लिंग पुराण : भगवान् महेश्वरके पंचब्रह्मात्मक ईशान, तत्पुरुष आदि स्वरूपोंका वर्णन | Linga Purana: Description of the five brahminical forms of Lord Maheshwar like Ishaan, Tatpurush etc

श्रीलिङ्गमहापुराण उत्तरभाग चौदहवाँ अध्याय

भगवान् महेश्वरके पंचब्रह्मात्मक ईशान, तत्पुरुष आदि स्वरूपों का वर्णन

सनत्कुमार उगाच

पञ्च ब्रह्माणि मे नन्दिन्नाचक्ष्व गणसत्तम।
श्रेयः करणभूतानि पवित्राणि शरीरिणाम् ॥ १

सनत्कुमार बोले- हे गणोंनें श्रेष्ठ नन्दिन् । जीवकि लिये कल्याणकारी तथा परम पवित्र पंचब्रह्मोंके विषय में मुझे बताइये ॥ १॥

नन्दिकेश्वर उवाच

शिवस्यैव स्वरूपाणि पञ्च ब्रह्माह्वयानि ते।
कथयामि यथातत्त्वं पद्मयोनेः सुतोत्तम ।। २

सर्वलोकैकसंहर्ता सर्वलोकैकरक्षिता।
सर्वलोकैकनिर्माता पञ्चब्रह्मात्मकः शिवः ॥ ३

नन्दिकेश्वर बोले- हे ब्रह्माजीके उत्तम पुत्र। मैं आपसे शिवजीके पंचब्रह्म नामक स्वरूपोंका यथार्थरूपमें वर्णन कर रहा हूँ। समस्त लोकोंके एकमात्र संहारक, सभी लोकोंके एकमात्र रक्षक तथा समग्र जगत्‌के एकमात्र स्रष्टा पंचब्रह्मरूप शिव ही हैं॥ २-३॥

सर्वेषामेव लोकानां यदुपादानकारणम्।
निमित्तकारणं चाहुस्स शिवः पञ्चधा स्मृतः ॥ ४

मूर्तयः पञ्च विख्याताः पञ्च ब्रह्माङ्ख्याः पराः ।
सर्वलोकशरण्यस्य शिवस्य परमात्मनः ॥ ५

क्षेत्रज्ञः प्रथमा मूर्तिः शिवस्य परमेष्ठिनः ।
भोक्ता प्रकृतिवर्गस्य भोग्यस्येशानसंज्ञितः ॥ ६

स्थाणोस्तत् पुरुषाख्या च द्वितीया मूर्तिरुच्यते।
प्रकृतिः सा हि विज्ञेया परमात्मगुहात्मिका ॥ ७

जिन्हें सभी लोकोंका उपादानकारण तथा निमित्तकारण कहा गया है, वे शिव पाँच भेदोंवाले बताये गये हैं। सभी लोकोंको शरण प्रदान करनेवाले परमात्मा शिवकी पंचब्रह्म नामक पाँच श्रेष्ठ मूर्तियाँ विख्यात हैं परमेष्ठी शिवकी पहली मूर्ति क्षेत्रज्ञ है, भोगके योग्य समस्त प्रकृतिवर्गका भोग करनेवाली वह मूर्ति 'ईशान' नामवाली है। भगवान् शिवकी दूसरी मूर्तिको 'तत्पुरुष' नामसे कहा जाता है। उसे परमात्माकी गुहास्वरूपिणी प्रकृति ही समझना चाहिये ॥ ४-७॥

अघोराख्या तृतीया च शम्भोर्मूर्तिर्गरीयसी। 
बुद्धेः सा मूर्तिरित्युक्ता धर्माद्यष्टाङ्गसंयुता ॥ ८

चतुर्थी वामदेवाख्या मूर्तिः शम्भोर्गरीयसी।
अहङ्कारात्मकत्वेन व्याप्य सर्व व्यवस्थिता ॥ ९

सद्योजाताङ्ख्या शम्भोः पञ्चमी मूर्तिरुच्यते। 
मनस्तत्त्वात्मकत्वेन स्थिता सर्वशरीरिषु ॥ १०

ईशानः परमो देवः परमेष्ठी सनातनः। 
श्रोत्रेन्द्रियात्मकत्वेन सर्वभूतेष्ववस्थितः ॥ ११

शिवकी 'अघोर' नामक तीसरी महिमामयी मूर्ति है: धर्म आदि आठ अंगोंसे युक्त वह बुद्धिकी मूर्ति कही गयी है शम्भुकी 'वामदेव' नामक चौथी श्रेष्ठ मूर्ति है; वह अहंकाररूपसे सम्पूर्ण जगत्‌को व्याप्त करके स्थित है शिव को 'सद्योजात' नामक पाँचवीं मूर्ति कही जाती है, वह सभी प्राणियोंमें मनतत्त्वके रूपमें विराजमान है परमेष्ठी शाश्वत परम प्रभु ईशान श्रोत्र-इन्द्रियरूपसे सभी प्राणियोंके भीतर स्थित हैं ॥८-११ ॥

