लिंग पुराण : पीतवासाकल्प में शिव स्वरूप भगवान् तत्पुरुष का प्रादुर्भाव तथा उनका माहात्म्य |

लिंग पुराण : तेरहवाँ अध्याय

पीतवासाकल्प में शिव स्वरूप भगवान् तत्पुरुष का प्रादुर्भाव तथा उन का माहात्म्य


सूत उवाच

एकत्रिंशत्तमः कल्पः पीतवासा इति स्मृतः । 
ब्रह्मा यत्र महाभागः पीतवासा बभूव ह ॥१

ध्यायतः पुत्रकामस्य ब्रह्मणः परमेष्ठिनः। 
प्रादुर्भूतो महातेजाः कुमारः पीतवस्त्रधृक् ॥ २

पीतगन्धानुलिप्ताङ्गः पीतमाल्याम्बरो युवा। 
हेमयज्ञोपवीतश्च पीतोष्णीषो महाभुजः ॥ ३

तं दृष्ट्वा ध्यानसंयुक्तो ब्रह्मा लोकमहेश्वरम् । 
मनसा लोकधातारं प्रपेदे शरणं विभुम् ॥ ४

सूतजी बोले- इकतीसवाँ कल्प 'पीतवासा' कल्प नामवाला कहा गया है, जिसमें महाभाग ब्रह्माने पीला वस्त्र धारण किया था पुत्रप्राप्तिकी कामनासे परमेश्वरके ध्यानमें रत परमेष्ठी ब्रह्माजीके समक्ष पीतवस्त्रधारी एक महातेजस्वी कुमार प्रकट हुआ। वह कुमार पीतवर्णकी माला तथा पीत परिधान धारण किये हुए था। उस महान् भुजाओंवाले कुमारके अंगोंमें पौत वर्णका गन्ध लिप्त था तथा वह पीले वर्णकी पगड़ी और हेमवर्णके यज्ञोपवीतसे सुशोभित था  ध्यानयुक्त होकर ब्रह्माजीने जब यह जान लिया कि ये जगत्के परमेश्वर हैं, तब वे हृदयसे लोकके आधाररूप प्रभु महेश्वरके शरणागत हो गये ॥ १ - ४॥

ततो ध्यानगतस्तत्र ब्रह्मा माहेश्वरीं वराम्। 
गां विश्वरूपां ददृशे महेश्वरमुखाच्च्युताम् ॥ ५

चतुष्पदां चतुर्वक्त्रां चतुर्हस्तां चतुःस्तनीम्। 
चतुनेंत्रां चतुःशृङ्गीं चतुर्दष्ट्रां चतुर्मुखीम् ॥ ६

द्वात्रिंशद्गुणसंयुक्तामीश्वरीं सर्वतोमुखाम् । 
स तां दृष्ट्वा महातेजा महादेवीं महेश्वरीम् ॥ ७।

पुनराह महादेवः सर्वदेवनमस्कृतः ।
मतिः स्मृतिर्बुद्धिरिति गायमानः पुनः पुनः ॥ ८

एहोहीति महादेवि सातिष्ठत्प्राञ्जलिर्विभुम् । 
विश्वमावृत्य योगेन जगत्सर्व वशीकुरु ॥ ९

अथ तामाह देवेशो रुद्राणी त्वं भविष्यसि। 
ब्राह्मणानां हितार्थाय परमार्था भविष्यसि ॥ १०

उसी समय ध्यानगत ब्रह्माजीने महेश्वरके मुखसे निकली हुई, चार पैरोंवाली, चार वक्त्रोंवाली, चार हाथोंवाली, चार स्तनोंवाली, चार नेत्रोंवाली, चार सींगोंवाली, चार दाढ़ोंवाली, चार मुखोंवाली, बत्तीस गुणोंसे युक्त, सभी दिशाओंमें मुखवाली, ईश्वररूपिणी विश्वरूपा श्रेष्ठ महेश्वरस्वरूपिणी गाय देखी तब उस महादेवी महेश्वरी गायको देखकर सभी हो, बुद्धि हो तथा स्मृति हो' इस रूपमें उस धेनु देवताओंके वन्दनीय महातेजस्वी महादेवने 'तुम मति महिमाका बार-बार गान करते हुए कहा- हे महादेव। आओ, आओ, और सम्पूर्ण जगत्‌को योगके द्वारा आइत करके अपने वशमें करो। इस प्रकार कहनेपर यह घेत्र हाथ जोड़कर सर्वसमर्थ महादेवके सम्मुख खड़ी है। गयी इसके अनन्तर देवेश्वर महादेवने उससे कहा- तुम रुद्राणी होओगी और ब्राह्मणोंके कल्याणके लिवे परमार्थसाधिका बनोगी ॥ ५ - १० ॥

