लिंग पुराण : भगवान् सदा शिव के शर्व, भव आदि आठ स्वरूपों तथा उनकी शक्तियों एवं पुत्रों का वर्णन | Linga Purana: Description of the eight forms of Lord Shiva like Sharva, Bhava etc. and their powers and sons

श्रीलिङ्गमहापुराण उत्तरभाग तेरहवाँ अध्याय

भगवान् सदा शिव के शर्व, भव आदि आठ स्वरूपों तथा उनकी शक्ति यों एवं पुत्रों का वर्णन

सनत्कुमार उवाच

भूयोऽपि वद मे नन्दिन् महिमानमुमापते।
अष्टमूर्तेर्महेशस्य शिवस्य परमेष्ठिनः ॥ १

सनत्कुमार बोले- हे नन्दिन्। उमापति परमेष्ठी अष्टमूर्ति महेश्वर शिव को और भी महिमा मुझे बताइये ॥ १ ॥

भन्दिकेश्वर उवाच

वक्ष्यामि ते महेशस्य महिमानमुमापतेः ।
अष्टमूर्तेर्जगद्व्याप्य स्थितस्य परमेष्ठिनः ।। २

चराचराणां भूतानां धाता विश्वम्भरात्मकः ।
शर्व इत्युच्यते देवः सर्वशास्त्रार्थपारगैः ॥ ३

विश्वम्भरात्मनस्तस्य सर्वस्य परमेष्ठिनः।
विकेशी कथ्यते पत्नी तनयोऽङ्गारकः स्मृतः ॥ ४

नन्दिकेश्वर बोले- मैं जगत्‌को व्याप्त करके स्थित रहनेवाले परमेष्ठी उमापति महेशकी अष्टमूर्तिकी महिमा आपको बताऊँगा। चराचर प्राणियोंको धारण करनेवाले उन पृथ्वीरूप शिवको सभी शास्त्रोंके पारगामी विद्वान् शर्व ऐसा कहते हैं उन पृथ्वीरूप परमेष्ठी शर्वकी पत्नी विकेशी कही जाती हैं और पुत्रको अंगारक (मंगल) कहा गया है ॥२-४॥

भव इत्युच्यते देवो भगवान् वेदवादिभिः । 
सञ्जीवनस्य लोकानां भवस्य परमात्मनः ।। ५

उमा सङ्कीर्तिता देवी सुतः शुक्रश्च सूरिभिः । 
सप्तलोकाण्डकव्यापी सर्वलोकैकरक्षिता ॥ ६

वहूयात्मा भगवान् देवः स्मृतः पशुपतिर्बुधैः । 
स्वाहा पल्यात्मनस्तस्य प्रोक्ता पशुपतेः प्रिया ॥ ७

षण्मुखो भगवान् देवो बुधैः पुत्र उदाहृतः । 
समस्तभुवनव्यापी भर्ता सर्वशरीरिणाम् ॥ ८

पवनात्मा बुधैर्देव ईशान इति कीर्त्यते। 
ईशानस्य जगत्कर्तुर्देवस्य पवनात्मनः ॥ ९

वेदवेत्ता लोग जलमूर्ति शिवको भव ऐसा कहते हैं। विद्वानोंके द्वारा लोगोंको जीवन प्रदान करनेवाले परमात्मा भवकी भार्या देवी उमा कही गयी हैं और उनके पुत्र शुक्र कहे गये हैं सभी लोकोंमें व्याप्त रहनेवाले तथा सभी लोकोंके एकमात्र रक्षक अग्निरूप भगवान् शिवको विद्वानोंने पशुपति कहा है। उन परमात्मा पशुपतिको प्रिय भार्या स्वाहा कही गयी हैं। विद्वानोंके द्वारा भगवान् कार्तिकेय उनके पुत्र कहे गये हैं समस्त भुवनोंमें व्याप्त रहनेवाले तथा सभी जीवोंका भरण-पोषण करनेवाले पवनरूप शिवको विद्वानकि द्वारा ईशान-ऐसा कहा जाता है। विद्वानोंके द्वारा पवनात्मा जगत्कर्ता भगवान् ईशानकी पत्नी भगवती शिवा कही गयी हैं और इनके पुत्र मनौजव कहे गये हैं॥ ५-९ ॥

शिवा देवी बुधैरुक्ता पुत्रश्चास्य मनोजवः । 
चराचराणां भूतानां सर्वेषां सर्वकामदः ॥ १०

व्योमात्मा भगवान् देवो भीम इत्युच्यते बुधैः । 
महामहिम्नो देवस्य भीमस्य गगनात्मनः ॥ ११

दिशो दश स्मृता देव्यः सुतः सर्गश्च सूरिभिः । 
सूर्यात्मा भगवान् देवः सर्वेषां च विभूतिदः ॥ १२

रुद्र इत्युच्यते देवैर्भगवान् भुक्तिमुक्तिदः । 
सूर्यात्मकस्य रुद्रस्य भक्तानां भक्तिदायिनः ॥ १३

