लिंग पुराण : शिलादद्वारा तप करने से भगवान्‌ महेश्वर का नन्‍दी नामसे उनके पुत्रके रूप में प्रकट होना | Linga Purana: Appearance of Lord Maheshwar in the form of his son named Nandi due to penance done by Shilad

लिंग पुराण [ पूर्वभाग ] बयालीसवाँ अध्याय

शिलादद्वारा तप करने से भगवान्‌ महेश्वर का नन्‍दी नामसे उनके पुत्रके रूप में प्रकट होना और शिलाद द्वारा नन्दिकेश्वर शिव की स्तुति

सूत उवाच

गते पुण्ये च वरदे सहस्त्राक्षे शिलाशनः ।
आराधयन् महादेवं तपसातोषयद्भवम् ।। १

अथ तस्यैवमनिशं तत्परस्य द्विजस्य तु। 
दिव्यं वर्षसहस्त्रं तु गतं क्षणमिवाद्भुतम् ॥ २

वल्मीकेनावृताङ्गश्च लक्ष्यः कीटगणैर्मुनिः । 
वज्रसूचीमुखैश्चान्यै रक्तकीटैश्च सर्वतः ॥ ३

निर्मासरुधिरत्वग्वै निर्लेपः कुड्यवत्स्थितः । 
अस्थिशेषोऽभवत्पश्चात्तममन्यत शङ्करः ॥ ४

यदा स्पृष्टो मुनिस्तेन करेण च स्मरारिणा। 
तदैव मुनिशार्दूलश्चोत्ससर्ज क्लमं द्विजः ॥ ५

सूतजी बोले- वर प्रदान करनेवाले पुण्यशाली सहस्रनेत्र इन्द्रके चले जानेपर वे शिलाद महादेव शिवकी आराधना करते हुए तपके द्वारा उन्हें सन्तुष्ट करने लगे इस प्रकार निरन्तर तपस्यामें संलग्न उन द्विज शिलादके एक हजार दिव्य वर्ष एक क्षणकी भाँति अद्भुतरूपसे व्यतीत हो गये उनका शरीर वल्मीक (बाँबी) से बैंक गया, वे मुनि वज्रसूची (वज्र तथा सूईके समान) मुखवाले तथा अन्य रक्तभोजी कोटोंसे लिपटे शरीरवाले परिलक्षित हो रहे थे, वे मांस-रुधिर-त्वचासे विहीन होकर अस्थिमात्र शरीरवाले हो गये थे फिर भी वे निर्लिप्त भावसे भित्तिकी भाँति निश्चल खड़े थे। तब उन्हें [इस रूपमें तप करते हुए] भगवान् शंकरने जान लिया। [वहाँ प्रकट होकर] कामरिपु शिवने ज्यों हो अपने हाथसे मुनिका स्पर्श किया, त्यों ही मुनिश्रेष्ठ द्विज शिलादका [तपस्याजनित] क्लेश समाप्त हो गया ॥ १-५ ॥

तपतस्तस्य तपसा प्रभुस्तुष्टोऽथ शङ्करः । 
तुष्टस्तवेत्यथोवाच सगणश्चोमया सह ॥ ६

तपसानेन किं कार्यं भवतस्ते महामते। 
ददामि पुत्रं सर्वज्ञं सर्वशास्त्रार्थपारगम् ॥ ७

ततः प्रणम्य देवेशं स्तुत्वोवाच शिलाशनः । 
हर्षगद्गदया वाचा सोमं सोमविभूषणम् ॥ ८

तदनन्तर तपस्यारत उन मुनिके तपसे सन्तुष्ट होकर भगवान् शंकरने उनसे कहा- मैं अपने गणों तथा उमासहित आपपर प्रसन्न हूँ। हे महामते! इस तपस्यासे आपका क्या प्रयोजन। मैं आपको सर्वज्ञ तथा समस्त शास्त्रोंके रहस्योंका पारगामी विद्वान् पुत्र प्रदान करता हूँ तब देवेश शिवको प्रणाम करके और उनकी स्तुति करके शिलादमुनि हर्षपूर्ण गद्गद वाणीमें चन्द्रभूषण शिवसे कहने लगे ॥ ६ - ८ ॥ 