तथैनां पुत्रकामस्य ध्यायतः परमेष्ठिनः । 
प्रददौ देवदेवेशः चतुष्यादां जगद्गुरुः ॥ ११

ततस्तां ध्यानयोगेन विदित्वा परमेश्वरीम् । 
ब्रह्या लोकगुरोः सोऽथ प्रतिपेदे महेश्वरीम् ॥ १२

गायत्रीं तु ततो रौद्रीं ध्यात्वा ब्रह्मानुयन्त्रितः । 
इत्येतां वैदिकीं विद्यां रौद्रीं गायत्रिमीरिताम् ॥ १३

जपित्वा तु महादेवीं ब्रह्मा लोकनमस्कृताम्। 
प्रपन्नस्तु महादेवं ध्यानयुक्तेन चेतसा ।। १४

ततस्तस्य महादेवो दिव्ययोगं बहुश्रुतम्। 
ऐश्वर्यं ज्ञानसम्पत्तिं वैराग्यं च ददौ प्रभुः ॥ १५

ऐसा कहकर देवाधिदेव जगद्‌गुरु महादेवने पुत्रकी कामनासे ध्यानरत ब्रह्माजीको वह चतुष्पाद गाय दे दी। तदनन्तर ध्यानयोगसे उस धेनुको परमेश्वरी जानकर ब्रह्माजीने जगद्‌गुरु महादेवसे वह माहेश्वर धेनु प्राथ कर ली ब्रहगजी एकाग्रचित्त होकर रौद्री गायत्रीका ध्यान करके और रौद्री गायत्रीके रूपमें कथित इस वेदप्रतिपादित, ज्ञानदायिनी, विद्यास्वरूपिणी तथा लोकवन्द्या महादेव (धेनु) का ध्यानयुक्त मनसे जप करके महादेवके शरणागत हुए  तत्पश्चात् परमेश्वर महादेवने उन ब्रह्माजीको दिव्य योग, महान् कोर्ति, ऐश्वर्य, ज्ञानसम्पदा तथा वैराग्य प्रदान किया ॥ ११ - १५ ॥

ततोऽस्य पार्श्वतो दिव्याः प्रादुर्भूताः कुमारकाः । 
पीतमाल्याम्बरधराः पीतस्त्रगनुलेपनाः ।। १६

पीताभोष्णीषशिरसः पीतास्याः पीतमूर्धजाः । 
ततो वर्षसहस्त्रान्त उषित्वा विमलौजसः ॥ १७

योगात्मानस्तपोह्लादाः ब्राह्मणानां हितैषिणः । 
धर्मयोगबलोपेता मुनीनां दीर्घसत्रिणाम् ॥ १८

उपदिश्य महायोगं प्रविष्टास्ते महेश्वरम्। 
एवमेतेन विधिना ये प्रपन्ना महेश्वरम् ॥ १९

अन्येऽपि नियतात्मानो ध्यानयुक्ता जितेन्द्रियाः । 
ते सर्वे पापमुत्सृज्य विमला ब्रह्मवर्चसः ।। २०

इसके बाद तत्पुरुषसंज्ञक उन महादेवके समीप दिव्य कुमार प्रकट हुए, जो पीले रंगकी माला तथा वस्त्र धारण किये हुए थे और पीले रंगके गन्धका अनुलेपन किये हुए थे। उनके सिरपर पीले रंगकी पगड़ी थी। उनके मुख तथा बाल भी पीतवर्णके थे तदनन्तर विमल ओजसे युक्त, योगात्मा, तपस्यानें ही आह्लादित रहनेवाले, ब्राह्मणोंके हितैषी तथा धर्म एवं योगबलसे सम्पन्न वे कुमार एक हजार वर्षतक उन तत्पुरुष महादेवके समीप निवास करके यज्ञ करने वाले मुनियोंको महायोगका उपदेश प्रदानकर महेश्वरमें समाविष्ट हो गये इसी विधिसे अन्य जो भी लोग नियतात्मा,ध्यान परायण तथा जितेन्द्रिय होकर महेश्वरके शरणागत होते हैं, वे समस्त पापोंसे मुक्त होकर शुद्धात्मा तथा ब्रह्मतेज सम्पन्न हो जाते हैं और अन्तमें महादेवमें प्रविष्ट हो जाते हैं तथा पुनर्भवके बन्धनसे छूट जाते हैं॥ १६-२१॥

॥ इति श्रीलिङ्गमहापुराणे पूर्वभागे तत्पुरुषमाहात्यं नाम त्रयोदशोऽध्यायः ॥ १३ ॥

॥ इस प्रकार श्रीलिङ्ग महापुराणके अन्तर्गत पूर्वभागमें 'तत्पुरुषमाहात्म्य' नामक तेरहवाँ अध्याय पूर्ण हुआ ॥ १३॥

यहाँ 'लिंग पुराण' के तेरहवें अध्याय पर आधारित कुछ प्रश्न-उत्तर दिए गए हैं:

FAQs :-

प्रश्न 1: पीतवासाकल्प में भगवान शिव का स्वरूप कैसा था?

