लिंग पुराण : भगवान् शिव द्वारा भस्म, भस्मस्नान एवं शिव योगियों की महिमा का प्रतिपादन | Linga Purana: Lord Shiva's rendering of ashes, bathing in ashes and the glory of Shiva yogis
लिंग पुराण [ पूर्वभाग ] चौंतीसवाँ अध्याय
भगवान् शिव द्वारा भस्म, भस्म स्नान एवं शिव योगियों की महिमा का प्रतिपादन
श्रीभगवानुवाच
अग्निकार्य च यः कृत्वा करिष्यति त्रियायुषम्।
भस्मना मम वीर्येण मुच्यते सर्वकिल्बिषै:॥ ४
भासतेत्येव यद्धस्म शुभं भावयते च यत्।
भक्षणात्सर्वपापानां भस्मेति परिकीर्तितम्॥ ५
ऊष्मपा: पितरो ज्या देवा वै सोमसम्भवा:।
अग्नीषोमात्मक॑ सर्व जगत्स्थावरजड्रमम्॥ ६
अहमग्निर्महातेजा: सोमएचैषा महाम्बिका।
अहमग्निश्च सोमएच प्रकृत्या पुरुष: स्वयम्॥ ७
तस्माद्धस्म महाभागा मद्दीर्यमिति चोच्यते।
स्ववीर्य वपुषा चैव धारयामीति वै स्थिति:॥ ८
तदाप्रभति लोकेषु रक्षार्थभशुभेषु च।
भस्मना क्रियते रक्षा सूतिकानां गृहेषु च॥ ९
भस्मस्नानविशुद्धात्मा जितक्रोधो जितेन्द्रिय: ।
मत्समीपं॑ समागम्य न भूयो विनिवर्तते॥ १०
भस्मस्नानेन दिग्धाड़ो ध्यायते मनसा भवम्।
यद्यकार्यसहस्त्राणि कृत्वा यः सनाति भस्मना॥ १६
तत्सर्व दहते भस्म यथाग्निस्तेजसा वनम्।
तस्माद्यलपरो भूत्वा त्रिकालमपि यः: सदा॥ १७
भस्मना कुरुते स्नानं गाणपत्यं स गच्छति।
समाहत्य क्रतून् सर्वान् गृहीत्वा ब्रतमुत्तमम्॥ १८
ध्यायन्ति ये महादेवं लीलासद्धावभाविता: ।
उत्तरेणार्यपन्धानं ते3मृतत्वमवाप्नुयु: ॥ १९
दक्षिणेन च पन्थानं ये श्मशानानि भेजिरे।
अणिमा गरिमा चेव लघिमा प्राप्तरिव च॥ २०
इच्छाकामावसायित्वं तथा प्राकाम्यमेव च।
ईशित्वं च वशित्वं च अमरत्वं च ते गता:॥ २९
इन्द्रादयस्तथा देवा: कामिकत्रतमास्थिता:।
ऐश्वर्य परमं प्राप्य सर्वे प्रथिततेजस:॥ २२
व्यपगतमदमोहमुक्तरागस्तमरजदोषविवर्जितस्वभाव: ।
परिभवमिदमुत्तमं विदित्वा पशुपतियोगपरो भवेत्सदेव॥ २३
इमं पाशुपतं ध्यायन् सर्वपापप्रणाशनम्।
यः पठेच्च शुचिर्भूत्वा श्रद्दधानो जितेन्द्रिय: ॥ २४
सर्वपापविशुद्धात्मा रुद्रलोकं स गच्छति।
ते सर्वे मुनयः श्रुत्वा वसिष्ठाद्या द्विजोत्तमा:॥ २५
भस्मपाण्डुरदिग्धाड्रा बभूवुर्विगतस्पृहा:।
रुद्रलोकाय कल्पान्ते संस्थिता: शिवतेजसा॥ २६
तस्मान्न निन्द्या: पूज्याएच विकृता मलिना अपि।
रूपान्विताश्च विप्रेन्द्राः सदा योगीन्द्रशड्डया ॥ २७
बहुना कि प्रलापेन भवभक्ता द्विजोत्तमा:।
सम्पूज्या: सर्वयत्नेन शिववन्नात्र संशय:॥ २८
मलिनाश्चेव विप्रेन्द्रा भवभक्ता दूढब्रता:।
दधीचस्तु यथा देवदेवं जित्वा व्यवस्थित:॥ २९
नारायणं तथा लोके रुद्रभक्त्या न संशय: ।
तस्मात्सर्वप्रयत्नेन भस्मदिग्धतनूरुहा: ॥ ३०
जटिनो मुण्डिनएचेव नग्ना नानाप्रकारिण:।
सम्पूज्या: शिववन्नित्यं मनसा कर्मणा गिरा॥ ३१
॥ श्रीलिड्गरमहापुराणे पूर्वभागे योगिप्रशंसा नाम चतुस्त्रिशोउध्याय: ॥ ३४ ॥
॥ इस प्रकार श्रीलिड्रमहापुराणके अन्तर्गत पूर्वभायमें 'योगिप्रशंसा ' नामक चौतीसवाँ अध्याय पूर्ण हुआ॥ ३४॥
FAQs :- भगवान् शिव द्वारा भस्म, भस्म स्नान एवं शिव योगियों की महिमा का प्रतिपादन
प्रश्न 1: भस्म का महत्व क्या है, और यह कैसे पवित्र मानी जाती है?
