लिंग पुराण [ पूर्वभाग ] तैंतीसवाँ अध्याय
मुनियों को शिव भक्ति का उपदेश
नन्दीश्वर बोले
वक्ष्यामि वो हितं पुण्यं भक्तानां मुनिपुङ्गवाः ।
स्त्रीलिङ्गमखिलं देवी प्रकृतिर्मम देहजा ॥ ३
पुंल्लिङ्ग पुरुषो विप्रा मम देहसमुद्भवः।
उभाभ्यामेव वै सृष्टिर्मम विप्रा न संशयः ॥ ४
न निन्देद्यतिनं तस्माद्दिग्वाससमनुत्तमम् ।
बालोन्मत्तविचेष्टं तु मत्परं ब्रह्मवादिनम् ॥ ५
ये हि मां भस्मनिरता भस्मना दग्धकिल्जबिषा:।
यथोक्तकारिणो दान्ता विप्रा ध्यानपरायणा: ॥ ६
महादेवपरा नित्यं चरन्तो ह्ध्वरेतस:।
अर्चयन्ति महादेव॑ वाइमन:कायसंयता:।। ७
रुद्रलोकमनुप्राप्प न निवर्तन्ति ते पुनः।
तस्मादेतद् ब्रतं दिव्यमव्यक्त व्यक्तलिड्रिन:॥ ८
भस्मव्रताएच मुण्डाएच ब्रतिनो विश्वरूपिण: ।
न तानू परिवदेद्विद्वान्न चैतान्नाभिलडूयेत्॥ ९
न हसेन्नाप्रियं ब्रूयादमुत्रेह हितार्थवान्।
यस्तान्निन्दति मूढात्मा महादेवं॑ स निन्दति॥ १०
यस्त्वेतान् पूजयेन्नित्यं स पूजयति शड्डूरम्।
एवमेष महादेवो लोकानां हितकाम्यया॥ ११
युगे युगे महायोगी क्रीडते भस्मगुण्ठित:।
एवं चरत भद्वरं बस्तत: सिद्धिमवाप्स्थथ॥ १२
अतुलमिह महाभयप्रणाशहेतु शिवकथितं परम पदं विदित्वा।
व्यपगतभवलो भमोह चित्ता: प्रणिपतिता: सहसा शिरोभिरुग्रम्॥ १३
तत: प्रमुद्ता विप्रा: श्रुत्वैवं कथितं तदा।
गन्धोदकै: सुशुद्धैशच कुशपुष्पविमिश्रितैः ॥ १४
स्नापयन्ति महाकुम्भैरद्धिरिव महेश्वरम्।
गायन्ति विविधैर्गुहौईड्ररैश्चापि सुस्वरे:॥ १५
नमो देवाधिदेवाय महादेवाय वे नमः ।
अर्धनारीशरीराय सांख्ययोगप्रवर्तिने ॥ १६
मेघवाहनकृष्णाय गजचर्मनिवासिने।
कृष्णाजिनोत्तरीयाय व्यालयज्ञोपवीतिने ॥ १७
ततस्तान् स मुनीन् प्रीतः प्रत्युवाच महेश्वरः ।
प्रीतोस्मि तपसा युष्मान् वरं वृणुत सुब्रता: ॥ १९
ततस्ते मुनयः सर्वे प्रणिपत्य महेश्वरम्।
भृग्वड्धिरा वसिष्ठश्च विश्वामित्रस्तथेव च॥ २०
गौतमोऊत्रि: सुकेशश्च पुलस्त्य: पुलहः क्रतुः ।
मरीचि: कश्यप: कण्वः संवर्तश्च महातपा: ॥ २१
ते प्रणम्य महादेवमिदं वचनमन्रुवन्।
भस्मस्नानं च नग्नत्वं वामत्वं प्रतिलोमता॥ २२
सेव्यासेव्यत्वमेव॑ च होतदिच्छाम वेदितुम।
ततस्तेषां बच: श्रुत्वा भगवान् परमेश्वर:॥ २३
सस्मितं प्राह सम्प्रेक्ष्य सर्वान् मुनिवरांस्तदा॥ २४
॥इ्ति श्रीलिड्॒महापुराणे पूर्वभागे ऋषिवाक्य॑ नाम त्रयस्त्रिशोउध्याय: ॥ ३३ ॥
॥ इस प्रकार श्रीलिड्रगहापुराणके अन्तर्गत पूर्वभायमें 'ऋषिवाक्य ' नायक तैंतीसवाँ अध्याय पूर्ण हुआ॥ ३३ ॥
मुनियों को भगवान शिव द्वारा दिए गए उपदेशों को प्रश्नोत्तर रूप में प्रस्तुत किया गया है:
प्रश्न 1: भगवान शिव ने मुनियों की स्तुति सुनकर क्या प्रतिक्रिया दी?
