लिंग पुराण [ पूर्वभाग ] छियालीसवाँ अध्याय
भुवनसन्निवेश में सात द्वीपों तथा सात समुद्रों का वर्णन एवं सर्वत्र भगवान् शिव की व्यापकता, स्वायम्भुव मन्वन्तर के प्रियव्रतादि राजवंशों का वर्णन, जम्बूद्वीप, कुशद्वीप तथा क्रोंचद्रीप के राजाओं का वर्णन
सृत उवाच
सप्तद्वीपा तथा पृथ्वी नदीपर्वतसड्डूला ।
समुद्रे: सप्तभिश्चेव सर्वतः समलड्कृता॥ ९
जम्बू: प्लक्ष: शाल्मलिएच कुश: क्रौज्चस्तथेव च।
शाकः पुष्करनामा च द्वीपास्त्वभ्यन्तरे क्रमात्॥ २
सूतजी बोले-- [हे ऋषियो !] पृथ्वी सात द्वीपोंसे युक्त है, नदियों तथा पर्वतोंसे भरी पड़ी है और सात समुद्रोंस सभी ओरसे भलीभाँति अलंकृत है जम्बू, प्लक्ष, शाल्मलि, कुश, क्रोॉंच, शाक तथा पुष्कर नामवाले--ये [सात] द्वीप क्रमसे इसके भीतर अवस्थित हैं ॥ १ - २॥
सप्तद्वीपेषु सर्वेषु साम्ब: सर्वगणैर्वृत:।
नानावेषधरो भूत्वा सान्निध्यं कुरुते हरः॥ ३
क्षारोदेक्षुसोदश्च॒ सुरोदश्च॒ घृतोदधिः।
दध्यर्णवश्च क्षीरोदः स्वादूदश्चाप्यनुक्रमात् ॥
समुद्रेष्विह सर्वेषु सर्वदा सगणः शिवः।
जलरूपी भव: श्रीमान् क्रीडते चोर्मिबाहुभि: ॥ ५
क्षीरार्णवामृतमिव सदा क्षीरार्णवे हरिः।
शेते शिवज्ञानधिया साक्षाद्वै योगनिद्रया॥ ६
यदा प्रबुद्धो भगवान् प्रबुद्धमखिल जगत्।
यदा सुप्तस्तदा सुप्तं तन्मयं॑ च चराचरम्।।
तेनैव सृष्टमखिलं धूत॑ रक्षितमेव च।
संहतं देवदेवस्थ . प्रसादात्परमेष्ठिन:॥ ८
सुषेणा इति विख्याता यजन्ते पुरुषर्षभम।
अनिरुद्ध॑ मुनिश्रेष्ठा: शद्डचक्रगदाधरम॥ ९
इन समस्त सातों द्वीपोंमें उमासहित भगवान् शिव सभी गणोंसे घिरे हुए तथा अनेक प्रकारके वेष धारण करके निवास करते हैं क्षारोद, इशक्षुससोद, सुरोद, घृतोदधि, दध्यर्णव, क्षीरोद, स्वादूद--ये [सात समुद्र] क्रमसे हैं। इन सभी समुद्रोंमें जलरूपी श्रीसम्पन्न भगवान् शिव अपने गणोंके साथ लहररूपी भुजाओंसे क्रीड़ा करते हैं क्षीरसागर अमृतके समान है। भगवान् विष्णु उस क्षीरसागरमें शिवज्ञानका चिन्तन करते हुए साक्षात् योगनिद्राके साथ सदा शयन करते हैं । जब भगवान् जागते हैं, तब सम्पूर्ण जगत् जागता है और जब वे सोते हैं, तब यह चराचर जगत् उनमें विलीन होकर सोता है परमेष्ठी देवदेव शिवकी कृपासे उन्हीं विष्णुके द्वारा सम्पूर्ण जगत्का सृजन, धारण, रक्षण तथा संहार किया जाता है हे मुनिश्रेष्ठो! सुषेणा--इस नामसे प्रसिद्ध लोग शंख, चक्र तथा गदा धारण करनेवाले पुरुषश्रेष्ठ [भगवान्] अनिरुद्धका पूजन करते हैं॥३ - ९॥
