लिंग पुराण : भगवान् महेश्वर के आशभ्यन्तर पूजन का स्वरूप, सकल तथा निष्कल तत्त्वकी व्याख्या | Linga Purana: Nature of inner worship of Lord Maheshwar, explanation of gross and pure elements
लिंग पुराण [ पूर्वभाग ] अट्टाईंसवाँ अध्याय
भगवान् महेश्वर के आशभ्यन्तर पूजन का स्वरूप, सकल तथा निष्कल तत्त्वकी व्याख्या, छब्बीस तत्त्वों का परिगणन एवं सम्पूर्ण चराचर जगत् की शिव रूपता
शैलादिरुवाच
आग्नेयं सौरममृतं बिम्बं भाव्यं ततोपरि।
गुणत्रयं च हृदये तथा चात्मत्रयं क्रमात्॥ ९
तस्योपरि महादेवं निष्कलं सकलाकृतिम्।
कान्ताधरूढदेहं च॒ पूजयेद् ध्यानविद्यया॥ २
ततो बहुविध॑ प्रोक्ते चिन्त्यं तत्रास्ति चेद्मत:।
चिन्तकस्य ततश्चिन्ता अन्यथा नोपपद्यते॥ ३
तस्माद्धयेयं तथा ध्यानं यजमान: प्रयोजनम्।
स्मरेत्तन्तान्न्यथा जातु बुध्यते पुरुषस्थ ह॥ ४
पुरे शेते पुर॑ देह तस्मात्पुरुष उच्यते।
याज्यं यज्न यजते यजमानस्तु स स्मृत:॥ ५
ध्येयो महेश्वरो ध्यानं चिन्तन निर्वृति: फलम्।
प्रधानपुरुषेशानं याथातथ्यं प्रपद्यते॥ ६
इह षड्विंशको ध्येयो ध्याता वै पञचविंशकः।
चतुर्विशकमव्यक्त॑ महदाद्यास्तु सप्त च॥ ७
महांस्तथा त्वहड्ढारं तन्मात्र॑ पञ्चक पुनः ।
कर्मेन्द्रयाणि पञ्चैव तथा बुद्धीन्द्रयणि च॥ ८
मनएच पउ्चभूतानि शिव: षड्विंशकस्तत: ।
स एवं भर्ता कर्ता च विधेरपि महेश्वर:॥ ९
हिरण्यगर्भ रुद्रोग्साौ जनयामास शक्करः।
विश्वाधिकश्च विश्वात्मा विश्वरूप इति स्मृत:॥ १०
विना यथा हि पितरं मातरं तनयास्त्विह ।
न जायन्ते तथा सोम॑ विना नास्ति जगतल्नयम्॥ ११
सनत्कुमार उवाच
कर्ता यदि महादेव: परमात्मा महेश्वरः।
तथा कारयिता चैव कुर्वतोउल्पात्मनस्तथा॥ १२
नित्यो विशुद्धों बुद्धश्च निष्कलः परमेश्वर: ।
त्वयोक्तो मुक्तिद: किं वा निष्कलश्चेत्करोति किम् ॥ १३
शेलादिस्वाच
काल: करोति सकल॑ कालं कलयते सदा।
निष्कलं च मन: सर्व मन्यते सोपि निष्कल: ॥ १४
कर्मणा तस्य चैवेह जगत्सर्व॑ प्रतिष्ठितम्।
किमत्र देवदेवस्य मूर्त्यष्टकमिंदं जगत्॥ १५
विनाकाशं जगन्नैव विना क्ष्मां वायुना विना।
तेजसा वारिणा चैव यजमानं तथा विना॥ १६
भानुना शशिना लोकस्तस्येतास्तनव: प्रभो:।
विचारतस्तु रुद्रस्य स्थूलमेतच्चराचरम्॥ १७
सूक्ष्म वदन्ति ऋषयो यन्न वाच्यं द्विजोत्तमा:।
यतो बाचो निवर्तन्ते अप्राप्प ममसा सह॥ १८
आनचदं ब्रह्मणो विद्वान्न बिभेति कुतश्चन।
