लिंग पुराण : ब्रह्माजी की आयु का परिमाण, कालका स्वरूप, कल्प, |

श्रीलिङ्गमहापुराण चौथा अध्याय

ब्रह्माजी की आयु का परिमाण, काल का स्वरूप, कल्प, मन्वन्तर एवं युगादि का मान तथा ब्रह्मा जी द्वारा विभिन्न लोकों की संरचना


सूत उवाच

अथ प्राथमिकस्येह यः कालस्तदहः स्मृतम्। 
सर्गस्य तादृशी रात्रिः प्राकृतस्य समासतः ॥ १

दिवा सृष्टि विकुरुते रजन्यां प्रलयं विभुः।
औपचारिकमस्यैतदहोरात्रं न विद्यते ॥ २

दिवा विकृतयः सर्वे विकारा विश्वदेवताः ।
प्रजानां पतयः सर्वे तिष्ठन्त्यन्ये महर्षयः ॥ ३

रात्रौ सर्वे प्रलीयन्ते निशान्ते सम्भवन्ति च। 
अहस्तु तस्य वै कल्यो रात्रिस्तादृग्विधा स्मृता ॥ ४

चतुर्युगसहस्त्रान्ते मनवस्तु चतुर्दश। 
चत्वारि तु सहस्त्राणि वत्सराणां कृतं द्विजाः ॥ ५

तावच्छती च वै सन्ध्या सन्ध्यांशश्च कृतस्य तु। 
त्रिशती द्विशती सन्ध्या तथा चैकशती क्रमात् ॥ ६

सूतजी बोले- ब्रह्माकी प्राकृत सृष्टिका जो समय है, वहीं उनका दिन है तथा उतने ही परिमाणको उनकी रात्रि है। वे ब्रह्मा दिनमें सृष्टि करते हैं तथा रातमें प्रलय करते हैं। ब्रह्माका अहोरात्र उत्पत्ति-प्रलयरूपात्मक है, मनुष्योंके दिन-रातके समान सूर्योदयास्तवाला नहीं है  दिनमें सभी प्रकार की वैकारिक सृष्टि, समस्त देवता, सभी प्रजापतिगण तथा अन्य महर्षि लोग विद्यमान रहते हैं तथा रातमें ये सभी विलीन हो जाते हैं। रातको समाप्तिपर वे सभी पुनः उत्पन्न हो जाते हैं। ब्रह्माका एक दिन ही एक कल्प कहा जाता है तथा उसी प्रकार उनकी रात भी एक कल्पके मानके तुल्य कही गयी है एक हजार चतुर्युगीकी अवधिमें चौदह मनु उत्पन्न होते हैं। हे विप्री। सत्ययुगका काल चार हजार दिव्य वर्षोंका है और उस सत्ययुगके चार सौ वर्षोंकी सन्ध्या तथा सन्ध्यांश होते हैं। उसी प्रकार क्रमसे त्रेतायुग की सन्ध्या तीन सौ वर्षकी, द्वापरकी सन्ध्या दो सौ वर्षकी तथा कलियुग की सन्ध्या एक सौ वर्षकी होती है॥१-६ ॥ 

अंशकः षट्शतं तस्मात् कृतसन्ध्यांशकं विना ।
त्रिद्वयेकसाहस्त्रमितौ विना सन्ध्यांशके न तु ॥ ७

त्रेताद्वापरतिष्याणां कृतस्य कथयामि वः। 
निमेषपञ्चदशका काष्ठा स्वस्थस्य सुव्रताः ॥ ८

मर्त्यस्य चाक्ष्णोस्तस्याश्च ततस्त्रिंशतिका कला। 
कला त्रिंशतिको विप्रा मुहूर्त इति कल्पितः ।। ९

मुहूर्तपञ्चदशिका रजनी तादृशं त्वहः। 
पित्र्ये रात्र्यहनी मासः प्रविभागस्तयोः पुनः । १०

