लिंग पुराण : शिलादद्वारा पुत्र नन्दिकेश्वर को वेदादिकी शिक्षा प्रदान करना | Linga Purana: Providing Vedic education to Shiladdwara's son Nandikeshwar
लिंग पुराण [ पूर्वभाग ] तैंतालीसवाँ अध्याय
शिलाद द्वारा पुत्र नन्दिकेश्वर को वेदादिकी शिक्षा प्रदान करना, ऋषियोंद्वारा नन्दिकेश्वरकी आयु अल्प बताने पर शिलादका दुःखी होना तथा नन्दिकेश्वर द्वारा त्यम्बकमन्त्रका जप एवं महेश्वर-पार्वतीद्वारा उन्हें अपने पुत्ररूप में अमर होने का वरदान देना
नन्दिकेश्वर उवाच
मया सह पिता हृष्ट: प्रणम्य च महेश्वरम्।
उटजं स्वं जगामाशु निधि लब्ध्वेव निर्धन:॥ १
यदागतो5हमुटजं शिलादस्य महामुने।
तदा वे दैविकं रूप॑ त्यक्त्वा मानुष्यमास्थितः ॥ २
नष्टा चेव स्मृतिर्दिव्या येन केनापि कारणात् ।
मानुष्यमास्थितं दृष्ट्वा पिता मे लोकपूजित:॥ ३
विललापातिदु:खार्त: स्वजनैश्च समावृतः ।
जातकर्मादिकाश्चैव चकार मम सर्ववितू॥ ४
शालड्डायनपुत्रो वे शिलादः पुत्रवत्सल:।
उपदिष्टा हि तेनेव ऋकुशाखा यजुषस्तथा॥ ५
सामशाखासहसत्र॑च साड्जोपाड़ं महामुने।
आयुर्वेद धनुर्वेद॑ गान्धर्व॒चाश्वलक्षणम्॥ ६
हस्तिनां चरितं चैव नराणां चैव लक्षणम्।
सम्पूर्ण सप्तमे वर्ष ततो5थ मुनिसत्तमौ॥ ७
मित्रावदणनामाना तपोयोगबलान्वितो।
तस्याश्रमं गतौ दिव्यौ द्र॒ष्टूं मां चाज्ञया विभो:॥ ८
ऊचतुश्च महात्मानौ मां निरीक्ष्य मुहुर्मुहुः ।
तात नन्द्ययमल्पायुः सर्वशास्त्रार्थपारगः ॥ ९
न दृष्टमेवमाश्चर्यमायुर्वर्षादतः परम् ।
इत्युक्तवति विप्रेन्द्रः शिलादः पुत्रवत्सलः ।। १०
समालिङ्गय च दुःखातों रुरोदातीव विस्वरम् ।
हा पुत्र पुत्र पुत्रेति पपात च समन्ततः ॥ ११
अहो बलं दैवविधेर्विधातुश्चेति दुःखितः ।
तस्य चार्तस्वरं श्रुत्वा तदाश्रमनिवासिनः ॥ १२
निपेतुर्विह्वलात्यर्थं रक्षाश्चकुश्च मङ्गलम्।
तुष्टुवुश्च महादेवं त्रियम्बकमुमापतिम् ॥ १३
हुत्वा त्रियम्बकेनैव मधुनैव च सम्प्लुताम्।
दूर्वामयुतसंख्यातां सर्वद्रव्यसमन्विताम् ॥ १४
पिता विगतसंज्ञश्च तथा चैव पितामहः।
विचेष्टश्च ललापासी मृतवन्निपपात च ॥ १५
मृत्योर्भीतोऽहमचिराच्छिरसा चाभिवन्द्य तम्।
मृतवत्पतितं साक्षात्पितरं च पितामहम् ॥ १६
प्रदक्षिणीकृत्य च तं रुद्रजाप्यरतोऽभवम् ।
हृत्पुण्डरीके सुधिरे ध्यात्वा देवं त्रियम्बकम् ॥ १७