न भेतव्यं तथा तस्माज्ज़ात्वानन्दं पिनाकिन:॥ १९
विभूतयश्च रुद्रस्य मत्वा सर्वत्र भावत:।
सर्व रुद्र इति प्राहुर्मुनयस्तत्त्वदर्शिन:॥ २०
नमस्कारेण सतत गौरवात्परमेष्ठिन: ।
सर्व तु खल्विदं ब्रह्म सर्वो बै रुद्र ईश्वर: ॥ २९
पुरुषो वे महादेवो महेशानः: पर: शिव:।
एवं विभुविनिर्दिष्टो ध्यानं तत्रैव चिन्तनम्॥ २२
चतुर्व्यहेण मार्गेण विचार्यालोक्य सुब्रत।
संसारहेतु: संसारो मोक्षहेतुएच निर्व॒ति:॥ २३
चतुर्व्यूह: समाख्यात: चिन्तकस्थेह योगिन: ।
चिन्ता बहुविधा ख्याता सैकत्र परमेष्ठिना॥ २४
सुनिष्ठेत्यश्न कथिता रुद्रं रौद्री न संशय: ।
ऐन्द्री चैन्द्रे तथा सौम्या सोमे नारायणे तथा॥ २५
सूर्य वह्लौ च॒ सर्वेषां सर्वत्रेव॑ विचारत:।
सैवाहं सो हमित्येवं द्विधा संस्थाप्य भावत: ॥ २६
भक्तोसौ नास्ति यस्तस्माच्चिन्ता ब्राह् न संशय: ।
एवं ब्रह्ममयं ध्यायेत्पूर्वे विप्र चराचरम्॥ २७
चराचरविभागं च त्यजेदभिमतं स्मरन्।
त्याज्यं ग्राह्ममलभ्यं च कृत्यं चाकृत्यमेव च॥ २८
यस्य नास्ति सुतृप्तस्य तस्य ब्राह्मी न चान्यथा ।
आशभ्यन्तरं समाख्यातमेवमभ्यर्चन॑ क्रमात् ॥ २९
आभ्यन्तरार्चका: पूज्या नमस्कारादिभिस्तथा।
विरूपा विकृताश्चापि न निन्द्या ब्रह्मवादिन: ॥ ३०
आभ्यन्तरार्चका: सर्वे न परीक्ष्या विजानता।
निन्दका एव दु:खार्ता भविष्यन्त्यल्पचेतस: ॥ ३१
यथा दारुवने रुद्रं विनिन्ध मुनयः पुरा।
तस्मात्सेव्या नमस्कार्या: सदा ब्रह्मविदस्तथा ॥ ३२
वर्णाश्रमविनिर्मुक्ता. वर्णाश्रमपरायणै: ॥ ३३
॥ ज्ञति श्रीलिंगपुराणमहापुराणे पूर्वभागे शिवार्चनतत्त्वसंख्यादिवर्णन॑ नामाष्टाविंशोउथ्याय: ॥ २८ ॥
॥ इस प्रकार श्रीलिंगपुराणहापुराण के अन्तर्गत पर्वभाग में 'शिवार्चनतत्वसंख्यादि वर्णन नायक अद्वाईसवाँ अध्याय पूर्ण हुआ ॥ २८ ॥
प्रश्न-उत्तर आधारित व्याख्या: लिंग पुराण [पूर्वभाग] अट्टाईंसवाँ अध्याय
प्रश्न 1: हृदय में ध्यान के लिए किन-किन तत्वों का स्थान है?
उत्तर: हृदय में ध्यान के लिए अग्निमंडल, सूर्य मंडल, चंद्र मंडल, तीन गुण, तीन आत्माएं, और उनके ऊपर अर्धनारीश्वर महादेव का ध्यान किया जाना चाहिए।
प्रश्न 2: ध्यान के लिए महादेव के किस स्वरूप का पूजन करना चाहिए?
उत्तर: महादेव के निष्कल (निर्गुण) और सकल (सगुण) स्वरूप का ध्यान करना चाहिए। वे अर्धनारीश्वर रूप में पूजनीय हैं।
प्रश्न 3: महेश्वर का ध्यान और चिंतन क्यों आवश्यक है?