कृष्णपक्षस्त्वहस्तेषां शुक्लः स्वप्नाय शर्वरी। 
त्रिंशद्ये मानुषा मासाः पित्र्यो मासस्तु स स्मृतः ॥ ११

इस प्रकार सत्ययुगके सन्ध्यांशकको छोड़कर अन्य तीन युगोंके कुल सन्ध्यांशक छः सौ वर्षके होते हैं तथा इन त्रेता, द्वापर और कलिके सन्ध्या सन्ध्यांशकको छोड़कर इनका नियत समय क्रमशः तीन हजार, दो हजार तथा एक हजार वर्षोंका होता है हे सुव्रत ऋषियो। अब मैं आप लोगोंको त्रेता, द्वापर, कलियुग तथा सत्ययुगके कालमान बताता हूँ। स्वस्थ मनुष्यके नेत्रके पन्द्रह निमेषके समयको एक काष्ठा कहते हैं और तीस काष्ठाकी एक कला होती है। हे विप्रो। तीस कलाको मिलाकर एक मुहूर्त कहा जाता हैपन्द्रह मुहूर्तकी एक रात होती है तथा उसी प्रकार पन्द्रह मुहूर्तका एक दिन होता है। मनुष्योंका एक कृष्णपक्ष पितरोंके एक दिनके बराबर होता है तथा शुक्लपक्ष उनकी स्वप्नसम्बन्धी रातके समान होता है। मनुष्योंके तीस महीनेका समय पितरोंके एक मासके बराबर माना गया है॥ ७-११॥

शतानि त्रीणि मासानां षष्ट्या चाप्यधिकानि वै। 
पित्र्यः सम्वत्सरो होष मानुषेण विभाव्यते ॥ १२

मानुषेणैव मानेन वर्षाणां यच्छतं भवेत्। 
पितॄणां त्रीणि वर्षाणि संख्यातानीह तानि वै ॥ १३

दश वै द्वयधिका मासाः पितृसंख्येह संस्मृता । 
लौकिकेनैव मानेन अब्दो यो मानुषः स्मृतः ॥ १४

मनुष्यों के तीन सौ साठ महीनों का समय पितरों का एक संवत्सर (वर्ष) माना जाता है मानवीय मान से सन्ध्या-सन्ध्यांशसहित जो १०० वर्ष होते हैं, यहाँ वे ही पितरों के तीन वर्ष कहे गये हैं। जैसे लौकिक मानसे बारह मासका एक मानववर्ष होता है, उसी प्रकार पितृमान से बारह मासका एक पितृवर्ष होता है। लिङ्गपुराणमें इस प्रकार दिव्य अहोरात्र तथा दिव्य वर्ष का विभाग पूर्वक वर्णन किया गया है ॥ १२-१५॥

एतद्दिव्यमहोरात्रमिति लैङ्गेऽत्र पठ्यते।
दिव्ये रात्र्यहनी वर्ष प्रविभागस्तयोः पुनः ॥ १५

अहस्तत्रोदगयनं रात्रिः स्याद्दक्षिणायनम्।
एते रात्र्यहनी दिव्ये प्रसंख्याते विशेषतः ॥ १६

 त्रिंशद्यानि तु वर्षाणि दिव्यो मासस्तु स स्मृतः ।
मानुषं तु शतं विप्रा दिव्यमासास्वयस्तु ते ॥ १७ 

सूर्य का उत्तर की और संक्रमण [उत्तरायण- सूर्यका मकरराशि से मिथुनराशित क] हो देवताओं का दिवस तथा सूर्यका दक्षिणकी ओर संक्रमण [दक्षिणायन- कर्कराशिसे धनुराशितक) ही देवोंकी रात्रि होती है। विशेषतया ये दिव्य अहोरात्र कहे गये हैं मनुष्योंके तीस वर्षोंका काल देवताओं के एक महीनेके समयके बराबर होता है। हे विप्रो। मनुष्योंका एक सौ वर्ष देवताओंके तीन माह तथा दस दिनके बराबर माना गया है॥१६ - १७ ॥ 

