लिंग पुराण : ब्रह्मा तथा विष्णु द्वारा की गयी भगवान् महेश्वरकी स्तुति एवं उसका माहात्म्य | Linga Purana: Praise of Lord Maheshwar and his greatness by Brahma and Vishnu
लिंग पुराण [ पूर्वभाग ] इक्कीसवाँ अध्याय
ब्रह्मा तथा विष्णु द्वारा की गयी भगवान् महेश्वर की स्तुति एवं उस का माहात्म्
सूत उवाच
ब्रह्माणमग्रतः कृत्वा ततः स गरुडध्वज:।
अतीतैश्च॒भविष्यैश्च॒वर्तमानैस्तथेव च॥ १
नामभिश्छान्दसैरचेव इदं स्तोत्रमुदीरयेत्।
विष्युरुवाच
नमस्तुभ्य॑ भगवते सुक्रतानन्ततेजसे॥ २
नम: क्षेत्राधिपतये बीजिने शूलिने नमः।
सुमेंद्रायार्य्यमेंद्राय दण्डिने रूक्षरेतसे ॥ ३
सूतजी बोले- तदनन्तर ब्रह्मा को आगे करके वे गरुड़ ध्वज भगवान् विष्णु अतीत, भविष्य तथा वर्तमान कल्पों से सम्बन्धित महादेव जी के वेद प्रतिपादित नामों से इस स्तोत्र का वाचन करने लगे विष्णु जी बोले- हे सुव्रत ! आप अनन्त तेज सम्पन्न भगवान को नमस्कार है। क्षेत्राधिपति, बीजी तथा त्रिशूल धारी को नमस्कार है। सुमेंद्र (सुन्दर लिङ्ग वाले), अर्घ्यमेंद्र (पूजनीय लिङ्गवाले), दण्डी तथा रूक्षरेता (रूक्ष वीर्यवाले) को नमस्कार है॥ २-३॥
नमो ज्येष्ठाय श्रेष्ठाय पूर्वाय प्रथमाय च।
नमो मान्याय पूज्याय सद्योजाताय वै नमः ॥४
गह्वराय घटेशाय व्योमचीराम्बराय च।
नमस्ते ह्यस्मदादीनां भूतानां प्रभवे नमः ॥५
वेदानां प्रभवे चैव स्मृतीनां प्रभवे नमः।
प्रभवे कर्मदानानां द्रव्याणां प्रभवे नमः ॥ ६
नमो योगस्य प्रभवे सांख्यस्य प्रभवे नमः।
नमो श्रुवनिबद्धानामृषीणां प्रभवे नम:॥ ७
ऋक्षाणां प्रभवे तुभ्यं ग्रहाणां प्रभवे नम:।
वैद्युताशनिमेघानां गर्जितप्रभवे. नम:॥ ८
महोदधीनां प्रभवे द्वीपानां प्रभवे नम:।
अद्रीणां प्रभवे चेव वर्षाणां प्रभवे नम:॥ ९
नमो नदीनां प्रभवे नदानां प्रभवे नमः।
महौषधीनां प्रभवे वृक्षाणां प्रभवे नमः॥ १०
ज्येष्ठको, श्रेष्ठको, पूर्वको तथा प्रथमको नमस्कार है। मान्यको, पूज्यको तथा सद्योजातको नमस्कार है। गह्वर (अगम्य) को, घटेश (चेष्टमान जीवोंके स्वामी)- को तथा आकाश एवं वृक्षकी छालको अम्बर (वस्त्र)- के रूपमें धारण करनेवाले तथा हम-जैसे प्राणियोंके स्वामीको नमस्कार है वेदों के स्वामी तथा स्मृतियों के स्वामी को नमस्कार है। कर्मों तथा दान आदिके स्वामी