लिंग पुराण [ पूर्वभाग ] पचासवाँ अध्याय
भुवनविन्यास में विभिन्न कुलाचल पर्वतोंपर रहने वाली देवयोनियों आदि का वर्णन
सूत उवाच
शितान्तशिखरे शक्रः पारिजातवने शुभे।
तस्य प्राच्यां कुमुदाद्विकूटोइसौ बहुविस्तर:॥ १
अष्टो पुराण्युदीर्णानि दानवानां द्विजोत्तमा:।
सुवर्णकोटरे पुण्ये राक्षसानां महात्मनाम्॥ २
सूतजी बोले--इन्र शितान्तके शिखरपर विद्यमान सुन्दर पारिजातवनमें रहते हैं। उसके पूर्वमें कुमुदपर्वतकी चोटी है, वह बहुत विस्तृत है। हे श्रैष्ठ द्विजो वहाँ दानवोंके आठ पुर कहे गये हैं । हे श्रेष्ठ द्विजो ! पवित्र सुवर्णकोटरमें नीलक नामक महान् राक्षसोंके अड़सठ पुर बताये गये हैं॥ १-२ ॥
नीलकानां पुराण्याहुरष्टषष्टिद्विजोत्तमा:।
महानीलेपि शैलेन्द्रे पुषणणि दश पञ्च च॥ ३
हयाननानां मुख्यानां किननराणां चर सुब्रता:।
वेणुसौधे महाशैले विद्याधरपुरत्रयम्॥ ४
वैकुण्ठे गरुड: श्रीमान् करञ्जे नीललोहित:।
वसुधारे बसूनां तु निवास: परिकीर्तित:॥ ५
रलधारे गिरिवरे सप्तर्षणां महात्मनाम्।
सप्तस्थानानि पुण्यानि सिद्धावासयुतानि च॥ ६
महत्प्रजापते: स्थानमेकश्रद्धे. नगोत्तमे।
गजशैले तु दुर्गाद्या: सुमेधे वसवस्तथा॥ ७
आदिवत्याश्च तथा रुद्रा: कृतावासास्तथाश्विनौ।
अशीतिर्देवपुर्यस्तु हेमकक्षे. नगोत्तमे॥ ८
हे सुब्रतो! पर्वतश्रेष्ठ महानीलपर भी घोड़ेके समान मुखवाले प्रधान किन्नरोंके पन्द्रह पुर हैं और महान् पर्वत वेणुसौध पर विद्याधरों के तीन पुर हैं श्रीमान् गरुड़ वैकुण्ठ पर्वतपर और नीललोहित रुद्र करंज पर्वतपर निवास करते हैं । वसुओंका निवास वसुधारमें बताया गया है । गिरिश्रेष्ठ रत्नधारपर महात्मा सप्तर्षियोंके सात पवित्र स्थान हैं, जो सिद्धोंके वाससे युक्त हैं पर्वतोंमें उत्तम एकश्रृंग पर्वतपर प्रजापतिका महान् आवास है। गजशैलपर दुर्गा आदि तथा सुमेधपर वसुगण रहते हैं। पर्वतोंमें उत्तम हेमकक्ष पर्वतपर अस्सी देवपुरियाँ हैं, वहाँ आदित्यगण, रुद्रगण तथा दोनों अश्विनीकुमार निवास करते हैं॥३-८॥
सुनीले रक्षसां वासा: पञ्चकोटिशतानि च।
पञ्चकूटे पुराण्यासन् पञ्चकोटिप्रमाणत:॥ ९
शतश्रज़े पुरशतं यक्षाणाममितौजसाम्।
ताम्राभे काद्रवेयाणां विशाखे तु गुहस्य बै॥ १०
श्वेतोदरे मुनिश्रेष्ठा: सुपर्णस्य महात्मन:।
पिशाचके कुबेरस्थ हरिकूटे हरे्गृहम्॥ १९
कुमुदे किननरावासस्त्वज्जने चारणालय:।
कृष्णे गन्धर्वनिलय: पाण्डुरे पुरसप्तकम्॥ १२
विद्याधराणां विप्रेन्द्रा विश्वभोगसमन्वितम्।
सहस्रशिखरे शैले दैत्यानामुग्रकर्मणाम्॥ १३
पुराणां तु सहस्त्राणि सप्तशक्रारिणां द्विजा:।
मुकुटे पन्नगावास: पुष्पकेतो मुनीश्वरा:॥ १४
वैवस्वतस्य सोमस्य वायोनागाधिपस्य च।