दश चैव तथाहानि दिव्यो होष विधिः स्मृतः ।
त्रीणि वर्षशतान्येव षष्टिवर्षाणि यानि तु ॥ १८

दिव्यः सम्वत्सरो होष मानुषेण प्रकीर्तितः ।
त्रीणि वर्षसहस्त्राणि मानुषाणि प्रमाणतः ॥ १९

त्रिंशदन्यानि वर्षाणि मतः सप्तर्षिवत्सरः ।
नव यानि सहस्त्राणि वर्षाणां मानुषाणि तु ॥ २०

अन्यानि नवतीश्चैव श्रीवः संवत्सरस्तु सः ।
ष‌ट्त्रिंशत्तु सहस्त्राणि वर्षाणां मानुषाणि तु ॥ २१

वर्षाणां तच्छतं ज्ञेयं दिव्यो होष विधिः स्मृतः ।
त्रीण्येव नियुतान्याहुर्वर्षाणां मानुषाणि तु ॥ २२

षष्टिश्चैव सहस्त्राणि संख्यातानि तु संख्यया।
दिव्यं वर्षसहस्त्रं तु प्राहुः संख्याविदो जनाः ।। २३

मनुष्यों के तीन सौ साठ वर्षोंका कालमान देवताओंक एक वर्षके समयके तुल्य कहा गया है मनुष्यों के कालप्रमाण के अनुसार उन के तीन हजार तीस वर्ष सप्तर्षियोंके एक वर्षके बराबर माने गये हैं  मनुष्योंके नौ हजार नब्बे वर्षोंको मिलाकर वह एक ध्रौव्य वर्ष (ध्रुव वर्ष) होता है मनुष्यों का जो छत्तीस हजार वर्षोंका समय है, वहीं देवताओंका सौ वर्ष कहा जाता है कालगणनाके विद्वान् मनुष्योंके तीन लाख साठ हजार वर्षोंके समयको देवताओंके एक हजार वर्षोंके बराबर कहते हैं॥ १८-२३ ॥

दिव्येनैव प्रमाणेन युगसंख्याप्रकल्पनम् ।
पूर्व कृतयुगं नाम ततस्त्रेता विधीयते ॥ २४

द्वापरश्च कलिश्चैव युगान्येतानि सुव्रताः ।
अथ संवत्सरा दृष्टा मानुषेण प्रमाणतः ॥ २५

कृतस्याद्यस्य विप्रेन्द्रा दिव्यमानेन कीर्तितम् ।
सहस्त्राणां शतान्यासंश्चतुर्दश च संख्यया ॥ २६

चत्वारिंशत्सहस्त्राणि तथान्यानि कृतं युगम् ।
तथा दशसहस्त्राणां वर्षाणां शतसंख्यया ॥ २७

अशीतिश्च सहस्त्राणि कालस्त्रेतायुगस्य च।
सप्तैव नियुतान्याहुर्वर्षाणां मानुषाणि तु ॥ २८

विंशतिश्च सहस्त्राणि कालस्तु द्वापरस्य च।
तथा शतसहस्त्राणि वर्षाणां त्रीणि संख्यया ।। २९

षष्टिश्चैव सहस्त्राणि कालः कलियुगस्य तु।
एवं चतुर्युगः काल ऋते सन्ध्यांशकात्स्मृतः ॥ ३०

नियुतान्येव षट्त्रिंशन्निरंशानि तु तानि वै। 
चत्वारिंशत्तथा त्रीणि नियुतानीह संख्यया ॥ ३१

