भगवान कल्कि: धर्म और सत्ययुग के पुनर्स्थापक
सूत जी ने राजा शशिध्वज के मोक्ष और भगवान कल्कि के युग के अद्भुत वृत्तांत का वर्णन करते हुए हमें एक महान कथा सुनाई। यह कथा न केवल भगवान कल्कि की महानता को दर्शाती है, बल्कि यह भी बताती है कि कैसे उनका अवतार संसार में धर्म और सत्ययुग की पुनः स्थापना के लिए हुआ।
कल्कि जी का राजतिलक और धर्म की पुनर्स्थापना
भगवान कल्कि जब राजसिंहासन पर बैठे, तो वेद, धर्म, और सत्ययुग फिर से समृद्ध हो गए। देवता, स्थावर-जंगम (अचल और चलायमान जीव), सभी संतुष्ट हुए। उस समय पाखंड का नाश हो गया और सज्जन लोग तिलक धारण करने लगे।
कल्कि जी शंभल ग्राम में अपनी पत्नियों पद्मा जी और रमा जी के साथ रहने लगे। उनके शासनकाल में सभी लोग माया-मोह से परे होकर धर्म के मार्ग पर चलने लगे।
यज्ञ और उत्सव
यज्ञ के दौरान नृत्य, संगीत, और उत्सव का आयोजन हुआ। रंभा अप्सरा ने नृत्य किया, नंदिकेश्वर ने ताल बजाए और गंधर्व हूहू ने मधुर संगीत प्रस्तुत किया।
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श्री कल्कि पुराण तीसरा अंश \सोलहवाँ अध्याय |
देवर्षि नारद का आगमन
एक दिन नारद मुनि और तुम्बरु महाराज विष्णुयश की सभा में पधारे। विष्णुयश ने उनका विधिपूर्वक स्वागत किया और उनसे संसार के दुःखों से मुक्ति और मोक्ष प्राप्ति का उपाय पूछा।
माया और जीव का संवाद
नारद जी ने एक अद्भुत कथा सुनाई, जिसमें माया और जीव का संवाद था। यह संवाद यह दर्शाता है कि माया के प्रभाव से जीवात्मा कैसे संसार में बंधा रहता है और केवल भगवान विष्णु की भक्ति ही उसे इस बंधन से मुक्त कर सकती है।
विष्णुयश का त्याग और तपस्या
नारद मुनि के उपदेश सुनकर विष्णुयश ने संसार त्यागकर बदरिकाश्रम में तपस्या की और अंततः अपनी आत्मा को परमात्मा में लीन कर दिया। उनकी पत्नी सुमति ने भी उनके पदचिन्हों पर चलकर अपने पति का अनुसरण किया।
निष्कर्ष
भगवान कल्कि का अवतार न केवल धर्म की पुनर्स्थापना के लिए था, बल्कि यह दर्शाने के लिए भी था कि ईश्वर का मार्ग ही मोक्ष का सच्चा मार्ग है। उनका जीवन और कार्य हम सभी के लिए प्रेरणा है।
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