और द्रव्यों के स्वामीको नमस्कार है योग के प्रभुको नमस्कार है और सांख्यके प्रभुको नमस्कार है। ध्रुवसे सम्बन्धित ऋषियों अर्थात् सप्तर्पियोंके प्रभुको नमस्कार है नक्षत्रोंके स्वामीको नमस्कार हे, ग्रहोंके स्वामीको नमस्कार है, आपको नमस्कार है। विद्युताग्निसे युक्त मेघोंकी गर्जनाके स्वामीको नमस्कार है महासागरोंके स्वामी तथा द्वीपोंके स्वामी को नमस्कार है। पर्वतों तथा भारत आदि नौ वषेके स्वामीको नमस्कार है। नदियों तथा नदोंके स्वामीको नमस्कार है। महौषधियों तथा वृक्षोंके स्वामीको नमस्कार है ॥ १ -१०॥
धर्मवृक्षाय धर्माय स्थितीनां प्रभवे नमः।
प्रभवे चर परार्धस्य परस्य प्रभवे नमः॥ ११
नमो रसानां प्रभवे रत्नानां प्रभवे नमः।
क्षणानां प्रभवे चेव लवानां प्रभवे नम: ॥ १२
अहोरात्रार्धभासानां मासानां प्रभवे नमः।
ऋतुनां प्रभवे तुभ्यं संख्याया: प्रभवे नम: ॥ १३
प्रभवे चापरार्धस्य परार्धप्रभवे नमः।
नमः पुराणप्रभवे सर्गाणां प्रभवे नमः॥ १४
मन्वन्तराणां प्रभवे योगस्य प्रभवे नमः
चतुर्विधस्थ सर्गस्य प्रभवेनन्तचक्षुषे॥ १५
कल्पोदयनिबन्धानां वार्तानां प्रभवे नमः।
नमो विश्वस्य प्रभवे ब्रह्माधिपतये नम:॥ १६
विद्यानां प्रभवे चैव विद्याधिपतये नमः ।
नमो ब्रताधिपतये ब्रतानां प्रभवे नमः॥ १७
मन्त्राणां प्रभवे तुभ्यं मन्त्राधिपतये नमः।
पितृणां पतये चैव पशूनां पतये नमः॥ १८
वाग्वृषाय नमस्तुभ्यं॑ पुराणवृषभाय च।
नमः पशूनां पतये गोवृषेन्द्रध्वजाय च॥ १९
प्रजापतीनां पतये सिद्धीनां पतये नमः।
दैत्यदानवसडूननां रक्षमां पतये नमः॥ २०
गन्धर्वाणां च पतये यक्षाणां पतये नमः ।
गरुडोरगसर्पाणां पक्षिणां पतये नमः॥ २१
सर्वगुह्पिशाचानां. गुह्माधिपतये. नमः।
गोकर्णाय च गोप्जे च शड्डुकर्णाय बै नम: ॥ २२
वराहायाप्रमेघाय. ऋक्षाय. विरजाय च।
नमो सुराणां पतये गणानां पतये नमः॥ २३
अम्भसां पतये चैव ओजसां पतये नमः।
नमोउस्तु लक्ष्मीपतये श्रीपाय क्षितिपाय च॥ २४
बलाबलसमूहाय अक्षोभ्यक्षोभगाय च।
दीप्तश्रड्कश्रुद्भाय. वृषभाय ककुद्धिने॥ २५
नमः स्थेर्याय वपुषे तेजसानुव्रताय च।
अतीताय भविष्याय वर्तमानाय वै नमः॥ २६
सुवर्चसे च वीर्याय शूराय हाजिताय च।
वरदाय वरेण्याय. पुरुषाय महात्मने॥ २७
नमो भूताय भव्याय महते प्रभवाय च।
जनाय च नमस्तुभ्यं तपसे वरदाय च॥ २८