उत्तर: भगवान शिव उनकी स्तुति से प्रसन्न होकर बोले कि जो व्यक्ति इस स्तुति का पाठ करेगा, सुनेगा या दूसरों को सुनाएगा, वह उनके गणों में प्रमुख स्थान प्राप्त करेगा।
प्रश्न 2: शिवजी ने सृष्टि की उत्पत्ति के विषय में मुनियों को क्या बताया?
उत्तर: शिवजी ने बताया कि स्त्रीलिंग उनकी प्रकृति का रूप है और पुंल्लिंग उनके शरीर से उत्पन्न पुरुष का रूप है। इन दोनों से ही सृष्टि की उत्पत्ति हुई है।
प्रश्न 3: भगवान शिव ने यति (साधु) की निंदा क्यों न करने का आदेश दिया?
उत्तर: शिवजी ने कहा कि यति, जो ब्रह्मचरण का पालन करते हैं, दिगंबर होते हैं, और साधना में लीन रहते हैं, उनकी निंदा नहीं करनी चाहिए क्योंकि वे सीधे शिवरूप होते हैं।
प्रश्न 4: भस्मधारण करने वाले साधकों के विषय में भगवान शिव ने क्या कहा?
उत्तर: जो साधक भस्मधारण करते हैं, ध्यानपरायण होते हैं, संयमित रहते हैं, और शिव की भक्ति में तत्पर रहते हैं, वे रुद्रलोक प्राप्त करते हैं और पुनर्जन्म से मुक्त हो जाते हैं।
प्रश्न 5: मुनियों ने भगवान शिव से क्या जानने की इच्छा प्रकट की?
उत्तर: मुनियों ने भस्मस्नान, नग्नता, वामता, प्रतिलोमता, सेव्य और असेव्य के विषय में जानने की इच्छा प्रकट की।
प्रश्न 6: शिवजी ने मुनियों को क्या उपदेश दिया?
उत्तर: शिवजी ने मुनियों को बताया कि भस्मधारण, ध्यान, संयम, और शिवभक्ति का पालन करते हुए उनकी पूजा करें। उन्होंने कहा कि ऐसा करने से वे कल्याण और सिद्धि प्राप्त करेंगे।
प्रश्न 7: भगवान शिव ने मुनियों के प्रति अपने प्रसन्न होने का क्या संकेत दिया?
उत्तर: भगवान शिव ने कहा कि वे मुनियों की तपस्या से अत्यंत प्रसन्न हैं और उन्हें वरदान मांगने के लिए कहा।
प्रश्न 8: मुनियों ने शिवजी से प्राप्त ज्ञान के बाद क्या किया?
उत्तर: मुनियों ने शिवजी को गंध, पुष्प और पवित्र जल से स्नान कराया और भक्ति भाव से उनकी स्तुति की।
प्रश्न 9: मुनियों ने शिवजी की किन विशेषताओं की स्तुति की?
उत्तर: मुनियों ने शिवजी की अर्धनारीश्वर रूप, सांख्ययोग प्रवर्तक, सर्प को यज्ञोपवीत के रूप में धारण करने वाले, और सिंहचर्म धारण करने वाले स्वरूप की स्तुति की।
प्रश्न 10: इस उपदेश का मुख्य संदेश क्या है?
उत्तर: शिवजी का उपदेश हमें यह सिखाता है कि सभी प्राणी शिव के रूप हैं, इसलिए किसी की निंदा नहीं करनी चाहिए। शिवभक्ति, भस्मधारण और संयम से मोक्ष प्राप्त किया जा सकता है।
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