देवताओं के ही कालप्रमाण से युगों की संख्या कल्पित की गयी है। हे सुव्रत ऋषियो! सर्वप्रथम सत्ययुग, इसके बाद त्रेता, फिर द्वापर और अन्त में कलियुग-ये चार युग कहे गये हैं। अब मानुषीवर्ष- प्रमाणसे इनका काल बताया जाता है हे विप्रवरी! प्रथम कृतयुगका कालमान देवताओंके प्रमाणसे बताया जा चुका है। वह कृतयुग मानुषी वर्षसे चौदह लाख चालीस हजार वर्षोंका है तथा त्रेतायुगका कालप्रमाण दस लाख अस्सी हजार वर्षोंका, द्वापरयुगका कालमान सात लाख बीस हजार वर्षोंका तथा कलियुगका समय तीन लाख साठ हजार वर्षोंका कहा गया है। इस प्रकार सन्ध्या तथा सन्ध्यांशको छोड़कर चारों युगोंका काल छत्तीस लाख वर्ष कहा गया है। चारों युगोंके सन्ध्यांशका काल तीन लाख साठ हजार वर्ष होता है॥ २६-३१॥

विंशतिश्च सहस्त्राणि सन्ध्यांशश्च चतुर्युगः । 
एवं चतुर्युगाख्यानां साधिका होकसप्ततिः ॥ ३२

कृतत्रेतादियुक्तानां मनोरन्तरमुच्यते। 
मन्वन्तरस्य संख्या च वर्षाग्रेण प्रकीर्तिता ॥ ३३

इकहत्तर कृत-त्रैतादि चतुर्युगों के कालसे कुछ अधिक कालको एक मन्वन्तर कहा जाता है और आगे दिये गये वर्षों से मन्वन्तर की संख्या कही गयी है ॥ ३२-३३ ॥

त्रिंशत्कोट्यस्तु वर्षाणां मानुषेण द्विजोत्तमाः । 
सप्तषष्टिस्तथान्यानि नियुतान्यधिकानि तु ॥ ३४

विंशतिश्च सहस्त्राणि कालोऽयमधिकं विना। 
मन्वन्तरस्य संख्यैषा लैङ्गेऽस्मिन् कीर्तिता द्विजाः ।। ३५

है उत्तम ब्राह्मणो! मनुष्यवर्षसे तीस करोड़ सरसठ लाख बीस हजार वर्षोंका काल सभी मनुओंका होता है; हे द्विजओ ! ऐसा इस लिङ्गपुराणमें बताया गया है॥ ३४-३५ ॥

चतुर्युगस्य च तथा वर्षसंख्या प्रकीर्तिता। 
चतुर्युगसहस्रं वै कल्पश्चैको द्विजोत्तमाः ॥ ३६

हे श्रेष्ठ ब्राह्मणो। चतुर्युग की भी वर्षसंख्या कही गयी है। एक हजार चतुर्युगोंका काल एक कल्प कहा गया है॥ ३६॥

निशान्ते सृजते लोकान् नश्यन्ते निशि जन्तवः । 
तत्र वैमानिकानां तु अष्टाविंशतिकोटयः ।। ३७

मन्वन्तरेषु वै संख्या सान्तरेषु यथातथा।
त्रीणि कोटिशतान्यासन् कोट्यो द्विनवतिस्तथा ॥ ३८

कल्पेऽतीते तु वै विप्राः सहस्त्राणां तु सप्ततिः । 
पुनस्तथाष्टसाहस्त्रं सर्वत्रैव समासतः ॥ ३९

ब्रह्माजी दिनके आरम्भ में जगत्‌ की रचना करते हैं तथा रात्रिमें प्राणियोंका संहार होता है। उनमें देवताओं की संख्या अट्ठाईस करोड़ है। यह संख्या मन्वन्तरोंमें तीन सौ बानबे करोड़ होती है। हे ब्राह्मणो! कल्प व्यतीत होने पर यह संख्या अठहत्तर हजार होती है ॥ ३७-३९ ॥

कल्पावसानिकांस्त्यक्त्वा प्रलये समुपस्थिते । 
महर्लोकात्प्रयान्त्येते जनलोकं जनास्ततः ॥ ४०

कोटीनां द्वे सहस्त्रे तु अष्टौ कोटिशतानि तु। 
द्विषष्टिश्च तथा कोट्यो नियुतानि च सप्ततिः ॥ ४१

