विख्यात है। इस मन्वन्तरमें अत्रि, वसिष्ठ कश्यप, गौतम, योगी, भरद्वाज, प्रतापी, विश्वामित्र और जमदग्नि- ये सात महर्षि इस समय भी वर्तमान हैं। ये सप्तर्षि धर्मकी व्यवस्था करके अन्तमें परमपदको प्राप्त करते हैं। वैवस्वत- मन्वन्तरमें साध्य, विश्वेदेव, रुद्र, मरुत्, वसु, अश्विनीकुमार और आदित्य-ये सात देवगण कहे जाते हैं। वैवस्वत मनुके भी इक्ष्वाकु आदि दस पुत्र हुए, जो भूमण्डलमें प्रसिद्ध हैं। इस प्रकार सभी मन्वन्तरोंमें सात-सात महर्षि होते हैं, जो धर्मकी व्यवस्था करके अन्तमें परमपदको चले जाते हैं।॥ २४-३० ॥
कृत्वा धर्मव्यवस्थानं प्रयान्ति परमं पदम् ।
सावर्ण्यस्य प्रवक्ष्यामि मनोर्भावि तथान्तरम् ।। ३१
अश्वत्थामा शरद्वांश्च कौशिको गालवस्तथा।
शतानन्दः काश्यपश्च रामश्च ऋषयः स्मृताः ॥ ३२
धृतिर्वरीयान् यवसः सुवर्णों वृष्टिरेव च।
चरिष्णुरीड्यः सुमतिर्वसुः शुक्रश्च वीर्यवान् ॥ ३३
भविष्या दश सावर्णैर्मनीः पुत्राः प्रकीर्तिताः ।
रौच्यादयस्तथान्येऽपि मनवः सम्प्रकीर्तिताः ॥ ३४
रुचेः प्रजापतेः पुत्रो रौच्यो नाम भविष्यति।
मनुर्भूतिसुतस्तद्वद् भौत्यो नाम भविष्यति ॥ ३५
ततस्तु मेरुसावर्णिर्ब्रह्मसूनुर्मनुः स्मृतः ।
ऋतश्च ऋतधामा च विष्वक्सेनो मनुस्तथा ॥ ३६
अतीतानागताश्चैते मनवः परिकीर्तिताः ।
षडूनं युगसाहस्त्रमेभिर्व्याप्तं नराधिप ॥ ३७
स्वे स्वेऽन्तरे सर्वमिदमुत्पाद्य सचराचरम्।
कल्पक्षये विनिर्वृत्ते मुच्यन्ते ब्रह्मणा सह ।। ३८
एते युगसहस्त्रान्ते विनश्यन्ति पुनः पुनः।
ब्रह्माद्या विष्णुसायुज्यं याता यास्यन्ति वै द्विजाः ॥ ३९
राजर्षे ! अब मैं भावी सावर्णि-मन्वन्तरका वर्णन कर रहा हूँ। इस मन्वन्तरमें अश्वत्थामा, शरद्वान्, कौशिक, गालव, शतानन्द, काश्यप और राम (परशुराम)- ये सात ऋषि बतलाये गये हैं। सावर्णि मनुके धृति, वरीयान, यवस, सुवर्ण, वृष्टि, चरिष्णु, ईड्य, सुमति, वसु और पराक्रमी शुक्र-ये दस पुत्र होंगे, ऐसा कहा गया है। इसी प्रकार भविष्यमें होनेवाले रौच्य आदि अन्यान्य मन्वन्तरोंका भी वर्णन किया गया है। उस समय प्रजापति रुचिका पुत्र रौच्य मनुके नामसे विख्यात होगा तथा उसी तरह भूतिका पुत्र भौत्य मनुके नामसे पुकारा जायगा। उसके बाद ब्रह्माके पुत्र मेरुसावर्णि मनु नामसे प्रसिद्ध होंगे। इनके अतिरिक्त ऋत, ऋतधामा और विष्वक्सेन नामक तीन मनु और उत्पन्न होंगे। नरेश्वर ! इस प्रकार मैंने तुम्हें अतीत तथा भविष्यमें होनेवाले मनुओंका वृत्तान्त बतला दिया। यह भूमण्डल नौ सौ चौरानबे (९९४) (प्रायः एक सहस्त्र युगोंतक इन मनुओंसे व्याप्त रहता है (अर्थात् इन १४ मनुओंमें प्रत्येक मनुका कार्यकाल ७१ दिव्य (चतुर्) युगोंतक रहता है)। इस प्रकार वे सभी अपने-अपने कार्यकालमें इस सम्पूर्ण चराचर जगत्को उत्पन्न करके कल्पान्तके समय ब्रह्माके साथ मुक्त हो जाते हैं। द्विजवरो। इस तरह ये सभी मनु एक सहस्र युगके अन्तमें बारम्बार उत्पन्न होकर विनष्ट होते रहते हैं और ब्रह्मा आदि देवगण विष्णु-सायुज्यको प्राप्त हो जाते हैं तथा भविष्यमें भी इसी प्रकार प्राप्त करते रहेंगे ॥ ३१-३९ ॥
इति श्रीमात्स्ये महापुराणे मन्वन्तरानुकीर्तनं नाम नवमोऽध्यायः ॥ ९॥
इस प्रकार श्रीमत्स्यमहापुराणमें मन्वन्तरानुकीर्तन नामक नाँ अध्याय सम्पूर्ण हुआ ॥ ९॥
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