उत्तर: पीतवासाकल्प में भगवान शिव का स्वरूप अत्यधिक तेजस्वी था। वह पीतवस्त्रधारी, पीतगंधयुक्त, हेमयज्ञोपवीत से सुशोभित थे। उनका शरीर पीतवर्ण के गंध से अनुप्राणित था और उन्होंने पीत माला और पीतमाल्य धारण किया था।

प्रश्न 2: ब्रह्माजी ने शिव के सामने कौन सा रूप देखा था?

उत्तर: ब्रह्माजी ने शिव के ध्यान में आने के बाद महेश्वर के मुख से निकलती हुई एक गाय को देखा, जिसका रूप अत्यधिक दिव्य और शक्तिशाली था। गाय के चार पैर, चार हाथ, चार मुख, चार सींग, और अन्य दिव्य गुण थे, जो महाशक्ति का प्रतीक थे।

प्रश्न 3: महादेव ने ब्रह्माजी को क्या वरदान दिया?

उत्तर: महादेव ने ब्रह्माजी को दिव्य योग, ऐश्वर्य, ज्ञान, वैराग्य और महान कोर्ति का वरदान दिया। इसके साथ ही महादेव ने ब्रह्माजी को ध्यानयुक्त रहने और ब्राह्मणों के कल्याण के लिए परमार्थ का साधक बनने का आशीर्वाद दिया।

प्रश्न 4: ब्रह्माजी ने किस गाय का ध्यान किया और किसे उपदेश दिया?

उत्तर: ब्रह्माजी ने रौद्री गायत्री का ध्यान किया, जिसे वेदों में ज्ञान देने वाली और विद्या स्वरूपिणी गाय के रूप में वर्णित किया गया है। ब्रह्माजी ने ध्यान करके और गायत्री का जाप करके महादेव के शरण में गए और अपने पापों से मुक्त हुए।

प्रश्न 5: शिव के समीप दिव्य कुमारों का प्रकट होना क्यों हुआ?

उत्तर: शिव के समीप दिव्य कुमारों का प्रकट होना इसलिए हुआ क्योंकि वे पीतवस्त्र धारण किए हुए थे और उनके पास योगबल, तपोबल और धर्मयोग की विशेषताएँ थीं। वे ब्राह्मणों के हित में कार्य करते थे और उन्होंने महायोग का उपदेश दिया।

प्रश्न 6: जो लोग महेश्वर के शरणागत होते हैं, उनके बारे में क्या कहा गया है?

उत्तर: जो लोग महेश्वर के शरणागत होते हैं, वे समस्त पापों से मुक्त होकर शुद्धात्मा और ब्रह्मतेज से सम्पन्न हो जाते हैं। वे महादेव के साथ समाहित होकर पुनः जन्म के बंधन से मुक्त हो जाते हैं।

प्रश्न 7: ब्रह्मा जी ने कौन सा ध्यान किया? 

उत्तर: ब्रह्मा जी ने रौद्री गायत्री का ध्यान किया और महादेव के रूप में उसे जपते हुए उनकी शरण में गए।

प्रश्न 8: महादेव के शरण में आने से क्या लाभ हुआ? 

उत्तर : महादेव के शरण में आने से ब्रह्मा जी को दिव्य योग, ऐश्वर्य, ज्ञान और वैराग्य की प्राप्ति हुई।

प्रश्न 9: जो लोग ध्यान और योग के साथ महेश्वर के शरणागत होते हैं, उनका क्या होता है? 

उत्तर: जो लोग ध्यान और योग के साथ महेश्वर के शरणागत होते हैं, वे पापों से मुक्त हो जाते हैं और ब्रह्मवर्चस प्राप्त करते हैं।

प्रश्न 10: इस अध्याय का मुख्य संदेश क्या है? 

उत्तर: इस अध्याय का मुख्य संदेश यह है कि ध्यान, योग और भगवान महेश्वर के शरण में आने से सभी पाप समाप्त हो जाते हैं और आत्मा को शुद्धि और ब्रह्मज्ञान प्राप्त होता है।

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