त्र्यक्षं दशभुजं शान्तं पञ्चवक्त्रं सदाशिवम् ।
सरितश्चान्तरे पुण्ये स्थितं मां परमेश्वरः ।। १८
तुष्टोऽब्रवीन्महादेवः सोमः सोमार्धभूषणः ।
वत्स नन्दिन् महाबाहो मृत्योर्भीतिः कुतस्तव ॥ १९
मयैव प्रेषितौ विप्रौ मत्समस्त्वं न संशयः ।
वत्सैतत्तव देहं च लौकिकं परमार्थतः ॥ २०
नास्त्येव दैविकं दृष्टं शिलादेन पुरा तव।
देवैश्च मुनिभिः सिद्धैर्गन्धर्वैर्दानवोत्तमैः ।। २१
पूजितं यत्पुरा वत्स दैविकं नन्दिकेश्वर।
संसारस्य स्वभावोऽयं सुखं दुःखं पुनः पुनः ॥ २२
नृणां योनिपरित्यागः सर्वथैव विवेकिनः ।
एवमुक्त्वा तु मां साक्षात्सर्वदेवमहेश्वरः ॥ २३
कराभ्यां सुशुभाभ्यां च उभाभ्यां परमेश्वरः ।
पस्पर्श भगवान् रुद्रः परमार्तिहरो हरः ॥ २४
उवाच च महादेवस्तुष्टात्मा वृषभध्वजः ।
निरीक्ष्य गणपांश्चैव देवीं हिमवतः सुताम् ॥ २५
समालोक्य च तुष्टात्मा महादेवः सुरेश्वरः ।
अजरो जरया त्यक्तो नित्यं दुःखविवर्जितः ।। २६
अक्षयश्चाव्ययश्चैव सपिता ससुहृज्जनः ।
ममेष्टो गणपश्चैव मद्वीर्यो मत्पराक्रमः ॥ २७
इष्टो मम सदा चैव मम पार्श्वगतः सदा।
मद्बलश्चैव भविता महायोगबलान्वितः ॥ २८
एवमुक्त्वा च मां देवो भगवान् सगणस्तदा।
कुशेशयमयीं मालां समुन्मुच्यात्मनस्तदा ॥ २९
आबबन्ध महातेजा मम देवो वृषध्वजः ।
तयाहं मालया जातः शुभया कण्ठसक्तया ।। ३०
त्र्यक्षो दशभुजश्चैव द्वितीय इव शङ्करः ।
तत एव समादाय हस्तेन परमेश्वरः ॥ ३१
उवाच ब्रूहि किं तेऽद्य ददामि वरमुत्तमम्।
ततो जटाश्रितं वारि गृहीत्वा चातिनिर्मलम् ॥ ३२
उक्त्वा नदी भवस्वेति उत्ससर्ज वृषध्वजः ।
ततः सा दिव्यतोया च पूर्णासितजला शुभा ॥ ३३
पद्मोत्पलवनोपेता प्रावर्तत महानदी।
तामाह च महादेवो नदीं परमशोभनाम् ॥ ३४
यस्माज्जटोदकादेव प्रवृत्ता त्वं महानदी।
तस्माज्जटोदका पुण्या भविष्यसि सरिद्वरा ॥ ३५
त्वयि स्नात्वा नरः कश्चित्सर्वपापैः प्रमुच्यते ।
ततो देव्या महादेवः शिलादतनयं प्रभुः ॥ ३६
पुत्रस्तेऽयमिति प्रोच्य पादयोः संन्यपातयत्।
सा मामाघ्राय शिरसि पाणिभ्यां परिमार्जती ॥ ३७
पुत्रप्रेम्णाभ्यषिञ्चच्च स्रोतोभिस्तनयैस्त्रिभिः ।
पयसा शङ्खगौरेण देवदेवं निरीक्ष्य सा ॥ ३८
तानि स्त्रोतांसि त्रीण्यस्याः स्त्रोतस्विन्योऽभवंस्तदा ।
नदीं त्रिस्त्रोतसं देवो भगवानवदद्भवः ॥ ३९