तक्षके चेव शेैलेन्द्रे चत्वार्यायतनानि च॥ १५
सुनील पर्वतपर राक्षसोंके पाँच सौ करोड़ निवासस्थान हैं। पंचकूटपर पाँच करोड़ पुर हैं। शतश्रृंगपर अमित तेजस्वी यक्षोंके सौ पुर हैं। ताम्राभ पर्वतपर काद्रवेयोंका और विशाख पर्वतपर गुहका निवासस्थान है हे श्रेष्ठ मुनियो! श्वेतोदर पर्वतपर महात्मा सुपर्णका, पिशाचकपर कुबेरका और हरिकूटपर विष्णुका आवास है कुमुद पर्वतपर किन्नरोंका आवास है। अंजन पर्वतपर चारणोंका निवासस्थान है। कृष्णपर्वतपर गन्धर्वोंका निवासस्थान है। हे श्रेष्ठ विप्रो! पाण्डुर पर्वतपर विद्याधरोंके सात पुर हैं, जो सभी प्रकारके भोगोंसे युक्त हैं। हे द्विजो ! सहस्नशिखर पर्वतपर भयानक कर्म वाले इन्द्रशत्रु दैत्योंके सात हजार पुर हैं। हे मुनीश्वरो ! पुष्पकेतु मुकुट पर्वत पर पन्नगों का आवास है। वैवस्वत, सोम, वायु और नागाधिपतिके चार निवासस्थान शैलराज तक्षकपर हैं॥ ९--१५॥
ब्रह्मेन्द्रविष्णुरुद्राणां गुहस्थ च महात्मन: ।
कुबेरस्थ च सोमस्य तथान्येषां महात्मनाम्॥ १६
सन्त्यायतनमुख्यानि मर्यादापर्वतेष्वपि।
श्रीकण्ठाद्रिगुहावासी सर्वावासः सहोमया॥ १७
श्रीकण्ठस्याधिपत्यं वै सर्वदेवेश्वरस्थ च।
अण्डस्यास्य प्रवृत्तिस्तु श्रीकण्ठेन न संशय: ॥ १८
अनन्तेशादयस्त्वेवं प्रत्येके चाण्डपालका:।
चक्रवर्तिन इत्युक्तास्ततो विद्येश्वरास्त्विह॥ १९
श्रीकण्ठाधिष्ठितान्यत्र स्थानानि च समासतः ।
मर्यादापर्वतेष्वद्य . श्रुण्वन्तु प्रवदाम्यहम्॥ २०
श्रीकण्ठाधिष्ठितं विश्व॑ चराचरमिदं जगत्।
कालाग्निशिवपर्यन्तं कथ्थं वक्ष्ये सविस्तरम्॥ २१
ब्रह्मा, विष्णु, रुद्र, इन्द्र, महात्मा गुह, कुबेर, सोम तथा अन्य महात्माओंके मुख्य निवासस्थान मर्यादापर्वतोंपर हैं। सर्वव्यापी शिव [ भगवती] उमाके साथ श्रीकण्ठपर्वतकी गुफामें निवास करते हैं। सभी देवताओंके ईश्वर शिवका आधिपत्य श्रीकण्ठ पर्वतपर है। इस ब्रह्माण्डकी उत्पत्ति श्रीकण्ठसे ही हुई है; इसमें सन्देह नहीं है अनन्त, ईश आदि इनमेंसे प्रत्येक देवता ब्रह्माण्ड रक्षक हैं, अत: वे चक्रवर्ती तथा विद्येश्वर कहे गये हैं। अब में मर्यादापर्वतोंपर श्रीकण्ठसे अधिष्ठित स्थानोंका संक्षेपमें वर्णन करता हूँ, आपलोग सुनिये। मैं श्रीकण्ठसे अधिष्ठित कालाग्निशिवपर्यन्त इस सम्पूर्ण चराचर जगत्का विस्तारपूर्वक वर्णन कैसे कर सकता हूँ ?॥ १६--२१॥
॥ इति श्रीलिंगमहापुराणे पूर्वभागे भुवनविन्यासोद्देशस्थानवर्णन॑ नाम पञ्चाशत्तमोउध्याय: ॥ ५० ॥
॥ इस प्रकार श्रीलिंगमहा पुराण के अन्वर्गत पूर्वधाय में ' भुवनविन्यासोद्देशस्थानवर्णन ' नामक पचासवाँ अध्याय पूर्ण हुआ॥ ५० ॥
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