कल्पार्धसंख्या दिव्या वै कल्पमेवन्तु कल्पयेत्। 
कल्पानां वै सहस्त्रन्तु वर्षमेकमजस्य तु ॥ ४२

प्रलयकाल उपस्थित होने पर कल्पके अन्त में विद्यमान देवताओं को छोड़ कर महलोंक में निवास करने वाले लोग जनलोक में चले जाते हैं  आधे दिव्य (देव) कल्पकी वर्षसंख्या दो हजार आठ सौ बासठ करोड़ सत्तर लाख है; इसीसे कल्पकी संख्या ज्ञात होती है। हजार कल्पोंका काल ही ब्रह्माजीका एक वर्ष है॥ ४० -४२॥

वर्षाणामष्टसाहस्रं ब्राह्यं वै ब्रह्मणो युगम्। 
सवनं युगसाहस्त्रं सर्वदेवोद्भवस्य तु ॥ ४३

ब्रह्माके आठ हजार वर्षोंका काल (आठ हजार ब्राहा वर्ष) ब्रहाका एक युग होता है। सभी देवोंके उत्पत्तिकर्ता ब्रह्माका एक हजार युग विष्णुके एक दिनके बराबर होता है॥ ४३ ॥

सवनानां सहस्त्रं तु त्रिविधं त्रिगुणं तथा। 
ब्रह्मणस्तु तथा प्रोक्तः कालः कालात्मनः प्रभोः ॥ ४४

विष्णुके नौ हजार दिनोंका समय कालात्मा प्रभु ब्रह्मस्वरूप रुद्रके एक दिनका समय कहा गया है॥४४॥

भवोद्भवस्तपश्चैव भव्यो रम्भः क्रतुः पुनः । 
ऋतुर्वहिर्हव्यवाहः सावित्रः शुद्ध एव च ॥ ४५

उशिकः कुशिकश्चैव गान्धारो मुनिसत्तमाः । 
ऋषभश्च तथा षड्‌जो मज्जालीयश्च मध्यमः ।। ४६

वैराजो वै निषादश्च मुख्यो वै मेघवाहनः। 
पञ्चमश्चित्रकश्चैव आकृतिर्ज्ञान एव च ॥ ४७

मनः सुदर्शों बृहश्च तथा वै श्वेतलोहितः । 
रक्तश्च पीतवासाश्च असितः सर्वरूपकः ॥ ४८

एवं कल्पास्तु संख्याता ब्रह्मणोऽव्यक्तजन्मनः । 
कोटिकोटिसहस्त्राणि कल्पानां मुनिसत्तमाः ॥ ४९

गतानि तावच्छेषाणि अहर्निश्यानि वै पुनः।
परान्ते वै विकाराणि विकारं यान्ति विश्वतः ॥ ५०

विकारस्य शिवस्याज्ञावशेनैव तु संहतिः । 
संहते तु विकारे च प्रधाने चात्मनि स्थिते ॥ ५१

साधम्र्येणावतिष्ठेते प्रधानपुरुषावुभौ । 
गुणानाञ्चैव वैषम्ये विप्राः सृष्टिरिति स्मृता ॥ ५२

साम्ये लयो गुणानान्तु तयोहँतुर्महेश्वरः । 
लीलया देवदेवेन सर्गास्त्वीदृग्विधाः कृताः ॥ ५३

असंख्याताश्च सङ्क्षेपात् प्रधानादन्वधिष्ठितात् । 
असंख्याताश्च कल्पाख्या ह्यसंख्याताः पितामहाः ॥ ५४

हरयश्चाप्यसंख्यातास्त्वेक एव महेश्वरः।
प्रधानादिप्रवृत्तानि लीलया प्राकृतानि तु ॥ ५५

गुणात्मिका च तवृत्तिस्तस्य देवस्य वै त्रिधा। 
अप्राकृतस्य तस्यादिर्मध्यान्तं नास्ति चात्मनः ।॥ ५६

