लिंग पुराण : लिङ्गमें सभी देवताओं की स्थितिका वर्णन और लिङ्गार्चनसे सभीके पूजनका फलनिरूपण | Linga Purana: Description of the position of all the gods in the Linga and the result of worshiping them through Linga worship

श्रीलिङ्गमहापुराण उत्तरभाग छियालीसवाँ अध्याय

लिङ्ग में सभी देवताओं की स्थिति का वर्णन और लिङ्गार्चन से सभी के पूजन का फल निरूपण

ऋषय ऊचुः

जीवच्छ्राद्धविधिः प्रोक्तस्त्वया सूत महामते। 
मूर्खाणामपि मोक्षार्थमस्माकं रोमहर्षण ॥ १

रुद्रादित्यवसूनां च शक्रादीनां च सुव्रत। 
प्रतिष्ठा कीदृशी शम्भोर्लिङ्गमूर्तेश्च शोभना ॥ २

विष्णोः शक्रस्य देवस्य ब्रह्मणश्च महात्मनः । 
अग्नेर्यमस्य निर्ऋतेर्वरुणस्य महाद्युतेः ॥ ३

ऋषिगण बोले- हे विशाल बुद्धिवाले सूतजी, हे रोमहर्षण। आपने अज्ञानियोंकि भी मोक्षके लिये हमलोगोंसे जीवच्छ्राद्धकी विधिका वर्णन किया। हे सुव्रत । रुद्र, आदित्य, वसु, इन्द्र आदि देवता तथा शिवजीकी लिङ्गमूर्तिकी सुन्दर प्रतिष्ठा किस प्रकार होती है; विष्णु, इन्द्रदेव, भगवान् ब्रह्मा, अग्नि, यम, निऋति, महातेजस्वी वरुण, वायु, सोम, यक्ष, अमित आत्मावाले कुबेर, ईशान तथा पृथ्वीको उत्तम प्रतिष्ठा कैसे की जाती है; दुर्गा, शिवा, हैमवती, कार्तिकेय, गणनाथ नन्दी तथा अन्य देवताओं और गणोंको शोभन प्रतिष्ठा किस प्रकार होती है, इनकी प्रतिष्ठा-विधिका विस्तारपूर्वक वर्णन कीजिये ॥ १-६ ॥

वायोः सोमस्य यक्षस्य कुबेरस्यामितात्मनः ।
ईशानस्य धरायाश्च श्रीप्रतिष्ठाथ वा कथम् ॥ ४

दुर्गाशिवाप्रतिष्ठा च हैमवत्याश्च शोभना।
स्कन्दस्य गणराजस्य नन्दिनश्च विशेषतः ॥ ५

तथान्येषां च देवानां गणानामपि वा पुनः।
प्रतिष्ठालक्षणं सर्वं विस्तराद्वक्तुमर्हसि ॥ ६

विष्णु, इन्द्रदेव, भगवान् ब्रह्मा, अग्नि, यम, निऋति, महातेजस्वी वरुण, वायु, सोम, यक्ष, अमित आत्मावाले कुबेर, ईशान तथा पृथ्वीको उत्तम प्रतिष्ठा कैसे की जाती है; दुर्गा, शिवा, हैमवती, कार्तिकेय, गणनाथ नन्दी तथा अन्य देवताओं और गणोंको शोभन प्रतिष्ठा किस प्रकार होती है, इनकी प्रतिष्ठा-विधिका विस्तारपूर्वक वर्णन कीजिये ॥ १-६ ॥

भवान् सर्वार्थतत्त्वज्ञो रुद्रभक्तश्च सुव्रत।
कृष्णद्वैपायनस्यासि साक्षात्त्वमपरा तनुः ॥ ७

सुमन्तुजैमिनिश्चैव पैलश्च परमर्षयः।
गुरुभक्तिं तथा कर्तुं समर्थों रोमहर्षणः ॥ ८

इति व्यासस्य विपुला गाथा भागीरथीतटे।
एकः समो वा भिन्नो वा शिष्यस्तस्य महाद्युतेः ॥ ९

वैशम्पायनतुल्योऽसि व्यासशिष्येषु भूतले।
तस्मादस्माकमखिलं वक्तुमर्हसि साम्प्रतम् ॥ १०

हे सुव्रत! आप समस्त अर्थतत्त्वके ज्ञाता और रुद्रभक्त हैं। आप कृष्णद्वैपायन व्यासको साक्षात् दूसरी मूर्ति हैं। 'सुमन्तु, जैमिनि तथा पैल परम ऋषिके रूपमें प्रतिष्ठित हैं; रोमहर्षण उन्होंके सदृश गुरुभक्ति करनेमें समर्थ है-इस प्रकारकी विशद वाणी गंगातटपर व्यासजीने स्वयं प्रकट की थी।' उन महातेजस्वीके समान अथवा उन्होंके रूपवाले आप उनके शिष्य हैं। पृथ्वीतलपर व्यासजीके शिष्योंमें आप वैशम्पायनके समान हैं, अतः इस समय आप हमलोगोंको सम्पूर्णरूपसे बतानेको कृपा करें ॥७-१०॥ 