शिलाद उवाच

भगवन् देवदेवेश त्रिपुरार्दन शङ्कर। 
अयोनिजं मृत्युहीनं पुत्रमिच्छामि सत्तम ॥ ९

सूत उवाच

पूर्वमाराधितः प्राह तपसा परमेश्वरः।
शिलादं ब्रह्मणा रुद्रः प्रीत्या परमया पुनः ॥ १०

शिलाद बोले- हे भगवन्! हे देवदेवेश ! हे त्रिपुरार्दन! हे शंकर! हे सत्तम। मैं अयोनिज तथा मृत्युहीन पुत्र चाहता हूँ  सूतजी बोले- पूर्वमें ब्रह्माजीके द्वारा तपस्या से आराधित परमेश्वर रुद्रने परम प्रसन्नताके साथ मुनि शिलादसे कहा ॥ ९ - १०॥

श्रीदेवदेव उवाच

पूर्वमाराधितो विप्र ब्रह्मणाहं तपोधन।
तपसा चावतारार्थ मुनिभिष्च सुरोत्तमै:॥ १९

तव पुत्रो भविष्यामि नन्दिनाम्ना त्वयोनिज:।
पिता भविष्यसि मम पितुर्वँ जगतां मुने॥ १२

एवमुक्त्वा मुनि प्रेक्ष्य प्रणिपत्य स्थितं घृणी |
सोम: सोमोपम: प्रीतस्तत्रैवान्तरधीयत॥ १३

लब्धपुत्र: पिता रुद्रात्प्रीती मम महामुने।
यज्ञाड्रणं महत्प्राप्प यज्ञार्थ यज्ञवित्तम:॥ १४

तदड़णादह॑ शम्भोस्तनुजस्तस्य चाज्ञया।
सजञ्जात: पूर्वमेवाह॑ युगान्ताग्निसमप्रभ: ॥ १५

श्रीदेबदेव शिव बोले--हे विप्र! हे तपोधन! मुनियों तथा श्रेष्ठ देवताओंसहित ब्रह्माजीनी अवतार ग्रहण करनेके लिये पूर्वकालमें तपस्याके द्वारा मेरी आराधना की थी। अत: मैं ननन्‍दी नामसे तुम्हारे अयोनिज पुत्रके रूपमें जन्म लूँगा। हे मुने! आप मुझ जगत्पिताके भी पिता होंगे ऐसा कहकर सम्मुख स्थित मुनिकी ओर प्रेमपूर्वक देखकर उन्हें प्रणम करके अमृततुल्य भगवान्‌ शिव उमासहित वहीं अन्तर्धान हो गये हे महामुने! भगवान्‌ रुद्रसे पुत्रप्राप्तिका वरदान पाकर यज्ञविदोंमें श्रेष्ठ मेरे पिताजी यज्ञ करनेके लिये प्रसन्‍नतापूर्वक विशाल यज्ञशालामें पहुँचे; तब मैं पूर्व ही भगवान्‌ रुद्रकी आज्ञासे उनके पुत्रके रूपमें उस अंगणमें प्रादुर्भूर हो गया, उस समय में प्रलयाग्निके समान प्रभासे समन्वित था॥ ११-१५॥

ववर्षुस्तता पुष्करावर्तकाद्या जगुः खेचरा: किननरा: सिद्धसाध्या: । 
शिलादात्मजत्वं गते मय्युपेन्द्र: ससर्जाथ वृष्टिं सुपुष्पोधमिश्राम्‌॥ १६

मां दृष्टवा कालसूर्याभं जटामुकुटधारिणम्‌। 
ज्यक्ष॑ चतुर्भुज॑ बाल शूलटड्डूगदाधरम्‌॥ १७

वज़िणं वच्नदंष्ट्रं च वज्रिणाराधितं शिशुम्‌। 
वज्कुण्डलिनं घोरं नीरदोपमनिःस्वनम्‌॥ १८

ब्रह्मद्यास्तुष्टुवु: सर्वे सुरेन्द्रश्च मुनीश्वरा:।
नेदु: समन्ततः सर्वे ननृतुश्चाप्सरोगणा:॥ १९

ऋषयो मुनिशार्दूल ऋग्यजुःसामसम्भवे:। 
मन्त्रैमहिएवरै: स्तुत्वा सम्प्रणेमुर्मुदान्विता:॥ २०

