लिंग पुराण : भगवान्‌ रुद्रके विराट स्वरूप तथा सात पाताललोकोंका वर्णन | Linga Purana: Description of the huge form of Lord Rudra and the seven underworlds

लिंग पुराण [ पूर्वभाग ] पैंतालीसवाँ अध्याय

भगवान्‌ रुद्र के विराट स्वरूप तथा सात पाताललोकों का वर्णन

ऋषय ऊचु:

सूत सुव्यक्तमखिलं कथितं शड्भूरस्य तु। 
सर्वात्मभावं॑ रुद्रस्यस्वरूपं वक्तुमहसि॥ १

ऋषिगण बोले--हे सूतजी! आपने शंकरजीके विषयमें सब कुछ स्पष्ट रूपसे कह दिया, अब आप रुद्रके सर्वात्मभाव तथा स्वरूप को बताने की कृपा कीजिये॥ १॥ 

सूत उवाच

भूर्भुव: स्वर्महश्चैव जन: साक्षात्तपस्तथा। 
सत्यलोकश्च पातालं॑ नरकार्णवकोटय: ॥ २

तारकाग्रहसोमार्का ध्रुव: सप्तर्षयस्तथा। 
वैमानिकास्तथान्ये च तिष्ठन्त्यस्य प्रसादतः॥ ३

अनेन निर्मितास्त्वेव॑ तदात्मानो द्विजर्षभा:। 
समष्टिरूप: सर्वात्मा संस्थितः सर्वदा शिव: ॥ ४

सूतजी बोले--[ हे ऋषियो।] भू:, भुव:, स्व:, मह:, जन:, तप:, सत्य--ये लोक, पाताल, करोड़ों नरक-सागर, तारागण, ग्रहगण, चन्द्र, सूर्य, ध्रुव, सप्तर्षिगण, वैमानिक देवतागण तथा अन्य सभी उन्हीं शिवकी कृपासे प्रतिष्ठित हैं इन्हींके द्वारा ये सब बनाये गये हैं। हे श्रेष्ठ द्विजो ! ये सब उन्हींके आत्मस्वरूप हैं। वे सर्वात्मा शिव सभीमें सर्वदा समष्टिरूपसे स्थित हैं ॥ २ - ४॥

सर्वात्मानं॑ महात्मानं महादेव महेश्वरम्‌। 
न विजानन्ति सम्मूढा मायया तस्य मोहिता:॥ ५

तस्य देवस्य रुद्रस्थ शरीरं वे जगतल्रयम्‌॥
तस्मात्प्रणम्य तं वक्ष्ये जगतां निर्णय शुभम्‌॥ ६ 

उन्हींकी मायासे मोहित होकर अज्ञानी लोग सर्वात्मरूप, महात्मा, महादेव तथा महेश्वरको नहीं जानते हैं। उन भगवान्‌ रुद्रका शरीर ही तीनों लोक है, अतः उन्हें प्रणाम करके मैं जगत्‌के शुभ विस्तारका  वर्णन करूँगा॥ ५-६

पुरा वः कथितं सर्व मयाण्डस्य यथा कृतिः । 
भुवनानां स्वरूपं च ब्रह्माण्डे कथयाम्यहम्‌॥ ७

थिवी चान्तरिक्षं च स्वर्महर्जज एवं च। 
तप: सत्यं च सप्तैते लोकास्त्वण्डोद्धवा: शुभा:॥ ८

अधस्तादत्र चैतेषां द्विजाः सप्त तलानि तु। 
महातलादयस्तेषां अधस्ताननरकाः क्रमात्‌॥ ९

महातलं॑ हेमतलं सर्वरलोपशोभितम्‌।
प्रासादैशच॒विचित्रैएच॒भवस्यायतनैस्तथा ॥ १०

अनन्तेन च संयुक्त मुचुकुन्दे धीमता। 
नपेण बलिना चैव पातालस्वर्गवासिना॥ ११

शैलं रसातलं विप्रा: शार्कर॑ हि तलातलम्‌।
पीत॑ सुतलमित्युक्ते वितलं विद्वुमप्रभम्‌॥ १२

सितं हि अतलं तच्च तलं यच्च सितेतरम्‌। 
क्ष्मायास्तु यावद्विस्तारो ह्मथस्तेषां च सुत्रता: ॥ १३

तलानां चैव सर्वेषां तावत्संख्या समाहिता। 
सहस्रयोजनं॑ व्योम दशसाहसत्रमेव च॥ १४

लक्ष॑ सप्तसहस्त्रं हि तलानां सघनस्य तु। 
व्योम्न: प्रमाणं मूलं तु त्रिंशत्साहस्नकेण तु॥ १५