ये चानिरुद्धं पुरुषं ध्यायन्त्यात्मविदां वरा:।
नारायणसमाः सर्वे सर्वसम्पत्समन्विता:॥ १०
सनन्दनएच भगवान् सनकश्च सनातनः।
बालखिल्याएच सिद्धाश्च मित्रावकणकौ तथा ॥ ११
यजन्ति सततं तत्र विश्वस्य प्रभवं हरिम्।
सप्तद्वीपेषु तिष्ठन्ति नानाश्रृड्रा: महोदया:॥ १२
आसमुद्रायता: केचिद् गिरयो गह्दरैस्तथा।
धराया: पतयश्चासन् बहवः कालगौरवातू॥ १३
सामर्थ्यात्परमेशाना: क्रौज्चारेजनकात्प्रभो:।
मन्वन्तरेषु._ सर्वेषु. अतीतानागतेष्विह॥ १४
प्रवक्ष्यामि धरेशान् वो वक्ष्ये स्वायम्भुवेउन्तरे ।
मन्वन्तरेषु सर्वेषु अतीतानागतेषु च॥१५
तुल्याभिमानिनएचेव सर्वे तुल्यप्रयोजना:।
स्वायम्भुवस्य च मनो: पौत्रास्त्वासन्महाबला: ॥ १६
प्रियत्रतात्मजा वीरास्ते दशेह प्रकीर्तिता:।
आग्नीध्रएचाग्निबाहुश्च मेधा मेधातिथिर्वसु: ॥ १७
ज्योतिष्मान् द्युतिमान् हव्य: सवन: पुत्र एव च।
प्रियत्रतोभ्यषिज्चत्तान् सप्त सप्तसु पार्थिवान्॥ १८
जम्बूद्वीपेश्वरं चक्रे आग्नीश्च॑ं सुमहाबलम्।
प्लक्षद्वीपेश्वरश्चापि तेन मेधातिथि: कृतः॥ १९
शाल्मलेश्च वपुष्मन्तं राजानमभिषिक्तवान्।
ज्योतिष्मन्तं कुशद्वीपे राजानं कृतवान्नृप:॥ २०
द्तिमन्तं च राजानं क्रौज्चद्वीपे समादिशत्।
शाकद्वीपेश्वर॑ चापि हव्यं चक्रे प्रियत्रतः॥ २९
हे आत्मज्ञानियोंमें श्रेष्ठ [मुनियो !]! जो लोग अनिरुद्ध पुरुषका ध्यान करते हैं, वे सब नारायणतुल्य है और सभी सम्पत्तियोंसे सम्पन्न रहते हैं। भगवान् सनन्दन, सनक, सनातन, बालखिल्यगण, सिद्धगण एवं मित्रावरुण वहाँ विश्वकी उत्पत्ति करनेवाले प्रभु श्रीहरिकी सदा पूजा करते हैं सातों द्वीपोंमें अनेक शिखरोंवाले ऊँचे-ऊँचे पर्वत हैं। कुछ पर्वत गुफाओंसहित समुद्रतक फैले हुए हैं। काल-गौरवसे वहाँ बहुत-से भूपति (राजा) हुए, जो क्राँचके शत्रु कार्तिकेयके पिता प्रभु शिवकी कृपासे परभ ऐश्वयंसे सम्पन्न थे [हे ऋषियो!] अब मैं स्वायम्भुव मन्वन्तरसे प्रारम्भ करके भूत तथा भविष्यकालके सभी मन्वन्तरोंके राजाओंका वर्णन आपलोगोंसे करूँगा। भूत एवं भविष्यकालके सभी मन्वन्तरोंमें सभी राजा तुल्य अभिमानवाले तथा तुल्य प्रयोजनवाले थे। स्वायम्भुव मनुके [सभी] पौत्र महाबली थे। प्रियव्रतके दस वीर पुत्र थे। वे इस प्रकार कहे गये हैं- आग्नीध्र, अग्निबाहु, मेधा, मेधातिथि, वसु, ज्योतिष्मान्, द्युतिमान्, हव्य, सवन