लिंग पुराण : शिवाराधना के माहात्म्य में एवेतमुनि का आख्यान | Linga Purana: White sage's narration in the importance of Shiva worship
लिंग पुराण [ पूर्वभाग ] तीसवाँ अध्याय
शिवाराधना के माहात्म्य में एवेतमुनि का आख्यान
शेलादिस्वाच
पितामह उवाच
नेतुं सज्चिन्त्य विप्रेन्द्राः सान्ध्यमकरोन्मुने: ।
श्वेतोपि दृष्ट्वा तं काल कालप्राप्तोपि शड्भूरम् ॥ ४
पूजयामास पुण्यात्मा त्रियम्बकमनुस्मरन् ।
त्रियम्बकं यजेदेवं सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम् ।। ५
किं करिष्यति मे मृत्युर्मृत्योर्मुत्युरहं यतः ।
तं दृष्ट्वा सस्मितं प्राह श्वेतं लोकभयङ्करः ॥ ६
एहोहि श्वेत चानेन विधिना किं फलं तव।
रुद्रो वा भगवान् विष्णुर्ब्रह्मा वा जगदीश्वरः ॥ ७
कः समर्थः परित्रातुं मया ग्रस्तं द्विजोत्तम।
अनेन मम किं विप्र रौद्रेण विधिना प्रभोः ॥ ८
नेतुं यस्योत्थितश्चाहं यमलोकं क्षणेन वै।
यस्माद् गतायुस्त्वं तस्मान्मुने नेतुमिहोद्यतः ॥ ९
तस्य तद्वचनं श्रुत्वा भैरवं धर्ममिश्रितम् ।
हा रुद्र रुद्र रुद्रेति ललाप मुनिपुङ्गवः ॥ १०
तं प्राह च महादेवं कालं सम्प्रेक्ष्य वै दृशा।
नेत्रेण बाध्यमिश्रेण सम्भ्रान्तेन समाकुलः ॥ ११
श्वेत उवाच
त्वया किं काल नो नाथश्चास्ति चेद्धि वृषध्वजः ।
लिङ्गेऽस्मिन् शङ्करो रुद्रः सर्वदेवभवोद्भवः ॥ १२
अतीव भवभक्तानां मद्विधानां महात्मनाम् ।
विधिना किं महाबाहो गच्छ गच्छ यथागतम् ॥ १३
ततो निशम्य कुपितस्तीक्ष्णदंष्ट्रो भयङ्करः ।
श्रुत्या श्वेतस्य तद्वाक्यं पाशहस्तो भयावहः ।। १४
सिंहनादं महत्कृत्वा चास्फाट्य च मुहुर्मुहुः ।
बबन्ध च मुनिं कालः कालप्राप्तं तमाह च ।। १५
मया बद्धोऽसि विप्रर्षे श्वेतं नेतुं यमालयम् ।
अद्य वै देवदेवेन तव रुद्रेण किं कृतम् ॥ १६
क्व शर्वस्तव भक्तिश्च क्व पूजा पूजया फलम्।
क्व चाहे क्व च मे भीतिः श्वेत बद्धोऽसि वै मया ।। १७
लिङ्गेऽस्मिन् संस्थितः श्वेत तव रुद्री महेश्वरः ।
निश्चेष्टोऽसौ महादेवः कथं पूज्यो महेश्वरः ॥ १८
ततः सदाशिवः स्वयं द्विजं निहन्तुमागतम्।
निहन्तुमन्तकं स्मयन् स्मरारि यज्ञहा हरः ॥ १९
त्वरन् विनिर्गतः परः शिवः स्वयं त्रिलोचनः ।
त्रियम्बकोऽम्बया समं सनन्दिना गणेश्वरैः ॥ २०
ससर्ज जीवितं क्षणाद्धवं निरीक्ष्य वै भयात्।
पपात चाशु वै बली मुनेस्तु सन्निधौ द्विजाः ॥ २१
ननाद चोर्ध्वमुच्चधीर्निरीक्ष्य चान्तकान्तकम् ।
निरीक्षणेन वै मृतं भवस्य विप्रपुङ्गवाः ॥ २२
विनेदुरुच्चमीश्वराः सुरेश्वरा महेश्वरम्।
प्रणेमुरम्बिकामुमां मुनीश्वरास्तु हर्षिताः ॥ २३
ससर्जुरस्य मूर्छिन वै मुनेर्भवस्य खेचराः।
सुशोभनं सुशीतलं सुपुष्पवर्षमम्बरात् ॥ २४
अहो निरीक्ष्य चान्तकं मृतं तदा सुविस्मितः ।
शिलाशनात्मजोऽव्ययं शिवं प्रणम्य शङ्करम् ॥ २५
उवाच बालधीर्मृतः प्रसीद चेति वै मुनेः।
महेश्वरं महेश्वरस्य चानुगो गणेश्वरः ॥ २६
ततो विवेश भगवाननुगृह्य द्विजोत्तमम् ।
क्षणाद् गूढशरीरं हि ध्वस्तं दृष्ट्वान्तकं क्षणात् ॥ २७
तस्मान्मृत्युञ्जयं चैव भक्त्या सम्पूजयेद् द्विजाः ।
मुक्तिदं भुक्तिदं चैव सर्वेषामपि शङ्करम् ॥ २८
बहुना किं प्रलापेन संन्यस्याभ्यर्च्य वै भवम् ।
भक्त्या चापरया तस्मिन् विशोका वै भविष्यथ ।। २९
शैलादिरुवाच
एवमुक्तास्तदा तेन ब्रह्मणा ब्रह्मवादिनः।
प्रसीद भक्तिर्देवेशे भवेद्रुद्रे पिनाकिनि ॥ ३०
