अग्नि पुराण तीन सौ उनचासवाँ अध्याय - Agni Purana 349 Chapter

अग्नि पुराण तीन सौ उनचासवाँ अध्याय - Agni Purana 349 Chapter

अग्नि पुराण तीन सौ उनचासवाँ अध्याय  - व्याकरणम्

स्कन्द उवाच

वक्ष्ये व्याकरणं सारं सिद्धशब्दस्वरूपकम् ।
कात्यायनविबोधाय बालानां बोधनाय च ।

प्रत्याहारादि काः संज्ञाः शास्त्र संव्यवहारगाः ।

अ ई उ ण्
ऋ लृ क्
ए ओ ङ्
ऐ औ च्
ह य व र ट्
ल ण्
ञ म ङ ण न म्
झ भ ञ्
घ ढ ध ष्
ज ब ग ड द श्
ख फ छ ठ थ च ट त व्
क प य्
श ष स र्
ह ल् इति
प्रत्याहारः ।

उपदेश इद्धलन्तं भवेदजनुनासिकः ।
आदिवर्णो गृह्यमाणोऽप्यन्त्येनेता सहैव तु ।

तयोर्मध्यगतानां स्याद् ग्राहकः स्वस्य तद्यथा ।
अण् एङ् अट् यङ् छव् झम् भष् अक् इक् अण् इण् यण् परेण णकारेण ।

अम् यम् ङम् अच् इच् ऐच् अय् मय् झय् जव् झव् खव् शव् 
अश् हश् वश् भश् अल् हल् बल् रल् झल् शल् इति प्रत्याहाराः ।

इत्यादिमहापुराणे आग्नेये व्याकरणे प्रत्याहारो नामोनचत्वारिंशदधिकत्रिशततमोऽध्यायः।।

अग्नि पुराण - तीन सौ उनचासवाँ अध्याय हिन्दी मे Agni Purana 349 Chapter In Hindi

तीन सौ उनचासवाँ अध्याय - व्याकरण-सार

स्कन्द बोले- कात्यायन। अब मैं बोधके लिये तथा बालकोंको व्याकरणका ज्ञान करानेके लिये सिद्ध शब्द रूप सारभूत व्याकरण का वर्णन करता हूँ; सुनो। पहले प्रत्याहार आदि संज्ञाएँ बतलायी जाती हैं, जिनका व्याकरणशास्त्रीय प्रक्रिया में व्यवहार होता है। अइठण, ऋलृक्, एओइ ऐऔच, हयवरद्, लण्, अमडणनम्, झभञ्, घढधष्, जबगडदश, खफछठचचटतव्, कपय्, शषसर, हलू। 

ये 'माहेश्वर सूत्र' एवं 'अक्षर-समाम्नाय' कहलाते हैं। इनसे 'अण्' आदि 'प्रत्याहार' बनते हैं। उपदेशावस्थामें अन्तिम 'हल्" तथा अनुनासिक 'अच्" की 'इत् संज्ञा होती है। अन्तिम इत्संज्ञक वर्णके साथ गृहीत होनेवाला आदि वर्ण उन दोनोंके मध्यवर्ती अक्षरोंका तथा अपना भी ग्रहण करानेवाला होता है। इसीको 'प्रत्याहार कहते हैं, जैसा कि निम्नाङ्कित उदाहरणसे स्पष्ट होता है-अणू, एङ्क अटू, ययू, (अथवा यज्), छन्, झष, भष, अकू, इक्, उक्। अणू, इण, यण्-ये तीनों पर णकार अर्थात् लण् सूत्रके णकारसे बनते हैं। अम्, यम्, उम्, अच्, इच्, एच्, ऐच्, अय्, मय्, झय्, खय्, जश, झर, खर्, चर, यर, शर्, अश्, हश, वश, झश, अलू, हलू, वलू, रलू, झल, शल्ये सभी प्रत्याहार हैं॥ १-७॥

इस प्रकार आदि आग्नेय महा पुराण में 'व्याकरण-सार-वर्णन' नामक तीन सौ उनचासवाँ अध्याय पूरा हुआ ॥ ३४९ ॥

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