त्रिस्त्रोतसं नदीं दृष्ट्वा वृषः परमहर्षितः ।
ननाद नादात्तस्माच्च सरिदन्या ततोऽभवत् ।। ४०
वृषध्वनिरिति ख्याता देवदेवेन सा नदी।
जाम्बूनदमयं चित्रं सर्वरत्नमयं शुभम् ॥ ४१
स्वं देवश्चाद्भुतं दिव्यं निर्मितं विश्वकर्मणा।
मुकुटं चाबबन्धेशो मम मूर्हिन वृषध्वजः ॥ ४२
कुण्डले च शुभे दिव्ये वज्रवैडूर्यभूषिते।
आबबन्ध महादेवः स्वयमेव महेश्वरः ॥ ४३
मां तथाभ्यर्चितं व्योम्नि दृष्ट्वा मेधैः प्रभाकरः ।
मेघाम्भसा चाभ्यषिञ्चच्छिलादनमथो मुने ।॥ ४४
तस्याभिषिक्तस्य तदा प्रवृत्ता स्त्रोतसा भृशम्।
यस्मात्सुवर्णान्निः सृत्य नद्येषा सम्प्रवर्तते ॥ ४५
स्वर्णोदकेति तामाह देवदेवस्त्रियम्बकः ।
जाम्बूनदमयाद्यस्माद् द्वितीया मकटाच्छ्भा ॥ ४६
प्रावर्तत नदी पुण्या ऊचुर्जाम्बूनदीति ताम्।
एतत्पञ्चनद॑ नाम जप्येश्वरसमीपगम्॥ ४७
यः पञ्चनदमासाद्य स्नात्वा जप्येश्वरेश्वरम्।
पूजयेच्छिवसायुज्यं प्रयात्येत न संशय: ॥ ४८
अथ देवो महादेव: सर्वभूतपतिर्भव:।
देवीमुवाच शर्वाणीमुमां गिरिसुतामजाम्॥ ४९
देवि नन्दीश्वरं देवमभिषिज्चामि भूतपम्।
गणेन्द्रं व्याहरिष्यामि कि वा त्वं मन्यसे5व्यये ॥ ५०
तस्य तद्ठगचनं श्रुत्वा भवानी हर्षितानना।
स्मयन्ती वरदं प्राह भवं भूतपतिं पतिम्॥ ५१
सर्वलोकाधिपत्यं॑ च गणेशत्वं॑ तथेव च।
दातुमहसि देवेश शैलादिस्तनयो मम॥ ५२
ततः स भगवान् शर्व: सर्वलोकेश्वरेश्वर:।
सस्मार गणपान् दिव्यान् देवदेवो वृषध्वज: ॥ ५३
॥ श्रीलिड्रमहापुराणे पूर्वभागे नन्दिकेशवरप्रादुर्धावनश्दिकेशवराभिषेकमन्त्रों नाम त्रिचत्वारिशोउध्याय: ॥ ४३ ॥
FAQs :- लिंग पुराण [ पूर्वभाग ] तैंतालीसवाँ अध्याय
पर आधारित 10 प्रश्न और उत्तर
यहां शिलाद द्वारा अपने पुत्र नंदिकेश्वर को वैदिक शिक्षा प्रदान करने और उसके बाद उन्हें प्राप्त आशीर्वाद की कथा पर आधारित 10 प्रश्न और उत्तर दिए गए हैं:
1. शिलाद कौन थे और उन्होंने अपने पुत्र नंदिकेश्वर को क्या शिक्षा दी?
- उत्तर: शिलाद एक महान ऋषि थे और नंदिकेश्वर के पिता थे। उन्होंने नंदिकेश्वर को ऋग्वेद, यजुर्वेद और सामवेद के साथ-साथ आयुर्वेद, धनुर्वेद, गंधर्ववेद और अन्य महत्वपूर्ण ज्ञान सहित वेदों की शाखाएँ सिखाईं।
2. शिलाद ने नंदिकेश्वर को वेदों के अलावा क्या शिक्षा दी?