अणवे महते चैव नमः सर्वगताय च।
नमो बन्धाय मोक्षाय स्वर्गाय नरकाय च॥ २९
नमो भवाय देवाय इज्याय याजकाय च।
प्रत्युदीर्णाय दीप्ताय तत्त्वायातिगुणाय च॥ ३०
नमः पाशाय शस्त्राय नमस्त्वाभरणाय च।
हुताय उपहूताय प्रहुतप्राशिताय च॥ ३१
नमोउस्त्विष्टाय पूर्ताय अग्निष्टोमद्विजाय च।
सदस्याय नमश्चेव दक्षिणावभूथाय च॥३२
अहिंसायाप्रलोभाय पशुमन्त्रौचधाय चउ।
नमः पुष्टिप्रदानाय सुशीलाय सुशीलिने॥ ३३
अतीताय भविष्याय वर्तमानाय ते नम:।
सुवर्चसे च॒ वीर्याय शूराय हाजिताय च॥ ३४
वरदाय वरेण्याय. पुरुषाय महात्मने।
नमो भूताय भव्याय महते चाभयाय च॥ ३५
जरासिद्ध नमस्तुभ्यमयसे वरदाय च।
अधरे महते चैव नमः सस्तुपताय च॥ ३६
नमएचेन्द्रियपत्राणां लेलिहानाय स्त्रग्विणे।
विश्वाय विश्वरूपाय विश्वतः शिरसे नम: ॥ ३७
सर्वतः पाणिपादाय रुद्रायाप्रतिमाय च।
नमो हव्याय कव्याय हव्यवाहाय वे नमः॥ ३८
नम: सिद्धाय मेध्याय इृष्टायेज्यापराय च।
सुवीराय सुघोराय अक्षोभ्यक्षोभणाय च॥ ३९
सुप्रजाय सुमेधाय दीप्ताय भास्कराय च।
नमो बुद्धाय शुद्धाय विस्तृताय मताय च॥ ४०
नमः स्थूलाय सूक्ष्माय दृश्यादृश्याय सर्वशः ।
वर्षते ज्वलते चैव वायवे शिशिराय च॥ ४१
नमस्ते वक़््केशाय ऊरुवक्ष:शिखाय च।
नमो नमः सुवर्णाय तपनीयनिभाय च॥ ४२
विरूपाक्षाय लिड्राय पिड्रलाय महोजसे।
वृष्टिघ्नाय नमएचैव नमः सौम्येक्षणाय च॥ ४३
नमो धूम्राय श्वेताय कृष्णाय लोहिताय च।
पिशिताय पिशड्भराय पीताय च निषद्धिणे॥ ४४
नमस्ते सविशेषाय निर्विशेषाय वे नमः।
नम ईज्याय पूज्याय उपजीव्याय वे नमः॥ ४५
नम: क्षेम्याय वृद्धाय वत्सलाय नमो नमः।
नमो भूताय सत्याय सत्यासत्याय वै नमः ॥ ४६
नमो बै पद्मवर्णाय मृत्युघ्नाय च मृत्यवे।
नमो गौराय श्यामाय कद्गवे लोहिताय च॥ ४७
महासन्ध्याभ्रवर्णाय चारुदीप्ताय दीक्षिणे।
नम: कमलहस्ताय टिग्वासाय कपर्दिने॥ ४८
अप्रमाणाय सर्वाय अव्ययायामराय च।
नमो रूपाय गन्धाय शाश्वतायाक्षताय च॥ ४९
पुरस्ताद् बृंहते चैव विश्रान्ताय कृताय च।
दुर्गगाय महेशाय क्रोधाय कपिलाय च॥ ५०
तर्क्यातर्क्यशरीराय. बलिने रंहसाय च।
सिकत्याय प्रवाह्मयाय स्थिताय प्रसुताय च॥ ५१
सुमेधसे कुलालाय नमस्ते शशिखण्डिने।
चित्राय चित्रवेषाय चित्रवर्णाय मेधसे॥ ५२
चेकितानाय तुष्टाय नमस्ते निहिताय च।