पितामहस्याथ परः परार्धद्वयसम्मितः । 
दिवा सृष्टं तु यत्सर्व निशि नश्यति चास्य तत् ॥ ५७

भूर्भुवः स्वर्महस्तत्र नश्यते चोर्ध्वतो न च। 
रात्रौ चैकार्णवे ब्रह्मा नष्टे स्थावरजङ्गमे ॥ ५८

सुष्वापाम्भसि यस्तस्मान्नारायण इति स्मृतः । 
शर्वर्यन्ते प्रबुद्धो वै दृष्ट्वा शून्यं चराचरम् ॥ ५९

स्त्रष्टुं तदा मतिञ्चक्रे ब्रह्मा ब्रह्मविदां वरः। 
उदकैराप्लुतां क्ष्मां तां समादाय सनातनः ॥ ६०

पूर्ववत् स्थापयामास वाराहं रूपमास्थितः। 
नदीनदसमुद्रांश्च पूर्ववच्चाकरोत्प्रभुः ॥ ६१

कृत्वा धरां प्रयत्नेन निम्नोन्नतिविवर्जिताम्। 
धरायां सोऽचिनोत् सर्वान् गिरीन् दग्धान् पुराग्निना ॥ ६२

भूराद्यांश्चतुरो लोकान् कल्पयामास पूर्ववत् । 
स्त्रष्टुञ्च भगवान् चक्रे तदा स्रष्टा पुनर्मतिम् ॥ ६३

ब्रह्मा जी उसी जलराशि में शयन करते हैं; इसीलिये उन्हें नारायण कहा जाता है प्रलयकालीन रात के बीतने पर ब्रह्मवेत्ताओंमें श्रेष्ठ ब्रह्माजी उठे और चराचर जगत्‌को शून्य देखकर उन्होंने सृष्टि करनेका विचार किया  उन सनातन ब्रह्माने वाराहका रूप धारण करके जलमें डूबी हुई पृथ्वीको निकालकर उसे पुनः पूर्वकी भाँति स्थापित कर दिया और उसपर नदी, नद तथा समुद्रोंको उन प्रभुने पूर्वकी भाँति पुनः कर दिया ब्रह्माजी ने प्रयत्न पूर्वक पृथ्वी तल पर दबे हुए तथा उठे भागोंको ठीक करके उन्हें समतल किया और उन्होंने पूर्वकालमें अग्निसे दग्ध सभी पर्वतोंको धरापर पुनः पूर्ववत् बना दिया  इस प्रकार भगवान् ब्रह्माने जब भूः आदि चारों लोकोंकी पूर्वकी भाँति रचना कर ली, तब उन सृष्टिकर्तान पुनः सृष्टि करनेका विचार किया ॥ ६३ ॥

॥ इति श्रीलिङ्गमहापुराणे पूर्वभागे सृष्टिप्रारम्भवर्णनं नाम चतुर्थोऽध्यायः ॥ ४॥ 

॥ इस प्रकार श्रीलिङ्गमहापुराणके अन्तर्गत पूर्वभागमें 'सृष्टिप्रारम्भवर्णन' नामक चौथा अध्याय पूर्ण हुआ ॥४॥

श्री लिंग महापुराण पर अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न - अध्याय 4

श्री लिंग महापुराण, अध्याय 4 से उपलब्ध कराई गई सामग्री के आधार पर कुछ अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQs) यहां दिए गए हैं :
  1. महापुराण के अनुसार ब्रह्मा के दिन और रात की अवधि कितनी है?

    • उत्तर 1: ब्रह्मा का दिन संसार के निर्माण में लगा समय है और उनकी रात प्रलय या प्रलय की अवधि है। ब्रह्मा का एक दिन और एक रात मिलकर एक पूरा चक्र बनाते हैं जिसे "कल्प" कहते हैं।
  2. महापुराण में मानव वर्ष और दिव्य वर्ष के बीच क्या संबंध है?

