श्री कल्कि अवतार की अद्भुत कथा शम्भलग्राम में कल्कि जी का अवतरण | Amazing story of Shri Kalki incarnation: Kalki ji's incarnation in Shambhalgram
श्री कल्कि अवतार की अद्भुत कथा शम्भलग्राम में कल्कि जी का अवतरण
सूत जी बोले: इसके बाद समस्त देवता और ब्रह्मा जी अपने-अपने गणों सहित शम्भलग्राम पहुँचे। वहाँ महर्षि, गन्धर्व, किन्नर तथा अप्सराएँ भी कल्कि जी के दर्शन करने के लिए आए। सभा के मध्य तेजस्वी, कमल जैसे नेत्रों वाले, और शरण में आए लोगों को अभयदान देने वाले श्री कल्कि भगवान को सभी ने नमन किया। उनकी कान्ति नीले बादल के समान थी और उनकी लम्बी भुजाएँ सुपुष्ट थीं। उनके मस्तक पर मुकुट सूर्य और बिजली के समान चमक रहा था।
उनके मुखमंडल पर सूर्य के समान प्रकाशवान कुंडल शोभायमान थे। उनकी मधुर मुस्कान और प्रसन्नता से भरा हुआ मुखकमल अत्यंत आकर्षक था। उनके वक्षस्थल पर चन्द्रकान्त मणि जगमग कर रही थी, और उनके वस्त्र इन्द्रधनुष की तरह शोभायमान थे। देवताओं और अन्य आगंतुकों ने इस अद्भुत रूप को देख अत्यंत भक्ति भाव से उनकी स्तुति की।
देवताओं की स्तुति
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प्रजा के प्रति कल्कि जी का स्नेह
प्रजा बोली, “हे प्रभु, आपके बिना हमारा जीवन अधूरा है। हम भी आपके साथ चलेंगे। आप हमारे लिए पिता और स्वामी हैं। आपके बिना संसार का कोई सुख हमें स्वीकार नहीं।”
कल्कि जी ने प्रजा को धर्म और सत्य के मार्ग पर चलने का उपदेश दिया। इसके बाद वे अपनी पत्नियों के साथ वन में चले गए। हिमालय पर्वत पर पहुँचकर उन्होंने तपस्या प्रारम्भ की।
कल्कि जी का विष्णु स्वरूप
उनकी पत्नियाँ रमा और पद्मा भी अग्नि में प्रवेश कर अपने स्वामी में लीन हो गईं। धर्म और सत्ययुग पृथ्वी पर दीर्घकाल तक सुख और शांति का अनुभव कराते रहे।
कल्कि जी की कथा का प्रभाव
सूत जी ने कहा, “श्री कल्कि अवतार की यह कथा पवित्र है। इसे सुनने से धन, यश, और आयु की प्राप्ति होती है। यह कथा श्रोताओं के हृदयों को भक्ति और शांति से परिपूर्ण करती है।”
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