लिंग पुराण : महादेव जी द्वारा ब्रह्म एवं विष्णु को वर प्रदान करना तथा उमामहेश्वर-पूजन | Linga Purana: Providing boon to Brahma and Vishnu by Mahadev Ji and worshiping Umamaheshwar

लिंग पुराण [ पूर्वभाग ] उन्नीसवाँ अध्याय

महादेव जी द्वारा ब्रह्म एवं विष्णु को वर प्रदान करना तथा उमा महेश्वर-पूजन के रूप में लिड्र पूजन की परम्परा का प्रारम्भ

सूत उवाच

अथोवाच महादेव: प्रीतोह॑ सुरसत्तमौ।
पश्यतां मां महादेवं भयं सर्व विमुच्यताम्‌॥ ९

युवां प्रसूती गात्राभ्यां मम पूर्व महाबलौ। 
अयं मे दक्षिणे पाएवें ब्रह्मा लोकपितामह: ॥ २

वामे पार्श्वे च मे विष्णुविश्वात्मा हृदयोद्धव: । 
प्रीतो ह युवयो: सम्यग्वरं दढ़ि यथेप्सितम्‌॥ ३

सूतजी बोले--तदनन्तर महादेवजीने कहा-हे शरष्ठ देव्य (ब्रह्मा, विष्णु)! मैं आप दोनोंपर प्रसन्न हूँ। मुझ महादेवका दर्शन करो और सभी प्रकारके भयका त्याग कर दो आप दोनों महाबली देवता पूर्वकालमें मेंरे शरीर से उत्पन्न हुए थे। सम्पूर्ण लोकोंके पितामह ये ब्रह्मा मेरे दक्षिण (दायें) अंगसे तथा विश्वात्मा और हृदयोद्धव ये विष्णु मेरे बायें अंगसे उत्पन्न हुए हैं। मैं आप दोनोंपर अत्यन्त प्रसन्‍न हूँ। अतएवं यथेच्छ वर माँगो; मैं उसे अभी दूँगा॥  १-३ ॥

एवमुक्त्वा तु त॑ विष्णुं कराभ्यां परमेश्वर:। 
पस्पर्श सुभगाभ्यां तु कृपया तु कृपानिधि:॥ ४

ततः प्रहृष्टमनसा प्रणिपत्य महेश्वरम्‌। 
प्राह नारायणो नाथ लिड्डस्थं लिड्रवर्जितम्‌॥ ५

यदि प्रीति: समुत्पन्ना यदि देयो वरछ्च नौ। 
भक्तिर्भवतु नौ नित्यं त्वयि चाव्यभिचारिणी॥ ६

देव: प्रदत्तवान्‌ देवा: स्वात्मन्यव्यभिचारिणीम्‌। 
ब्रह्मणे विष्णवे चैव श्रद्धां शीतांशुभूषण:॥ ७

जानुभ्यामवनीं गत्वा पुनर्नारायण: स्वयम्‌। 
प्रणिपत्य च विश्वेशं प्राह मन्दतरें वशी॥ ८

आववयोर्देवदेवेश विवादमतिशो भनम्‌ । 
इहागतो भवान्‌ यस्माद्विवादशमनाय नौ॥९

तस्य तद्ठचनं श्रुत्वा पुनः प्राह हरो हरिम्‌। 
प्रणिपत्य स्थित॑ मूर्ध्ना कृताउजलिपुर्ट स्मयन्‌॥ १०