- उत्तर: शिलाद ने वेदों के अतिरिक्त आयुर्वेद, धनुर्वेद, गंधर्ववेद, अश्ववेद, हाथी और मनुष्य की विशेषताओं के साथ-साथ जीवन और प्रकृति से जुड़ी महत्वपूर्ण शिक्षाओं का भी ज्ञान दिया।
3. नंदिकेश्वर की आयु के बारे में सुनकर शिलाद को बहुत दुःख क्यों हुआ?
- उत्तर: शिलाद को तब बहुत दुःख हुआ जब ऋषियों ने उन्हें बताया कि उनका पुत्र नंदिकेश्वर सभी विद्याओं में पारंगत होने के बावजूद अल्पायु होगा। अपने पुत्र के प्रति उनके अगाध स्नेह ने उन्हें बहुत दुःख पहुँचाया।
4. अपने सीमित जीवनकाल के बारे में जानने के बाद नंदिकेश्वर की प्रतिक्रिया क्या थी?
- उत्तर: नंदिकेश्वर ने अपनी अल्पायु पर दुःख व्यक्त किया और अपने भाग्य पर विजय पाने के लिए, उन्होंने दिव्य आशीर्वाद प्राप्त करने हेतु शक्तिशाली त्र्यम्बकम मंत्र का जाप करना शुरू कर दिया।
5. भगवान महेश्वर (शिव) ने शिलाद के दुःख पर क्या प्रतिक्रिया दी?
- उत्तर: शिलाद की व्यथा देखकर भगवान महेश्वर (शिव) प्रकट हुए और उन्हें आश्वासन दिया कि उनका पुत्र नंदिकेश्वर अल्पायु तक सीमित नहीं रहेगा। उनके दिव्य हस्तक्षेप से नंदिकेश्वर को अमरता प्राप्त हुई।
6. भगवान शिव ने नंदिकेश्वर को अपने दिव्य रूप के बारे में क्या बताया?
- उत्तर: भगवान शिव ने नंदिकेश्वर से कहा कि उनका स्वरूप साधारण नहीं बल्कि दिव्य है। उनका पिछला स्वरूप दिव्य था, जिसकी पूजा देवता, ऋषि और अन्य दिव्य प्राणी करते थे। शिव ने उन्हें आश्वासन दिया कि वे शाश्वत रहेंगे, जीवन और मृत्यु के चक्र से परे रहेंगे।
7. शिलाद ने यह सुनकर क्या किया कि नंदिकेश्वर की आयु सीमित होगी?
- उत्तर: शिलाद दुःख से अभिभूत हो गया और अपने बेटे की असामयिक मृत्यु के बारे में सोचकर दुःखी होकर रोने लगा, "मेरा बच्चा, मेरा बच्चा" कहकर पुकारने लगा। उसने अपने बेटे की किस्मत बदलने के लिए कई तरह के अनुष्ठान किए और दैवीय साधनाएँ कीं।
8. नंदिकेश्वर को भगवान शिव से दिव्य आशीर्वाद कैसे प्राप्त हुआ?
- उत्तर: नंदिकेश्वर की सच्ची भक्ति और त्र्यंबकम मंत्र के जाप के बाद, भगवान शिव प्रकट हुए और उन्हें आशीर्वाद दिया। शिव ने नंदिकेश्वर को स्पर्श किया, जिससे उन्हें दिव्य गुण और अमरता प्राप्त हुई।
9. भगवान शिव का आशीर्वाद प्राप्त करने के बाद नंदिकेश्वर ने कैसा रूप धारण किया?
- उत्तर: नंदिकेश्वर ने स्वयं भगवान शिव के समान रूप धारण किया था, जिसमें तीन आंखें और दस भुजाएं थीं, जो उनके दिव्य परिवर्तन और अमरता का प्रतीक थीं।
10. भगवान शिव ने नंदिकेश्वर को आशीर्वाद के रूप में कौन सी महत्वपूर्ण वस्तुएं दीं?
- उत्तर: भगवान शिव ने नंदिकेश्वर को एक हज़ार फूलों से बनी एक दिव्य माला भेंट की, जिसने उन्हें एक दिव्य प्राणी में बदल दिया। इस माला ने उन्हें स्वयं भगवान शिव जैसा बना दिया, जो उनके शाश्वत अस्तित्व का प्रतीक था।
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