और पुत्र प्रियव्रतने उनमेंसे सात पुत्रों को सात द्वीपोंमें राजाके रूपमें अभिषिक्त कर दिया। उन्होंने महान् बलशाली आग्नीध्रको जम्बूद्वीपका राजा बनाया। उनके द्वारा मेधातिथि प्लक्षद्वीपके राजा बनाये गये। उन राजा प्रियव्रतने वपुष्मान्को शाल्मलिद्वीपके राजाके रूपमें अभिषिक्त किया और ज्योतिष्मान्को कुशद्वीपका राजा बनाया। प्रियव्रतने द्युतिमान्को क्रौंचद्वीपका राजा बनाया, हव्यको शाकद्वीपका राजा बनाया और हे सुव्रतो । सवनको पुष्करद्वीपका राजा बनाया ॥ १०-२१॥
पुष्कराधिपतिं चक्रे सबनं चापि सुद्रता:।
पुष्कर सबनस्थापि महाबीतः सुतोभवत्॥ २२
धातकी चेव द्वावेतौ पुत्रौ पुत्रवतां वरौ।
महावीतं स्मृतं वर्ष तस्य नाम्ना महात्मन:॥ २३
नाम्ता तु धातकेश्चेब धातकीखण्डमुच्यते।
हव्योप्यजनयत्पुत्राउ्छाकद्दी पेश्वर: प्रभु: ॥ २४
जलदं च कुमार च सुकुमारं मणीचकम्।
कुसुमोत्तरमोदाकी सप्तमस्तु महाद्वुम:॥ २५
जलदं॑ जलदस्याथ वर्ष प्रथममुच्यते।
कुमारस्य तु कौमारं द्वितीय॑ परिकीर्तितम्॥ २६
सुकुमारं तृतीयं तु सुकुमारस्य कीर्यते।
मणीचकं चतुर्थ तु माणीचकमिहोच्यते॥ २७
कुसुमोत्तरस्य वे वर्ष पञ्चमं कुसुमोत्तरम्।
मोदकं चापि मोदाकेर्वर्ष षष्ठं प्रकीर्तितम्॥ २८
महाह्रुमस्थ नाम्ना तु सप्तमं तन्महाद्रुमम्।
तेषां तु नामभिस्तानि सप्त वर्षाणि तत्र बै॥ २९
पुष्करद्वीप में सवनके यहाँ महावीत तथा धातकी नामक पुत्र हुए। ये दोनों पुत्र पुत्रवानोंमें श्रेष्ठ हुए। उस महात्मा महावीतके नामसे महावीतवर्ष कहा गया है और धातकीके नामसे धातकीखण्ड कहा गया है। शाकद्वीप के शक्तिशाली राजा हव्यने भी जलद, कुमार, सुकुमार, मणिचक्र, कुसुमोत्तर मोदाकी और सातवें महाद्रुम--इन पुत्रोंकोी उत्पन किया। जलदके नामसे जलद नामक प्रथम वर्ष कहा जाता है। कुमारके नामसे कौमार नामक दूसरा वर्ष कहा गया है। सुकुमारके नामसे सुकुमार नामक तीसरा वर्ष कहा जाता है। मणीचकके नामसे माणीचक नामक चौथा वर्ष कहा जाता है। कुसुमोत्तरके नामसे कुसुमोत्तर नामक पाँचवाँ वर्ष एवं मोदाकीके नामसे मोदक नामक छठा वर्ष कहा गया है। महाद्रुमके नामसे सातवाँ महाद्रुम नामक वर्ष कहा गया है। इस प्रकार उनके नामोंसे वे सात वर्ष हैं॥२२--२९॥
क्रौज्चद्वीपेश्वरस्थापि पुत्रा झ्युतिमतस्तु वै।
कुशलो मनुगश्चोष्ण: पीवरए्चान्धकारक: ॥ ३०
मुनिश्च दुन्दुभिश्चेव सुता द्युतिमतस्तु वै।