इतना कहकर कृपानिधि परमेश्वर महादेवने अपने दोनों सुन्दर हाथोंसे प्रीतिपूर्वक उन विष्णुका स्पर्श किया तब लिड्में विराजित तथा लिड्डदेहशून्य स्वेच्छासे विग्रह धारण करनेवाले महेश्वरको प्रणाम करके प्रसन्न मनसे नारायण विष्णुने कहा यदि आपके हृदयमें हमारे प्रति प्रीति-भाव उत्पन्न हुआ है और यदि हमें वरदान देना चाहते हैं, तो यही वर दीजिये कि आपके प्रति हम दोनोंकी सदा दृढ़ भक्ति बनी रहे है देवताओ! चन्द्रमाको आभूषणस्वरूप धारण करनेवाले महादेवने ब्रह्मा तथा विष्णुको अपनी अचल श्रद्धा-भक्ति प्रदान की पुन: जमीनपर घुटना टेककर प्रणाम करते हुए इन्द्रियजित्‌ नारायण विष्णुने साक्षात्‌ विश्वेश्वर महादेवसे अत्यन्त मधुरतासे कहा हे देवदेवेश! हम दोनोंका यह विवाद तो अत्यन्त मड़लकारी सिद्ध हुआ; क्योंकि हम दोनोंके इसी विवादको समाप्त करनेके निमित्त आप यहाँ प्रकट हुए हैं उनका यह वचन सुनकर भगवान्‌ शम्भुने दोनों हाथ जोड़े तथा सिर झुकाकर प्रणाम करते हुए वहाँ स्थित विष्णु से मुसकराकर पुनः: कहा॥४ - १०॥

श्री महादेव उवाच 

प्रलयस्थितिसर्गाणां कर्ता त्वं धरणीपते। 
वत्स वत्स हरे विष्णो पालयैतच्चराचरम्‌॥ ११

त्रिधा भिन्‍नो ह्हं विष्णो ब्रह्मविष्णुभवाख्यया। 
सर्गरक्षालयगुणैर्निष्कल: परमेश्वर: ॥ १२

सम्मोहं त्यज भो विष्णो पालयैनं पितामहम्‌। 
पादो भविष्यति सुतः कल्पे तब पितामहः ॥ १३

तदा द्रक्ष्यसि मां चैवं सोपि द्रक्ष्यति पदाज:। 
एवमुक्त्वता स भगवांस्तत्रैवान्तरधीयत ॥ १४

श्रीमहादेवजी बोले--हे पृथ्वीपते! उत्पत्ति, स्थिति तथा संहारके कर्ता आप हैं। हे वत्स! हे वत्स! हे हरे! हे विष्णो! आप इस चराचर जगत्‌का पालन कीजिये हे विष्णो! मैं निष्कल परमेश्वर ही ब्रह्मा, विष्णु तथा भव (रुद्र) नामोंस अलग-अलग तीन प्रकारके रूपोंमें सृजन, पालन तथा संहारके गुणोंसे युक्त हूँ हे विष्णो! आप मोहका त्याग करें और इन पितामहका पालन करें। ये पितामह पाद्य कल्पमें आपके पुत्र होंगें। उस समय आप तथा आपके पुत्ररूप वे कमलोद्धव ब्रह्मा--दोनों लोग मेरा दर्शन प्राप्त करेंगे । ऐसा कहकर वे भगवान्‌ महादेव वहीं अन्तर्धान हो गये॥ ११ - १४॥

तदाप्रभृति लोकेषु लिङ्गार्चा सुप्रतिष्ठिता । 
लिङ्गवेदी महादेवी लिङ्ग साक्षान्महेश्वरः ॥ १५

लयनाल्लिड्रमित्युक्त' तत्रेव निखिलं सुराः। 
यस्तु लैड़ं पठेन्त्यमाख्यानं लिड्डसन्निधौ॥ १६

स याति शिवतां विप्रो नात्र कार्या विचारणा॥ १७

उसी समय से लोकों में शिवलिड्र के पूजन की प्रसिद्धि व्याप्त हो गयी। लिड्र वेदी के रूपमें महादेवी पार्वती तथा लिड्डरूपमें साक्षात्‌ महेश्वर प्रतिष्ठित रहते  हैं हे देवताओं ! समग्र जगत्‌को अपनेमें लय करनेके कारण यह लिड़् कहा गया है। जो विप्र शिवलिड़के समक्ष लिड्ग-आख्यानका प्रतिदिन पाठ करता है, वह शिवत्वको प्राप्त हो जाता है, इसमें किसी भी प्रकारका सन्देह नहीं करना चाहिये॥ १५ -१७॥

॥ ड्ति श्रीलिंगपुराणे पूर्वभागे विष्णुप्रबोधो नामेकोनर्विशोउध्याय: ॥ १९ ॥

॥ इस प्रकार श्रीलिंगमहापुराण के अन्तर्गत पूर्वभायमें (विष्णुप्रबोध ” नामक उनन्‍नीसवों अध्याय पूर्ण हुआ ॥ १९ ॥

लिंग पुराण [पूर्वभाग] उन्नीसवाँ अध्याय FAQs

प्रश्न 1: महादेव जी ने ब्रह्मा और विष्णु को क्या वरदान दिया?