उस समय शिलादमुनिके पुत्ररूपमें मेरे आविर्भूत होनेपर पुष्कर, आवर्तक आदि मेघ बरसने लगे; किन्नर, सिद्ध, साध्य आदि गगनचारी देवतागण गान करने लगे और इन्द्र पुष्पराशिमिश्रित वृष्टि करने लगे उस समय कालसूर्यके समान आभावाले, जटामुकुट धारण किये, तीन नेत्रोंसे युक्त, चार भुजाओंवाले, हाथोंमें शूल-टंक-गदा धारण करनेवाले, वज्र लिये हुए, हीरेके सदृश उज्ज्वल दाँतोंवाले, इन्द्रके द्वारा आराधित, कानोंमें हीरेका कुण्डल धारण किये हुए, घोर विग्रहवाले तथा मेघसदृश गम्भीर ध्वनिसे सम्पन्न मुझ बाल-शिशुको देखकर ब्रह्मा आदि, इन्द्र तथा सभी मुनीश्वर स्तुति करने लगे और सभी अप्सराएँ चारों ओरसे वाद्ययन्त्र बजाने लगीं तथा नृत्य करने लगींहे मुनिश्रेष्ठ। ऋग्वेद, यजुर्वेद तथा सामवेदके माहेश्वर मन्त्रोंके द्वारा आनन्दपूर्वक मेरी स्तुति करके ऋषियोंने मुझे प्रणाम किया॥ १६ - २० ॥

ब्रह्मा हरिश्च रुद्रएच शक्रः साक्षाच्छिवाम्बिका 
जीवश्चेन्दुर्महातेजा भास्कर: पवनो3नलः॥ २१

ईशानो निर्क्रतियक्षो यमो वरुण एवं च। 
विश्वेदेवास्तथा रुद्रा वसवश्च महाबला:॥ २२

लक्ष्मीः साक्षाच्छची ज्येष्ठा देवी चैव सरस्वती। 
अदितिश्च दितिश्चैव श्रद्धा लज्जा धृतिस्तथा ।। २३

नन्दा भद्रा च सुरभी सुशीला सुमनास्तथा। 
वृषेन्द्रश्च महातेजा धर्मो धर्मात्मजस्तथा ॥ २४

आवृत्य मां तथालिङ्गय तुष्टुवुर्मुनिसत्तम। 
शिलादोऽपि मुनिर्दृष्ट्‌वा पिता मे तादृशं तदा ॥ २५

ब्रह्मा, विष्णु, रुद्र, इन्द्र, साक्षात्‌ अम्बिका शिवा, देवगुरु बृहस्पति, चन्द्रमा, महातेजस्वी सूर्य, वायु, अग्नि, ईशान, निर्क्रति, यक्ष, यम, वरुण, विश्वेदेव सभी रुद्र, महाबली वसुगण, साक्षात् लक्ष्मी, इन्द्राणी, देवी ज्येष्ठा, सरस्वती, अदिति, दिति, श्रद्धा, लग्ना, धृति, नन्दा, भद्रा, सुरभी, सुशीला, सुमना, वृषेन्द्र, महातेजस्वी धर्म तथा धर्मपुत्र मुझे घेरकर मेरा आलिङ्गन करके मेरी स्तुति करने लगे। हे मुनिश्रेष्ठ । उस समय पुण्य आत्मावाले मेरे पिता मुनि शिलाद उस प्रकारके रूपवाले इष्टप्रद पुत्रको देखकर प्रेमपूर्वक प्रणाम करके मेरी स्तुति करने लगे ॥ २१-२५॥

प्रीत्या प्रणम्य पुण्यात्मा तुष्टावेष्टप्रदं सुतम् ।

शिलाद उवाच

भगवन् देवदेवेश त्रियम्बक ममाव्यय ॥ २६

पुत्रोऽसि जगतां यस्मात्त्राता दुःखाद्धि किं पुनः । 
रक्षको जगतां यस्मात्पिता मे पुत्र सर्वग ॥ २७

अयोनिज नमस्तुभ्यं जगद्योने पितामह। 
पिता पुत्र महेशान जगतां च जगद्गुरो ॥ २८

वत्स वत्स महाभाग पाहि मां परमेश्वर। 
त्वयाहं नन्दितो यस्मान्नन्दी नाम्ना सुरेश्वर ॥ २९

