कल्कि पुराण: शशिध्वज और कल्कि का महान संग्राम | Kalki Purana: The great battle of Shashidhwaj and Kalki
कल्कि पुराण: शशिध्वज और कल्कि का महान संग्राम
प्रस्तावना:
कल्कि पुराण में भगवान विष्णु के दसवें अवतार, कल्कि भगवान, का वर्णन मिलता है। यह पुराण कलियुग के अंत में अधर्म और पाप के विनाश के लिए कल्कि भगवान की लीला का विस्तार से वर्णन करता है। इसमें राजा शशिध्वज और कल्कि भगवान के बीच हुए अद्भुत संग्राम की कथा भी सम्मिलित है। आइए, इस महायुद्ध की रोचक कथा को समझें।
कल्कि का भल्लाटनगर आगमन:
सूतजी ने बताया कि नारायण प्रभु कल्कि भगवान अपनी सेना सहित भल्लाटनगर पहुंचे। उनके अद्भुत तेज और शक्तियों को देखकर नगर के राजा शशिध्वज, जो स्वयं एक महा-वीर और विष्णु भक्त थे, उनसे युद्ध करने के लिए तत्पर हो गए। उनकी पत्नी सुशान्ता ने उन्हें समझाने का प्रयास किया कि कल्कि स्वयं नारायण हैं और उनसे युद्ध करना अनुचित होगा।
सुशान्ता का विनय:
सुशान्ता ने राजा से कहा, "हे नाथ, कल्कि जी संसार के स्वामी और साक्षात नारायण हैं। उनसे युद्ध करना संभव नहीं है। जो भगवान के सेवक हैं, उनके लिए युद्ध में विजय या मृत्यु का कोई अर्थ नहीं है।" लेकिन राजा शशिध्वज ने धर्म के नियमों का पालन करने और संग्राम में अपने कर्तव्य को निभाने की बात कही। उन्होंने कहा, "संग्राम भूमि में क्षत्रिय का धर्म है कि वह शत्रु पर प्रहार करे, चाहे वह स्वयं हरि ही क्यों न हों।"
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श्री कल्कि पुराण तीसरा अंश \आठवाँ अध्याय |
शशिध्वज की धर्म और कर्तव्य पर दृष्टि:
राजा शशिध्वज ने युद्ध को भगवान की लीला बताया। उन्होंने कहा कि ईश्वर की माया ही सेवा और संग्राम की प्रेरणा देती है। यह द्वैत और अद्वैत का मेल धर्म, अर्थ और काम का सृजन करता है। उन्होंने अपनी पत्नी से आग्रह किया कि वह नारायण की पूजा करें और स्वयं युद्ध के लिए प्रस्थान कर गए।
युद्ध का आरंभ:
युद्धभूमि में भगवान कल्कि और राजा शशिध्वज की सेनाओं के बीच भयंकर संग्राम छिड़ गया। तलवार, गदा, प्रास, शूल जैसे हथियारों का अद्भुत प्रदर्शन हुआ। चारों ओर धूल और रक्त के बीच देवता, गन्धर्व, और यक्ष इस युद्ध को देखने आए। युद्ध का शोर आकाश को गूंजायमान कर रहा था। वीरता और बलिदान का ऐसा नज़ारा देवासुर संग्राम की याद दिला रहा था।
सूर्यकेतु और मरु का युद्ध:
राजा शशिध्वज के पुत्र सूर्यकेतु और मरु के बीच भयंकर युद्ध हुआ। सूर्यकेतु ने मरु के रथ को नष्ट कर दिया और उसे गदा से घायल कर दिया। लेकिन मरु के सारथी ने उसे बचा लिया। उधर, बृहत्केतु और देवापि के बीच भीषण संघर्ष हुआ। देवापि ने बृहत्केतु का धनुष नष्ट कर दिया और उसे पराजित कर दिया। लेकिन सूर्यकेतु ने अपने भाई का प्रतिशोध लिया और देवापि को गहरे प्रहार से घायल कर दिया।
युद्ध का परिणाम:
युद्ध के दौरान हजारों सैनिक मारे गए। खून की नदियां बहने लगीं, और धरती पर कटे हुए अंग बिखरे हुए थे। इस विनाशकारी युद्ध में कल्कि भगवान ने अधर्म का विनाश कर धर्म की स्थापना की।
निष्कर्ष:
यह कथा न केवल धर्म और अधर्म की लड़ाई को दिखाती है, बल्कि यह भी सिखाती है कि ईश्वर की लीला असीम और अद्भुत है। राजा शशिध्वज और उनकी पत्नी सुशान्ता का प्रेम, भक्ति, और कर्तव्य-पालन सभी के लिए प्रेरणादायक है। भगवान कल्कि के अवतार की यह गाथा हमें धर्म और सत्य के मार्ग पर चलने की प्रेरणा देती है।
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