केन वा तपसा देव यज्ञेनाप्यथ केन वा।
व्रतैर्वा भगवद्भक्ता भविष्यन्ति द्विजातयः ॥ ३१
पितामह उवाच
न दानेन मुनिश्रेष्ठास्तपसा च न विद्यया।
यज्ञैहों मैर्वतैर्वेदैर्योगशास्त्रैर्निरोधनैः॥ ३२
प्रसादेनैव सा भक्तिः शिवे परमकारणे।
अथ तस्य वचः श्रुत्वा सर्वे ते परमर्षयः ॥ ३३
सदारतनयाः श्रान्ताः प्रणेमुश्च पितामहम् ।
तस्मात्पाशुपती भक्तिर्धर्मकामार्थसिद्धिदा ॥ ३४
मुनेर्विजयदा चैव सर्वमृत्युजयप्रदा।
दधीचस्तु पुरा भक्त्या हरिं जित्वामरैर्विभुम् ।। ३५
क्षुपं जघान पादेन वज्रास्थित्वं च लब्धवान् ।
मयापि निर्जितो मृत्युर्महादेवस्य कीर्तनात् ॥ ३६
श्वेतेनापि गतेनास्यं मृत्योर्मुनिवरेण तु।
महादेवप्रसादेन जितो मृत्युर्यथा मया ॥ ३७
॥ इति श्रीलिङ्गमहापुराणे पूर्वभागे शिवाराधनमहिमवर्णनं नाम त्रिंशोऽध्यायः ॥ ३० ॥
॥ इस प्रकार श्रीलिङ्गमहापुराणके अन्तर्गत पूर्वभागमें 'शिवाराधनमहिमवर्णन' नामक तीसवाँ अध्याय पूर्ण हुआ ॥ ३० ॥
FAQs:- शिवाराधना के माहात्म्य में एवेतमुनि का आख्यान
प्रश्न 1: श्वेत मुनि कौन थे और वे क्या कर रहे थे?
उत्तर: श्वेत मुनि एक श्रीयुक्त तपस्वी थे, जो अपनी आयु के अंतिम समय में गिरि की गुफा में महेश्वर शिव की आराधना में लीन थे। वे "नमस्ते रुद्र मन्यवे" इत्यादि रुद्राध्याय से शिव की पूजा करते हुए उनका स्मरण कर रहे थे।
प्रश्न 2: काल मुनि के पास क्यों आया और उसने क्या कहा?
उत्तर: काल श्वेत मुनि को उनकी समाप्त आयु जानकर यमलोक ले जाने के लिए आया। उसने कहा कि भगवान विष्णु, ब्रह्मा, या स्वयं रुद्र भी काल द्वारा ग्रसित जीव को बचाने में असमर्थ हैं। उसने मुनि की पूजा को व्यर्थ बताते हुए उन्हें यमलोक ले जाने की घोषणा की।
प्रश्न 3: श्वेत मुनि ने काल को क्या उत्तर दिया?
उत्तर: श्वेत मुनि ने आत्मविश्वास से कहा कि शिवलिंग में वृषध्वज रुद्र निवास करते हैं और वे अपने भक्तों की रक्षा के लिए सदैव तत्पर रहते हैं। उन्होंने काल को लौट जाने के लिए कहा, क्योंकि वे महादेव के प्रति उनकी भक्ति और पूजन के प्रभाव पर अटल थे।
प्रश्न 4: काल ने श्वेत मुनि के साथ क्या किया?
उत्तर: काल ने मुनि के आत्मविश्वासपूर्ण वचन सुनकर क्रोधित होकर उन्हें अपने पाश से बांध लिया और मुनि की पूजा व शिव भक्ति का उपहास करते हुए उन्हें यमलोक ले जाने की बात कही।
प्रश्न 5: शिवजी ने श्वेत मुनि की रक्षा कैसे की?
उत्तर: शिवजी ने श्वेत मुनि की आराधना से प्रसन्न होकर त्रिनेत्र रूप में पार्वती, गणेश और नंदी के साथ शिवलिंग से प्रकट होकर काल का अंत कर दिया। शिवजी के कृपादृष्टि से काल मरा हुआ समझा गया और मुनि की पूजा का महत्व सिद्ध हुआ।
प्रश्न 6: देवताओं और मुनियों की प्रतिक्रिया क्या थी?
उत्तर: देवताओं और मुनियों ने शिवजी और माता पार्वती को प्रणाम किया और उनकी महिमा का गुणगान किया। वे हर्षित होकर "जय हो" के उच्च स्वर में बोलने लगे और स्वर्ग से पुष्पवर्षा की।
प्रश्न 7: इस कथा से क्या शिक्षा मिलती है?
उत्तर: इस कथा से यह शिक्षा मिलती है कि सच्चे मन से की गई शिवाराधना भक्त की हर परिस्थिति में रक्षा करती है। महादेव अपने भक्तों के लिए काल का भी अंत कर सकते हैं। शिवभक्ति का फल अवश्य मिलता है।
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