नमः क्षान्ताय दान्ताय वज्संहननाय च॥ ५३
रक्षोघ्नाय विषघ्नाय शितिकण्ठोर्ध्वमन्यवे।
लेलिहाय कृतान्ताय तिग्मायुधधराय च॥ ५४
प्रमोदाय सम्मोदाय यतिवेद्याय ते नमः।
अनामयाय सर्वाय महाकालाय वबै नमः:॥ ५५
प्रणवप्रणवेशाय भगनेत्रानन्तकाय च।
मृगव्याधाय दक्षाय दक्षयज्ञान्काय च॥ ५६
सर्वभूतात्मभूताय सर्वेशातिशयाय. च।
पुरध्नाय सुशस्त्राय धन्विनेषथ परश्वधे॥ ५७
पूषदन््तविनाशाय. भगनेत्रान्तकाय चउअ।
कामदाय वरिष्ठाय कामाड्रदहनाय च॥ ५८
रड् करालवक्त्राय नागेन्द्रददनाय च।
दैत्यानामन्तकेशाय दैत्याक्रन्दकराय चचञ॥५९
हिमघ्नाय च तीकणाय आर्द्रचर्मधराय च।
श्मशानरतिनित्याय नमोउस्तूल्मुकधारिणे॥ ६०
नमस्ते प्राणपालाय मुण्डमालाधराय च।
प्रहीणशोकैर्विविधेर्भूती: परिवृताय च॥ ६१
नरनारीशरीराय देव्या: प्रियकराय च।
जटिने मुण्डिने चेव व्यालयज्ञोपवीतिने॥ ६२
नमोस्तु नृत्यशीलाय उपनुत्यप्रियाय च।
मन्यवे गीतशीलाय मुनिभिर्गायते नमः॥ ६३
कटड्डूटाय तिग्माय अप्रियाय प्रियाय च।
विभीषणाय भीष्माय भगप्रमथनाय च॥ ६४
सिद्धसड्डानुगीताय महाभागाय वे नमः।
नमो मुक्ताइहासाय क्ष्वेडितास्फोटिताय च॥ ६५
नर्दते कूर्दती चैव नमः प्रमुदितात्मने।
नमो मृडाय श्वसते धावतेडथिष्ठिते नमः॥ ६६
ध्यायते जृम्भते चैव रुदते द्रवते नमः।
वल्गते क्रीडते चैव लम्बोदरशरीरिणे॥ ६७
नमो5कृत्याय कृत्याय मुण्डाय विकटाय च।
नम उन्मत्तदेहाय किड्लिणीकाय वे नमः॥ ६८
नमो विकृतवेषाय क्रूरायामर्षणाय च।
अप्रमेयाय गोप्मे च दीप्तायानिर्गुणाय च॥ ६९
वामप्रियाय. वामाय चूडामणिधराय च।
नमस्तोकाय तनवे गुणैरप्रमिताय. च।॥ ७०
नमो गुण्याय गुह्याय अगम्यगमनाय च।
लोकथात्री त्वियं भूमि: पादौ सजजनसेवितो ॥ ७१
सर्वेषां सिद्धियोगानामधिष्ठानं तवोदरम्।
मध्येउन्तरिक्ष॑ विस्तीर्ण तारागणविभूषितम्॥ ७२
स्वाते: पथ इवाभाति श्रीमान् हारस्तवोरसि।
दिशो दशभुजास्तुभ्यं॑ केयूराड्रदभूषिता: ॥ ७३
विस्तीर्णपरिणाहह्च नीलाझ्जनचयोपम:।
कण्ठस्ते शोभते श्रीमान् हेमसूत्रविभूषित: ॥ ७४
दंष्ट्रा करालं दुर्धर्षमनोपम्यं मुखं तथा।
पद्ममालाकृतोष्णीषं शिरो द्यो: शोभतेडधिकम्॥ ७५
दीप्ति: सूर्य वपुएचन्द्रे स्थेर्य शलेडनिले बलम्।
औष्ण्यमग्नो तथा शैत्यमप्सु शब्दो म्बरे तथा ॥
अक्षरान्तरनिष्पन्दाद् गुणानेतान् विदुर्ब॒धा:।