पहले जैसा मैंने आपलोगोंसे कहा है-- अण्ड आकार और ब्रह्माण्ड तथा भुवनोंके स्वरूपको बता रह हूँ। पृथ्वी, अन्तरिक्ष, सस्‍व:, मह:, जन:, तप:, सत्य. ये सात शुभ लोक अण्डसे प्रादुर्भूत हुए हैं। हे ब्राह्मणे। उनके नीचे महातल आदि सात तल हैं। उनके भी नीचे क्रमसे नरक स्थित हैं  महातल स्वर्णका बना हुआ है और यह सभी रत्नोंसे सुशोभित है। यह अद्भुत प्रासादों तथा शिवक्के मन्दिरोंसे युक्त है। यह अनन्त (शेषनाग), बुद्धिमान्‌ मुचुकुन्द और पाताल तथा स्वर्गवासी राजा बलिसे युक्त है हे विप्रो! रसातल चट्टानोंसे युक्त है, तलातल बालुकामय है, सुतल पीले वर्णका कहा गया है और वितल विद्रुम (मूँगे)-की प्रभावाला है। अतल श्वेतवर्णका है और तल कालेवर्णका है। हे सुब्रतो! उन नीचेके तलोंका विस्तार पृथ्वीके समान है। सभी तलोंकी जो समाहित संख्या है, उन सभीके अन्तर्वर्ती आकाश ग्यारह हजार योजनके विस्तारवाले हैं। सभी तलोंके मेघाच्छादित अन्तरिक्षभागको तीस हजार योजनवाला माना गया है तथा इन सभी तलोंका भौगोलिक विस्तार एक लाख सात हजार योजन है॥ ७--१५॥

सुवर्णेन मुनिश्रेष्ठास्तथा वासुकिना शुभम्‌। 
रसातलमिति ख्यातं तथान्यैश्च निषेवितम्‌॥ १६

विरोचनहिरण्याक्षनरकादैश्च॒ सेवितम्‌। 
तलातलमिति ख्यातं सर्वशोभासमन्वितम्‌॥ १७

वैनावकादिभिश्चैव_ कालनेमिपुरोगमै:। 
पूर्वदेवे: समाकीर्ण सुतलं च तथापरै:॥ १८

वितलं दानवाद्यैश्च॒तारकाग्निमुखैस्तथा। 
महान्तकद्यैनागैश्च प्रह्मदेनासुरंण च॥ १९

अतलं चात्र विख्यातं कम्बलाश्वनिषेवितम्‌ ।
महाकुम्भेन वीरेण हयग्रीवेण धीमता॥ २०

शट्डुकर्णेन सम्भिन्‍न्न॑ तथा नमुचिपूर्वकैः। 
तथान्यर्विविधेवीरैस्तलं॑ चैब सुशोभितम्‌॥ २१

तलेषु तेषु सर्वेषु चाम्बया परमेश्वर: ।
स्कन्देन नन्दिना सार्थ गणपै: सर्वतो बवृत:॥ २२

तलानां चेव सर्वेषामूर्ध्वत: सप्त सत्तमा: ।
क्ष्मातलानि धरा चापि सप्तधा कथयामि व: ॥ २३

हे मुनिश्रेष्ठो! शुभ रसातल सुवर्ण, वासुकि तथा अन्य नागोंसे युक्त कहा गया है। सब प्रकारकी शोभासे समन्वित तलातल विरोचन, हिरण्याक्ष, नरक आदिसे सेवित है सुतल वैनावक आदि देवों तथा कालनेमि आदिं अन्य प्रमुख दैत्योंसे परिपूरित है। वितल तारकार्गि आदि प्रधान दानवों, महान्तक आदि नागों तथा असुए प्रह्दादसे समन्वित है अतल कम्बल तथा अश्वतर, वीर महाकुम्भ और बुद्धिमान्‌ हयग्रीवके अधिकारमें कहा गया है। इसी प्रकार शोभा सम्पन्न तल शंकुकर्ण, नमुचि आदि विविध वीरोंसे सुशोभित है उन सभी तलोंमें परमेश्वर शिव अम्बा (पार्वती), स्कन्द (कार्तिकेय), नन्‍दी तथा अन्य गणेश्वरोंके द्वारा सभी ओरसे घिरे हुए विद्यमान रहते हैं। हे श्रेष्ठ मुनियो ! इन सभी तलोंके ऊपर सात पृथ्वीतल हैं, पृथ्वी भी सात खण्डोंमें विभक्त है; में आपलोगोंसे इसका वर्णन कर रहा हूँ॥ १६ -२३ ॥

॥  श्रीलिंगमहापुराणे पूर्वभागे पातालवर्णन॑ नाम पञ्चचत्वारिंशोउध्याय: ॥ ४५ ॥

॥ इस प्रकार श्रीलिंगमहा पुराण के अन्तर्गत पूर्वभागमें 'पाताल वर्णन ' नामक पैंतालीसवाँ अध्याय एूर्ण हुआ॥ ४५ ॥

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