शिलाद बोले- हे भगवन्! हे देवदेवेश। हे त्रियम्बक । हे अव्यय। आप मेरे पुत्र हैं और जगत्‌के रक्षक हैं, अतः अब मुझे दुःख किस बातका। हे पुत्र ! हे सर्वग (सर्वव्यापी)! आप जगत्‌के रक्षक हैं, अतः मेरे भी पिता हैं। है अयोनिज! आपको नमस्कार है। है जग‌द्यौने। हे पितामह। हे पुत्र। हे महेशान। हे जगद्गुरो! आप जगत्के पिता हैं। हे वत्स! हे वत्स! हे महाभाग । हे परमेश्वर! मेरी रक्षा कीजिये। हे सुरेश्वर। आपने मुझे आनन्दित किया है, अतः आप 'नन्दी' नामसे विख्यात होंगे; हे नन्दिन् । मुझे आनन्द प्रदान कीजिये, मैं आप जगदीश्वरको प्रणाम करता हूँ ॥ २६-२९॥

तस्मान्नन्दय मां नन्दिन्नमामि जगदीश्वरम् । 
प्रसीद पितरौ मेऽद्य रुद्रलोकं गतौ विभो ॥ ३०

पितामहाश्च भो नन्दिन्नवतीर्णे महेश्वरे। 
ममैव सफलं लोके जन्म वै जगतां प्रभो ॥ ३१

अवतीर्णे सुते नन्दिन् रक्षार्थ मामीश्वर। 
तुभ्यं नमः सुरेशान नन्दीश्वर नमोऽस्तु ते ॥ ३२

पुत्र पाहि महाबाहो देवदेव जगद्‌गुरो। 
पुत्रत्वमेव नन्दीश मत्वा यत्कीर्तितं मया॥ ३३

त्वया तत्क्षम्यतां वत्स स्तवस्तव्य सुरासुरैः। 
यः पठेच्छृणुयाद्वापि मम पुत्र प्रभाषितम् ॥ ३४

हे विभो। आप प्रसन्न होइये। हे नन्दिन् ! आप महेश्वरके [मेरे यहाँ] अवतीर्ण होने पर आज मेरे माता- पिता रुद्रलोक चले गये; पितामह, प्रपितामह आदि भी रुद्रलोक चले गये। हे जगत्प्रभो! मेरे रक्षार्थ पुत्र- रूपमें आपके अवतार लेनेपर आज संसारमें मेरा जन्म सफल हो गया। हे सुरेशान! आपको नमस्कार है। है नन्दीश्वर! आपको नमस्कार है। हे पुत्र! हे महाबाहो। हे देवदेव! हे जगद्‌गुरो। मेरी रक्षा कीजिये। हे नन्दीश ! हे देवताओं तथा दानवोंके द्वारा स्तुतियोंसे स्तवनके योग्य वत्स! आपके प्रति पुत्रभाव समझकर मैंने जो भी कहा है, उसे आप क्षमा करें। हे पुत्र! जो मेरेद्वारा कहे गये इस स्तवनका भक्तिपूर्वक पाठ या श्रवण करता है अथवा द्विजोंको इसे सुनाता है, वह मेरे साथ आनन्द प्राप्त करता है॥ ३०-३४ ॥

श्रावयेद्वा द्विजान् भक्त्या मया सार्धं स मोदते। 
एवं स्तुत्वा सुतं बालं प्रणम्य बहुमानतः ॥ ३५

मुंनीश्वरारत सम्प्रेक्ष्य शिलादोबाच सुब्रत: । 
पश्यध्व॑ मुनयः सर्वे महाभाग्यं ममाव्यय:॥ ३६

ननन्‍दी यज्ञाड़णे देवश्चावतीणों यतः प्रभु:।
मत्सम: कः पुमॉल्लोके देवो वा दानवोपि वा॥ ३७

एष ननन्‍दी यतो जातो यज्ञभूमौ हिताय मे॥ ३८।

इस प्रकार बालरूप पुत्र नन्दीकी स्तुति करके अत्यन्त आदरपूर्वक उन्हें प्रणामकर उत्तम व्रत धारण करनेवाले मुनि शिलाद मुनीश्वरोंकी ओर देखकर  बोले - हे मुनिगण! आप सभी लोग मेरे महान्‌ अक्षुण्ण भाग्यको देख लें, जो कि मेरे यज्ञांगणमें अविनाशी भगवान्‌ महेश्वर [मेरे पुत्र होकर] नन्दीके रूपमें अवतरित हुए हैं। सम्पूर्ण जगतूमें कौन मनुष्य, देवता अथवा दानव मेरे समान है; क्योंकि मेरे हितार्थ ये नन्दी मेरी यज्ञभूमिमें प्रादुर्भूत हुए हैं॥ ३५ - ३८॥