जपो जप्यो महादेवों महायोगो महेश्वर:॥ ७७
पुरेशयो गुहावासी खेचरो रजनीचरः।
तपोनिधिग्गुहगुरुर्नन्दनो नन्दवर्धन: ॥ ७८
हयशीर्षा पयोधाता विधाता भूतभावन:।
बोद्धव्यो बोधिता नेता दुर्धर्षों दुष्प्रकम्पन: ॥ ७९
बृहद्रथो भीमकर्मा बृहत्कीर्तिर्धनज्जय:।
घण्टाप्रियो ध्वजी छत्री पिनाकी ध्वजिनीपति: ॥ ८०
कवची पट्टिशी खड़गी धनुईस्त: परश्वधी।
अधस्मरोधनघ: शूरो देवराजोउऊरिमर्दन:॥ ८९
त्वां प्रसाद्य पुरास्माभिद्विंषन्तो निहता युधि।
अग्नि: सदार्णवाम्भस्त्वं पिबन्नपि न तृप्यसे॥ ८२
क्रोधाकारः प्रसन्नात्मा कामद: कामग: प्रिय: ।
ब्रह्मचारी चागाधश्च ब्रह्मण्य: शिष्टपूजित: ॥ ८३
देवानामक्षय: कोशस्त्वया यज्ञ: प्रकल्पित:।
हव्यं तवेदं वहति वेदोक्त हव्यवाहन:।
प्रीते त्वयि महादेव बयं प्रीता भवामहे॥ ८४
भवानीशोनादिमांस्त्व॑ च . सर्वलोकानां त्वं ब्रह्मकर्तादिसर्ग:।
सांख्या: प्रकृतेः परमं त्वां विदित्वा क्षीणध्यानास्त्वाममृत्युं विशन्ति॥ ८५
योगाच्च त्वां ध्यायिनो नित्यसिद्धं ज्ञात्वा योगान् सन्त्यजन्ते पुनस्तान्।
ये चाप्यन्ये त्वां प्रसन्ना विशुद्धाः स्वकर्मभिस्ते दिव्यभोगा भवन्ति॥ ८६
अप्रसड्ख्येयतत्त्वस्थ यथा विदा: स्वशक्तित: ।
कीर्तितं तव माहात्म्यमपारस्य महात्मन: ॥ ८७
शिवो नो भव सर्वत्र योउसि सो5सि नमोःस्तु ते।
सूत उवाच
य इदं कीरततयेद्धक्त्या ब्रह्मनारायणस्तवम्॥ ८८
श्रावयेद्वा द्विजान् विद्वान् श्रणुयाद्वा समाहितः ।
अश्वमेधायुतं कृत्वा यत्फलं॑ तदवाप्नुयात्॥ ८९
पापाचारोपि यो मर्त्य: श्रणुयाच्छिवसनिधी ।
जपेद्वापि विनिर्मुक्तो ब्रह्मलोक॑ स गच्छति॥ ९०
श्राद्धे वा दैविके कार्ये यज्ञे वावभूथान्तिके।
कीर्तयेद्ठा सतां मध्ये स याति ब्रह्मणोउन्तिकम्॥ ९९
॥ ज्ञति श्रीलिंग महापुराणे पूर्वभागे ब्रह्मविष्णुस्तुतिनमिकर्विशोडध्याय: ॥ २९ ॥
FAQs (अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न)
प्रश्न 1: इस अध्याय में किस प्रकार से भगवान महेश्वर की स्तुति की गई है?
उत्तर: इस अध्याय में भगवान विष्णु ने ब्रह्मा के साथ महेश्वर की स्तुति की। इसमें वेदों, स्मृतियों और विभिन्न नामों का उपयोग करके महादेव के व्यापक स्वरूप और उनकी महिमा का वर्णन किया गया है।
प्रश्न 2: भगवान महेश्वर के कौन-कौन से रूपों का उल्लेख है?