सभी स्थावर-जंगम प्राणियोंकी समस्त कामनाएँ पूर्ण करनेवाले आकाशरूप भगवान् शिवको विद्वान् भीम-ऐसा कहते हैं। विद्वान् पुरुषोंने दसों दिशाओंको उन महामहिम व्योमात्मा प्रभु भीमकी पत्नियाँ तथा सर्गको उनका पुत्र कहा हैसभीको ऐश्वर्य प्रदान करनेवाले सूर्यरूप भगवान् शिवको देवता लोग भुक्तिमुक्तिदाता भगवान् रुद्र कहते हैं। भक्तोंको भक्ति प्रदान करनेवाले उन सूर्यात्मा रुद्रकी भार्या सुवर्चला कही गयी हैं और शनैश्चर इनके पुत्र कहे गये हैं॥ १०-१३ ॥

सुवर्चला स्मृता देवी सुतश्चास्य शनैश्चरः ।
समस्तसौम्यवस्तूनां प्रकृतित्वेन विश्रुतः ॥ १४

सोमात्मको बुधैर्देवो महादेव इति स्मृतः। 
सोमात्मकस्य देवस्य महादेवस्य सूरिभिः ॥ १५

दयिता रोहिणी प्रोक्ता बुधश्चैव शरीरजः । 
हव्यकव्यस्थितिं कुर्वन् हव्यकव्याशिनां तदा ॥ १६

यजमानात्मको देवो महादेवो बुधैः प्रभुः। 
उग्र इत्युच्यते सद्भिरीशानश्चेति चापरैः ॥ १७

उग्राहृयस्य देवस्य यजमानात्मनः प्रभोः। 
दीक्षापत्नी बुधैरुक्ता सन्तानाख्यः सुतस्तथा ॥ १८

समस्त सौम्य वस्तुओंकी प्रकृतिके रूपमें प्रसिद्ध सोमरूप शिवको विद्वानोंने महादेव ऐसा कहा है। मनीषियोंने रोहिणीको उन सोमात्मक प्रभु महादेवकी पत्नी और बुधको उनका पुत्र बताया है हव्य-कव्य ग्रहण करने वाले देवताओं तथा पितरोंक लिये हव्य-कव्यकी व्यवस्था करनेवाले यजमानरूप प्रभु शिवको विद्वानोंने उग्र ऐसा कहा है तथा दूसरे श्रेष्ठ जनोंने उन्हें ईशान भी कहा है। विद्वानोंने दीक्षाको उन यजमानरूप उग्र नामक शिवकी पत्नी बताया है। उनका पुत्र सन्तान नामवाला है॥ १४-१८॥

शरीरिणां शरीरेषु कठिनं कोङ्कणादिवत्। 
पार्थिवं तद्वपुर्जेयं शर्वतत्त्वं बुभुत्सुभिः ॥ १९

देहे देहे तु देवेशो देहभाजां यदव्ययम्। 
वस्तुद्रव्यात्मकं तस्य भवस्य परमात्मनः ॥ २०

ज्ञेयं च तत्त्वविद्भिर्वी सर्ववेदार्थपारगैः। 
आग्नेयः परिणामो यो विग्रहेषु शरीरिणाम् ॥ २१

मूर्तिः पशुपतिज्ञेया सा तत्त्वं वेत्तुमिच्छुभिः। 
वायव्यः परिणामो यः शरीरेषु शरीरिणाम् ॥ २२

बुधैरीशेति सा तस्य तनुज्ञेया न संशयः। 
सुधिरं यच्छरीरस्थमशेषाणां शरीरिणाम् ॥ २३

भीमस्य सा तनुर्जेया तत्त्वविज्ञानकाङ्क्षिभिः । 
चक्षुरादिगतं तेजो यच्छरीरस्थमङ्गिनाम् ॥ २४

जीवोंके शरीरीमें कोंकण आदि स्थलोंकी भौति जो कठोर पार्थिव भाग है, उसे जिज्ञासुओंको शर्व- तत्त्व समझना चाहिये। प्राणियोंके शरीरमें जो शाश्वत द्रवरूप वस्तु है, वह उन परमात्मा भवका अंश है- ऐसा सभी वेदार्थोंके पारगामी विद्वानों तथा तत्त्वज्ञोंको जानना चाहिये प्राणियोंके शरीरोंमें जी तेजोरूप अग्निभाग है, उसे तत्त्वज्ञानकी इच्छावालोंको पशुपतिमूर्ति जाननी चाहिये। जीवोंके शरीरोंमें जो प्राण आदि वायुरूप है, उसे विद्वानोंको उन परमेश्वरकी ईशानमूर्ति समझनी चाहिये; इसमें संशय नहीं है सभी जीवोंके शरीरोंमें जो छिद्ररूप [आकाश] भाग है, उसे तत्त्वविज्ञानको आकांक्षा रखनेवालोंको भीमकी मूर्ति समझनी चाहिये। सभी प्राणियोंके शरीरोंमें चक्षु आदिमें जो सूर्यरूप तेज है, उसे परमार्थके जिज्ञासुओंको रुद्रमूर्ति जाननी चाहिये॥ १९-२४ ॥