स्थितस्तत्पुरुषो देवः शरीरेषु शरीरिणाम्। 
त्वगिन्द्रियात्मकत्वेन तत्त्वविद्भिरुदाहृतः ॥ १२

अघोरोऽपि महादेवश्चक्षुरात्मतया बुधैः। 
कीर्तितः सर्वभूतानां शरीरेषु व्यवस्थितः ॥ १३

जिह्वेन्द्रियात्मकत्वेन वामदेवोऽपि विश्रुतः ।
अङ्गभाजामशेषाणामङ्गेषु परिधिष्ठितः ॥ १४

घ्राणेन्द्रियात्मकत्वेन सद्योजातः स्मृतो बुधैः । 
प्राणभाजां समस्तानां विग्रहेषु व्यवस्थितः ।। १५

सर्वेष्वेव शरीरेषु प्राणभाजां प्रतिष्ठितः । 
वागिन्द्रियात्मकत्वेन बुधैरीशान उच्यते ॥ १६

पाणीन्द्रियात्मकत्वेन स्थितस्तत्पुरुषो बुधैः । 
उच्यते विग्रहेष्वेव सर्वविग्रहधारिणाम् ॥ १७

तत्त्ववेत्ताओंने भगवान् तत्पुरुषको त्वक् (त्वचा)- रूपसे जीवोंके शरीरोंमें विराजमान बताया है  विद्वानोंने महादेव अधोरको भी चक्षुरूपसे सभी प्राणियोंके शरीरोंमें व्यवस्थित बताया है वामदेव भी समस्त देहधारियोंके शरीरोंमें जिह्वा- इन्द्रियरूपसे विराजमान कहे गये हैं विद्वानोंने सद्योजातको नाणेन्द्रियरूपसे समस्त प्राणधारियोंके शरीरोंमें विद्यमान बताया है भगवान् ईशान विद्वानोंके द्वारा वाक् (वाणी)- इन्द्रियरूपसे सभी प्राणधारियोंके शरीरोंमें प्रतिष्ठित कहे गये हैं भगवान् तत्पुरुष विद्वानोंके द्वारा पाणि-इन्द्रियरूपसे सभी जीवोंके शरीरोंमें विराजमान कहे जाते हैं ॥ १२-१७॥

सर्वविग्रहिणां देहे ह्यघोरोऽपि व्यवस्थितः । 
पादेन्द्रियात्मकत्वेन कीर्तितस्तत्त्ववेदिभिः ॥ १८

पाय्विन्द्रियात्मकत्वेन वामदेवो व्यवस्थितः । 
सर्वभूतनिकायानां कायेषु मुनिभिः स्मृतः ॥ १९

उपस्थात्मतया देवः सद्योजातः स्थितः प्रभुः । 
इष्यते वेदशास्त्रज्ञैर्देहेषु प्राणधारिणाम् ॥ २०

ईशानं प्राणिनां देवं शब्दतन्मात्ररूपिणम् । 
आकाशजनकं प्राहुर्मुनिवृन्दारकप्रजाः ॥ २१

तत्त्ववेत्ताओंने भगवान् अघोरको सभी प्राणियोंक शरीरोंमें पाद-इन्द्रियरूपसे अवस्थित बताया है प्रभु वामदेव मुनियोंके द्वारा सभी प्राणिसमुदायके शरीरोंमें पायु (गुदा) इन्द्रियरूपसे स्थित कहे गये हैं वेद तथा शास्त्रोंको जाननेवाले लोग भगवान् सद्योजातको जननेन्द्रियरूपसे सभी प्राणधारियोंके शरीरोंमें प्रतिष्ठित बताते हैं प्रमुख मुनियोंने प्राणियोंके स्वामी प्रभु ईशानको शब्दतन्मात्रारूप कहा है और उन्हें आकाशका जनक बताया है ॥ १८-२१ ॥

प्राहुस्तत्पुरुषं देवं स्पर्शतन्मात्रकात्मकम् । 
समीरजनकं प्राहुर्भगवन्तं मुनीश्वराः ॥ २२

रूपतन्मात्रकं देवमघोरमपि घोरकम्। 
प्राहुर्वेदविदो मुख्या जनकं जातवेदसः ॥ २३

रसतन्मात्ररूपत्वात् प्रथितं तत्त्ववेदिनः । 
वामदेवमपां प्राहुर्जनकत्वेन संस्थितम् ॥ २४