तेषां स्वनामभिर्देशा: क्रौज्चद्वीपा श्रया: शुभा: ॥ ३१
कुशलदेश: कुशलो मनुगस्य मनोउनुगः।
उष्णस्योष्ण: स्मृतो देश: पीवर: पीवरस्य च॥ ३२
अन्धकारस्य कथितो देशो नाम्नान्थकारक:
मुनेर्देशो मुनि: प्रोक्तो दुन्दुभे्दुन्दुभिः स्मृत:॥ ३३
एते जनपदाः सप्त क्रौज्चद्वीपेषु भास्वरा:।
ज्योतिष्मन्त: कुशद्वीपे सप्त चासन्महोजस: ॥ ३४
उद्धिदो वेणुमांश्चैव द्वैरथो लवणो धृति:।
षष्ठ: प्रभाकरएचापि सप्तम: कपिल: स्मृत: ॥ ३५
उद्धिदं प्रथमं वर्ष द्वितीयं वेणुमण्डलम्।
तृतीय द्वैर्थ॑ चैब चतुर्थ लवण स्मृतम्॥ ३६
पञ्चमं धृतिमत्षष्ठ_ प्रभाकरमनुत्तमम् ।
सप्तमं कपिलं नाम कपिलस्य प्रकीर्तितम्॥ ३७
शाल्मलस्येश्वरा: सप्त सुतास्ते वे वपुष्मतः।
श्वेतश्च हरितश्चैव जीमूतो रोहितस्तथा॥ ३८
वैद्यतो मानसएचैव सुप्रभ: सप्तमस्तथा।
श्वेतस्य देश: शवेतस्तु हरितस्य च हारितः॥ ३९
जीमूतस्य च जीमूतो रोहितस्थ च रोहितः।
वैद्युतो वैद्युतस्थापि मानसस्य च मानस: ॥ ४०
क्रॉंचद्वीपके राजा द्युतिमानके भी कुशल, मनुग, उष्ण, पीवर, अन्धकार, मुनि और दुन्दुभि-ये पुत्र उत्पन्न हुए। जो झुतिमानके पुत्र थे, उन्हींके अपनेअपने नामोंसे क्रौंचद्वीपमें स्थित शुभ देश प्रसिद्ध हुए कुशलके देशको कुशल, मनुगके देशको मनोनुग, उष्णके देशको उष्ण और पीवरके देशको पीवर कहा गया है। अन्धकारके देशको उनके नामपर अन्धकार कहा गया है। मुनिके देशको मुनि कहा गया है और दुन्दुभिके देशको दुन्दुभि कहा गया है। क्रौंचद्वीपमें ये सात प्रकाशमान जनपद (देश) हैं कुशद्वीपके राजा ज्योतिष्मानके सात महापराक्रमी पुत्र हुए। वे उद्धिद, वेणुमान्, द्वरथ, लवण, धृति, छठें प्रभाकर और सातवें कपिल कहे गये हैं। [उद्भिदके नामसे] पहला वर्ष उद्भिद, [वेणुमानके नामसे ] दूसरा वर्ष वेणुमण्डल, [द्वैरथके नामसे ] तीसरा वर्ष द्वैरथ और [लवणके नामसे ] चौथा वर्ष लवण कहा गया है। इसी प्रकार [धृतिके नामसे] पाँचवाँ वर्ष धृति, [प्रभाकरके नामसे] छठा उत्तम वर्ष प्रभाकर और कपिलके नामसे सातवाँ वर्ष कपिल कहा गया है शाल्मलिद्वीपके राजा वपुष्मानके भी सात पुत्र हुए। वे [पृथक्-पृथक् देशोंके] राजा बने। श्वेत, हरित, जीमूत, रोहित, वैद्युत। मानस और सातवाँ सुप्रभ--ये पुत्रोंके नाम हैं। श्वेतके देशको श्वेत, हरितके देशको हारित, जीमूतके देशको जीमूत, रोहितके देशको बैद्युतके देशको वैद्युत, मानसके देशको मानस और सुप्रभके देशको सुप्रभ कहा गया है। इस राजाओंके नामसे सात देश हैं॥ ३०--४० ॥