रुद्रस्यापि तनुज्ञेया परमार्थ बुभुत्सुभिः। 
सर्वभूतशरीरेषु मनश्चन्द्रात्मकं हि यत् ॥ २५

महादेवस्य सा मूर्तिर्बोद्धव्या तत्त्वचिन्तकैः ।
आत्मा यो यजमानाख्यः सर्वभूतशरीरगः ॥ २६

मूर्तिरुग्रस्य सा ज्ञेया परमात्मबुभुत्सुभिः ।
जातानां सर्वभूतानां चतुर्दशसु योनिषु ॥ २७

अष्टमूर्तेरनन्यत्वं वदन्ति परमर्षयः।
सप्तमूर्तिमयान्याहुरीशस्याङ्गानि देहिनाम् ॥ २८

आत्मा तस्याष्टमी मूर्तिः सर्वभूतशरीरगा।
अष्टमूर्तिममुं देवं सर्वलोकात्मकं विभुम् ॥ २९

भजस्व सर्वभावेन श्रेयः प्राप्तुं यदीच्छसि।
प्राणिनो यस्य कस्यापि क्रियते यद्यनुग्रहः ॥ ३०

अष्टमूर्ते महेशस्य कृतमाराधनं भवेत्।
निग्रहश्चेत् कृतो लोके देहिनो यस्य कस्यचित् ।। ३१

अष्टमूर्तेर्महेशस्य स एव विहितो भवेत्।
यद्यवज्ञा कृता लोके यस्य कस्यचिदङ्गिनः ॥ ३२

अष्टमूर्तेर्महेशस्य विहिता सा भवेद्विभोः।
अभयं यत् प्रदत्तं स्यादङ्गिनो यस्य कस्यचित् ।। ३३

सभी प्राणियोंके शरीरोंमें चन्द्ररूप जो मन है, उसे तत्त्वचिन्तकोंको महादेवकी मूर्ति जाननी चाहिये। सभी जीवोंके शरीरोंमें यजमान नामक जो आत्मा है, उसे परमात्मज्ञानकी कामनावाले लोगोंको उग्र नामक मूर्ति जाननी चाहिये महर्षिगण चौदहों योनियोंमें उत्पन्न होनेवाले समस्त जीवोंमें अष्टमूर्तिकी अभिन्नता बताते हैं और उन्होंने प्राणियोंके शरीरोंको शिवको सात मूर्तियोंसे समन्वित कहा है। सभी जीवोंके शरीरमें स्थित आत्मा उस शिवकी आठवीं मूर्ति है  [हे सनत्कुमार।] यदि आप कल्याण प्राप्त करना चाहते हैं तो इन सर्वलोकस्वरूप तथा सर्वव्यापी अष्टमूर्ति भगवान् शिवको सब प्रकारसे आराधना कीजिये। जिस किसी भी प्राणीके प्रति जो अनुग्रह किया जाता है, वह अष्टमूर्ति महेश्वरकी ही आराधना की गयी होती है। यदि लोकमें जिस किसी भी जीवको क्लेश दिया जाता है, तो वह मानो अष्टमूर्ति महेशको ही दिया गया। लोकमें यदि जिस किसी भी प्राणीका अनादर किया गया, तो वह मानो सर्वव्यापी अष्टमूर्ति महेशका ही अनादर किया गया है। जिस किसी भी प्राणीको जो अभय प्रदान किया जाता है, उससे मानो अष्टमूर्ति शिवकी आराधना कर ली गयी; इसमें सन्देह नहीं है॥ २५-३३ ॥

आराधनं कृतं तस्मादष्टमूर्तेर्न संशयः ।
सर्वोपकारकरणं प्रदानमभयस्य च।॥ ३४

आराधनं तु देवस्य अष्टमूर्तेर्न संशयः।
सर्वोपकारकरणं सर्वानुग्रह एव च ॥ ३५

तदर्चनं परं प्राहुरष्टमूर्तेर्मुनीश्वराः ।
अनुग्रहणमन्येषां विधातव्यं त्वयाङ्गिनाम् ॥ ३६

सर्वाभयप्रदानं च शिवाराधनमिच्छता ।। ३७

सभीका उपकार करना तथा सबको अभय प्रदान करना अष्टमूर्ति शिवकी ही आराधना है; इसमें संशय नहीं है। सबका उपकार करना तथा सबपर कृपा करना इसे मुनीश्वरोंने अष्टमूर्तिकी ही परम पूजा बतायी है। अतः [है सनत्कुमार!] शिव की प्रसन्नताकी कामना करनेवाले आपको अन्य सभी प्राणिर्यापर अनुग्रह तथा उन्हें सर्वविध अभय प्रदान करना चाहिये ॥ ३४-३७ ॥

॥ इति श्रीलिङ्गमहापुराणे उत्तरभागे शिवाष्टमूर्तिवर्णनं नाम त्रयोदशोऽध्यायः ॥ १३॥

इस प्रकार श्री लिङ्गमहा पुराण के अन्तर्गत उत्तरभाग में 'शिवाष्ट मूर्ति वर्णन' नामक तेरहवाँ अध्याय पूर्ण हुआ ॥ १३

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