कल्कि अवतार की महिमा: शम्भल ग्राम की स्थापना और दिग्विजय | Glory of Kalki Avatar: Establishment of Shambhal Gram and Digvijay

कल्कि अवतार की महिमा: शम्भल ग्राम की स्थापना और दिग्विजय

सूत जी ने कहा: इसके बाद, जब राजाओं ने सिंहल द्वीप से प्रस्थान किया, तो कल्कि जी ने पद्मा जी और सेनासहित शम्भल ग्राम की ओर यात्रा की योजना बनाई। इन्द्र देवता ने उनके मन की बात समझते हुए विश्वकर्मा को आदेश दिया कि शम्भल ग्राम में भव्य महल और अट्टालिकाएँ बनाई जाएं, ताकि वह स्थान इन्द्र की अमरावती के समान शोभायमान हो।

शम्भल ग्राम का निर्माण

विश्वकर्मा ने इन्द्र की आज्ञा के अनुसार शम्भल ग्राम में अनेक प्रकार के सुंदर भवन बनाए। ये भवन विभिन्न आकारों और रूपों में थे, जैसे हंस, शेर, गरुड़ आदि के मुख की आकृतियों वाले महल। इन भवनों को स्फटिक, रत्न, और वैदूर्य मणियों से सजाया गया। इस प्रकार, शम्भल ग्राम एक अद्भुत नगर बन गया जो इन्द्र की अमरावती के समान चमकता था।

समुद्र पार करना

कल्कि जी और उनकी सेना ने सिंहल द्वीप से समुद्र पार करते हुए शम्भल ग्राम की ओर यात्रा की। समुद्र के ऊपर चलते हुए, कल्कि जी ने पानी को स्थिर पाया और सेना के साथ उस पर चलकर शम्भल ग्राम तक पहुंचे।

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शुक का संदेश

शुक, जो कि भगवान विष्णु के यश का प्रचारक था, को शम्भल ग्राम भेजा गया। शुक वहाँ पहुँचकर शम्भल ग्राम की शोभा और वहाँ की सुखद स्थिति का वर्णन करते हुए भगवान कल्कि और पद्मा जी के आने की सूचना दी। इस प्रकार, शम्भल ग्राम में हर प्रकार की भव्यता और समृद्धि का विकास हुआ।

परिवार और संतान

कल्कि जी और पद्मा जी का मिलन अत्यंत आनंदमय था। शम्भल ग्राम में उनके साम्राज्य की नींव रखी गई। इस समय के बाद, कल्कि जी के परिवार में अनेक पुण्यात्माएँ पैदा हुईं। उनके पुत्र जय और विजय, जो अत्यंत बलवान और प्रसिद्ध हुए, उनके साम्राज्य की शक्ति को और भी बढ़ाने में सहायक बने।

दिग्विजय का आरंभ

कल्कि जी ने अपने पिता से अश्वमेध यज्ञ करने की अनुमति ली और यज्ञ के लिए धन और संसाधन इकट्ठा करने हेतु दिग्विजय की यात्रा पर निकल पड़े। इस यात्रा का उद्देश्य सभी दिशाओं में विजय प्राप्त कर धन और बल एकत्र करना था, ताकि उनके पिता को यज्ञ कराने में कोई कमी न हो।

कीकटपुर की यात्रा

दिग्विजय के लिए, कल्कि जी ने कीकटपुर की ओर रुख किया। कीकटपुर बौद्ध धर्मावलंबियों का मुख्य स्थान था, जहाँ वैदिक धर्म का पालन नहीं किया जाता था। इस नगर के लोग शारीरिक सुखों के पीछे भागते थे और उन्होंने कुल-धर्म या जाति-धर्म का पालन नहीं किया था। इस प्रकार, कल्कि जी की यात्रा ने एक नया अध्याय शुरू किया, जिसमें उन्होंने इस नगर के लोगों को धर्म और सही मार्ग पर चलने का संदेश दिया।

युद्ध की तैयारी

कीकटपुर में पहुंचने पर, वहाँ का राजा अपने अत्यधिक शक्तिशाली सेना के साथ युद्ध के लिए तैयार हो गया। राजा ने अपनी सेना को हाथियों, रथों, और सोने के आभूषणों से सजाया था, जिससे वह सेना युद्ध के लिए पूरी तरह तैयार थी। कल्कि जी और उनकी सेना के बीच युद्ध की एक नई शुरुआत होने वाली थी।


निष्कर्ष: 

यह कथा भगवान कल्कि के अवतार, उनके परिवार, शम्भल ग्राम के निर्माण और दिग्विजय के उद्देश्य को दर्शाती है। उनका उद्देश्य धर्म की पुनर्स्थापना और समाज के हर वर्ग को सही मार्ग पर चलने के लिए प्रेरित करना था। उनकी यात्रा और संघर्ष हमे जीवन में धर्म और सत्य की महिमा को समझने की प्रेरणा देते हैं।

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