सुप्रभ: सुप्रभस्यापि सप्त वे देशलाउ्छका:।
प्लक्षद्वीपे तु वक्ष्यामि जम्बूद्वीपादनन्तरम्॥ ४१
सप्त मेधातिथेः पुत्राः प्लक्षद्वीपेश्वरा: नृपा:।
ज्येष्ठ: शान्तभयस्तेषां सप्तवर्षाणि तानि वै॥ ४२
तस्माच्छान्तभयाच्चैव शिशिरस्तु सुखोदय: |
आनन्दश्च शिवश्चेव क्षेमकश्च ध्रुवस्तथा ॥ ४३
तानि तेषां तु नामानि सप्तवर्षाणि भागशः।
निवेशितानि तैस्तानि पूर्व स्वायम्भुवेउन्तरे॥ ४४
मेधातिथेस्तु पुत्रैस्ते: प्लक्षद्वीपनिवासिभि:।
वर्णाश्रमाचारयुता: प्रजास्तत्र निवेशिता:॥ ४५
प्लक्षद्वीपादिवर्षेषु शाकद्दवीपान्तिकेषु वे।
ज्यः पञ्चसु धर्मों वै वर्णाश्रमविभागश: ॥ ४६
सुखमायु: स्वरूपं च बल धर्मों द्विजोत्तमा:।
पजञ्चस्वेतेषु द्वीपेषु सर्वसाधारणं स्मृतम्॥ ४७
रुद्रार्चरता नित्यं महेश्वरपरायणा:।
अन्ये चर पुष्करद्वीपे प्रजाताशच प्रजेश्वरा: ॥ ४८
प्रजापतेश्च॒रुद्रस्थ भावामृतसुखोत्कटा: ॥ ४९
अब मैं जम्बूद्वीपकफे बाहर स्थित प्लक्षद्वीपक वर्णन करूँगा। प्लक्षद्वीपके राजा मेधातिथि के सात पुत थे, वे सब प्लक्षद्वीपमें [अलग-अलग देशोंके] शासक नरेश हुए। उनमें शान्तभय ज्येष्ठ थे। उस द्वीपमें सात देश हैं। उस शान्तभयके बाद शिशिर, सुखोदय, आनन्द शिव, क्षेमक और ध्रुव-ये अन्य पुत्रोंके नाम थे। स्वायम्भुव मन्वन्तरमें उनके नामोंसे ट्वीपके भागानुसाए सात वर्ष (देश) बसाये गये मेधातिथिके प्लक्षद्वीपनिवासी उन पुत्रोंद्वारा वर्णाश्रमधर्मसे सम्पन्न प्रजाएँ वहाँ बसायी गयीं। प्लक्षद्वीप तथा शाकद्ठदीप आदि पाँचों द्वीपोंमें वर्ण एवं आश्रमके धर्मोंका सम्यक् पालन होता था। हे श्रेष्ठ द्विजो ! इन पाँचों द्वीपोंमें सुख, आयु, स्वरूप, बल तथा धर्म सबके लिये समान बताया गया है। सभी लोग सदा रुद्रके अर्चनमें लीन रहते हैं तथा महेश्वरमें भक्ति रखते हैं। पुष्कर-द्वीपमें अन्य जो प्रजाएँ एवं राजा हैं, वे सब प्रजापालक रुद्रके श्रद्धारूपी अमृतपानके सुखकी प्रबल इच्छा रखते हैं ॥ ४१ --४९॥
॥ श्रीलिंगमहापुराणे पूर्वभागे भुवनको्ञे द्वीपद्गीपेशवरकथनं नाम पट्चत्वारिशोध्याय: ॥ ४६ ॥
॥ इस प्रकार श्रीलिंगमहाएराणके अन्तर्गत पूर्वभायमें ' भुवनकोश में द्वीपद्दी पेश्वरकथन ' नामक छियालीसवाँ अध्याय पूर्ण हुआ॥ ४६ ॥
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