लिंग पुराण [ पूर्वभाग ] बत्तीसवाँ अध्याय
मुनियों द्वारा की गयी शिव स्तुति
ऋषय ऊचु:
नमो दिग्वाससे नित्यं कृतान्ताय त्रिशूलिने।
विकटाय करालाय करालवबदनाय च॥ ९
अरूपाय सुरूपाय विश्वरूपाय ते नम:।
कटडड्ठूटाय रुद्राय स्वाहाकाराय वै नम:॥ २
सर्वप्रणतदेहाय स्वयं च प्रणतात्मने।
नित्यं नीलशिखण्डाय श्रीकण्ठाय नमो नम: ॥ ३
नीलकण्ठाय देवाय चिताभस्माड्धारिणे।
त्वं ब्रह्मा सर्वदेवानां रुद्राणां नीललोहित:॥ ४
आत्मा च सर्वभूतानां सांख्ये: पुरुष उच्यते।
पर्वतानां महामेरुनक्षत्राणां च चन्द्रमा:॥ ५
ऋषीणां च वसिष्ठस्त्वं देवानां वासवस्तथा।
3कारः सर्ववेदानां श्रेष्ठ साम च सामसु॥ ६
आरण्यानां पशूनां च सिंहस्त्वं परमेश्वर:।
ग्राम्याणामृषभए्चासि भगवान् लोकपूजित:॥ ७
सर्वथा वर्तमानो5पि यो यो भावो भविष्यति।
त्वामेव तत्र पश्यामो ब्रह्मणा कथितं तथा।। ८
काम: क्रोधश्च लोभएच विषादो मद एवं च।
एतदिच्छामहे बोद्धूं प्रसीद परमेश्वर॥ ९
महासंहरणे प्राप्ते त्ववा देव कृतात्मना।
कर ललाटे संविध्य वह्निरुत्पादितस्त्वया॥ १०
तेनाग्निना तदा लोका अर्चिर्भि: सर्वतो वृता:
तस्मादग्निसमा होते बहवो विकृताग्नय:॥ ९१
कामः क्रोधश्च लोभश्च मोहो दम्भ उपद्रवः ।
यानि चान्यानि भूतानि स्थावराणि चराणि च ॥ १२
दह्यन्ते प्राणिनस्ते तु त्वत्समुत्थेन वह्निना।
अस्माकं दह्यमानानां त्राता भव सुरेश्वर ॥ १३
त्वं च लोकहितार्थाय भूतानि परिषिञ्चसि ।
महेश्वर महाभाग प्रभो शुभनिरीक्षक ॥ १४
आज्ञापय वयं नाथ कर्तारो वचनं तव।
भूतकोटिसहस्त्रेषु रूपकोटिशतेषु च ॥ १५
अन्तं गन्तुं न शक्ताः स्म देवदेव नमोऽस्तु ते ॥ १६
॥ इति श्रीलिङ्गमहापुराणे पूर्वभागे 'शिवस्तुतिवर्णनं' नाम द्वात्रिंशोऽध्यायः ॥ ३२ ॥
॥ इस प्रकार श्रीलिङ्गमहापुराणके अन्तर्गत पूर्वभागमें 'शिवस्तुतिवर्णन' नामक बत्तीसवाँ अध्याय पूर्ण हुआ ॥ ३२॥
FAQs:- लिंग पुराण [ पूर्वभाग ] बत्तीसवाँ अध्याय प्रश्न और उत्तर
प्रश्न 1: मुनियों ने शिव जी के किन रूपों की वंदना की है?
उत्तर: मुनियों ने शिव जी को दिशाओं को वस्त्र रूप में धारण करने वाले, त्रिशूलधारी, विकट रूप वाले, कराल वदन वाले, अरूप, सुरूप और विश्वरूप के रूप में वंदना की है।
प्रश्न 2: शिव जी के कौन-कौन से विशेषण मुनियों ने उपयोग किए हैं?
उत्तर: शिव जी के लिए उपयोग किए गए विशेषण हैं - दिग्वास, त्रिशूलिन, विकट, करालवदन, अरूप, सुरूप, विश्वरूप, श्रीकण्ठ, नीलकण्ठ, और नीललोहित।
प्रश्न 3: मुनियों ने शिव जी को पर्वतों और नक्षत्रों में किससे तुलना की है?
उत्तर: मुनियों ने शिव जी को पर्वतों में मेरु पर्वत और नक्षत्रों में चंद्रमा से तुलना की है।
प्रश्न 4: ऋषियों में और देवताओं में शिव जी को किससे जोड़ा गया है?
उत्तर: ऋषियों में शिव जी को वसिष्ठ से और देवताओं में इंद्र (वासव) से जोड़ा गया है।
प्रश्न 5: शिव जी को वेदों और गान में किससे संबोधित किया गया है?
उत्तर: शिव जी को वेदों में "ओंकार" और गान में "सामगान" के रूप में संबोधित किया गया है।
प्रश्न 6: मुनियों ने शिव जी को वन्य और ग्राम्य पशुओं में किससे तुलना दी है?
उत्तर: शिव जी को वन्य पशुओं में सिंह और ग्राम्य पशुओं में वृषभ (सांड) से तुलना दी गई है।
प्रश्न 7: मुनियों ने काम, क्रोध, लोभ, मोह, और दम्भ को किससे संबंधित बताया?
उत्तर: मुनियों ने इन्हें शिव जी द्वारा उत्पन्न अग्नि के विकृत रूपों से संबंधित बताया, जो समस्त जीवों और पदार्थों को जलाती है।
प्रश्न 8: महासंहार के समय शिव जी ने क्या किया था?
उत्तर: महासंहार के समय शिव जी ने अपने ललाट पर हाथ घर्षित करके अग्नि उत्पन्न की, जिसकी ज्वालाओं से समस्त लोक आच्छादित हो गए।
प्रश्न 9: मुनियों ने शिव जी से क्या प्रार्थना की है?
उत्तर: मुनियों ने शिव जी से प्रार्थना की है कि वे उनके रक्षक बनें और लोक कल्याण के लिए जीवों को अमृतरूपी जल से सींचें।
प्रश्न 10: मुनियों ने शिव जी को क्या अंतिम संदेश दिया?
उत्तर: मुनियों ने कहा कि शिव जी का पार पाना असंभव है। वे अनंत पदार्थों में व्याप्त हैं। अंत में मुनियों ने देवाधिदेव शिव को नमन किया।
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