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भाई दूज के दिन ऐसे करें पूजा
भाई दूज का पर्व भाई-बहन के रिश्ते का प्रतीक है और भाई की लंबी उम्र और सुख-समृद्धि की कामना के लिए बहनें विशेष पूजा करती हैं। इस दिन बहनें शुद्ध आसन पर अपने भाई को बिठाकर सबसे पहले उनके मस्तक पर सिंदूर, अक्षत और पुष्प का तिलक करती हैं और उनके हाथ में कलावा बांधती हैं। इसके बाद भाई के मुंह में मिठाई, मिश्री और माखन लगाकर उनकी लंबी उम्र की प्रार्थना करती हैं। पूजा के समापन में यमराज के नाम का चौमुखा दीपक जलाकर घर की दहलीज के बाहर रखा जाता है ताकि भाई के जीवन में किसी प्रकार की विघ्न-बाधा न आए और वह सुखमय जीवन व्यतीत कर सके। इसके बाद भाई, बहन को उपहार भेंट करता है। यदि सगी बहन न हो, तो मामा, चाचा, मित्र या धर्म बहन से भी तिलक लगवाया जा सकता है।
भाई दूज की कथा
कृष्ण और सुभद्रा: एक पौराणिक कथा के अनुसार, भाई दूज के दिन भगवान श्रीकृष्ण ने नरकासुर राक्षस का वध कर द्वारका लौटे थे। उनकी बहन सुभद्रा ने फल, फूल, मिठाई और दीप जलाकर उनका स्वागत किया। उन्होंने श्रीकृष्ण के मस्तक पर तिलक लगाकर उनकी दीर्घायु की कामना की थी। इसी दिन से यह परंपरा प्रचलित हुई।
यमराज और यमुना: एक अन्य कथा के अनुसार, भगवान सूर्य की पत्नी छाया से यमराज और यमुना का जन्म हुआ था। यमुना अपने भाई यमराज को अपने घर भोजन के लिए आमंत्रित करती थीं, परंतु यमराज अपने कार्यों में व्यस्त रहने के कारण यह निमंत्रण टालते रहते थे। एक दिन कार्तिक शुक्ल द्वितीया के दिन यमराज ने यमुना के घर जाने का वचन दिया। यमराज को घर आते देख यमुना ने हर्षपूर्वक उनका स्वागत किया, स्नान करवाया, पूजन कर भोजन कराया। प्रसन्न होकर यमराज ने बहन को वरदान दिया कि इस दिन जो भी बहन अपने भाई को सत्कार करके तिलक करेगी, उसे यम का भय नहीं होगा। तभी से भाई दूज की परंपरा बनी, और ऐसा माना जाता है कि जो भाई-बहन इस दिन पूजा करते हैं, उन्हें यमलोक का भय नहीं रहता।
भाई दूज का धार्मिक महत्व
भाई दूज का धार्मिक महत्व शास्त्रों में वर्णित है। मान्यता है कि कार्तिक शुक्ल द्वितीया पर यमराज ने अपनी बहन यमुना द्वारा किए गए सत्कार से प्रसन्न होकर उन्हें वरदान दिया था, इसलिए इसे यम द्वितीया भी कहा जाता है। इस दिन यमुना में स्नान और यम-यमुना की पूजा का विशेष महत्व है। पौराणिक मान्यता के अनुसार, भाई दूज के दिन पूजा करने से यमराज प्रसन्न होते हैं और मनोवांछित फल प्रदान करते हैं
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