लिंग पुराण : ऐश्वर्य प्रद महा लक्ष्मी दान विधि | Linga Purana: Aishwarya Prada Maha Lakshmi Donation Method

श्रीलिङ्गमहापुराण उत्तरभाग छत्तीसवाँ अध्याय

ऐश्वर्यप्रद महालक्ष्मीदान विधि

सनत्कुमार उवाच

लक्ष्मीदानं प्रवक्ष्यामि महदैश्वर्यवर्धनम्। 
पूर्वोक्तमण्डपे कार्य वेदिकोपरिमण्डले ॥ १

श्रीदेवीमतुलां कृत्वा हिरण्येन यथाविधि। 
सहस्त्रेण तदर्धेन तदर्धार्थेन वा पुनः ॥ २

अष्टोत्तरशतेनापि सर्वलक्षणसंयुताम् । 
मण्डले विन्यसेल्लक्ष्मीं सर्वालङ्कारसंयुताम् ॥ ३

सनत्कुमार बोले- अब मैं महान् ऐश्वर्यको वृद्धि करनेवाले लक्ष्मीदानका वर्णन करूँगा। पूर्वकी भाँति बताये गये विधानसे निर्मित मण्डपमें बनायी गयी वेदीके ऊपर यह दानकर्म करना चाहिये। हजार स्वर्णमुद्राओं अथवा उसके आधे अथवा उसके आधे अथवा एक सौ आठ स्वर्णमुद्राओंसे विधिपूर्वक अनुपम तथा सभी लक्षणोंसे युक्त श्री देवी प्रतिमा बनाकर उन लक्ष्मीजीको सभी अलंकारोंसे विभूषित करके मण्डलमें स्थापित करना चाहिये ॥ १-३॥

तस्यास्तु दक्षिणे भागे स्थण्डिले विष्णुमर्चयेत् । 
अर्चयित्वा विधानेन श्रीसूक्तेन सुरेश्वरीम् ॥ ४

अर्चयेद्विष्णुगायत्र्या विष्णुं विश्वगुरुं हरिम्। 
आराध्य विधिना देवीं पूर्ववद्धोममाचरेत् ॥ ५

समिद्धत्वा विधानेन आज्याहुतिमथाचरेत्। 
पृथगष्टोत्तरशतं होमयेद्ब्राह्मणोत्तमैः ॥ ६

उनके दक्षिण भागमें स्थण्डिलके ऊपर श्रीविष्णुका पूजन करना चाहिये। श्रीसूक्तसे विधानपूर्वक सुरेश्वरीकी पूजा करके विष्णुगायत्रीसे विश्वगुरु भगवान् विष्णुकी पूजा करनी चाहिये। देवीकी विधिपूर्वक आराधना करके पूर्वकी भाँति होम करना चाहिये। सर्वप्रथम विधिपूर्वक समिधासे हवन करके बादमें श्रेष्ठ ब्राह्मणोंको घृतकी पृथक् एक सौ आठ आहुति प्रदान करनी चाहिये ॥ ४-६ ॥ 

आहूय यजमानं तु तस्याः पूर्वदिशि स्थले। 
तस्मै तां दर्शयेद्देवीं दण्डवत्प्रणमेत्क्षितौ ॥ ७

प्रणम्य विष्णुं तत्रस्थं शिवं पूर्ववदर्चयेत्। 
तस्या विंशतिभागं तु दक्षिणा परिकीर्तिता ॥ ८

तदर्थांशं तु दातव्यमितरेषां यथार्हतः । 
ततस्तु होमयेच्छम्भु भक्तो योगी विशेषतः ॥ ९

तत्पश्चात् यजमानको बुलाकर उन देवीके पूर्वदिशाभागमें उसे बिठाकर उन देवीका दर्शन कराना चाहिये। वह यजमान भी पृथ्वीपर देवीको दण्डवत् प्रणाम करे। इसके बाद वहाँ प्रतिष्ठित विष्णुको प्रणाम करके पूर्वकी भाँति शिवकी पूजा करनी चाहिये। आचार्यके लिये उस मूर्तिके बीसवें भागके तुल्य दक्षिणा बतायी गयी है। उसका आधा अर्थात् बीसवें भागका आधा यथायोग्य अन्य [शिवभक्तों] को दान करना चाहिये। तदनन्तर भक्त-योगी आचार्यको विशेष- रूपसे भगवान् शिवकी प्रीतिके लिये होम कराना॥ ७-९॥

॥ इति श्रीलिङ्गमहापुराणे उत्तरभागे लक्ष्मीदानविधिनिरूपणं नाम ष‌ट्त्रिंशत्तमोऽध्यायः ॥ ३६ ॥

॥ इस प्रकार श्रीलिङ्गमहापुराणके अन्तर्गत उत्तरभागमें 'लक्ष्मीदानविधिनिरूपण नामक छत्तीसवाँ अध्याय पूर्ण हुआ ॥ ३६ ॥

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