उत्तर: महादेव जी ने ब्रह्मा और विष्णु को सदा अडिग भक्ति का वरदान दिया। उन्होंने कहा कि ब्रह्मा उनके दक्षिण अंग से और विष्णु उनके बायें अंग से उत्पन्न हुए हैं। महादेव ने दोनों से कहा कि वे किसी भी प्रकार के भय का त्याग करें और वर मांगें।


प्रश्न 2: महादेव ने विष्णु से क्या कहा?

उत्तर: महादेव ने विष्णु से कहा कि वे इस चराचर जगत का पालन करें। उन्होंने बताया कि वे स्वयं ब्रह्मा, विष्णु और रुद्र के रूप में त्रिगुणों से युक्त हैं।


प्रश्न 3: विष्णु ने महादेव से कौन सा वर मांगा?

उत्तर: विष्णु ने महादेव से निवेदन किया कि उनके और ब्रह्मा के प्रति सदा अडिग भक्ति बनी रहे। महादेव ने उन्हें और ब्रह्मा को अपनी अविचल भक्ति प्रदान की।


प्रश्न 4: शिवलिंग पूजन की परंपरा का प्रारंभ कब हुआ?

उत्तर: जब महादेव ने ब्रह्मा और विष्णु को वरदान देकर उनकी इच्छाओं को पूर्ण किया, तभी से शिवलिंग पूजन की परंपरा प्रारंभ हुई। लिंग को साक्षात महेश्वर और लिंगवेदी को महादेवी माना गया।


प्रश्न 5: लिंग शब्द का अर्थ क्या है?

उत्तर: लिंग का अर्थ है "लयन" यानी समस्त सृष्टि का अपने में विलय करना। इसीलिए इसे लिंग कहा गया है।


प्रश्न 6: लिंग पुराण के इस अध्याय के पाठ का क्या फल है?

उत्तर: जो कोई भी शिवलिंग के समक्ष इस अध्याय का पाठ करता है, वह शिवत्व को प्राप्त करता है। इसमें कोई संदेह नहीं है।


प्रश्न 7: महादेव ने ब्रह्मा और विष्णु के विवाद को कैसे समाप्त किया ?

उत्तर: महादेव ने कहा कि वे त्रिगुणों से युक्त निष्कल परमेश्वर हैं और ब्रह्मा तथा विष्णु उनके अंगों से उत्पन्न हुए हैं। उन्होंने दोनों को उनके कार्यों का बोध कराया और विवाद समाप्त कर दिया।


प्रश्न 8: महादेव ने ब्रह्मा के भविष्य के बारे में क्या बताया?

उत्तर: महादेव ने बताया कि कल्प के अंत में ब्रह्मा विष्णु के पुत्र के रूप में प्रकट होंगे, और उस समय विष्णु और ब्रह्मा दोनों महादेव का दर्शन करेंगे।


प्रश्न 9: क्या इस अध्याय में लिंग पूजन के महत्व को समझाया गया है?

उत्तर: हां, इस अध्याय में लिंग पूजन के महत्व को विस्तार से बताया गया है। शिवलिंग को साक्षात महादेव का स्वरूप मानते हुए इसकी प्रतिष्ठा और पूजन की विधि को महत्त्वपूर्ण बताया गया है।


प्रश्न 10: इस अध्याय का निष्कर्ष क्या है?

उत्तर: यह अध्याय हमें बताता है कि महादेव ब्रह्मा, विष्णु और रुद्र के रूप में सृष्टि, पालन और संहार करते हैं। शिवलिंग पूजन से शिवत्व की प्राप्ति होती है, और इससे व्यक्ति सभी प्रकार के भय और संशय से मुक्त हो जाता है।

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