उत्तर: भगवान् शिव के अनुसार, भस्म सम्पूर्ण जगत के पवित्रता का प्रतीक है। यह अग्नि द्वारा स्थावर-जंगम जगत को भस्मीभूत कर शुद्ध करती है। इसके उपयोग से समस्त पाप नष्ट हो जाते हैं और इसे ओजस्वी एवं कल्याणकारी माना गया है।
प्रश्न 2: भस्म स्नान का आध्यात्मिक महत्व क्या है?
उत्तर: भस्म स्नान करने वाला व्यक्ति पवित्र अंतःकरण वाला बन जाता है। ऐसे व्यक्ति के क्रोध और इंद्रियां वश में रहती हैं। भगवान शिव का सान्निध्य प्राप्त कर वह पुनर्जन्म से मुक्त हो जाता है।
प्रश्न 3: पाशुपत योग का उद्देश्य और महत्व क्या है?
उत्तर: पाशुपत योग का उद्देश्य आत्मा को समस्त सांसारिक विकारों से मुक्त करना है। यह सभी पापों का नाश करता है और रुद्रलोक की प्राप्ति कराता है। इसे शिव द्वारा निर्मित उत्तम योग बताया गया है।
प्रश्न 4: भगवान शिव ने भस्म के माध्यम से कौन-कौन से सिद्धांत बताए?
उत्तर: भगवान शिव ने बताया कि भस्म केवल शरीर को शुद्ध करने का माध्यम नहीं, बल्कि यह आध्यात्मिक शुद्धि का भी प्रतीक है। यह सभी विकारों को समाप्त कर जीवन को शांति और मोक्ष की ओर ले जाती है।
प्रश्न 5: भस्म स्नान का उपयोग कैसे किया जाता है?
उत्तर: भस्म को पूरे शरीर पर लगाकर मन से भगवान शिव का ध्यान करना चाहिए। यह सभी पापों को उसी प्रकार नष्ट करता है, जैसे अग्नि वन को जला देती है।
प्रश्न 6: भगवान शिव ने योगियों और साधकों के लिए क्या संदेश दिया?
उत्तर: भगवान शिव ने कहा कि योगियों और साधकों को इंद्रियों पर विजय प्राप्त करनी चाहिए, क्रोध को जीतना चाहिए, और पाशुपत योग का पालन करना चाहिए। ऐसा करने वाले व्यक्ति अमरत्व, सिद्धियों और रुद्रलोक की प्राप्ति करते हैं।
प्रश्न 7: शिव के अनुसार, वस्त्र और नग्नता का क्या आध्यात्मिक अर्थ है?
उत्तर: भगवान शिव के अनुसार, वस्त्र का वास्तविक महत्व नहीं है। इंद्रियों पर विजय प्राप्त करने वाले नग्न रहते हुए भी पूर्णतः आवृत्त माने जाते हैं, जबकि इंद्रिय-विजय से रहित व्यक्ति वस्त्र धारण करने के बावजूद नग्न माने जाते हैं।
प्रश्न 8: भगवान शिव ने मुनियों और देवताओं के बारे में क्या कहा?
उत्तर: भगवान शिव ने कहा कि मुनि और देवता नग्न अवस्था में उत्पन्न होते हैं। वे भस्म का उपयोग कर अपने शरीर और मन को पवित्र करते हैं और अंततः शिवलोक प्राप्त करते हैं।
प्रश्न 9: भस्म से जुड़ी धार्मिक परंपराओं का क्या उद्देश्य है?
उत्तर: भस्म से धार्मिक परंपराएं, जैसे सूतिकागृह की रक्षा और त्रिकाल स्नान, भौतिक एवं आध्यात्मिक पवित्रता के लिए की जाती हैं। यह अमंगलों को दूर कर कल्याणकारी ऊर्जा प्रदान करती हैं।
प्रश्न 10: भस्म का उपयोग जीवन में क्या बदलाव लाता है?
उत्तर: भस्म का उपयोग करने से व्यक्ति का मन और आत्मा शुद्ध होती है। वह संसार के बंधनों से मुक्त होकर शिवत्व प्राप्त करता है, जो मोक्ष का मार्ग है।
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