लिंग पुराण : चौदहवाँ अध्याय
असितकल्प में शिव स्वरूप भगवान् अघोर का प्राकट्य और उनका माहात्म्य
सूत उवाच
ततस्तस्मिन् गते कल्पे पीतवर्णे स्वयम्भुवः।
पुनरन्यः प्रवृत्तस्तु कल्पो नाम्नासितस्तु सः॥ १
एकार्णवे तदा वृत्ते दिव्ये वर्षसहस्त्रके।
स्रष्टुकामः प्रजा ब्रह्मा चिन्तयामास दु:खितः॥ २
तस्य चिन्तयमानस्य पुत्रकामस्य वै प्रभोः।
कृष्णः समभवद्दर्णो ध्यायतः परमेष्ठिनः॥ ३
अथापश्यन्महातेजाः प्रादुर्भूतं कुमारकम्।
कृष्णवर्णं महावीर्यं॑दीप्यमानं स्वतेजसा॥ ४
कृष्णाम्बरधरोष्णीषं कृष्णयज्ञोपवीतिनम्।
कृष्णेन मौलिना युक्तं कृष्णस्तरगनुलेपनम्॥ ५
स तं दृष्ट्या महात्मानमघोरं घोरविक्रमम्
ववन्दे देवदेवेशमद्भुतं कृष्णपिङ्गलम्॥ ६
प्राणायामपरः श्रीमान् हदि कृत्वा महेश्वरम्।
मनसा ध्यानयुक्तेन प्रपन्नस्तु तमौश्वरम्॥ ७
अघोरं तु ततो ब्रह्मा ब्रह्मरूपं व्यचिन्तयत्।
तथा वै ध्यायमानस्य ब्रह्मणः परमेष्ठिनः ॥ ८
प्रददौ दर्शनं देवो ह्वाघोरो घोरविक्रमः।
अथास्य पार्श्वतः कृष्णाः कृष्णस्रगनुलेपनाः॥ ९
त्वारस्तु महात्मानः सम्बभूवुः कुमारकाः।
कृष्णः कृष्णशिखश्चैव कृष्णास्यः कृष्णवस्त्रधृक् ॥ १०
तजी बोले--इसके बाद उस पीतकल्पके बीत जानेपर ब्रह्माका दूसरा कल्प प्रवृत्त हुआ। वह असित कल्प नामवाला था एक हजार दिव्य वर्षोतक जब सर्वत्र जल-हीजल व्याप्त रहा, तब ब्रह्माजी अत्यन्त दुःखित होकर प्रजासृष्टिकी इच्छासे विचारमग्न हो गये इस प्रकार चिन्तनमग्न होकर पुत्रकी कामनासे ध्यान कर रहे प्रभु ब्रह्माका वर्ण काला हो गया इसी बीच महातेजस्वी ब्रह्माने कृष्णवर्णवाले, महान् वीर्यसम्पन्न, अपने तेजसे देदीप्यमान, कृष्णवर्णका वस्त्रपगड़ी तथा यज्ञोपवीत धारण किये हुए, कृष्णमुकुटसे सुशोभित, कृष्णमाला धारण किये हुए तथा कृष्ण अंगरागसे अनुलिप्त अंगोंबाले एक कुमारको वहाँ प्रकट हुआ देखा उन घोर पराक्रमवाले महात्माको अधघोरसंज्ञक महादेव जानकर ब्रह्माजी ने अद्भुत कृष्ण-पिंगल वर्णको आभासे युक्त उन देवदेवेश को प्रणाम किया तत्पश्चात् ध्यानयुक्त मनसे प्राणायामपरायण होकर तथा महेश्वरको हृदयमें धारणकर श्रीमान् ब्रह्माजी उन अघोररूप परमेश्वरके शरणागत हो गये और उन अघोरको ब्रह्मस्वरूप मानकर उनका ध्यान करने लगे। तदनन्तर घोर पराक्रमवाले अघोर महादेवने उन ध्यानपरायण परमेष्ठी ब्रह्माको साक्षात् दर्शन दिया तदनन्तर उन अघोरके समीप कृष्ण, कृष्णशिख कृष्णास्य तथा कृष्णवस्त्रधृक् नामवाले चार महात्मा स्त्रधृक् कुमार प्रादुर्भूत हुए, जो कृष्णवर्ण विभूषित थे और कृष्ण अंगरागसे अनुलिप्त थे॥ ९-१०॥
ततो वर्षसहस्त्रं तु योगतः परमेश्वरम्।
उपासित्वा महायोगं शिष्येभ्यः प्रददुः पुनः॥ ११
योगेन योगसम्पन्नाः प्रविश्य मनसा शिवम्।
अमलं निर्गुणं स्थानं प्रविष्टा विश्वमीश्वरम्॥ १२
एवमेतेन योगेन येऽपि चान्ये मनीषिणः।
चिन्तयन्ति महादेवं गन्तारो रुद्रमव्ययम्॥ १३