एवमुक्त्वा स्थितेष्वेव तेषु सर्वेषु तत्र च ।
बभूव विस्मयोऽतीव मुनीनां तस्य चाग्रतः ॥ ११

अथान्तरिक्षे विपुला साक्षादेवी सरस्वती।
अलं मुनीनां प्रश्नोऽयमिति वाचा बभूव ह। १२

सर्वं लिङ्गमयं लोकं सर्वं लिङ्गे प्रतिष्ठितम् ।
तस्मात्सर्व परित्यज्य स्थापयेत्पूजयेच्च तत् ॥ १३

लिङ्गस्थापनसन्मार्गनिहितस्वायतासिना ।
आशु ब्रह्माण्डमुद्भिद्य निर्गच्छेदविशङ्कया ॥ १४

ऐसा कहकर उन सभीके शान्त हो जानेपर मुनियों तथा उन सूतजीके समक्ष विस्मयकारी घटना हुई, अन्तरिक्षमें साक्षात् महादेवी सरस्वती इस वाणीके साथ प्रकट हुईं कि 'मुनियोंका यह प्रश्न समीचीन है, सम्पूर्ण लोक लिङ्गमय है और सब कुछ लिङ्गमें ही प्रतिष्ठित है, अतः सब कुछ छोड़कर उसीका स्थापन तथा पूजन करना चाहिये। लिङ्गस्थापनरूप पुण्यकर्ममें स्थापित अत्यन्त विस्तृत खड्गके द्वारा शीघ्र ही ब्रह्माण्डका भेदन करके [वह लिङ्गस्थापक] निःशंक भावसे मुक्त हो जाता है'॥ ११-१४॥

उपेन्द्राम्भोजगर्भेन्द्रयमाम्बुधनदेश्वराः ।
तथान्ये च शिवं स्थाप्य लिङ्गमूर्ति महेश्वरम् ॥ १५

स्वेषु स्वेषु च पक्षेषु प्रधानास्ते यथा द्विजाः ।
ब्रह्मा हरश्च भगवान् विष्णुर्देवी रमा धरा ॥ १६

लक्ष्मीधृतिः स्मृतिः प्रज्ञा धरा दुर्गा शची तथा।
रुद्राश्च वसवः स्कन्दो विशाखः शाख एव च ।। १७

नैगमेशश्च भगवाँल्लोकपाला ग्रहास्तथा। 
सर्वे नन्दिपुरोगाश्च गणा गणपतिः प्रभुः ॥ १८

पितरो मुनयः सर्वे कुबेराद्याश्च सुप्रभाः । 
आदित्या वसवः सांख्या अश्विनी च भिषग्वरी ॥ १९

विश्वेदेवाश्च साध्याश्च पशवः पक्षिणो मृगाः । 
ब्रह्मादिस्थावरान्तं च सर्वं लिङ्गे प्रतिष्ठितम् ॥ २०

तस्मात्सर्व परित्यज्य स्थापयेल्लिङ्गमव्ययम् । 
यत्नेन स्थापितं सर्वं पूजितं पूजयेद्यदि ॥ २१

हे द्विजो। लिङ्गमूर्ति महेश्वर शिवकी स्थापना करके जैसे विष्णु, ब्रह्मा, इन्द्र, यम, वरुण तथा कुबेर ईश्वर (स्वामी) हो गये, वैसे ही अन्य लोग भी अपने अपने पक्षोंमें प्रधान हुए हैं। ब्रह्मा, शम्भु, भगवान् विष्णु, देवी रमा, घरा, लक्ष्मी, धृति, स्मृति, प्रज्ञा, धरा, दुर्गा, शची, सभी रुद्र, सभी वसु, कार्तिकेय, विशाख, शाख,भगवान् नैगमेश, समस्त लोकपाल, ग्रह, नन्दी आदि गण, प्रभु गणपति, पितर, मुनिगण, कान्तिमान् कुबेर आदि यक्ष, सभी आदित्य, वसु, सांख्य, वैद्यश्रेष्ठ दोनों अश्विनीकुमार, विश्वेदेव, साध्यगण, पशु, पक्षी और मृग-ब्रह्मासे लेकर स्थावरपर्यन्त सब कुछ लिङ्गमें प्रतिष्ठित है, अतः सब कुछ छोड़कर यत्नपूर्वक यदि शाश्वत लिङ्गकी स्थापना करे, तो सबकी स्थापना हो जाती है और यदि पूजन करे, तो सबकी पूजा हो जाती है॥ १५-२९ ॥

॥ इति श्रीलिङ्गमहापुराणे उत्तरभागे लिङ्गपूजनवर्णनं नाम षट्‌चत्वारिंशोऽध्यायः ।। ४६ ।। 

॥ इस प्रकार श्रीलिङ्गमहापुराणके अन्तर्गत उत्तरभागमें 'लिङ्गपूजनवर्णन' नामक छियालीसवाँ अध्याय पूर्ण हुआ ॥ ४६ ॥

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