    • उत्तर 2: महापुराण के अनुसार, दिव्य वर्षों की तुलना में मानव वर्ष काफी छोटे होते हैं। उदाहरण के लिए, 360 मानव महीने एक दिव्य वर्ष के बराबर होते हैं, और मनुष्य के 30 वर्ष एक दिव्य महीने के बराबर होते हैं।
  3. महापुराण में चार युगों के लिए समय का विभाजन कैसे किया गया है?

    • उत्तर 3: महापुराण में कहा गया है कि चार युगों (सत्य युग, त्रेता युग, द्वापर युग और कलियुग) की निश्चित अवधि होती है। सत्य युग 1,728,000 मानव वर्ष, त्रेता युग 1,296,000 वर्ष, द्वापर युग 864,000 वर्ष और कलियुग 432,000 वर्ष तक चलता है। चारों युगों की कुल अवधि 4,320,000 वर्ष है।
  4. मन्वन्तर की अवधि कितनी होती है?

    • उत्तर 4: महापुराण के अनुसार, एक मन्वन्तर 71 चतुर्युगों का होता है, जो लगभग 306,720,000 मानव वर्ष है।
  5. महापुराण में कल्प का क्या महत्व है?

    • उत्तर 5: महापुराण के अनुसार, एक कल्प ब्रह्मा के दिन और रात के एक पूरे चक्र की अवधि है। यह 1,000 चतुर्युग या 4,320,000,000 मानव वर्षों के बराबर है।
  6. प्रत्येक कल्प के अंत में क्या होता है?

    • उत्तर 6: प्रत्येक कल्प के अंत में ब्रह्मा की रचनाएँ प्रलय (विलय) से गुजरती हैं, और सभी जीव अप्रकट क्षमता की स्थिति में लौट जाते हैं, तथा सृष्टि के अगले चक्र की प्रतीक्षा करते हैं।
  7. महापुराण में सूर्य के परिवर्तन का वर्णन किस प्रकार किया गया है?

    • उत्तर 7: महापुराण में सूर्य के दक्षिणी संक्रांति (दक्षिणायन) से उत्तरी संक्रांति (उत्तरायण) में संक्रमण को देवताओं के लिए दिन और रात का विभाजन बताया गया है। जिस समय सूर्य उत्तर की ओर बढ़ता है, उसे देवताओं का दिन माना जाता है, और दक्षिण की ओर गति को उनकी रात माना जाता है।
  8. एक कल्प में देवताओं और दिव्य प्राणियों की संख्या का क्या महत्व है?

    • उत्तर 8: महापुराण के अनुसार, देवताओं और दिव्य प्राणियों की संख्या अलग-अलग मन्वंतरों में अलग-अलग होती है, प्रत्येक कल्प के दौरान दिव्य प्राणियों की एक निश्चित संख्या होती है। एक कल्प के अंत के बाद, ब्रह्मांडीय क्रम के अनुसार दिव्य प्राणियों की संख्या फिर से निर्धारित की जाती है।
  9. युगों के संदर्भ में "संध्यान्स" और "संध्यांश" की अवधारणा का क्या अर्थ है?

    • उत्तर 9: "संध्यांश" शब्द का तात्पर्य युगों के बीच संक्रमण काल ​​से है, और प्रत्येक युग के "संध्यांश" को वर्षों की उस अवधि के रूप में परिभाषित किया जाता है जो वास्तविक युग से छोटी होती है लेकिन युग चक्र का एक अभिन्न अंग बनती है।
  10. महापुराण में प्रलय के विभिन्न प्रकारों का वर्णन किस प्रकार किया गया है?

    • उत्तर 10: महापुराण में विभिन्न प्रकार के प्रलय का वर्णन किया गया है, जिनमें दैनिक प्रलय (नैमित्तिक प्रलय), कल्प का अंत (महा प्रलय) और ब्रह्मा के जीवन के अंत में अंतिम प्रलय (प्राकृतिक प्रलय) शामिल हैं।

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