उत्तर: महेश्वर का ध्यान और चिंतन करना इसलिए आवश्यक है क्योंकि वे मोक्ष के प्रदाता हैं। उनका ध्यान करके जीव अपने उद्देश्य को प्राप्त कर सकता है।
प्रश्न 4: छब्बीस तत्व कौन-कौन से हैं?
उत्तर:
- महत्तत्त्व
- अहंकार
- पाँच तन्मात्राएँ (शब्द, स्पर्श, रूप, रस, गंध)
- पाँच कर्मेंद्रियाँ (वाणी, हाथ, पैर, मल त्याग, जनन)
- पाँच ज्ञानेंद्रियाँ (श्रवण, त्वचा, नेत्र, जिव्हा, नासिका)
- पाँच महाभूत (आकाश, वायु, अग्नि, जल, पृथ्वी)
- मन
- शिव (छब्बीसवाँ तत्व)
प्रश्न 5: महेश्वर किस रूप में समस्त जगत में प्रतिष्ठित हैं?
उत्तर: महेश्वर स्थूल रूप में चराचर जगत में व्यक्त हैं। उनकी सूक्ष्मता का वर्णन वाणी और मन के द्वारा संभव नहीं है।
प्रश्न 6: शिव को अष्टमूर्तियों के रूप में कैसे प्रकट किया गया है?
उत्तर: शिव को आकाश, पृथ्वी, वायु, तेज, जल, यजमान, सूर्य और चंद्रमा की अष्टमूर्तियों के रूप में प्रकट किया गया है।
प्रश्न 7: परमेश्वर शिव की विभूतियों का क्या महत्व है?
उत्तर: परमेश्वर शिव की विभूतियां सर्वत्र व्याप्त हैं। तत्त्वदर्शी मुनियों ने शिव को ही सब कुछ बताया है।
प्रश्न 8: जीव और ब्रह्म के संबंध को कैसे समझाया गया है?
उत्तर: जीव को ब्रह्म की पुर में शयन करते हुए पुरुष कहा गया है। ब्रह्म (शिव) के ध्यान और चिंतन से ही जीव उनके स्वरूप को प्राप्त कर सकता है।
प्रश्न 9: शिव की उपासना का अंतिम लक्ष्य क्या है?
उत्तर: शिव की उपासना का अंतिम लक्ष्य मोक्ष (निर्वृति) है, जो सभी बंधनों से मुक्त कराता है।
प्रश्न 10: शिव का स्थूल और सूक्ष्म स्वरूप किस प्रकार वर्णित है?
उत्तर: शिव का स्थूल स्वरूप चराचर जगत में व्यक्त है, जबकि सूक्ष्म स्वरूप वाणी और मन से अगम्य है।
प्रश्न 11: "सब कुछ शिव ही हैं"—इस कथन का अर्थ क्या है?
उत्तर: यह कथन इस तथ्य को दर्शाता है कि संपूर्ण सृष्टि शिव के तत्व से उत्पन्न और उनसे ही व्याप्त है। चर और अचर, स्थूल और सूक्ष्म, सब कुछ शिवमय है।
प्रश्न 12: भक्त के लिए शिव का ध्यान क्यों महत्वपूर्ण है?
उत्तर: भक्त के लिए शिव का ध्यान इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि शिव के ध्यान और चिंतन से ही जीवन के उद्देश्य की प्राप्ति और मोक्ष संभव है।
प्रश्न 13: शिव को "अल्पात्मा जीवों" का बंध-मोक्ष दाता क्यों कहा गया है?
उत्तर: शिव काल और कर्म के माध्यम से जीवों को उनके कर्मों के अनुसार बंधन और मोक्ष प्रदान करते हैं।
प्रश्न 14: "आकाश, पृथ्वी आदि आठ तत्व" शिव के किस रूप का प्रतीक हैं?
उत्तर: ये तत्व शिव के स्थूल रूप का प्रतीक हैं, जो सृष्टि के आधारभूत तत्वों के रूप में प्रकट होते हैं।
प्रश्न 15: शिव के सूक्ष्म स्वरूप को कौन समझ सकता है?
उत्तर: शिव के सूक्ष्म स्वरूप को केवल वे ही ऋषि-मुनि या तत्त्वदर्शी समझ सकते हैं, जो ध्यान और चिंतन द्वारा उनके स्वरूप को अनुभव करते हैं।
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