॥ श्रीलिंगमहापुराणे पूर्वभागे नन्दिकेशवरोत्पत्तिनाम द्विचत्वारिंशोउध्याय: ॥ ४२ ॥ 

॥ इस प्रकार श्रीलिंगमहापुराण के अन्तर्गत पूर्वभागमें 'नन्दिकेश्वरोत्पत्ति' नामक बयालीसवाँ अध्याय पूर्ण हुआ॥ ४२ ॥

FAQs:- लिंग पुराण [ पूर्वभाग ] बयालीसवाँ अध्याय

शिलाद की तपस्या और भगवान महेश्वर (शिव) के नंदी रूप में प्रकट होने के बारे में गद्यांश पर आधारित 10 प्रश्न और उत्तर यहां दिए गए हैं:

  • प्रश्न : किस देवता ने शिलाद मुनि की तपस्या से उनके पुत्र के रूप में उद्घाटित होकर महिमामंडन किया था?

   उत्तर : भगवान शिव ने शिलाद मुनि की तपस्या से उन्हें नंदी नामक पुत्र के रूप में प्रसन्न किया।
  • प्रश्न : शिलाद मुनि ने भगवान शिव की किस रूप में पूजा की थी? 

  उत्तर : शिलाद मुनि ने भगवान शिव की महादेव के रूप में तपस्या की थी।
  • प्रश्न : शिलाद मुनि द्वारा तपस्या के दौरान उनका शरीर किस रूप में बदल गया था? 

उत्तर : शिलाद मुनि का शरीर वाल्मीक (बाँबी) से लोरा, वज्रसूचीमुख, रक्तकीटों से आच्छादित और अस्थिमात्र शरीर जैसा हो गया था।
  • प्रश्न : भगवान शिव ने शिलाद मुनि से क्या आभूषण मांगा था? 

उत्तर : भगवान शिव ने शिलाद मुनि से पूछा कि उनकी तपस्या का उद्देश्य क्या था और किस प्रकार के पुत्र चाहिए।
  • प्रश्न : शिलाद मुनि ने भगवान शिव से किस प्रकार के पुत्र की मांग की थी? 

उत्तर : शिलाद मुनि ने भगवान शिव से अयोनिज और मृत्युहीन पुत्र की मांग की थी।

  • प्रश्न : शिलाद मुनि ने भगवान शिव से क्या स्तुति की थी जब उन्हें पुत्ररत्न का आभूषण मिला था? 

उत्तर : शिलाद मुनि ने भगवान शिव से चंद्रभूषण शिव की स्तुति की थी और उन्हें पुत्र के रूप में नंदी का श्रृंगार प्राप्त हुआ था।
  • प्रश्न : शिलाद मुनि के पुत्र के रूप में भगवान शिव किस नाम से प्रकट हुए थे? 

उत्तर : भगवान शिव शिलाद मुनि के पुत्र के रूप में "नंदी" नाम से प्रकट हुए।

  • प्रश्न : भगवान शिव ने शिलाद मुनि से क्या कहा था जब वे उन्हें पुत्र देने के लिए तैयार हुए थे? 

उत्तर : भगवान शिव ने शिलाद मुनि से कहा था कि वह सर्वज्ञ, सर्वशास्त्रीय विद्वान और अयोनिज पुत्र रहेंगे।

  • प्रश्न : शिलाद मुनि ने भगवान शिव से प्राप्त आभूषण के बाद क्या किया? 

उत्तर : शिलाद मुनि ने भगवान शिव की पूजा की और उनकी स्तुति की, और इसके बाद भगवान शिव नंदी के रूप में उनके पुत्र बने।
  • प्रश्न : शिलाद मुनि के पुत्र के रूप में भगवान शिव के प्रकट होने के समय कौन-कौन से देवता उनकी स्तुति करने आए थे? 

  उत्तर : ब्रह्मा, विष्णु, रुद्र, इंद्र, लक्ष्मी, सरस्वती, यम, वरुण और अन्य देवताओं ने शिलाद मुनि के पुत्र रूपी भगवान शिव की स्तुति की थी।

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