उत्तर: इस अध्याय में महेश्वर को क्षेत्राधिपति, बीजस्वरूप, त्रिशूलधारी, सुमेंद्र, गह्वर, घटेश, सद्योजात, अणु, महत, सर्वगत, पाशुपति, हव्यवाहक, और विश्वरूप जैसे कई रूपों में वर्णित किया गया है।
प्रश्न 3: महेश्वर की स्तुति के पीछे क्या उद्देश्य था?
उत्तर: भगवान विष्णु और ब्रह्मा ने त्रिकाल (अतीत, वर्तमान, और भविष्य) के आधार पर महेश्वर के प्रति अपनी श्रद्धा व्यक्त की। इस स्तुति का उद्देश्य उनकी असीम महिमा, जगत के प्रति उनका प्रभुत्व और भक्ति का आदर्श प्रस्तुत करना था।
प्रश्न 4: भगवान महेश्वर को कौन-कौन से विशेषण दिए गए हैं?
उत्तर: महेश्वर को अनेक विशेषणों से संबोधित किया गया है, जैसे:
- ज्येष्ठ और श्रेष्ठ: सर्वोत्तम और प्राचीनतम।
- प्रभु: वेद, स्मृतियां, ग्रह, नक्षत्र, पर्वत, नदियां, द्वीप, ऋतुएं, और विश्व के स्वामी।
- योग और सांख्य के अधिपति: ज्ञान और साधना के स्रोत।
- विश्वरूप: सम्पूर्ण ब्रह्मांड में व्याप्त।
प्रश्न 5: इस अध्याय का भक्तों के लिए क्या महत्व है?
उत्तर: यह अध्याय महेश्वर की भक्ति और उनकी महिमा का गान करने का मार्ग दिखाता है। यह भक्तों को भगवान शिव के प्रति समर्पण और उनकी शक्ति की व्यापकता का अनुभव करने के लिए प्रेरित करता है।
प्रश्न 6: भगवान महेश्वर को किस प्रकार संबोधित किया गया है?
उत्तर: भगवान महेश्वर को विश्व का पालनकर्ता, रचनाकार, संहारकर्ता, धर्म के रक्षक, ज्ञान के प्रदाता, और भक्तों के संकटहरणकर्ता के रूप में संबोधित किया गया है।
प्रश्न 7: इस अध्याय में स्तुति का कौन-सा भाग सबसे विशेष है?
उत्तर: "अणवे महते चैव नमः सर्वगताय च।" इस पंक्ति में महेश्वर की सूक्ष्मता और व्यापकता का वर्णन किया गया है, जो उनकी सर्वव्यापकता को दर्शाता है।
प्रश्न 8: इस स्तुति के लाभ क्या हैं?
उत्तर: इस स्तुति का नियमित पाठ करने से भक्तों को महेश्वर की कृपा प्राप्त होती है। इससे उनके जीवन में शांति, समृद्धि और आध्यात्मिक उन्नति होती है।
प्रश्न 9: क्या इस स्तुति का पाठ किसी विशेष समय पर करना चाहिए?
उत्तर: इस स्तुति का पाठ किसी भी समय किया जा सकता है, लेकिन प्रातःकाल या प्रदोष काल (शाम के समय) में इसका पाठ विशेष फलदायी होता है।
प्रश्न 10: क्या यह अध्याय योग साधना के महत्व को भी दर्शाता है?
उत्तर: हां, इस अध्याय में महेश्वर को योग और सांख्य के अधिपति के रूप में वर्णित किया गया है। यह योग साधना और ज्ञान के प्रति शिव की भूमिका को दर्शाता है।
निष्कर्ष
भगवान महेश्वर की यह स्तुति उनके सर्वव्यापक, सर्वज्ञ और सर्वशक्तिमान स्वरूप को दर्शाती है। यह अध्याय भक्ति और शिव की महिमा के माध्यम से भक्तों को धर्म और साधना के मार्ग पर अग्रसर करता है।
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