एक हजार वर्षोतक योगपरायण होकर उन अघोर परमेशवरकी उपासना करके उन कुमारोंने पुनः अपने शिष्योंको महायोगका उपदेश प्रदान किया योगसम्पन्न वे सभी महात्मा मनसे शिवका ध्यानयोग करके महेशवरके निर्विकार, निर्गुण, विश्वरूप तथा ऐश्वर्यमय स्थानमें प्रविष्ट हुए इसी प्रकार और भी अन्य जो मनीषी इस योगके द्वारा महादेवका ध्यान करते हैं, वे अविनाशी भगवान् रुद्रके दिव्य लोकको प्राप्त होते हैं॥ ११ - १३॥
॥ इति श्रीलिङ्गमहापुराणे पूर्वभागे अघोरोत्पत्तिवर्णनं नाम चतुर्दशोऽध्यायः ॥ १४॥
॥ इस प्रकार श्रीलिङ्गमहा पुराण के अन्तर्गत पूर्वभागे “अघोरोत्पत्तिवर्णत ' नामक चौदहवाँ अध्याय पूर्ण हुआ॥ १४॥
यहाँ पर लिंग पुराण के चौदहवें अध्याय "अघोरोत्पत्तिवर्णन" से संबंधित कुछ प्रश्न-उत्तर दिए गए हैं
1. इस अध्याय में किसका प्राकट्य हुआ?
- इस अध्याय में भगवान शिव के अघोर रूप का प्राकट्य हुआ।
2. कौन से काल में अघोर रूप का प्राकट्य हुआ?
- अघोर रूप का प्राकट्य असित कल्प में हुआ, जब एक हजार दिव्य वर्षों तक जल ही जल व्याप्त था और ब्रह्मा प्रजासृष्टि की इच्छा से चिंतित थे।
3. ब्रह्मा ने किस रूप में भगवान शिव को देखा?
- ब्रह्मा ने भगवान शिव को कृष्णवर्ण, महान् वीर्यशाली, कृष्णवस्त्र, यज्ञोपवीत, कृष्णमाला, और कृष्णपगड़ी धारण किए हुए देखा।
4. ब्रह्मा ने भगवान शिव के अघोर रूप का दर्शन कैसे किया?
- ब्रह्मा ने भगवान शिव के अघोर रूप का दर्शन ध्यान और प्राणायाम द्वारा किया। उन्होंने भगवान शिव को शरणागत होकर उनके ध्यान में लीन हुए।
5. अघोर रूप के भगवान शिव के साथ कौन-कौन से कुमार प्रकट हुए?
- अघोर रूप के साथ कृष्णवर्ण, कृष्णशिख, कृष्णास्य, और कृष्णवस्त्रधारक नामक चार कुमार प्रकट हुए।
6. भगवान शिव के अघोर रूप की उपासना का उद्देश्य क्या है?
- अघोर रूप की उपासना का उद्देश्य योग और ध्यान के माध्यम से शिव के दिव्य रूप की प्राप्ति और उनके विश्वरूप में समाहित होना है।
7. कितने समय तक अघोर रूप की उपासना करनी चाहिए?
- अघोर रूप की उपासना करने के लिए एक हजार दिव्य वर्षों तक ध्यान और योग करना चाहिए, जैसा कि इस अध्याय में वर्णित है।
8. भगवान शिव के अघोर रूप की उपासना से क्या लाभ मिलता है?
- अघोर रूप की उपासना से शिष्य भगवान शिव के दिव्य लोक में प्रवेश करते हैं और वे अविनाशी रुद्र के दिव्य स्थान को प्राप्त करते हैं।
9. क्या योग के माध्यम से भगवान शिव के दर्शन संभव हैं?
- हाँ, योग के माध्यम से भगवान शिव के दर्शन संभव हैं। योग से परमेश्वर शिव के निर्गुण, निर्विकार स्थान में प्रवेश किया जा सकता है।
10. कौन से महात्मा अघोर रूप की उपासना करके दिव्य लोक में प्रवेश करते हैं?
- वे सभी महात्मा, जो योग के माध्यम से भगवान शिव का ध्यान करते हैं, भगवान शिव के अविनाशी और दिव्य लोक में प्रवेश करते हैं।
11. अघोर रूप के भगवान शिव की उपासना के बाद क्या होता है?
- अघोर रूप की उपासना के बाद शिष्य महायोग की प्राप्ति करते हैं और वे भगवान शिव के परम दिव्य स्थान में समाहित हो जाते हैं।
टिप्पणियाँ