सद्योजातं महादेवं गन्धतन्मात्ररूपिणम् । 
भूम्यात्मानं प्रशंसन्ति सर्वतत्त्वार्थवेदिनः ॥ २५

आकाशात्मानमीशानमादिदेवं मुनीश्वराः । 
परमेण महत्वेन सम्भूतं प्राहुरद्भुतम् ॥ २६

प्रभुं तत्पुरुषं देवं पवनं पवनात्मकम् । 
समस्तलोकव्यापित्वात्प्रथितं सूरयो विदुः ॥ २७

मुनीश्वरोंने भगवान् तत्पुरुषको स्पर्शतन्मात्रारूप कहा है और उन्हें वायुको उत्पन्न करनेवाला बताया है प्रमुख वेदवेत्ताओंने भगवान् अघोरको रूपतन्मात्रात्मक कहा है और उन्हें अग्निका जनक बताया है तत्त्वदर्शी लोगोंने रसतन्मात्रारूपसे विख्यात प्रभु वामदेवको जलके जनकरूपमें प्रतिष्ठित बताया है समस्त रहस्योंको जाननेवाले [मनीषीगण] महादेव सद्योजातको गन्धतन्मात्रारूप बताते हैं और उन्हें भूमिका जनक कहते हैं मुनीश्वरोंने अत्यन्त विस्तारके साथ उत्पन्न होनेके कारण आकाशरूप अद्भुत आदिदेव शिवको 'ईशान' कहा है समस्त लोकोंमें व्याप्त रहनेके कारण पवनरूपसे प्रसिद्ध शिवको विद्वानोंने तत्पुरुष कहा है ॥ २२-२७ ॥

अथार्चिततया ख्यातमघोरं दहनात्मकम्। 
कथयन्ति महात्मानं वेदवाक्यार्थवेदिनः ॥ २८

तोयात्मकं महादेवं वामदेवं मनोरमम्। 
जगत्सञ्जीवनत्वेन कथितं मुनयो विदुः ॥ २९

विश्वम्भरात्मकं देवं सद्योजातं जगद्‌गुरुम्। 
चराचरैकभर्तारं परं कविवरा विदुः ॥ ३०

पञ्चब्रह्मात्मकं सर्व जगत्स्थावरजङ्गमम् । 
शिवानन्दं तदित्याहुर्मुनयस्तत्त्वदर्शिनः ॥ ३१

पञ्चविंशतितत्त्वात्मा प्रपञ्चे यः प्रदृश्यते। 
पञ्चब्रह्मात्मकत्वेन स शिवो नान्यतां गतः ॥ ३२

पञ्चविंशतितत्त्वात्मा पञ्चब्रह्मात्मकः शिवः । 
श्रेयोऽर्थिभिरतो नित्यं चिन्तनीयः प्रयत्नतः ॥ ३३

वेद मन्त्रों को जाननेवाले ज्योतिर्मय होनेके कारण अग्निरूपसे प्रसिद्ध महात्मा शिवको अघोर कहते हैं जगत्‌ को जीवन प्रदान करनेके गुणसे युक्त कहे गये जलरूप महादेवको मुनियोंने मनोरम वामदेवकी संज्ञा प्रदान की है श्रेष्ठ कवियोंने चराचर जगत्‌के एकमात्र पालक विश्वम्भर (पृथ्वी) रूप जगद्‌गुरु शिवको सद्योजात कहा है जो [ईशान आदि मूर्तिरूप] पंचब्रह्मात्मक सम्पूर्ण चराचर जगत् है, वह भगवान् शिवका क्रीड़ा-विलास है-ऐसा तत्त्वदर्शी मुनियोंने कहा है इस जगत्प्रपंचमें पचीस तत्त्वोंसे युक्त जो कुछ दिखायी पड़ता है, वह [ईशान आदि] पंचब्रह्मरूप शिव ही हैं, उनसे अन्य कुछ भी नहीं अतः अपने कल्याणकी कामना करनेवाले लोगोंको सदा प्रयत्नपूर्वक पचीस तत्त्वोंसे युक्त विग्रहवाले पंचब्रह्मात्मक शिवका चिन्तन करना चाहिये ॥ २८-३३ ॥

॥ इति श्रीलिङ्गमहापुराणे उत्तरभागे पञ्वब्रह्मकथनं नाम चतुर्दशोऽध्यायः ॥ १४॥

॥ इस प्रकार श्रीलिङ्गमहापुराणके अन्तर्गत उत्तरभागमें 'पंचब्रह्मकथन' नामक चौदहवाँ अध्याय पूर्ण हुआ ॥ १४॥

टिप्पणियाँ